Friday 24 February 2017

बुद्ध और शिवलिंग

  वाल्मीकि रामायण में प्रसंग है -
"देवायतन  चैत्येषु  सान्नमक्ष्या : सदक्षिण:( वाल्मीकि रामायण कांड 2,सर्ग 3 ,श्लोक 18)

अर्थात- चैत्यों मे अन्नो और दक्षिणा की व्यवस्था करो।

येम्य: प्रणमसे पुत्र चैत्येश्वयतनेषु ( वाल्मीकि रामायण 2/25/15)

अर्थात-पुत्र तुम चैत्यों में जिन्हें प्रणाम करते हो

वाल्मीकि रामायण में 'चैत्य' शब्द का प्रयोग बहुत बार किया गया है , लंका में जब हनुमान जाते हैं तो वो चैत्यों पर उछल कूद करते हैं।

हम जानते हैं कि ' चैत्य' शब्द का प्रयोग बौद्ध विहारों/ मठो के लिए किया गया है ,यानि की बौद्ध मठो /विहारों को चैत्य कहा जाता था।
देखें मेदनिकोष, the students sanskrit-english dictionary  ,संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ ।


नाग भारत की एक प्राचीन जाति है , महाराष्ट्र में  नागपुर नाम का प्रसिद्ध स्थान आज भी नागवंशीय राज्य होने का सबूत है । नाग जाति जिसका सम्बन्ध बुद्ध से रहा ।बुद्ध के समय से ही नाग वंशीय (वो गण जिनका टोटम नाग था) बुद्ध के अनुयायी रहे, जब बुद्ध बौद्ध धम्म का प्रचार प्रसार करते थे तो नाग जाति के लोग उनकी सुरक्षा और सेवा में लगे रहते थे ।

चैत्यों की पूजा बौद्ध परम्परा रही है ,यह धारणा प्रचलित है कि चैत्य शब्द की उतपत्ति ' चिता 'शब्द से हुई है जो संभवत: चिता से सम्बंधित था ।
चिता के ऊपर बनाया गया घर या स्मारक चैत्य कहलाता था जिसका प्रयोग सामान्य रूप से धार्मिक और पवित्र स्मारकीय शिलाओं ,पवित्र स्थलों  के रूप में होता था । वस्तुतः बौद्ध धर्म के  पूजा स्थल को चैत्य कहा गया ।

बौद्ध परम्परा के अनुसार जब किसी श्रेष्ठ भिक्खु , आचार्य, या प्रसिद्ध उपासक का परिनिर्वाण हो तो नदी, तालाब के किनारे या उपलब्ध भूमि पर दाह संस्कार के बाद जो अस्थियां या राख शेष रह जाता उसे किसी पात्र में एकत्रित कर के मिटटी में दबा दिया जाता और उसके ऊपर स्मारक के रूप में स्तूप बना दिया जाता था ।इन स्तूपों के पास स्नान करने का कुंड बना दिया जाता था ताकि श्रद्धालु लोग स्नान कर अपनी  क्रियाएं कर सके, मोहनजोदड़ो (मुअनजोदाड़ो) का स्तूप के पास बना ग्रेट बाथ इसका उदहारण है।

आंबेडकर साहब की अस्थियो पर भी बौद्ध परम्परा के अनुसार स्तूप / स्मारक बनाया गया है जिसको चैत्य भूमि कहा जाता है।

जब भारत से बौद्ध धर्म को नष्ट किया गया तो जो बचे हुए बौद्ध थे उन्होंने भय से वैदिक धर्म तो अपना लिया किन्तु बौद्ध संस्कार ख़त्म न हुए ।
जैसा की आज हिन्दू द्वारा मुसलमान बन जाने के बाद भी उनमे कई हिन्दू संस्कर खत्म न हुए और वे मुस्लिम रह के भी हिन्दू रिति रिवाजो को मानते हैं।

स्तूप व् चैत्य पूजा करने वाले बौद्धों ने उसी का छोटा रूप(गुम्बद अथवा टीले की तरह) बनाकर अपने घरों में स्थापित कर लिया ,वैदिक भय के कारण ये स्तूप /चैत्य आकार में और छोटे छोटे चले गएँ कालांतर  में वैदिकों ने जब देखा की इससे कमाई की जा सकती है तो स्तूप को शिव लिंग का नाम दे दिया ।स्तूप के पास बने स्नान घर में स्नान करने की प्रक्रिया जल चढ़ाने में बदल गई ।

शिव बना है शव शब्द से ,शव अर्थात चिता.... ।

एकवर्तमान  उदहारण से आप और क्लियर कीजिये, इन दिनों साईं के मंदिर हर गली नुक्कड़ में मिल जायेंगे । माथे पर चंदन - त्रिपुंड धारण किये उन्हें अवतार घोषित किया जा चुका है , साई मंदिर में पुजारी वही ख़ास वर्ग का होता है जो आने वाला चढ़ावे में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी करता है ।
किन्तु जब साईं जिन्दा थे तो उन्हें मंदिर नहीं घुसने दिया जाता था ,वो मस्जिद में आश्रय लेते थे पर उनके मरने के बाद कमाई के लिए उन्ही के मंदिर बनवा खूब चढ़वा ऐठा जाता है ...।
क्रमशः



Tuesday 14 February 2017

हसन मियां का वैलेंटाइन- कहानी


" का बात है आज कौनो ख़ास बात है? ई इत्ता भीड़ काहे है लल्लन की ठीहे पे?" हसन मिंया ने लल्लन फुलवाले की दुकान पर लगी भीड़ देख  बगल में बैठे रामआसरे को कोहनी मारते हुए पूछा।
"हमें ज्यादा तो नाही पता पर सुना है कि आज कौनो अंग्रेजी त्यौहार है " रामआसरे ने लापरवाही से कहा ।
"अंग्रेजी त्यौहार ? तब फूल काहे खरीद रहे हैं कि लरिका-लाइका( लड़का-लड़की)?" हसन मिंया ने फिर पूछा।
"हमको इतना तो नाही पता पर सुना है कि कौनो अंग्रेजी पीर बाबा रहे थे .... उन्ही से मन्नत मांगने को लइका -लरिका उन के नाम पर चढ़ाते हैं" रामआसरे ने सर खुजाते हुए गहन सोच के बाद कहा।
"अच्छा! त बहुत बड़का पीर बाबा रहे होंगे ... नाम का था ओकर? हसन मिंया की जिज्ञासा अब चरम पर थी।
"देखा है हसन भाई,हमहू तोहरे की तरह इंहा चौक पर बइठ के बढई गीरी क मजूरी करता हूँ.....अब हम्मे का पता ई ससुर कौन सा अंग्रेज पीर फ़कीर था जोके याद में लोग फूल देवत हैं.... अइसन करा की लल्लन से ही जाइके पूछ लियो"रामआसरे ने अपना पीछा छुड़ाते हुए कहा ।

