Sunday, 27 November 2016

प्रवचन

"धन का लोभ मनुष्य को अनैतिकता की ओर ले जाता है ...मनुष्य क्या लेके आया है और क्या लेके जायेगा? ये तेरे महल अटारी सब कुछ यही रहने वाले है ..... फिर काहे का लोभ ?काहे का संग्रह करे है मुर्ख प्राणी? धन का लोभ काहे करे ? सब ईश्वर के चरणों में अर्पण कर के अपनी आत्मा साफ़ कर ले प्राणी ....ओम.... ओम.." इतना कह ललाट पर चन्दन और रोली से त्रिपुंड रचाये ,भरे गालो के साथ मटके जैसा पेट लिए गले में रुद्राक्ष के साथ सोने की मोटी दो तीन चैन पहने । हाथो में मोटे मोटे रंग बिरंगे नगो की मुद्रिकाएँ धारण किये ऊँचे मंच पर विराजमान महंत चतुरानन्द कुछ देर के लिए खामोश हो गए । फिर एक चांदी की कटोरी में से कुछ मिश्री और मुनक्के के दाने उठा मुंह में रख लिया ।

सामने बैठी भक्तो की संख्या जो हजारो में थी एक साथ जय जयकार कर उठी । महंत जी मुस्कुरा दिए और दोनों हाथ उठा के आशीर्वाद फेंका भक्तो पर । भक्त फिर मुग्ध हो कह उठे -
"बाबा चतुरानन्द की .....जय
"भगवान् चतुरानन्द की ....जय जयकार हो ..."

महंत जी फिर मुस्कुराये और दोनों हाथों से आशीर्वाद फेंक पुनः माइक से मुखातिब हुए ।

"आज भारत में अन्य समस्याओं की तरह दो समस्याएं मुख्य हैं पहली समस्या है भिखारी .....जी हां भिखारी ..भिखारी को भीख देना भारत की समस्या और  बढ़ा देता है ।भिखारी को भीख देखे हम उनके निठल्लेपन को और बढ़ा देते हैं अतः भिखारीयों को मेहनत की शिक्षा दें ताकि वे मेहनत कर अपनी जीविका चला सके ।छोटा मोटा मेहनत का काम भी आत्मगौरव का काम है भीख मांग कर खाना नीच कार्य है ,निठल्लों और कामचोरों का काम है "

महंत जी की बात ख़त्म हुई ही थी की भक्तो ने जोरदार तालियां बजा के उसका समर्थन किया ।

"बोलो भगवान् चतुरानन्द की ..."
जय....हो...

महंत जी मुस्कुराएं और दोनों हाथ उठा के आशीर्वाद फेंका ।

" भक्तो हमें पता चला है की कुछ भक्त  दान दान पेटी में नहीं डाल के किसी को भी पकड़ा देते हैं ,कृपया अपना दान दान पेटी में ही डाले या दान देखे पर्ची कटवा लें ...मनुष्य को अधिक से अधिक दान देना चाहिए ....क्या लेके आया है और क्या लेके जायेगा ...धर्म के नाम पर जितना निकल सके खर्च कीजिये ,जी खोल के दान पेटी में दान दीजिये...ओम ...ओम..." इतना कह महंत जी फिर खामोश हुए मिश्री की डली उठाने के लिए ।
भक्तो ने फिर जयकारा लगाया ।

वे माइक की तरफ मुख़ातिब होने वाले ही थे की एक बहुत ही खूसूरत बाला मंच के पीछे से निकल के आई ,गेरुआ वस्त्र पहने कोई साध्वी लग रही थी।आते ही उसने महंत जी को दोनों हाथ जोड़ के प्रणाम किया और अपना चेहरा महंत जी के कान के पास लाते हुए फुसफुसाई । महंत जी ने तुरंत माइक स्विच ऑफ कर दिया ।

"भगवन, सेठ पन्नालाल आये हैं ... कह रहे हैं कि दस करोड़ हैं ,एक नम्बर में कन्वर्ट करवाना है ...अर्जेन्ट। " युवती ने फुसफुसाते हुए कहा
"हम्म.... उससे कहो की शाम  को आये " महंत जी ने सोचते हुए कहा ।
"और हाँ.... बोलो की पिछली बार की तरह 20% नहीं बल्कि  30% में काम होगा ...खर्चे बढ़ गए हैं ...  " महंत जी ने अपनी बात पूरी की ।
"जी,जो आदेश "युवती ने रहस्मय प्यार भरी मुस्कुराहट के साथ झुकते हुए कहा ।
महंत जी बदले में युवती का हाथ दबाते हुए मुस्कुरा दिए और फिर माइक संभाला।

"तो भक्तो !दूसरी समस्या है काला धन ....हमें इन काला धन रखने वालों का बहिष्कर करना चाहिए ,ये काला धन रखने वाले देश को खोखला कर रहे हैं ....ओम..... ओम...."

