Thursday, 29 June 2017

बरसात की एक रात-


शाम  से ही घने -श्याम मेघों का जमवाड़ा आसमान में शुरू हो गया था , कई दिनों की बदन झुलसाउ गर्मी के बाद काले मेघों का दीदार  नैसर्गिक आंनद की अनुभूति करवा रहा था ।

तक़रीबन डेढ़ -दो घण्टे जी भर के उमड़ने -घुमड़ने  बाद काले मेघों ने अपने कंधे पर लादे वजन को कम करना आरंभ कर दिया , कंधे से मुक्त हुई जल की बूंदे धरा से मिलने के लिए बैचैनी  यूँ भागीं जैसे अपने प्रीतम से मिलने कोई प्रेमिका।

झमा-झम वर्षा ....

मैंने दुकान में से झांक के बाहर देखा तो भगदड़ सी मची हुई थी, लोग वर्षा से बचने के लिए इधर-उधर छुपने की जगह तलाश रहे थे। जिसको जंहा जगह वंही छुपने की कोशिश कर रहा था , मानो वर्षा की बूंदे न होके आग के गोले हों जो उन्हें जला के भस्म कर देंगे अथवा वे खुद कागज़ के बने हों बस पानी पड़ते ही गल जायेंगे।

कुछ ही देर में मेरी दुकान के शैल्टर के नीचे बारिश से बचने के लिए काफी लोग एकत्रित हो गएँ थे ।

मुझ से रुका नहीं जा रहा था  , मन कर रहा था कि भाग के बाहर जाऊं और बारिश में खूब नहाऊं। न जाने कितने दिन बीत गए थे वर्षा की बूंदों को अपनी हथेलियों से पकडे हुए । पानी में छप-छप पैर मार के किसी छोटे बच्चे की तरह उछले हुए।

कुछ देर अपने को नियंत्रित किया ,किन्तु  स्ट्रीट लाइट की पीली रौशनी में गिरती बूंदों की चमक ने आख़िर अपना काम कर ही दिया । मैंने तुरन्त अपने  हैल्पर से दुकान बन्द करने को कहा । पहले तो वह तैयार न हुआ ,कहने लगा की ऐसी बारिश में दुकान बंद कर के कैसे घर जाएंगे? भीग जायेंगे।

मैं मुस्कुरा के कहा  "बेवकूफ़ !आज भीगना ही तो है ..... इतना रूमानी मौसम रोज नहीं होता"।
वह मुझे आश्चर्य से देखने लगा ,फिर थोड़ा जोर देने पर दुकान का शटर डाउन कर दिया ।
मैंने अपना मोबाइल और पर्स एक प्लास्टिक की थैली में रखा और शटर का ताला लगा के सड़क पर खड़ी मोटरसाइकिल के पास आ गया।

शैल्टर के नीचे खड़े लोग मुझे देखने लगे थे ,जैसे कह रहे हों " बेटे भीग ले .... बीमार पड़ेगा तब पता चलेगा "

मैंने लोगो को चिढ़ाने वाले अंदाज में उनकी तरफ देखा जैसे कह रहा हूँ " डरपोक!" और मोटरसाइकिल में किक मार के चलता बना ।

बारिश में मोटरसाइकिल चलाते हुए भीगने का मजा ही कुछ और होता है खास कर तब जब लोग अपनी मोटरसाइकिल्स को किनारे लगा के किसी पेड़ या छज्जे के नीचे दुबके पड़े हों। आप उन पर उपहास की दृष्टि डालते हुए  उनके सामने से हुर्र- हुर्र करती हुई अपनी मोटरसाइकिल पर निकल जाएं।

लगभग एक किलोमीटर की दूरी ऐसे ही गर्व से भीगते और बारिश का जम के मजा लेते हुए निकाल गया। रास्ते में एक नाला पड़ता है , जिसकी दीवार के सहारे कई बंजारों ने अपनी अस्थाई झोपड़ियां बनाई हुई है ।