रामआसरे की बात सुन हसन मिंया उदास हो गएँ,किन्तु अंग्रेज पीर बाबा के बारे में जिज्ञासा शांत न हुई ।जब उनसे रहा नहीं गया तो  बीड़ी पीने के बहाने उठे और लल्लन के ठीहे पर जा खड़े हुए।
थोड़ी इधर उधर की बात घुमाने पर असल मुद्दे पर आये ।
"आज बहुत बिक्री हैय रई है गुलाबन कि .... कौनो ख़ास बात है का ?" पोपले गालो को बीड़ी का सुट्टा खींच फुलाते हुए पूछा हसन मिंया ने।
"अरे हसन मिंया मत पूछा,आज एक अंग्रेज बाबा का जन्मदिन है " लल्लन ने फूलों को करीने से लगाते हुए कहा ।
"कौनो पहुंचे पीर रहे होंगे....का नाम था इनका?" हसन मिंया ने  फिर सवाल दागा।
"बहुत पहुंचे हुए पीर थे ,जेकर प्रताप अंग्रेजिस्तान से लेके इंहा अपने शहर तक रहा"लल्लन ने ज्ञान देने वाली मुद्रा में कहा ।
"अच्छा! जे बात है... जे अंग्रेज पीर बाबा को नाम का रहा? और कउन कउन मुराद पूरी करत हैं जे? ?" अब हसन मिंया अपनी मेन समस्या का समाधान चाह रहे थे लल्लन से।

"भईये हसन तुम पूछत हो तो बता ही देत हैं... बिनको  नाम रहो बाबा भैलनतेन शाह .... पहुंचे हुए औलिया थे....बिझड़े जोड़े मिलावत रहे वो सब लोगन क.... जो कोई किसी से प्यार -फ्यार करता उनके नाम का एकठो गुलाब बस चढ़ा देता अपने जोड़ा को  और बोल दे " हुप्पी भैलनतेन ढे"  उसका जोड़े के साथ जिंदगी भर का प्यार रहता है  .....बस बाकी तो   बाबा भैलनतेन शाह की कृपा" इतना समझा लल्लन ने दोनों हाथ ऐसे जोड़े की जैसे वह बाबा भैलनतेन शाह का आशीर्वाद ले रहा हो।

लल्लन की बात सुन हसन मियां की आँखों में चमक आ गई ,उन्होंने फटा फट बीड़ी फेंकी और जा के रामआसरे के साथ कुर्सी बनाने लग गएँ।

हसन मिंया की उम्र रही होगी 60 साल के करीब । पतला दुबला शरीर , बाल पके हुए हलकी दाढ़ी।
यूँ तो दो बेटे और तीन बेटियां थी हसन मिंया के पर सबकी शादी हो चुकी थी  सबसे छोटे बेटे की अभी शादी की थी, उनकी बेगम का नाम था शकीला जो लगभग 55साल की रही होगी।

हाथ के कारीगर थे इसलिए घर पर बैठना अच्छा न लगता था और रामआसरे के साथ सेठ मुनिराम के फर्नीचर की दुकान पर बढई गीरी करते इससे घर खर्च में हाथ भी बंटा देते वो।


शाम को जब छुट्टी हुई तो हसन मिंया ने सेठ मुनिराम से 100 रूपये एडवांस लिए और रामआसरे को बिना बताए चुप चाप 40 रूपये का एक गुलाब खरीद अपने लंच वाले झोले में डाल लिया ।

घर पहुँच के जल्दी जल्दी खाना खाया और फिर झूठ मूठ  सोने की तैयारी करने के बहाने अपने कमरे में आ लेट गएँ। अभी शकीला बेगम अपनी बहुओं के साथ रसोई में ही व्यस्त थी, हसन मिंया बैचेन हो बार बार दरवाजे से बाहर झांकते की शकीला बेगम कब आयेगी। इस चक्कर में उन्हें थोड़ी झुंझलाहट भी हो रही थी शकीला बेगम पर,पर क्या करें मामला चिल्लाने वाला नहीं था न सो चुप चाप इन्तेजार करते रहें।

तकरीबन डेढ़ घण्टे बाद शकीला बेगम कमरे में आई तो झट उनका हाथ खींच चारपाई पर बैठा दिया और  झोले से गुलाब निकाल शकीला बेगम को थमाते हुए बोले " हुप्पी भैलन तेन ...ढे" ।
किन्तु शकीला बेगम शकीला बेगम गुलाब का फूल देखते ही खुश होने की जगह बिदक गईं और गुस्से में बोली-"जे का लिआये? का करेंगे हम जाको? फिजूल खर्ची बहुत करने लगे हो इस उम्र में तुम....अरे आज दस रोज से ऊपर हो गया कहे की नई चप्पल ले लो अपनी ...पर  तुम....ई फूल ली आये ... का काम है इका हमारे लिए ? जाओ बकरियां को डाल दो.... बड़े आए फूल लेके "

हसन मिया ने शकीला बेगम की जली कटी सुनी तो सारा  उत्साह जैसे बर्फ में धंस गया हो । बड़ी मुश्किल से वो बोले-
" पर लल्लन बोल रहा था कि आज अंग्रेज पीर भैलनतेन शाह का उर्स है ,और अपने प्यार करने वाले जोड़े को गुलाब दिया जाता है ..... तबही हमउ  सोचे ..." कहते कहते चुप हो गएँ हसन मिंया।
"अरे पांच बच्चे पैदा कर दिए....तब नाही सोचे प्यार- फ्यार .... अब ई बुढ़ापे में बचकाना सूझ रहा है तुम्हे" कहते हुए फिर झाड़ लगाई शकीला बेगम ने ।