पंडाल फिर भक्तो की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।


Friday, 25 November 2016

वो भटकी हुई लड़की - आप बीती


"मुझे कुछ काम मिलेगा?"
"दुकान पर कुछ काम मिल जायेगा क्या ?"  लड़की ने पुनः दर्द भरे लहजे में कहा ।
मैंने उस लड़की की तरफ देखा।

रात के तकरीबन दस बजे से  कुछ ऊपर रहे होंगे , मार्किट की अधिकतर दुकाने बंद हो चुकी थीं । सड़क से भीड़ लगभग छंट सी गई थी  ,अब तो इक्का दुक्का ही दिख रहे थे उसमे भी शादियां अटेंड कर के वापस आने वाले अधिक थे । शराब का ठेका पास होने के कारण कुछ और देर में ही शराबियो का दुकानों के आगे बने चबूतरों पर कब्ज़ा होने वाला ही  था ।

"कैसा काम ? " मैंने दुकान बंद करने की प्रक्रिया आरम्भ करते हुए लड़की की तरफ सरसरी निगाह डालते हुए पूछा
"कोई भी काम ....झाड़ू पोछा भी कर लुंगी "लड़की ने जबाब दिया ।
"मेरे पास तो लड़के की जगह खाली है ,मुझे फीमेल स्टाफ नहीं चाहिए "मैंने उस लड़की को भागने वाले अंदाज में कहा ।
" मैं सब काम कर लुंगी , जो आप कहेंगे ... मुझे काम पर रख लो "लड़की ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा ।

अब मैंने अपना काम छोड़ उसकी तरफ ध्यान दिया ,तकरीबन 16-17साल की लड़की रही होगी वह ।चेहरे से बचपना झलकता हुआ किन्तु शरीर पूरा वयस्कता लिए हुए ।रंग साफ तथा  पुरे हाथो में मेहँदी लगी हुई जैसे अक्सर शादी ब्याह में लड़कियां लगवा लेती हैं ।

"कँहा रहती हो ?"मैंने आगे पूछा
"अभी कंही नहीं रहती " लड़की ने धीरे से कहा
"कंही नहीं रहती हूँ !मतलब!घर कँहा है तुम्हारा? " मैंने जोर देखे पूछा ।
"अभी कंही भी नहीं रहती ... आप काम देदो आपकी दुकान में सो जाऊंगी "लड़की ने जबाब दिया ।

मेरा माथा ठनक गया , कंही किसी गैंग की सदस्या तो नहीं जो अकेली लड़की काम मांगती है और फिर गैंग के साथ मिल के चोरी करती है ? या कंही अकेली लड़की पहले किसी दुकान में घुसती है और फिर छेड़ छाड़ का आरोप लगा के से पैसे ऐंठ लेती है ।
मैं थोड़ा घबरा गया पर फिर ध्यान आया की दुकान में तो कैमरे लगे हुए है और रिकॉर्डिग चालू है ।अगर छेड़ छाड़ का आरोप लगाएगी तो मेरे पास सबूत रहेगा । फिर मैं निश्चित हो लड़की की तरफ  पुनः
मुख़ातिब हुआ ।

"क्या नाम है तुम्हरा? और घर कँहा है तुम्हरा ?साफ़ साफ़ बताओ तभी तो कोई काम पर रखेगा " मैंने पूछा
" जी नेहा  , मैं घर से भाग के आई हूँ ....कल्याण पूरी में मेरा घर है " उसने  झिझकते हुए बताया ।
" घर से भाग के आई हो? "मैंने चौकते हुए पूछा ।
" किसी लड़के के साथ भागी हो ? "
"लड़के के साथ नहीं ,अकेली आई हूँ ... माँ सौतेली है और मारती है इसलिए भाग आई हूँ " लड़की ने जबाब दिया ।
 " भाग के आई हो ...तो अभी रोहगी कँहा?उम्र कितनी है तुम्हारी?यंहा इतनी दूर कैसे आई?"मैंने एक साथ कई प्रश्न पूछ डाले।
"पंद्रह साल ...बस में बैठ गई थी मुझे पता नहीं था कि कँहा जायेगी ..कंही भी रह लुंगी....आपके साथ रह लुंगी ,आप अपने साथ रख लीजिए मुझे आपका सब काम करुँगी "लड़की ने थोड़ा करीब आते हुए जबाब दिया ।