जैसे ही उन झोपड़ियों के पास पहुंचा अचानक मेरी नजर एक झोपड़ी पर पड़ी। देखा तो एक स्त्री और उसके तीन छोटे छोटे बच्चे जो की दस साल से कम ही रहे होंगे बारिश में भीग के अपनी झोपडी की छत पर फटा हुआ तिपाल बिछा रहे हैं । अंदर पूरा सामान गीला हो चुका था , तेज बारिश के कारण झोपड़ी की सड़ चुकी प्लास्टिक  तिरपाल जो छत का काम करती थी बुरी तरह से टपकने लगी थी जिससे सारा सामान भीग गया । झोड़पी के बाहर कच्चा चूल्हा भी टूट चुका था। स्त्री और उसके बच्च चिंता में  भीगते हुए फ़टी हुई तिरपाल से अपने सामान को खराब होने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थें। मैं सोचने लगा की ये लोग क्या खाएंगे और कैसे सोयेंगे रात में यदि बारिश यूँ ही पड़ती रही तो? 

एक दूसरी झोपडी में सड़क का गंदा पानी घुस गया था ,जिसे पूरा परिवार गिलास और टूटे हुए कटोरों से निकालने की कोशिश कर रहा था । वे झोपडी स  जितना पानी निकालते उससे अधिक वापस अंदर जा रहा था।

ऐसा ही हाल लगभग हर झोपडी का था । मैं काफी देर तक यूँ ही खड़ा उन अस्थाई झोपडी वाले बंजारों  बारिश से लड़ने की जद्दो-जहद को देखता रहा । बारिश उनके लिए एक अभिशाप थी।

अब बारिश की बूंदे मुझे अंगारे लगने लगे थे , ये अंगारे मेरे बदन के साथ -साथ मेरे हिर्दय को भी भस्म किये जा रहे थे । अब मैं चाह रहा था कि बारिश उसी क्षण  बंद हो जाये।

Tuesday, 27 June 2017

बारात-कहानी

"अरे ओ घुरहू....... " हरिकेश पाण्डेय ने खेत की मेढ़ पर खड़े लगभग  चिल्लाते हुए आवाज लगाई।

कंधे पर फावड़ा लिए अपने खेत की तरफ जाते हुए घुरहू ने जब पाण्डेय जी की 'गर्जना' सुनी तो वंही ठिठक कर रुक गया। घुरहू ने तुरन्त भय से दोनों हाथ जोड़े लिए और सर को झुकाते हुए कहा- " पाय लागू पण्डे जी "

"हम्म बड़ी मस्ती में जा रहा है ? क्या बात है ? " पाण्डेय जी ने  पूछा ।

" पाण्डे जी ... उ हमरे बड़का बेटवा चंद्रवा का बिआह पक्का हो गइल ,अगले महीनवा में " घुरहु का चेहरा ख़ुशी से खिल गया किन्तु नजरे झुकी ही रही।

" अच्छा, वही चंद्रवा जो बम्बई गया है कमाने क्या? पाण्डेय जी ने पूछा ।

" हाँ जी , उहै चंद्रवा .... बम्बई में कौनो फैक्ट्री में  सुपरवाइजर है । अब बिआह लायक होइ गइल बाय और कमाई भी ठीक बाय ओकर " घुरहु ने कहा

पाण्डेय जी घुरहू की इस बात पर थोड़ा असहज होते हुए कहा - " ठीक है , चमरौटी में सबन के लड़के धीरे धीरे बाहर निकल रहें और शहर में काम धाम कर के अच्छा पैसा काम रहें है , अइसन ही चली तो यंहा खेतो में काम कौन करेगा? हुक्का- पानी बन्द करना पड़ेगा का तुम लोगन का ?"