झाड़ सुन हसन मिंया बहुत उदास हुए और बाहर चलने लगे ताकी गुलाब बकरी को खिला सके।

अभी दरवाजे तक ही पहुंचे होंगे की शकीला बेगम ने आवाज लगाई, वापस आये तो शकीला बेगम ने उन्हें पकड़ लिया और मुंह पर जोरदार चुमम्बन लेते हुए बोली- " हैप्पी वैलेंटाइन डे" और इतना कह दुप्पटे से एक गुलाब निकाल के उन्हें पकड़ा दिया ।

हसन मिंया को तो जैसे समझ ही नहीं आया ,अचरज से भरे जैसे आसमान में उड़ रहे हों ।,आँखे फ़टी की फटी रह हैं.... मारे आस्चर्य के जैसे बेहोश होने वाले हों।
"अइसन कहा जाता है हैप्पी वैलेंटाइन डे" शकीला बेगम ने हँसते हुए कहा ।

दरवाजे के पीछे हसन मिंया की दोनों बहुएं मुस्कुरा रही थीं।

बस यंही तक थी कहानी....

Friday 10 February 2017

पहला प्रेम पत्र- कहानी

" अबे देख वो आ रही है ..... जा कर ले बात" नन्नू ने कोहनी मारते हुए कहा ।
"जाऊं?..... सच में जाऊँ क्या?"केशव ने थूक अंदर सटकते हुए कहा ।
" तो कब जायेगा?  अबे अब नहीं जायेगा तो कोई आ जायेगा.... देख अकेली है आज कह दे अपने दिल की बात ..... चल जल्दी जा " नन्नू ने लगभग धक्का देते हुए कहा।
"धक्का क्यों दे रहा है बे? जाता हूँ..... चल जा रहा हूँ" केशव ने शर्ट सही करते हुए कहा ।
"जा रहा हूँ .... जा रहा हूँ .... साले एक घण्टे से टूशन सेंटर के बाहर इंतेजार करवा रहा है .... और अब आ गई तो आगे बढ़ ही नहीं रहा है .... मैं बोल दूँ क्या उसे आई लव यू? .….. तेरे से नहीं हो रहा है तो?" नन्नू ने पहले गुस्से के और फिर व्यंग में कहा ।

"अबे मुंह तोड़ दूंगा तेरा जो दुबारा ऐसा बोला तो ....भाभी है तेरी वो.... समझा " केशव ने पलट के  नन्नू को घुसा दिखाते हुए कहा।
" अबे मजनू की औलाद..... भाभी तो वह जब बनेगी जब तू उसे बोलेगा.... अब जा भी वर्ना मैंने चला जाऊंगा" नन्नू ने गुस्से में कहा और बस्ता उठा लिया।
" ठीक है .... जा रहा हूँ यार....थोड़ी हिम्मत तो करने दे" केशव ने एक जोरदार सांस ली और फिर छोड़ी ।
" तो जाऊं?" के केशव ने एक कदम आगे बढ़ाया और फिर रुक के नन्नू से पूछने लगा।
नन्नू ने दांत पीसे तो वह आगे बढ़ा।

विभा ने केशव को अपनी ओर आते देखा तो नजरे दूसरी तरफ कर ली जैसे देखा ही न हो ।
" वि......" अभी आधा ही नाम ले पाया था केशव विभा का की पीछे से विभा की सहेली ने आवाज लगा दी।
"विभाsss.... जरा रुक मैं भी आ रही हूँ" ये सहेली थी विमला ।

विमला को यूँ विभा के पीछे आता देख केशव घबरा गया वह तुरंत चुप हो दूसरी तरफ देखने लगा ।
विभा ने केशव की इस हरकत पर मुंह बिचका लिया जैसे कह रही हो 'तेरे बस की न है कुछ' और विमला से बाते करने लगी।

पीछे केशव खड़ा ही रहा गया , नन्नू ने आज भी उसे पचासों गलियां दी । ये महीने में दूसरा मौंका था जब केशव ने विभा से बात करने का मौका गँवा दिया था ।

" अबे ऐसे न बन पाएगा तू मजनू?तेरे बस की न है ....बेकार में समय मत खराब कर .... तेरी वजाय से स्कूल गोल करना पड़ता है.... मास्टर ने कंही शाम की हाजरी ले ली तो ऐसी तैसी कर  देगा दोनों की " नन्नू ने केशव पर लानत भेजते हुए कहा।
" तो क्या करूँ? आवाज ही बंद हो जाती है उसके सामने" केशव ने हताश होते हुए कहा ।
" अरे !मर्द बन मर्द..... "नन्नू ने सीना ठोकते हुए कहा।
" साले! वोटर आईडी बनने के लिए अभी दो-तीन  साल है " केशव ने कहा।
" अबे वो वाला मर्द नहीं बल्कि वो वाला मर्द जो खून से अपनी गर्लफ्रेंड को लेटर लिखता है ....फिर देख लड़की कैसे नहीं पटती"नन्नू ने जोश में कहा।
"अच्छा तुझे कैसे पता? "केशव ने आस्चर्य से पूछा।
"मेरा भाई है न कल्लू जो बारवी में पड़ता है .... उसने  शीला  को अपने खून से लेटर लिखा था ....बस पट गई.....अबे पटी क्या फ्लैट हो गई .... इस वैलेंटाइन पर दोनों घूमने भी जा रहे हैं "
"अच्छा ! सच में ? " केशव को अब दुगना आस्चर्य हुआ..." क्या सच में पट गई शीला उस कालिये नाग से ?