मैं थोड़ा  पीछे हट गया ।

"पंद्रह साल !नाबालिग है ,गुस्से में भाग के आई है ।अगर अभी इसे भगा देता हूँ तो सही नहीं रहेगा ...रात का समय है और सड़क भी सूनसान हो चुकी है यदि अब यह बाहर भटकती है तो सम्भवना कम है कि सुबह तक यह सही सलामत रहे  ...यदि किसी गलत हाथो में पड़ गई तो फिर इसका जीवन बर्बाद हो जायेगा ,बाकी जीवन शायद कोठे पर ही बीते ।अभी भी जिस तरह व्यवहार कर रही है कोई भी इसका फायदा उठा सकता है .... नादान लड़की है ,इसकी जरा सी गलती इसका पूरा जीवन बिगाड़ सकती है ।बाहर वैसे भी नसेड़ी सक्रीय हो चुके हैं और पास में ही एक बड़े क्षेत्र की आबादी में कुछ ऐसे भी लोग है जो अपने से अलग प्रार्थना  पदत्ति के समूह की महिलाओं से सम्बन्ध बनाने को 'शबाब' का काम  की मान्यता देते है ,अगर ऐसे लोगो के चंगुल में फंस गई तो न जाने क्या घटना हो जाए इसके साथ ।मेरे मन में न जाने कितनी ही इस प्रकार की शंकाओ की घनी बदली घिर आई  ।

मैंने कुछ सोचा और फिर पड़ोस के एक दुकानदार  को बुला लाया राय लेने के लिए ।जब उसने सारी कहानी सुनी तो उसके आँखों में एक अजीब सी झलक देखी मैंने ,वह लड़की से कई सवाल कर रहा था तो कर रहा था किंतु उसकी आँखे लड़की के वक्ष पर टिकी हुई थी ।

मैं चकरा गया ,लड़की यंही मेरे सामने ही सेफ नहीं लग रही थी ।मैंने तुरंत घर पर अपनी पत्नी को फोन किया और सारी बात उसे बताई ।

मैंने कहा कि मैं लड़की को लेके घर आ रहा हूँ ।

पत्नी ने कहा कि पहले पुलिस को फोन कर दो ।मैंने कहा कि अगर पुलिस को अभी  फोन करते हैं तो हो सकता है की यह भाग जाए तब इसे पकड़ना और मुश्किल होगा ,अगर मैं इसे पकडूँगा तो शोर भी मचा सकती है तब इसे संभालना मुश्किल होगा और हमें  दोस्त की वजाय दुश्मन समझने लगेगी  ।
मैंने कहा कि अभी इसे घर लाता हूँ और खाना खिलाते हैं फिर उसके बाद देखते है  कि आगे क्या करना है ।

मैंने फौरन दुकान का शटर गिराया और लड़की से कहा कि वह मेरे घर चले ,वंहा खाना -पीना करे उसके बाद उस काम पर रख लूंगा ।मुझे प्यार से उसे सम्भलना था ताकि वह कंही पुलिस का नाम सुन के भागने न लगे ।

रास्ते में उससे उसके बारे में और जानकारी लेता रहा ,उसने बताया कि उसकी एक बहन और है बड़ी जिसकी शादी 20 नवम्बर को ही हुई थी उसी शादी में हाथो में मेहंदी लगाईं है ।पापा ट्रक ड्राइवर हैं और अधिकतर बाहर ही रहते हैं ,माँ सौतेली है जो उसको तंग करती रहती है । अभी वह नौंवी कक्षा में ही थी की मां ने पढाई छुड़वा दी और घर के कामो में लगा दिया ,रोज किसी न किसी बात पर पिटाई करती है उसका फेवर लेके पिता भी मारता पीटता है ।आज मौका पा के घर से भाग आई।

मैंने पूछा की मां बाप पुलिस कंप्लेंट करेंगे तो ? पुलिस खोजेगी उसे ।तब उसने तपाक से जबाब दिया की उसकी गली से एक लड़की और भाग गई थी ,पुलिस ने एक दिन खोजा और फिर भूल गई वह लड़की आज तक नहीं मिली ।उसके दिमाग में था की पुलिस उसे एक दिन खोज के शांत हो जायेगी।

इतने में हम घर पहुंच गएँ।

घर पहुँच के  सब एक विवाह समारोह में जाने के लिए तैयार बैठे थे , जब मां को पता चला लड़की के बारे में तो वह गुस्सा हुई की किसी मुसीबत को न उठा लाया हूँ मैं  ।कंही लड़की उल्टा सीधा इल्जाम न लगा दे मेरे ऊपर,कंही उसके घर वाले ही कुछ इल्जाम लगा दें आदि कई तरह की शंकाओं को लेके परेशान हो उठी वह ।
फिर मेरे समझाने से की अकेली लड़की को यूँ रात में असुरक्षित कैसे छोड़ सकता था मैं ,उसके बाद कुछ शांत हुंई।