घुरहु बुरी तरह सहम गया पांडेय जी की धमकी से  हाथ जोड़ते हुए कहने लगा -
" पांड़े जी, हम हैं न मजदूरी करने के लिए , अब लडिके बाले थोडा पढ़ लिख लेहल त दुइ पैसा कमाए चली गइलन "

"चल ठीक है जैसी तुम लोगो की मति ....अब जा  इहाँ से " - पाण्डेय जी ने घुरहु को झिड़कते हुए कहा , घुरहु ने पाण्डेय जी के पैर छुए और तेजी से खेतो की तरफ निकल गया ।

उत्तर प्रेदश का यह एक छोटा सा गाँव था , जिसमे करीब 80 घर होंगे  ,जिसमे 20-25 घर दक्षिण दिशा में बसे चमरौटी टोले में और बाकी के या तो  सवर्णो या उससे कुछ नीची जातिओ के।

गाँव से बहार जाने के लिए एक ही मुख्य रास्ता था जो की सवर्णों के टोले से होके गुजरता था ,

ठीक एक महीने बाद ,घुरहु के घर में शादी की तैयारी हो रही थी । चंद्रपाल मुम्बई से अपनी शादी के सभी जरुरी सामान ले आया था, नया सूट और काले चमकते जूते ,सेहरा आदि सभी कुछ। मुंबई में रहने के कारण उसे शहर के रहन -सहन की कुछ आदत हो गई थी इसलिए वह अपनी शादी भी शहर के रिवाज की तरह करना चाहता था । बैंड बाजा, घोड़ी,शहरी कपडे आदि सब का उपयोग करने का अरमान था उसे अपनी शादी में ।

चंद्रपाल ने पास के कसबे से अंग्रेजी बैंड और घोड़ी भी माँगा ली थी  साथ ही बारात के लिए  एक ट्रैक्टर -ट्राली और दुल्हन लाने के लिए  जीप ।


 जैसे ही अंग्रेजी बैंड और सजी हुई घोड़ी चमरौटी टोले में पहुंची  के लोग उन्हें सुनने और देखने के लिए जमा होने लगे।आज तक उनके टोले से किसी की भी बारात में न तो अंग्रेजी बाजा आया था और न ही घोड़ी पर चढ़ के किसी ने बारात ही निकाली थी इसलिए कोतुहल जबरजस्त था चमरौटी टोले में ।

जैसे ही बैंड बाजे वालो ने बैंड पर धुन बजानी शुरू की बच्चे ख़ुशी से उछलने लगे।बुजुर्ग जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सजी घोड़ी और बैंड बाजा नहीं देखा था अपनी बिरादरी की शादी में वे सब काम छोड़ बैंड वाले के पास जमीन पर ही बैठ के उन्हें देखने लगे थे । कई तो उत्सुकतावश घोड़ी को छू भी आते ।

घुरहू सीना फुलाए  घूम घूम के सब तैयारियों को जल्दी जल्दी पूरा करवाने में व्यस्त था ।

 आस पास के बिरादरी वाले भी चंद्रपाल की बारात निकासी देखने के लिए जमा होने लगे थे ।

तय समय पर  बारात निकासी होनी शुरू हो गई । चंद्रपाल सूट पहन के घोड़ी पर बैठे था ,सर पर सजे सेहरे की कलगी दूर से ही चमक रही थी मानो कोई राजकुमार बैठा हो।

बैंडबाजे वाले कभी भंगड़ा बजाते तो कभी फ़िल्मी धुन,  पुरे टोले के बच्चे बैंड पर नाच नाच के गिरे जा रहे थे । घोड़ी के साथ औरते स्थानीय भाषा  में गीत गाती चल रही थी , कुछ पुरुष घोड़ी के साथ चल रहे थे तो कुछ पहले ही जाके गाँव से बहार खड़ी  बारात की  ट्राली में बैठ गए थे ।

 चंद्रपाल की बारात घोड़ी और बैंड बाजे के साथ नाचते-गाते  मुख्य सड़क पर आ गया गई थोड़ी ही देर में  बारात   सवर्णों के टोले में प्रवेश कर गई।

 अभी कुछ दूर ही पहुँचे थे वे लोग  कि लगभग 20-30 लोगो की  भीड़ लाठी डंडो से लैस ठाकुर हरदेव के घर से निकल के चंद्रपाल की बारात पर टूट पड़ी , ऐसा लग रहा था की वे लोग पहले से तैयारी कर के बैठे थे ।