" माँ कसम.... तुझे से क्यों झूठ बोलूंगा? ... और हाँ खबरदार मेरे भाई को कालिया नाग बोला तो!!" नन्नू ने केशव को धमकाया ।
" ठीक है यार!! चल पक्का मैं भी खून से लैटर लिखता हूँ विभा को कल"केशव ने जोश में कहा ।
"शाब्बाश!!" नन्नू ने केशव के कंधे पर हाथ मारा और दोनों बस्ता उठाये घर चल दिये।

अगले दिन ।

"हां शाबाश!!....ले मार अपनी कलाई में ब्लेड...और निकाल खून" नन्नू ने टॉपज़ का नया ब्लेड केशव को थमाते हुए कहा ।
केशव ने ब्लेड किया और काफी देर उसे घूरने के बाद कांपते हाथो से हल्का सा काट लगाया , कट लगते ही चीख निकल गई पर इतना खून न निकला की दो अक्षर भी लिखे जा सके ।
नन्नू ने उसे डांटते हुए कहा -" अबे! ऐसे न बनेगा तू मजनू.....तेरे बस की कुछ नहीं है... एक कट न लग रिया है  तुझ से और लोग हाथ तक काट लेते हैं गर्लफ्रेंड के चक्कर में "
"डर लग रहा है ....मेरे बस की न है यह खून-बून निकालना.....पापा ने कटा हाथ देख लिया तो ऐसी तैसी कर देंगे" केशव ने ब्लेड फेंकते हुए कहा ।

बहुत देर तक खमोशी छाई रही ।
फिर अचानक नन्नू उछलते हुए बोला" आइडिया.... तेरा काम हो जायेगा"
"कैसे ?देख अब पैर काटने की बात करियो"केशव ने डरते हुए कहा ।
"न बे....न हाथ काटने का और न पैर....और रंग भी खून का "नन्नू ने कहावत की ऐसी तैसी करते हुई कहा ।
" अच्छा कैसे?"केशव ने पूछा।
"देख उसे नहीं पता होगा की तू किसके खून से लेटर लिख रहा है ...लेटर खून से ही लिखा जायेगा पर ...किसी और के खून से" नन्नू ने अपनी खोपड़ी को झटका देते हुए कहा।

"किसके? " केशव ने मुंह फाड़ते हुए पूछा।
" मेरे भाई कल्लू के खून से " नन्नू ने अपना आडिया बताया।
"वो क्यों लिखेगा हमारे लिए?" केशव ने पूछा।
"लिखेगा भाई.... लिखेगा....वो मेरा भाई है जानता हूँ उसे .....पर तुझे 50 रूपये का इंतेजाम करना पड़ेगा।
"प्...पचास..रूपये.....बहुत ज्यादा है" केशव ने हकलाते हुए कहा ।
"अबे इससे कम में नहीं देगा वह अपना खून.....तुझे विभा पटानी है कि नहीं....एक्सपीरियंस वाले से काम करवाएगा तो खर्चा तो ज्यादा देना ही होगा  ?" नन्नू ने फ़ाइनल राउंड समझाया।
"ठीक है"केशव के मुंह से धीरे से आवाज निकली।
"तो डन!....तू बस  पचास रुपये का इंतेजाम कर ..कल तेरा काम कराता  हूँ उससे "नन्नू ने इतना कहा और बाहर निकल गया  ।

अगले दिन नन्नू और केशव कल्लू के सामने हाजिर थे, बन्दे ने पचास रुपये पहले ही धरवा लिए थे ।
उसके बाद कागज और एक कलम निकाल ली ।
"हाँ भाई लल्लू.... तो क्या नाम है तेरी लैला का ?" कल्लू ने केशव से पूछा।
" कल्लू भाई ... विभा"केशव ने अटकते हुए कहा ।
"कितनी बार बात की है तूने उससे?" कल्लू ने पैर फैलाते हुए पूछा।
" अभी तक एक बार भी नहीं" केशव ने सर झुकाते हुए कहा ।
"अच्छा!.... लैटर थमा देगा उसे ?" कल्लू ने फिर पूछा।
"मुश्किल है भाई,अभी तक तो बात करने में ही डर जाता है "नन्नू ने आगे बढ़ के कहा ।
"हम्म...होता है ....तू ऐसा कर 20 रूपये का इंतेजाम और कर लैटर पहुचाने का जिम्मा मेरा" कल्लू ने कान में ऊँगली डाल खुजाते हुए कहा ।
" 20 रूपये और...... " केशव ने मारे आस्चर्य से कहा।
" अबे देदे.... नहीं तो तू लैटर लिखवा भी लेगा तो दे नहीं पायेगा...."नन्नू ने केशव को समझाते हुए कहा ।
" ठीक है कल दे दूंगा...."केशव ने बुझे मन से कहा।

तो उसके बाद कल्लू उर्फ़ कालिया नाग ने अपनी कलाई से पर हल्का सा ब्लेड मारा और एक शीशी निकाल ली जिसमे पहले से ही खून भरा हुआ था ।
कलाई से दो तीन बून्द खून निकाल उस शीशी में मिला हिलाने लगा।
"भाई ये किसका खून है?" केशव ने हैरानी से पूछा।
"बकरे का ...." कल्लू ने शीशी को टेबल पर रखते हुए कहा ।
"पर आप तो अपने असली खून से लिखने वाले थे न लैटर" केशव ने मध्यम आवाज में पूछा।
केशव की बात सुन कल्लू रुक गया और केशव के कंधे पर हाथ रखता हुए दार्शनिक अंदाज में बोला-"देख बच्चे ...प्यार और जंग में सब जायज है .... मेरा दो बूंद खुन ही तेरे पचास रूपये से ज्यादा कीमती है ....तू घुठलियां मत गिन बस आम खाने की तैयारी कर ....लैला तेरी होगी ...अबे लल्लू ....एक्सपीरियंस की कीमत होती है .... समझा"
"जी भाई"केशव ने बुझे मन से कहा ।

कल्लू ने बकरे के खून से लैटर लिखना शुरू किया पहली ही लाइन की  शुरुआत शेर लिख के की ,शेर था -
"लिखता हूँ खून से स्याही मत समझना।
मरता हूँ तुम्हरी याद में जिन्दा मत समझना.