थोड़ी देर में पत्नी नेहा के लिए खाना ले आई ,खाना खिलाने के बाद उसे समझाने का काम शुरू हुआ । वह अपने घर जाने को तैयार ही न थी बल्कि वह तो हमारे साथ ही रहना चाहती थी । तब मैंने उसे समझाया कि वह नाबालिग है इस लिए पुलिस में सूचित करना जरुरी है वरना बाद में पुलिस हमें परेशान करेगी इसलिए एक बार पुलिस को सूचित करने के बाद हम उसे वापस ले आएंगे और फिर वह  जिनते दिन चाहे वह हमारे साथ  रह सकती है।मैंने उसका विश्वास जींतने के लिए कुछ रूपये भी दे दिए उसे ।

बहुत विश्वास दिलाने के बाद वह राजी हुई पुलिस थाने जाने के लिए ।उसके बाद मैं उसे थाने लेके चल दिया ,साथ में पत्नी और भाई भी थे ।रास्ते में मैंने एक दोस्त को फोन कर दिया की वह थाने आ जाए ।

थाने पहुंच के मैंने सारी बात बताई तो उन्होंने नेहा से उसके घर का पता पूछा जो अब तक मुझे वह सही से नहीं बता रही थी । नेहा ने अपने घर के पते के साथ साथ पिता का फोन नम्बर भी बताया । नेहा के पिता से पुलिस ने बात की और सारी बात बताई ,उसके पिता पुलिस स्टेशन ही जा रहे थे उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने ।
उसके बाद पुलिस ने काफी तारीफ की हमारी और कहा कि इसे लोग कम ही होते हैं जो इतनी रात को एक अकेली लड़की की मदद करने के लिए पुलिस के पास आएं ।
उन्होंने नेहा से कहा की यह तो बहुत अच्छा हुआ की तुम इन जैसे लोगो के पास पहुँच गई और ये तुम्हे सही सलामत यंहा ले आये वार्ना पता नहीं क्या होता तुम्हारा ।

नेहा चुप खड़ी सब सुनती रही।

  हम नेहा के पिता के आने का इंतेजार करने लगे ,लगभग एक घंटे से अधिक देर हम थाने में बैठे रहे किंतु तब तक नेहा का पिता नहीं आये थे ।रात बहुत ज्यादा हो गई थी लगभग 12 :30 बज गए चुके  थे ,सुबह से काम कर के थक गया था और भूंख भी तेज लग रही थी तो मैंने पुलिस से इजाजत चाही ।पुलिस ने कहा की यदि हम चाहे तो रुक सकते हैं क्यों की नेहा के पिता आ रहे थे और "गुड़ फेथ" के तहत आभार भी प्रकट करना चाहते हैं ।

मैंने पुलिस से कहा की लड़की सही सलामत अपने घर पहुँच जायेगी यही सबसे अच्छी बात है हमारे लिए ,उसके बाद हम सब थाने से निकल लिए ।करीब  एक  घण्टे  बाद नेहा के पिता का फोन आया की उसे नेहा मिल गई है .... बहुत आभर प्रकट कर रहे थे ।

हमें  बहुत ख़ुशी हुई की एक लड़की को किसी गलत हाथो में पड़ के बर्बाद होने से बच गई थी ।

हाँ लेकिन इस बचाव कार्य में हमारी पार्टी जरूर मिस  हो गई थी ,बच्चे मुझ पर गुस्सा थे की उन्हें तैयार करवा के कर के भी मैं पार्टी में नहीं ले गया।
किन्तु मैं कितनी राहत महसूस कर रहा था यह बच्चो को क्या पता.....




Thursday, 17 November 2016

आखरी सिगरेट-कहानी

"खों....खों... खों..आह!"
बुरी तरह खांसते हुए उसकी आँख खुल गई ,खांसी इतनी भयंकर थी की उसे लगा अभी  कलेजा बाहर आ जायेगा । खांसते खांसते आँखों से पानी बहने लगा ,मुंह से बहुत सा थूक निकल के होठो के कोनो से टपकने लगा।

बहुत समय तक यूँ ही खाँसने के बाद उसने अपने सीने को दबाब के साथ मला और काँपते हाथो को बिस्तर पर गड़ाते हुए उठ बैठा ।

