Thursday, 18 October 2018

रावण चरित्र


वाल्मीकि रामायण के अनुसार राक्षस जाती की तीन शाखाएं थी ,विराद,दानव और राक्षस ।रावण तीसरी शाखा का नायक था ,वाल्मीकि रामयण  उत्तर कांड ४-११ के अनुसार ब्रह्मा ने जलसर्ष्टि कर के उसकी रक्षा के लिए निमित्त प्राणियों की उत्पति की , जो क्षुधा पीड़ित थे वो बोल उठे ‘ रक्षाम:’  हम रक्षा करेंगे । जो क्षुधा पीड़ित नही नही थे वे बोल उठे
'यज्ञम:' ।इस प्रकार  रक्षा करने वाले प्राणी राक्षस और यज्ञ करने वाले प्राणी यक्ष कहलायें।  रावण उन्ही रक्षा करने वाले प्राणियों का नायक हुआ ।


रावण के दस सिर और बीस भुजाओं का वर्णन वाल्मीकि रामायण में भी आया है पर एक-दो स्थानों पर ,वो भी शायद बाद में जोड़ा गया है । वास्तव में रावण की बड़ी थी जिस कारण वो “दसग्रीव” या एक ही सर पर दस सिरों का बल रखने वाला कहलाया |
दरअसल ‘दशानन ” का भाव है की उसने दसो दिशाओं को जीता या दस प्रकार मणियों को धारण किया । यदि नाम के आधार पर ही उसे दस सिरों वाला या बीस भुजाओं वाला मान लें तो दशरथ को तो दस रथो वाला मानना चाहिए ।

दरअसल दस सिर और बीस भुजाओं , बीस आंखे सूक्ष्म दृष्टी ,अद्वितीय वीरता ,अनगिनत विजय , बुद्धिमानता, पांडित्य का प्रतीक था । रावण एक सिर वाला और दो भुजाओं वाला मानव था , जैसा की वाल्मीकि रामायण के हनुमान द्वारा लंका रावण दर्शन , अशोक वाटिका और मंदोधारी विलाप से भी सिद्ध होता है।

देखें  सीता की खोज में लंका पहुचे हनुमान रावण को पलंग पर सोता हुआ देख क्या कहते हैं
  तस्य ……….महामुखत,(वाल्मीकि रामायण सुन्दर कांड १०/२४)
 (अर्थात हनुमान ने रावण को पलंग सोते हुए देखे जिसके एक सर और दो भुजाएँ थी )
हाँ , अनार्य होने के कारण उसका रंग अवश्य काला था ।

कुबेर से लंका अपने अधिकार में लेने के बाद उसका यश वैभव दूर दूर तक फैल गया , रावण ने जल्दी ही अपनी  वीरता से अंगद्वीप (सुमात्रा ) ,यवद्वीप (जावा ) ,मलायाद्विप ( मलाया) ,शंख द्वीप ( बोर्नियों ), कुश द्वीप ( अफ्रीका ) , वराह द्वीप ( मेडागास्कर ) आदि दक्षिणी द्वीप समूहों  को जीत लिया । उसने देव , दानव , असुर , गन्धर्व , यक्ष आदि उस समय की लगभग सभी जातियों को जीत लिया , इस प्रकार रावण उस समय का सबसे बड़ा और शक्तिशाली राज्य की स्थापना की उससे पहले ऐसा कोई नहीं कर पाया था ।


 रावण  राजनैतिक और सांस्क्रतिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण और शक्तिशाली सम्राट था उसने आदित्य और यक्ष जाती को मिला के राक्षस संस्कृति की स्थापन की । राक्षस संस्कृति का मूल मन्त्र था -अखिल विश्व को एक धर्म और एक संस्कृति में दीक्षित करना , इस प्रकार ये रावण ही था जिसने स्वप्रथम अखिल विश्व में एकता का उद्घोष किया । इस उद्देश्य से सर्व प्रथम  उसने ही वेदका संपादन , वैदिक रचनाओं पर नविन टिप्पणियां , मूल मन्त्रों की  व्याख्या की ।रावण द्वारा प्रतिपादित यह नवीनभाष्य ही आज ” कृष्ण यजुर्वेद ” के नाम से पुकारा जाता है ।

रामकथा रचियताओं ने रावण को परस्त्रीगामी कहा है , पर ये आरोप भी गलत हैं । रावण ने सभी स्त्रिओं को  विवाह करके ही हासिल किया था  विलासिका , मंदोदरी , कुमुद्वती , सुभद्रा , प्रभावती आदि रानियों ने रावण को स्वयं वारा था अथवा उनके पिताओं ने स्वयं रावण को प्रदान किया था ।

लंका देख कर हनुमान जी कहते हैं …
स्वर्गोsय …..मारुतिः ( वाल्मीकि रामायण , सुन्दर कांड 9/31)
अर्थात -लंका को उन्होंने देवताओं का वास और स्वर्ग के सामान कहा , लंका उन्हें इंद्र लोक की तरह लगी जहाँ सब कुछ उत्तम था )
यदि रावण निर्दयी या दुष्ट होता तो उस समयकालीन हनुमान उस के पाप आचरण से परिचित होते , यदि परिचित थे तो फिर दुष्ट निर्दयी और पापी की नगरी को देव लोक और इंद्र लोक  के सामान सामान क्यों कहा ? वास्तव में रावण एक कुशल प्रशासक था जिसकी तारीफ हनुमान जी ने स्वयम की ।

वाल्मीकि रामायण में ऐसे बहुत से प्रसंग मिल जायेंगे जो रावण की उस छवि के विपरीत हैं जैसा आज प्रदर्शित किया जाता है। दरसल राम और रावण का युद्ध कुछ और नही द्रविण /नाग संस्कृति को मिटा वैदिक संस्कृति का विस्तार भर था ।जंहा सीता जी मात्र एक जरिया थीं ( ऐसा स्वयं राम भी युद्ध कांड में सीता जी से कहते हैं ) । यह सर्वज्ञात है कि विजेता हारे हुए को दुष्ट, पापी आदि बता के अपनी जीत को जायज ठहरता है.... रावण के साथ भी यही हुआ ।