"वाह कल्लू भाई वाह .... मजा आ गया ...क्या शेर लिखा है "केशव ने ख़ुशी से उछलते हुए कहा ।
"अबे बावले..... इसी की तो कीमत है "कल्लू ने गर्व से मुस्कुराते हुए कहा ।

"तुम्हारा चाहने वाला.... केशव"हाँ तो हो गया तेरा प्रेम पत्र पूरा। कल्लू ने लेटर को अंतिम रूप देते हुए कहा ।

"वाह!कल्लू भाई....मजा आ गया कसम से मैं न लिख पाता ऐसा लैटर...." केशव ने ख़ुशी से उछलते हुए कहा ।

अगले दिन कल्लू को ले केशव और नन्नू विभा के ट्यूशन जाने के रास्ते में खड़े थे ।
जैसे ही विभा दूर आती नजर आई केशव ने कल्लू को इशारा किया,कल्लू ने विभा को देखा तो देखता ही रह गया ।

वह लैटर देने के लिए आगे बढ़ा , पर अचानक बीच रास्ते में ही वह रुका और जेब से कलम निकाल हाथ पर घाव बनाने लगा  उसके बाद उसने लैटर निकाला और खून से कुछ लिखने लगा  । केशव को समझ नहीं आ रहा था क्या वह कर क्या रहा है।

तब तक विभा ने कल्लू को देख लिया था , वह कल्लू के सामने से आगे बढ़ी तो कल्लू ने उसे आवाज दी ।
विभा कल्लू की आवाज सुन रुक गई , कल्लू उस्क्व पास आ बाते करने लगा।

केशव और नन्नू उन्हें दूर से देख रहे थे किंतु उनकी बातें सुनने में असमर्थ थे ।

थोड़ी देर बात करने के बाद कल्लू ने लैटर निकाला और विभा को दे दिया । विभा ने थोड़ा न नुकार कर के आखिर लैटर ले ही लिया।

केशव ने जब विभा को लेटर लेते हुये देखा तो बहुत खुश हुआ ,ख़ुशी से उसका दिल जोर जोर धड़कने लगा ।अब तो विभा उसकी हो गई।

जब विभा उसके पास से गुजरी तो उसे देख मुस्कुरा दी ,केशव तो जैसे हवा में उड़ने लगा .....अब तो पट गई ।
विभा के जाने के बाद कल्लू उनके पास आया तो केशव ने पूछा की आखिर उसने बीच रास्ते में लैटर में और क्या लिख दिया ?।
कल्लू ने कोई जबाब नहीं दिया बस मुस्कुरा दिया ।

उसी दिन केशव ने ख़ुशी में सभी दोस्तों को समोसों की पार्टी दी ,आखिर विभा ने उसका प्रेम पत्र स्वीकार जो कर लिया था । सभी दोस्तों ने उसे खूब बधाइयाँ दी ,आखिर केशव जंग जीत ही गया था।

अगले दिन केशव विभा से मिलने उसके ट्यूशन के रास्ते मे खड़ा था किंतु आज विभा ट्यूशन आई ही नहीं ।

दो दिन बाद विभा और कल्लू एक रेटोरेन्ट में बैठे बाते कर रहे थे , केशव को यह खबर नन्नू ने दी।
पहले तो केशव को यकीन न हुआ फिर साथ चलके देखा तो वाकई छगनलाल के रेस्टोरेंट में दोनों बैठे प्यार भरी बातें कर रहे थे ।

केशव को माजरा समझ नहीं आया ,विभा को यूँ कल्लू के साथ बैठे प्यार भरी बातें करते हुए उससे सहन न हुआ वह बाहर निकल आया ।
पीछे पीछे नन्नू भी आ गया , बहुत पूछने पर नन्नू ने बताया कि कल्लू ने जो बीच रास्ते में लैटर पर कुछ लिखा था दरसल वह केशव का नाम काट के अपना नाम ' कल्लू'लिख दिया था । इसलिए विभा कल्लू से इम्प्रेस हो गई और उससे प्यार करने लगी।

केशव के आगे अँधेरा छाने लगा।

बस यंही तक थी कहानी.....

Wednesday 8 February 2017

वैलेंटाइन गिफ्ट- कहानी

  "कितना खूसूरत है चाँद आज की रात!.... एक दम उजला सफेद,.... है न चंदन?" रिया ने आसमान में पुरे खिले चंद्रमा की तरफ टकटकी बांधे  हुए पूछा ।

फरवरी की हलकी सर्दी और रात के तकरीबन बारह बजे से कुछ ऊपर का समय रहा होगा, चंदन और रिया चौथी मंजिल के फ्लैट की  बालकनी पर खड़े थे। ये फ्लैट चंदन ने किराये पर लिया था ,यंही रहता था वो।

चंदन अकेला रहता था इस फ्लैट में, माँ बाप बचपन में  गुजर गए तो बुआ ने उसे पाला । किसी तरह स्नातक करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में सेल्स का काम करने लगा था और अब किराये अलग रहने लगा था।

रिया से उसकी मुलाक़ात एक पार्टी में हुई , वह अभी कॉलेज में ही पढ़ रही थी। हलाकि अभी दोनों को मिले कुछ ही महीने हुए थे किंतु दोनों में प्यार गहरा हो गया था । आज वेलेंटाइन डे था और रिया ने चंदन के घर में ही इसे सेलिब्रेट करने का मन  बनाया तभी वह यंहा रुकी हुई थी।

"हूं.... " चंदन जो सड़क पर एक्का- दुक्का गाड़ियों की पास आती और फिर दूर जाती हैडलाइट की रौशनियो को निहारते हुए कहा।
" हूं ... हूं क्या ?….. देखो न!चाँद तारो में घिरा कितना सुंदर लग रहा है ... जैसे कोई दुल्हन हीरो से जड़ी चुनरी होड के झाँक रही हो... ये ठंडी हवा...ये खामोशियाँ ...आह!....चंदन!कितना रोमांटिक मौसम है आज...यूँ लग रहा जैसे ये चाँद तारो की बारात लिए हमारे प्यार का साक्षी बन रहा है " रिया ने प्यार से  चंदन के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा ।