जर्जर शरीर को किसी तरह सँभालते हुए उसने बैड के सिरहाने अपनी पीठ लगाई , पास पड़े तौलये को उठा उसने पहले मुंह पोछा और फिर  काले घेरों के बीच निस्तेज आँखों से बहते हुए पानी को साफ किया । थोड़ी देर गहरी गहरी सांस लेने के बाद उसके नशो में कुछ शक्ति का संचार सा हुआ  हाथ बढ़ा टेबल पर रखे पानी के गिलास  को उठाया और एक सांस में ख़त्म कर दिया । पानी से गला तर करने के बाद एक नजर घडी पर डाली तो रात के तीन बज चुके थे ,चारो तरफ सन्नाटा पसरा था ।

"माँ शायद गहरी नींद में होगी तभी नहीं उठी? "उसने सोचा
" करे भी तो क्या बेचारी थक जाती है दिन रात सेवा करते करते मेरी " इतना सोचा के वह कमरे की छत की तरफ देखने लगा ।कुछ देर छत को यूँ ही निहारने के बाद उसने गर्दन नीचे की और सिराहने रखे दवाई की पुड़िया उठाने लगा, किन्तु अचानक उसका हाथ पुड़िया तक पहुँच के ठिठक गया ।
उसने बैड के गद्दे को उठाया ,गद्दे के नीचे एक सिगरेट का पैकेट रखा हुआ था  उसने झट से  सिगरेट का पैकेट उठा लिया ।

पैकेट खोल के देखा तो उसमे एक ही सिगरेट बची हुई थी । कुछ देर आखरी सिगरेट को यूँ ही अलपक देखने के बाद उसे बाहर निकाल  होंठो से लगा लिया , हाथ पैजामे में रखे लाइटर को खोजने लगे  । आगे पीछे की जेबो पर हाथ मारने के बाद आखिर लाइटर को खोज लिया गया , लाइटर  'क्लिक ' की आवाज कर नीली -पीली रौशनी के साथ ज्वलित हो उठा । सिगरेट और लाइटर की थिरकती ज्वाला का मिलन अभी होने वाला ही था कि उसके कानों में आवाज सुनाई दी -

"केशव! फिर सिगरेट? इतनी हालत खराब है फिर भी सिगरेट ....क्या अपनी जान लेकर ही मानेगा तू? डाक्टर ने साफ कह दिया है कि अब एक सिगरेट भी पी तो बचना मुश्किल है तेरा.... क्यों अपनी जान लेने पर तुला है पागल तू? तुझे मां का भी ख्याल नहीं ? चल फेंक दे सिगरेट...."

यह आवाज उसकी मां की थी ,उसने हड़बड़ा के लाइटर बुझा दिया और सिगरेट मुंह से निकाल ली ।किन्तु अगले ही क्षण उसे अहसास हुआ की यह केवल  उसका भ्रम है ,दरवाजा तो बंद है और माँ ऊपर के कमरे में सो रही है ।उसने निश्चित करने के लिए दरवाजे पर नजर डाली , नाइट बल्ब की रौशनी में  भी साफ़ साफ़ बंद दरवाजे को देख सकता था वह।

"हाँ !बन्द है दरवाजा... माँ नहीं है ...यह तो मेरा भ्रम भर है "वह बुदबुदाया और मुस्कुरा दिया ।उसने फिर सिगरेट मुंह से लगाई और लाइटर को रौशन कर दिया। अचानक उसकी नजर लाइटर से निकलने वाली लौ पर गई, लौ मानो किसी नृतकी की तरह थिरक रही हों। उसके हाथ वंही जड़ हो गए , उसके नेत्र उस नृत्य को गहराई ...और गहराई से निहारने लगे ।