 इस अप्रत्याक्षित हमले से बारात में भगदड़ मच गई, चारो तरफ चीख-पुकार से माहौल गूंज उठा । बैंड वाले अपना बैंड छोड़ के भाग चुके थे ,घोड़ी वाला भी कंही गायब हो गया था।

हमलावर ना तो स्त्री देख रहे थे और ना ही  पुरुष सब पर लाठी -डंडे बरसा रहे थें । एक हमलावर  ने चंद्रपाल को घोड़ी से खींच लिया और जमीन पर पटक दिया ।
हमलावर के खींचने से सूट चर्र कर के फट गया ,सेहरा उछल के दूर जा गिरा । चंद्रपाल के गिरते ही उस पर अनगिनत लाठियों से प्रहार शुरू हो गया । कुछ ही क्षणों में कंही से उसका हाथ टूट गया तो कंही से पैर, सर पर लाठी लगने से खून की धारा बह के सड़क पर पडी धूल में मिल रही थी।
थोड़ी देर चीखने के बाद चंद्रपाल का शरीर शिथिल पड़ गया ।

  हमला करने वाले अभी भी शान्त न हुए थे ,वे लाठी डंडों से वार करने से साथ- साथ भद्दी गालियां देते हुए कह रहे थे- तुम चमा%# की इतनी हिम्मत की हमारे दरवाजो के सामने से घोड़ी पर चढ़ के बारात।निकालो!!..... भो#$% बहुत गर्मी चढ़ी है तुम लोगो को .....माद%^*@


चंद्रपाल बेहोश पड़ा था , घुरहु तथा अन्य बारातियो को भी गंभीर चोटे आई । हमलावरों का खेल तक़रीबन 10 मिनट चला , उसके बाद वे हमलावार बारातियो को चीखते पुकारते हुए पास के घरो में गायब हो गए ।

जो बाराती पहले ही गाँव से बाहर खड़ी ट्राली और जीप में बैठ गए थे  वे चीख पुकार सुन के घटनास्थल पर पहुंचे । जिस जीप  में चंद्रपाल की बारात जानी थी अब उसी में उसे और अन्य घायलों को जिला अस्पताल में भर्ती कराने ले जाया जा रहा था।

चंद्रपाल की माँ दहाड़े मार के रोते हुए  घायल चंद्रपाल और घुरहू को हवा कर रही थी। बदहवासी में हाथ का कोई पंखा ना मिला तो जीप में रखे अखबार को मोड़ के ही हवा करने लगी थी।

मुड़े हुए अखबार के मुख्य पेज पर एक खबर छपी थी - एक दलित बनेगा भारत का राष्ट्रपति' 

Thursday, 1 June 2017

जानिए क्या गौतम ही बौद्ध धर्म के संस्थापक थे ?

  एक आम धारणा यह है कि गौतम(गोतम) बुद्ध ने सर्वप्रथम बौद्ध धर्म की स्थापना की ।बुद्ध को हिंसा या शव को देख वैराग्य उत्पत्न हुआ और उसके बाद उन्होंने गृह छोड़ के जंगल में ज्ञान प्राप्त किया तथा बौद्ध धर्म की स्थापना की।

किन्तु ,यदि हम बौद्ध साहित्य जैसे की दीपवंश जो की पालि वंश - साहित्य की सर्वप्रथम रचना है ( इतिहासकारो ने इसका काल 307-247 ईसा पूर्व माना है) उसके अनुसार देखते हैं तो गौतम से पहले भी प्रत्यक्ष रूप से तीन अन्य बुद्धों का जिक्र है ।

दीपवंश के सत्रहवें परिच्छेद( महिंदस्स परिनिब्बान) में कहा गया है -
अभयं वट्ठमान ...... सासने ।(6)
से लेके
तिस्सस्स ........ दग्गमानसो ( 86)