"हूं... " चंदन ने चंद्रमा की तरफ देखते हुए कहा ।
"फिर हूँ.... क्या है!!" क्या तुम्हे कुछ महसूस नहीं हो रहा है ? "रिया चंदन के और करीब आते हुए कहा।
" पता है चंदन!मुझे चाँद की उजली चाँदनी बहुत पसंद है ..... जी करता है कि बस देखती ही रहूँ... तुम्हे कैसा लगता है ? " रिया ने चंदन के सीने पर अपना सर रखते हुए पूछा।

एक गहरी सांस छोड़ी चंदन ने ,फिर चाँद की तरफ एक टक देखता हुआ बोला-
"मुझे चाँद ऐसा लगता है जैसे कोई सोने का सिक्का हो जिसे हाथ बढ़ा के छू लेने का मन करता है"
" मन करता है कि सिक्के को बस तोड़ लूँ.... और खरीद लूँ दुनिया की हर ख़ुशी, मुझे चाँद वैसा ही लगता है जैसे किसी भूखें बच्चे को चाँद रोटी का टुकड़ा लगे"

इतना कह चंदन खामोश हो गया ।उसकी ऐसी बाते सुन रिया अपना चेहरा चंदन के चेहरे के बिलकुल पास लाइ और बोली-
"चंदन! पैसा ही सब कुछ नहीं होता ,इस दुनिया मे प्यार सबसे जरुरी है "
" पता नहीं रिया,पर आभावो में जीते हुए मुझे यही अनुभव हुआ है कि पैसा ही सब कुछ होता है ..... पता नहीं मैं तुम्हे खुश रख भी पाउँगा की नहीं ?" चेतन ने रिया की आँखों में देखते हुए कहा ।
" कैसी बाते करते हो! मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए जीने के लिए ...बस! और कुछ नहीं ... मैं हर हाल में खुश रह लुंगी तुम्हारे साथ .... लव यू "इतना कह रिया चंदन से लिपट गई ।


दोनों के विवाह के तीन साल बाद।

"चंदन ऐसा कैसे चलेगा काम?अब हमारी बच्ची बड़ी हो रही है उसका एडमिशन करवाना है  ... पचास हजार डोनेशन मांग रहे हैं स्कूल वाले .... तुम कोई और नौकरी क्यों नहीं कर लेते?" रिया ने चंदन को खाना परोसते हुए कहा ।
" कितनी नौकरी बदलूँ ? तीन साल में पांचवी नौकरी है यह....आज कल नौकरियां इतनी आसानी से नहीं मिलतीं.……. और बच्ची को अभी थोड़ा कम खर्च वाले स्कूल में पढ़ा देते हैं बाद में देखेंगे"चंदन ने थोड़ा झिड़कते हुए कहा ।
"हाँ जैसे हम रह गएँ न वैसे ही हमारे बच्चे भी ... अरे का स्कूल में बेशक फीस ज्यादा है पर बच्चा वंहा से कुछ बन के ही निकलता है ..... हमारी तरह नहीं की सरकारी स्कूल में पढ़ लिए और लग गए गधे की तरह किसी लाला कंपनी में मजदूरी करने .... मैं तो अपनी बच्ची को उसी स्कूल में पढ़ाऊंगी... " रिया ने लगभग गुस्से में कहा।

चंदन ने रिया को गुस्से में देखा तो कुछ नहीं बोला बस सर नीचे कर खाना खाता रहा ।

कुछ दिन बीते ।

"सुनो ,क्यों न हम एक कार खरीद लें? मेरे सब रिस्तेदारो के पास है...मुझे बड़ी शर्म महसूस होती है जब हम तुम्हारी खटारा मोटरसाइकिल पर बैठती हूँ…. अब तो बच्ची भी बड़ी हो रही है मोटरसाइकिल पर तीन जने बड़ी मुश्किल से एडजस्ट हो पाते हैं" रिया ने करवट बदलते हुए कहा ।
"कार!यार मेरी सैलरी इतनी नहीं है कि कार ले लूँ..." चेतन ने लेटे -लेटे ही कहा ।
"सैलरी नहीं है ....सैलरी नहीं है.... जिंदगी भर यूँ ही रोते रहना .... कोई सुख नहीं देखा मैंने तुम्हारे साथ चार सालों में.... बस नौकरानी बना के रख दिया है ... चूल्हा चौके में .... एक अंगूठी तक नहीं दिलाई शादी के बाद …..कभी कभी तो दम घुटता है मेरा तुम्हारे साथ' रिया गुस्से में न जाने क्या क्या बोले जा  रही थी ।
" तो मुझ से शादी क्यों की? जब तुम्हे पता था मेरी हैसियत उतनी नहीं है " चेतन ने गुस्से में कहा।
"हाँ हाँ ... अब तो तुम यही कहोगे न! मेरी मति मारी गई थी " रिया ने दुगने गुस्से में जबाब दिया और रोने लगी।
चेतन चुप हो गया, अब तो उसको भी आदत हो गई थी रिया के ऐसे ताने सुनने के ।

धीरे धीरे अब दोनों के बीच आये दिन झगडे बढ़ते गएँ। बात बढ़ते बढ़ते तलाक तक की नौबत आ गई, तलाक़ रिया लेना चाहती थी।

आज फिर वैलेंटाइन डे था, पर रिया को याद न था वह फिर खूब लड़ी थी चेतन से और तलाक़ के पेपर्स पर साइन करवा अपनी मां के घर जाना चाहती थी।

काफी रात हो गई थी पर अभी तक चेतन घर नहीं आया था ,रिया को अब थोड़ी बेचैनी होने लगी थी उसने घड़ी पर नजर डाली तो एक बजने वाला था ।
उसने मन मार के चेतन को फोन करना चाहा किन्तु फोन स्विच ऑफ आ रहा था ।
रिया कमरे से बाहर निकल बालकोनी में आ गई, बाहर चाँद पूरा खिला हुआ था ।रिया ने चाँद को देखा तो उसे पुराने दिन अचानक याद आ गएँ । वो चेतन के साथ शादी से पहले के दिन उसकी आँखों के आगे घूमने लगे।
उसने फिर चेतन को फोन लगाया किन्तु अब भी स्विच ऑफ ।वह बेचैन हो फिर कमरे में आ गई , बच्ची गहरी नींद में सो रही थी ।
रिया ने यूँ ही अलमारी से चेतन का ऑफिस बैग निकाल लिया ,फिर उसे ध्यान आया की चेतन का  ऑफिस बैग तो यंही है फिर बिना ऑफिस बैग के चेतन ऑफिस कैसे चला गया?।