" हूँ... इस तरह से क्या देख रहे हो ? सपना ने कोहनी मारते हुए पूछा
"ये चाँद सा रौशन चेहरा .... बालो का रंग सुनहरा... ये झील सी नीली आँखे .…." उसने सपना को छेड़ते हुए फ़िल्मी गाना गाया ।
"ओहो!इतनी भी सुंदर नहीं हूँ मैं " सपना ने इतराते हुए कहा ।
"जानेमन!हमारी नजरो से देखिये .... पूरी कायनात में आप जैसा हसीं कोई नहीं ...न तारे .. न चाँद ... न फूल ...न तितलियां....कोई नहीं ....आप सा हसीन कोई नहीं ..कोई नहीं " उसने दोनों बाहें फैला के ऐक्टिग वाली मुद्रा में कहा ।
"ओहो जी !ऐसा है क्या ....बंद करो अपनी एक्टिंग ,झूठी तारीफ़ तो कोई तुम से सीखे ...उँह"सपना ने मुंह बनाते हुए बनावटी गुस्सा दिखाया ।
"झूठ नहीं सच है .... कितना प्यार है तुम से आओ बताऊँ" इतना कह उसने सपना को खींच अपने सीने से लगा लिया ।
 जैसे ही सपना केशव के सीने से लगी उसने उसके ऊपरी जेब में रखे सिगरेट के पैकेट पर नजर पड़ी ।
"ओहो!तो सिगरेट भी पीते हैं जनाब!"सपना ने केशव की जेब से सिगरेट का पैकेट निकालते हुए पूछा ।
"कभी कभी ... जब तुम्हारी याद आती है न !तब  पी लेता हूँ ...वैसे नहीं " केशव ने थोड़ा झिझकते और मुस्कुराते हुए कहा ।
" अच्छा जी !! झूठ !...बहाना मत बनाओ " सपना ने थोड़ा गुस्से से कहा ।
" ठीक है !अब नहीं पियूँगा ... सच में " केशव ने मुस्कुराते।हुए कहा और सपना से सिगरेट का पैकेट लेके दूर फेंक दिया ।

चेहरे पर खुशी लिए सपना उसके सीने से लग गई।

एक रात.....

करीब रात के एक एक बज रहे होंगे,आज सपना का जन्मदिन था ।केशव ने जन्मदिन बाहर मानाने का प्रोग्राम बनाया था , जन्मदिन सेलिब्रेट कर वापस वे लोग बाइक से घर आ रहे थे की अचानक पीछे से आ रही एक तेज गति कार ने पीछे से  जोरदार टक्कर मार दी ।
टक्कर इतनी जोरदार थी की पीछे बैठी सपना तकरीबन चार फिट ऊपर उछल गई और कार के बोनट से टकरा दूर तक घिसटती चली गई । बाइक डिवाइडर से टकराई ,केशव का सर सड़क से टकराया तो हेलमेट चकनाचूर हो गया ।सर फट गया और एक टांग बाइक के नीचे आने से हड्डियां चकनाचूर हो गईं।

" सपनाsssss.....बेहोश होते केशव ने अपने दर्द की परवाह किये बिना चिल्लाया।
सपना कार के बोनट में फंसी दूर तक घिसटती चली गई ।
केशव बेहोश हो चुका था।

"सपनाssss......" केशव जोर से चिल्लाया ,अचानक उसे जैसे होश आया हो ।उसने देखा की लाइटर अब भी जल रहा है । उसने चेहरे पर हाथ फेरा तो हाथ गीला हो गया , चेहरा पसीना पसीना हो चुका था ।

उसके फिर अतीत में खो गया ,दो दिन बाद जब होश आया तो तो पता चला की सपना मर चुकी है ,केशव जैसे कोमा में चला गया ।बहुत दिन तक इलाज में बाद वह ठीक हुआ पर जिंदगी से एक दम रूखा हुआ ।

सपना की यादें उसे हमेशा तड़पाती, वह एक जिन्दा लाश बन गया था । सपना की यादें भुलाने के लिए उसने सिगरेट पीने शुरू कर दी थी ,एक दिन में 30-40 सिगरेट तक पी जाता । कुछ सालों में उसके  फेफड़े पूरी तरह से ख़राब हो चुके थे ,डाक्टर ने सख्त हिदायत दी थी की यदि अब एक भी सिगरेट पी तो उसका बचना मुश्किल होगा।

केशव ने लाइटर से निकली थिरकती हुई लौ को फिर से देखा ,उस लौ में पुनः सपना का अक्स  उभरता हुआ दिखा ।
उसे सपना बुला रही थी , उसके होठो पर वही मुस्कुराहट थी जिस पर केशव मरता था ।

आज सच में मरने का वक्त था ..... मरने का नही मिलन का वक्त था ।

केशव ने लाइटर की थिरकती लौ और मुंह में दबी सिगरेट की दूरियां मिटा कर एक लंबा काश खिंचा,उसके  चेहरे पर एक लंबी शांतिपूर्ण मुस्कान दौड़ गई।


बस यंही तक थी कहानी .....