अर्थात , चारो बुद्धों के शासन में चार पुरों( नगरों) के पृथक पृथक नाम थे
1- अभय - ककुसन्ध बौद्ध के समय लंका में प्रथम धम्मोपदेश स्थल रहा ।
2- वर्धमान- कोणागमन ( कोनागमन)बुद्ध के समय
3- विशाल- कस्सप बुद्ध के समय
4- अनुराधपुर- गौतम बुद्ध के समय

दीपवंश कहता है कि गौतम से पहले ककुसन्ध फिर कोणागमन उसके बाद कस्सप और फिर अंतिम गोतम बुद्ध हुए।

इन चारों बुद्ध अवतारों( शास्ताओं) के समय कौन कौन से राजा थे यह भी बताया गया है-
1- अभय- ककुसन्ध बुद्ध के समय यह अभय नगर का राजा था।
2- समीद्द( समृद्ध) - कोनागमन बुद्ध के समय वर्धमान नगर का राजा था।
3-जयन्त - यह कस्सप बुद्ध के समय विशाल नगर का राजा था ।
4- देवानांम्पिय तिस्स -यह गौतम बुद्ध के समय अनुराधपुर का राजा था।

चारो बुद्धों के अवशेष इस प्रकार थे -
1- ककुसन्ध बुद्ध का अवशेष था धम्मकारक
2- कोनागमन बुद्ध का अवशेष था काय-बंध( करधन)
3- कस्सप बुद्ध का अवशेष था उनकी जल शिटिका
4- गौतम बुद्ध का अवशेष था उनकी अस्थियां।

चारो बुद्धों ने अलग अलग वृक्षो के नीचे ध्यान लगाया था।

1- ककुसन्ध ने शिरीश
2-कोनागमन ने उंदुबुर
3-कस्सप ने न्यग्रोथ वृक्ष के नीचे
4- गौतम ने अस्सत्थ(पीपल) के नीचे

चारो बुद्धों के काल में विपत्तियां( उपद्रव)
1-काकुसन्थ के समय प्रज्वरक ( ज्वार महामारी)
2-कोनागमन के समय दुर्वृष्टि ( वर्धमान नगर में विवाद)
3- कस्सप बुद्ध के समय विशाल नगर में उपद्रव हुआ ।
4- गौतम के समय यक्षो का उपद्रव हुआ ।

चारों बुद्धों के प्रधान शिष्य थे -
1- ककुसन्ध का महादेव
2-कोनागमनक सुमन
3- कस्सप का महान
4 -बुद्ध का महिद्दी( महिंदर)

दीपवंश प्रथम बुद्ध ककुसन्ध के बारे में कहता है कि सर्वप्रथम उन्होंने ही लंका ( उस समय उसका नाम ताम्रपार्नि ) देखा । उस समय लंका में पुन्नकरनक नाम का ज्वार महामारी फैली थी । सिंहली जनता दुःख से तड़प रही थी तब ककुसन्ध बुद्ध अपने चालीस हजार भिक्खुओ के साथ जम्बुद्वीप से वँहा( अभयपुर) पधारे और लोगो को रोगों से मुक्ति दिलाई। राजा अभय के आग्रह पर ककुसन्ध बुद्ध ने रुचिनन्दा भिक्खुनी से शिरीष बोधिशाखा मंगाई और अभय पुर के बोधिशाखा प्रतिष्ठित की।

इतना तो ऐतिहासिक प्रमाणिक है कि गोतम बुद्ध से पहले अन्य बुद्ध हो चुके थे , अतः यह कहना की बौद्ध धर्म गोतम ने चलाया यह धारणा मिथ्या ही है ।गोतम बौद्ध धर्म के संस्थापक नहीं बल्कि शास्ता थे।

भाषा वैज्ञानी राजिन्द्र प्रसाद जी मेजर फ़ोर्ब्स के जनरल ऑफ़ एशियाटिक सोसायटी जून अंक 1836 का हवाला देके कहते हैं ककुसन्ध का काल 3101ईसा पूर्व मानते हैं और कोनागमन ( कनकमुनि) बुद्ध का 2099ईसा पूर्व