उसने बैग खोल के देखा तो उसमें बहुत के कागजो के साथ एक लैटर मिला।
रिया ने लैटर खोल के देखा  और पढ़ने लगी-
'रिया, मैंने मैंने जिंदगी में सिर्फ तुमसे प्यार किया था ...मुझे लगा था कि तुम मेरे साथ हर हाल में खुश रहोगी...मैंने तुम्हे जिंदगी का हर सुख देने चाहता था पर मैं नाकामयाब .... मुझे माफ़ करना । जब तुम यह लैटर पढ़ लेना तो देखना कागजो के बीच एक लिफाफा रखा है उसमें मेरे बीमा के कागज़ात है ,मैंने तीस लाख का बीमा करवाया है जो तुम्हे मेरे मरने के बाद मिल जायेगा ।इस तीस लाख रूपये से तुम नया जीवन शुरू करना ... और मेरी बच्ची को खूब पढ़ना और इसे काबिल काबिल बनाना ताकि यह हमारी तरह आभाव में न जिए.... मैं जा रहा हूँ ,जीते जी तुम्हे कोई ख़ुशी न दे पाया इसके लिए मुझे माफ़ करना .... आई लव यू...हैप्पी वैलेंटाइन ..."

रिया के हाथ से लैटर छूट गया ..… वह बदहवास बार बार चेतन का फोन मिलाने लगी।

सुबह खबर मिली की चेतन का एक्सीडेंट हो गया और वह अब नहीं रहा।


बस इतनी सी थी कहानी....


Saturday 4 February 2017

ढाबा- 6 ( पंचतत्व)


आज ढ़ाबे  में रोज की अपेक्षा ज्यादा चहल पहल थी, अधिकतर कुर्सियां हटा के उनकी जगह नई चादर  बिछा दी गई थी  जिन पर बहुत से लोग पालथी मार बैठे हुए आपस में बाते कर रहे थे ,चादर के सामने ही एक मेज बिछा  उसपर  कई भगवानो की फूल माला चढ़ी हुई तस्वीरे रखी थी जिसके आगे सुगन्धित धूप जल रही थी । धूप की भीनी भीनी सुगंध दूर से ही संकेत कर रही थी की कोई धर्मिक प्रोग्राम होने वाला है ।


केशव ने ढाबे के मालिक रामप्यारे की तरफ देखा तो वह नया कुर्ता पायजामा पहने जल्दी जल्दी एक सिल्वर की परात में से छोटी छोटी कागज की थैलियों में बूंदी भर रहा था , शायद प्रसाद के रूप में बांटने के लिए। जब रामप्यारे ने केशव को देखा तो मुस्कुरा दिया ।

केशव ने रामप्यारे से पूछा -" का हो? आज कुछ विशेष बा का? इस सब का है? "केशव ने चादर पर बैठे लोगो की तरफ इशारा करते हुए कहा ।

रामप्यारे ने बूंदी की थैली भरते हुए मुस्कुरा के कहा " केशव भइया!आज हमरे हरिद्वार वाले गुरु आ रहे हैं  ,प्रवचन देंगे ....उन्ही की तैयारी है"

"चाय तो मिलेगी न "केशव ने सिगरेट सुलगाते हुए पूछा ।
"हाँ हाँ...मिलेगी काहे नहीं भइया.... किन्तु तनिक देर लगेगी....आप बैठिए हम भिजवाते हैं थोड़ी देर में ....अभी गुरु जी कौनो बखत आने वाले ही होंगे ...आप भी उनका परवचन सुनिए .…बहुत ज्ञान ध्यान की बाते कहते हैं वो "रामप्यारे ने गर्व से कहा।
"ठीक  है भाई!....कोने में बैठा हूँ.....चाय वंही भिजवा देना " केशव् ने कहा और कोने में पड़ी कुर्सी पर जा बैठा।

कुछ ही मिनटों में ढाबे के आगे एक सफ़ेद वैन आ के रुकी ,उसका दरवाजा खोल एक 50-55 साल के बुजुर्ग गेरुआ वस्त्र पहने प्रकट हुए । गले में बीसियों छोटी बड़ी रुद्राक्ष की माला और दसो उंगलियों में रंग बिरंगे पत्थरो की अंगूठियां।

रामप्यारे गुरु जी को देखते ही उनके चरणों में दंडवत हो गया , गुरु जी मुँह से कुछ न बोले केवल बात से आशीर्वाद देने का इशारा भर किया।
आशीर्वाद लेने के बाद रामप्यारे बड़े आदर से उन्हें आसान की तरफ ले गया और वँहा उन्हें विरजमान करवाया। बाकी दरी पर बैठे लोगो ने भी बारी बारी गुरु जी के पैर छुए और गुरु जी का आशीर्वाद ग्रहण किया ।

एक गिलास खालिस दूध और कुछ फल ग्रहण करने के बाद गुरु जी ने प्रवचन देना शुरू किया ,केशव अब भी कोने में बैठा हुआ था और गुरु जी के प्रवचन सुन रहा था । हाँ, चाय अभी तक नहीं मिली थी उसे।

गुरु जी बहुत देर तक धर्म -शास्त्रों की महत्वता ,ईश्वर आदि पर  प्रवचन देते रहे और फिर बोले -" इंसान तो पांच तत्वों से बना हुआ पुतला मात्र है जिसे जिसे ईश्वर ने अपने अपने कर्मो को भुगतने के लिए संसार में भेजा है"

केशव ने सिगरेट को बुझा एक तरफ फेंकते  हुए पूछा " गुरु जी पांच तत्व कौन कौन से हैं?