Tuesday, 8 November 2016

अंकल-कहानी



सूर्य अभी भी चेहरे  पर लालिमा लिए हुए अनमना सा नींद में चलता चला आ रहा था ,किरणें धरती पर इस           प्रकार पड़ रही थी जैसे सूर्य ने इन्हें कैद किया हुआ हो और  गलती से कोई झरोखा खुला रह गया जिसमें से ये निकल निकल के भागती हुईं धरती की शरण में आ रही हों ।कलियाँ मानो रात भर की लंबी प्रतीक्षा  के बाद मुस्कुराती हुईँ   अपने प्रीतम भँवरों से आलिंगन के लिए  व्याकुल हों ।शीत ऋतु का आरम्भ ही था और हलकी सर्दी मासूस होनी शुरू हो गई थी , दिन भर भीड़ भाड़ की भाग दौड़ झेलने वाली सड़क अभी थोड़ा  सुस्त सी पड़ी थी ।इक्का- दुक्का लोग ही दिख पड़ते थे , उनमे से  भी ज्यादातर मोर्निंग वाक करने वाले अथवा  स्कूल कालेज जाने वाले विद्यार्थी ही थे ।

रोजाना की तरह करमू अपनी नाइट  ड्यूटी ख़त्म कर साईकिल में तेज तेज पैडल मारता हुआ   घर की तरफ ख़ामोशी से बढ़ा चला जा रहा था ।  उसे बाहर फैले मनोरम दृश्यों की अनुभूति करने की जरा सी भी फुर्सत  न थी , वह  चेहरे पर काम  की लम्बी थकान लिए  बस घर की तरफ भागा जा रहा था ताकि जल्दी से बिस्तर की आगोश में समा सके और ऐसा हो भी क्यों न ! था तो वह एक सिक्योरटी गार्ड जो 36 घण्टे की लगातार थकाऊ खड़े  रहने की ड्यूटी पूरी कर के आ रहा था , ऐसा  वह महीने में लगभग कई बार करता ताकि वह ओवरटाइम कर थोड़े अधिक पैसे कमा सके ।

करमू  एक मोड़ पर पहुंचा ही था कि अचानक उसके सामने तेज रफ्तार से बाइक आ गई , ऐसा लगा की बाइक उस से बुरी तरह टकरा जायेगी ।वह हड़बड़ाया  और बचने के लिए हैंडल एक तरफ मोड़ लिया जिससे वह डिवाइडर से टकरा गया  ।बाइक वाले ने भी साइकिल से बचने के  लिए जोरदार  ब्रेक लगाएं , एक तेज चिंघाड़ के साथ बाइक थोड़ी असन्तुलित होती हुई रुक गई ।

करमू डिवाइडर से टकरा के गिर गया था पर गनीमत थी की कोई चोट नहीं आई थी । वह एक दम गुस्से से भर गया  ,उसके मुंह से बाइक सवार के लिए गालियां निकलने वाली ही थी की उसने देखा की बाइक सवार उसके पास ही आ रहा है ।
" अंकल ! सॉरी..... आपको कंही चोट तो नहीं लगी ?"बाइक सवार ने हैलमेट उतारते हुए उस से पूछा ।
"देख के क्यों नहीं चलता ...साले मरने का इरादा है क्या ? या किसी को मारने का ? कोई बड़ी गाडी होती तो तिया पांचा कर देती अभी तेरा ? " करमू ने गुस्से में कहा ।
"अंकल गलती हो गई ,दरसल ऑफिस  के लिए देर हो रही थी न ...इस लिए थोड़ा जल्दी में थे " एक  सुरीली आवाज को सुन करमू ने गर्दन घुमाई तो देखा की एक युवती खड़ी थी ।बहुत ही सुंदर ,उसका गुस्से का उबलता दूध एक दम मद्धिम पड़ गया ।
"अंकल !आप ठीक तो हैं न ?"लड़की ने फिर अपनी मिश्री जैसी मधुर आवाज में करमू से पूछा ।
" हाँ ठीक हूँ " करमू के मुंह से अनायास ही निकल गया पर तुरंत ही उसका मन खीज गया ।इतनी सुंदर लड़की उसे अंकल कह रही है ,बड़ा बुरा सा लगा उसे आखिर उसकी उम्र ही कितनी होगी मात्र 35 साल ही तो है और लड़की भी तो कम से कम 23-24 साल की तो होगी ही ।
"हाँ ठीक हूँ ..." करमू ने बुरा सा मुंह बना अपनी साईकिल खड़ी करते हुए कहा ।
" ओके अंकल ...एक बार फिर सॉरी" लड़की ने कहा और बाइक की तरफ मुड़ गई ,उसके पीछे पीछे लड़का भी चल दिया ।कुछ पल में  लड़के ने बाइक स्टार्ट की और नजरो से ओझल हो गया ।

