जब गुलामी फिल्म आई थी तो उसका एक गाना बहुत हिट हुआ था , गाना बस की छत पर मिथुन और अनीता राज पर फिल्माया गया था ।
गाने के बोल थे -
जिहाल-ऐ- मिस्कीन मकुन बरंजिश , बेहाल-ऐ- हिज़रा बेचारा दिल है ।
सुनाई देती है जिसकी धड़कन ,तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।।
जिसका अर्थ होता है- तुम मुझे रंजिश से भरी इन निगाहों से ना देखो क्योकि मेरा बेचारा दिल जुदाई के मारे यूँ ही बेहाल है और अपने सीने में जिस दिल कि धड़कन तुम सुन रहे हो वो तुम्हारा या मेरा ही दिल है।
गाना इतना शानदार था कि इस गाने के बोल समझ न आने के बाद भी लड़कपन में इसे गुनगुनाता रहता था , आज भी यह गाना जब भी सुनता हूँ बरबस ही गुनगुनाने लगता हूँ। बहुत सालों तक गाने के बोल और अर्थ न समझ पाने के कारण मैं इस गाने को बिना अर्थ समझें गुनगुनाता था , शायद बहुत से लोग आज भी इस गाने के सही बोल और अर्थ नही समझते होंगे। लड़कपन में अर्थ और बोल न समझ पाने के कारण गाने को मैं इस प्रकार गुनगुनाता था-
"बेहाले मस्ती मुकुन बरंजिश ..."
जबकि इस गीत के सही बोल वो हैं जो मैंने ऊपर लिखा है, किन्तु बोल समझ ही नहीं आते थे इसलिए ऐसा गाता था। बाद में पता चला की इस शानदार गीत को लिखा था गुलजार जी ने और गुलज़ार जी ने नक़ल की थी अमीर ख़ुसरो की एक बेहतरीन सूफ़ी कौतुकी रचना जो फ़ारसी और ब्रजभाषा में थी जिसके बोल इस प्रकार थे-
ज़ेहाले मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैना बनाय बतियाँ।
कि ताबे हिजराँ न दारम-ऐ-जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ।।
जिसका अर्थ है-आँखे दौड़ाके और बाते बनाकर मेरी बेबसी को नज़रअंदाज़ मत करो। मेरे सब्र कि अब इन्तेहाँ हो गयी है तुम मुझे अपने सीने से क्यों नहीं लगा लेते।
आज सुबह जब यह गाना सुना तो फिर वही दिन याद आ गएँ, सच बताइये क्या आपने भी इस गाने को बेहाले मस्ती ही गाया था ?