किसी का अचानक यूँ बीच में टोकना और वह भी प्रश्न पूछना गुरु जी को नागवार और  क्रोध उनके चेहरे पर झलकने लगा ,किन्तु अगले ही क्षण सामान्य होते हुय मुस्करा के बोले -" अग्नि,वायु,जल ,पृथ्वी और आकाश.......इन पांचों तत्वों का पुतला है मानव"
"और आत्मा?....आत्मा क्या है?" केशव ने पूछा
"आत्मा परमात्मा का अंश है .... पांचों तत्व द्वारा निर्मित शरीर में आत्मा वास करती है ," गुरु जी ने समझाने वाले लहजे में कहा ।

 पूरा माहौल प्रभावित हो गुरु जी के ज्ञान का अमृतपान कर रहा था ।

"तो गुरु जी ! क्या सही है कि  मानव पांच तत्वों का पुतला है ? "केशव ने कुछ कंफर्म करने वाले लहजे में  पूछा।
"हाँ.... बिलकुल सही ... क्या तुम्हे एक बार बताने में समझ नहीं आता?"गुरु जी ने थोड़ा नाराज होते हुए कहा।
" जी, कंफर्म कर रहा था .... पांच तत्व हुए ,पृथ्वी ,वायु, अग्नि ,जल और आकाश .... ठीक!!?"
गुरु जी ने इस बार कुछ नहीं कहा केवल सहमति से सर हिला दिया।
" किन्तु गुरु जी , क्या आपको पता है कि पृथ्वी अपने आप में कोई तत्व नहीं है क्यों की यह खुद 100 से अधिक तत्वों से बनी हुई है । जिनमे से आठ तत्व प्रमुख हैं जैसे ऑक्सीजन ,एल्युमिनियम ,सिलिकॉन,लोहा, कैल्शियम,सोडियम, पोटैशियम , मैग्नीशियम आदि ....तो इसे 'पृथ्वी' तत्व कहना गलत नहीं हुआ क्या? "

" वायु भी कोई 'तत्व'नहीं बल्कि गैसों का मिश्रण है जिनमे ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन आदि प्रमुख हैं ..... तब ऐसे में वायु ' तत्व ' क्या हुआ ?

गुरु जी केशव की बात सुन रहे थे किंतु चेहरे पर कई भाव आ जा रहे थे ।

" इसी प्रकार अग्नि भी कोई 'तत्व'नहीं बल्कि ज्वलन प्रक्रिया है ।एक घटित हो रही घटना है जिसमे पदार्थ हवा में मिलने वाली ऑक्सीजन से रासायनिक तौर पर मिलते हैं और प्रकाश तथा ताप छोड़ते हैं ।अतः यह स्पष्ट है कि अग्नि कोई पदार्थ न होके एक ऐसी प्रक्रिया है जो ऑक्सीजन के बिना अस्तित्व में नहीं आ सकती .... " केशव ने आगे कहना जारी रखा।

"जल भी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का योगिक है न की पदार्थ "केशव ने कहा और कुछ देर चुप हो गुरु जी को देखने लगा ।

अब लोग भी चुपचाप वार्ता का अनान्द ले सुन रहे थे , अब गुरु जी की तरफ से लोगो का ध्यान हट केशव की तरफ जाने लगा था ।

"गुरूजी ,आकाश तत्व ईश्वर का द्योतक है किंतु आकाश में ईश्वर है यह कपोलकल्पित है । दुनिया ने रॉकेट, अंतरिक्ष यान , उपग्रह आदि भेज दिये है आकाश में किन्तु आपके तथाकथित 'ईश्वर 'का पता नहीं चला।" केशव ने कहा ही था कि गुरु जी तपाक से बोले -
"अगर मैं कंहु आकाश का मतलब आसमान है तो? कह गुरु जी अर्थपूर्ण मुस्कुरा दिये ।

"तो !! ...तो गुरु जी आपके इस आकाश का ढांचा उस में मौजूद द्रव्यमान से निर्धारित होता है । यदि वस्तुएं( गैस आदि) गायब हो जाएं तो न आकाश का पता चलेगा न काल का ..... जो आकाश स्वयं वस्तुओं के अस्तित्व पर आश्रित है वह वस्तुओं के बनाने में कैसे सामग्री हो सकता है ?

गुरु जी का क्रोध अब बढ़ता जा रहा था ...
"  तू की नास्तिक लगता है .....नास्तिक भी तो चार तत्वों को मानते है ..वायु, अग्नि,जल,पृथ्वी...उसका क्या ?"

"जी नास्तिक भी मानते हैं ... ये बात काफी हद तक सही है किंतु चार्वाक ने मरने में बाद 'तत्वेषु लीन: भी कहा है न की' पंचतत्व गत:' अतः वे उपरोक्त चार तत्वों को अप्रत्यक्ष न मान नए तत्वों को मानने को कहता है ....धर्म के पंचतत्व स्थिर है जबकि चार्वाक स्थिर नहीं बल्कि नए तत्वों को मानाने की बात करता है "केशव ने उत्तर दिया ।

"तो...दुष्ट  तू कहना चाहता है कि आत्मा नहीं है ईश्वर नहीं है ?"गुरु जी ने एक दम उठते हुए कहा ।
"

"बिलकुल नहीं हैं" केशव ने कहा।

" तो ये ब्रह्मांड किसने बनाया? ...शरीर किस ने और किससे बनाया?.... तेरे जैसे  दुष्ट ने बनाया है क्या? " गुरु जी ने आवेश आ पूछा और खड़े हो गएँ और जोर जोर से खाँसने लगे।

इतने में गुरु जी का चेला दौड़ता हुआ आया और गुरु जी को सहारा देने लगा ।गुरु जी ने हाथ से इशारा किया और चेला उन्हें वापस कार में ले जाता हुआ बोला - अभी गुरु जी विश्राम करेंगे ....बाकी कल प्रवचन होगा...,"
"अरे गुरु जी .... बताऊँ क्या की शरीर किससे बना है और आत्मा क्या है?"केशव ने जाते हुए गुरु जी से ऊँची आवाज में पूछा ।

गुरु जी ने एक क्षण मुड़ के केशव की तरफ क्रोध से देखा और चेले के कंधे पर हाथ रख ढाबे से निकल गएँ।

"छोटूSs ....चाय ला भाई....बहुत देर हो गई...."केशव ने मुस्कुराते आवाज लगाई ।