करमू फिर एक बार साईकिल में पैडल मार रहा था किंतु इस बार वह खामोश नहीं था बल्कि उसके मस्तिष्क में तूफान उठ रहा था ।
उस लड़की की संबोधन 'अंकल.." बार बार गूंज रहा था ।
 "अंकल ....अंकल...." ओह! ऐसा लग रहा था जैसे चारो तरफ से यह आवाज उसे चिढ़ा रही हो ।
"अंकल...क्या मैं सच में इतना बूढ़ा हो गया हूँ ? करमू ने अपने आप से प्रश्न किया ।
"हाँ सच में मैं बूढ़ा ही लगने लगा हूँ ,बूढ़ा!अपनी जिम्मेदारियो को संभालते संभालते कब बूढ़ा दिखने लगा मुझे पता ही न चला"करमू के मस्तिष्क में जीवन की वो सारी घटनाये ऐसे प्रकाशित हो उठी जैसे अभी कल ही घटित हुईं हो ....वह अतीत में चला गया ।
कितना होशियार था वह पढ़ने में , जब दसवीं में आया था तो उसके पिता जी कहते की वह जरूर एक दिन पढ़ लिख के नाम रौशन करेगा उनका ।

दोस्तों में सबसे ज्यादा आकर्षक लगता था करमू इस कारण बहुत से लड़के उस से ईर्ष्या रखते तो मोहल्ले की कई लड़कियां उस के करीब आने की कोशिश में रहती ।एक लड़की से तो उसे सच्ची वाला प्यार भी हुआ था ,जिसे बाइक पर बैठा लॉन्ग ड्राइव पर जाने के दिवा स्वपन देखता। दिवा स्वप्न इस लिए की उसके पास उस समय साईकिल तक न थी तो बाइक बहुत बड़ी बात थी ,पर अरमान तो थे ही जो अभाव नहीं देखते।
फिर अचानक एक दिन उसकी जिंदगी बदल गई ,पिता की अकस्मात मृत्यु ने सब कुछ उजाड़ के रख दिया।परिवार की आर्थिक स्थति बेहद खराब हो गई ,माँ जो कभी घर से बाहर न निकली थी काम के लिए अचानक इतनी बड़ी क्षति को बर्दाश्त नहीं कर पाई और बीमार रहने लगी ।

घर में दो छोटी बहने थी करमू की जो कक्षा 5 और 7में पढ़ती थी उनकी भी पढाई छूट गई ,मजबूर करमू ने परिवार और अपना पेट भरने के लिए किताबे फैंक हाथो में झाड़ू पोछा उठा लिया ।किसी जानकार ने एक हॉस्पिटल में साफ़ सफाई के काम में रखवा दिया , अपने दसवीं की परीक्षाएं भी न दे पाया।

उसके बाद करमू की  जिंदगी कैसे बीतने लगी उसेस्वयं भी अहसह न हुआ,दिन भर कड़ी मेहनत और शाम को थोड़े और अधिक पैसे कमाने के लिए शादियों में गुब्बारे बेचना यही उसकी जिंदगी बन गई ।
अपनी दोनों बहनों की अच्छी परवरिश और फिर उनकी शादी करते करते कब वह 35 साल का 'अंकल' बन गया उसे पता भी न चला , परिवार के  होंठो पर  मुस्कुराहट लाते लाते कब उसके खुद के चेहरे की आभा चुपके से  50 साल के बूढ़े के चेहरे की झुर्रियो में परिवर्तित  हो गई यह देखने का मौका ही न मिला उसे ।

 बाइक पर गर्लफ्रेंड को बैठा के लॉन्ग ड्राइव पर जाने का अरमान न जाने कब पहले बस में थक्के खा के और अब साईकिल में पैडल मार मार के  नौकरी पर पहुँचने  तथा गुब्बारे बेचने में ख़त्म हो गए । लड़कपन में शुरू हुई रोटी कमाने की दौड़ आज तक ख़त्म न हुई ,आज भी चंद पैसो के लिए वही दिन रात की हाड तोड़ मेहनत इनके बीच भावनाये कँहा गुम हुई की खोजे नहीं मिली ।

मस्तिष्क में मजबूरियों का अतीत और वर्तमान की लाश लिय वह घर पहुंचा , कपड़े उतारने के अभी टाँगे ही थे की उसकी मां हाथ में पानी का गिलास लिए उससे कहा-
"करमू बेटे !तेरी छोटी वाली बहन कह रही थी की उसके घर का फ्रिज खराब हो गया है .....अगर तू नया फ्रिज दिला दे उसे तो बहुत अच्छा होगा "

करमू एक क्षण खामोश रहा ,फिर ठड़ी आह भरता हुआ बोला-
"ठीक है माँ ....अगले महीने और अधिक ओवरटाइम कर के दिलाने की कोशिश करूँगा "इतना कह वह यंत्रचालित मानव सा अपने विस्तर में  सोने चल दिया ।

बस यंही तक थी कहानी .....