Friday, 25 January 2019

जगन्नाथ पुरी

तंत्रवाद के देह तत्व से विश्वोत्पत्ति विज्ञान का प्रादुर्भाव हुआ है ऐसा इतिहासकार मानते हैं। इतिहासकर बंदोपाध्याय ने कहा है कि तांत्रियो का विश्वोत्पत्ती विज्ञान उनके देहतत्व से गहरा संबंध था।, इसका कारण बड़ा सीधा सा है ।यदि मानव देह सूक्ष्म ब्रह्मांड समझा जाता है तो ब्रह्मांड के जन्म को केवल मानव शिशु के पैदा होने की क्रिया के साथ समानता के अनुसार ही समझा जा सकता है और तांत्रिक विश्वोत्पत्ति का यही केंद्र बिंदु है। तंत्र के अनुसार इस विश्व की उत्पत्ति 'काम' से की गई थी यह स्त्री से उत्पन्न है और स्त्री का पुरुष के साथ मिलन से उपजा है।

बौद्ध मत में एक मत जिसे कामवज्रयान कहा गया उसका प्रादुर्भाव हुआ ,यह मत इस विचार पर आधारित था कि मानव जन्म और विश्व की उत्पत्ति समान सिद्धांतो के आधार पर हुई। इस मत के अनुसार विश्व का सृजन ' काम ' द्वारा हुआ है ठीक उसी प्रकार जैसे मनुष्य जन्म लेता है । इस मत के अनुयायियों के अनुष्ठान भी ब्रह्मांडीय  काम और मनुष्य काम के बीच समरूपता लाने के लिए होते थे।
उन्होंने इस काम अनुष्ठान को अपने मठों विहारों में प्रदर्शित किया।

आज इतिहासकारो और  पुरातत्व वैज्ञानिकों ने माना है कि  जगन्नाथ मंदिर (पुरी) इन्ही कामवज्रयानियो के प्रभाव के आधीन बना है। जिसे आज जगन्नाथ कहा जाता है दरसल वह कामवज्रयान मत की देवी (देई) बिमला का धाम है जो कि कामवज्रयानियो का पवित्र स्थल था । इस मंदिर में ब्रह्मांडीय सृजन और मानव देह सृजन के बीच सादृश्य स्थापित किया गया । मंदिर में किये गए शिल्पों में आधार था कि प्रत्येक पुरूष कामवज्रयान मत  का भिक्षु है हर प्रत्येक स्त्री योगनी । इस सारे मंदिर का निर्माण कामवज्रयानी मत के सिद्धांतों के अनुरूप हुआ था।

तो,  जिस  जगन्नाथ मंदिर पर आज हिन्दू धर्म का आधिपत्य है वह मूल रूप से बौद्ध मठ है । क्या बौद्धों को फिर से अपना मठ वापस लेने का संघर्ष नही करना चाहिए?