"अरे ओ घुरहू....... " हरिकेश पाण्डेय ने खेत की मेढ़ पर खड़े लगभग चिल्लाते हुए आवाज लगाई।
कंधे पर फावड़ा लिए अपने खेत की तरफ जाते हुए घुरहू ने जब पाण्डेय जी की 'गर्जना' सुनी तो वंही ठिठक कर रुक गया। घुरहू ने तुरन्त भय से दोनों हाथ जोड़े लिए और सर को झुकाते हुए कहा- " पाय लागू पण्डे जी "
"हम्म बड़ी मस्ती में जा रहा है ? क्या बात है ? " पाण्डेय जी ने पूछा ।
" पाण्डे जी ... उ हमरे बड़का बेटवा चंद्रवा का बिआह पक्का हो गइल ,अगले महीनवा में " घुरहु का चेहरा ख़ुशी से खिल गया किन्तु नजरे झुकी ही रही।
" अच्छा, वही चंद्रवा जो बम्बई गया है कमाने क्या? पाण्डेय जी ने पूछा ।
" हाँ जी , उहै चंद्रवा .... बम्बई में कौनो फैक्ट्री में सुपरवाइजर है । अब बिआह लायक होइ गइल बाय और कमाई भी ठीक बाय ओकर " घुरहु ने कहा
पाण्डेय जी घुरहू की इस बात पर थोड़ा असहज होते हुए कहा - " ठीक है , चमरौटी में सबन के लड़के धीरे धीरे बाहर निकल रहें और शहर में काम धाम कर के अच्छा पैसा काम रहें है , अइसन ही चली तो यंहा खेतो में काम कौन करेगा? हुक्का- पानी बन्द करना पड़ेगा का तुम लोगन का ?"
घुरहु बुरी तरह सहम गया पांडेय जी की धमकी से हाथ जोड़ते हुए कहने लगा -
" पांड़े जी, हम हैं न मजदूरी करने के लिए , अब लडिके बाले थोडा पढ़ लिख लेहल त दुइ पैसा कमाए चली गइलन "
"चल ठीक है जैसी तुम लोगो की मति ....अब जा इहाँ से " - पाण्डेय जी ने घुरहु को झिड़कते हुए कहा , घुरहु ने पाण्डेय जी के पैर छुए और तेजी से खेतो की तरफ निकल गया ।
उत्तर प्रेदश का यह एक छोटा सा गाँव था , जिसमे करीब 80 घर होंगे ,जिसमे 20-25 घर दक्षिण दिशा में बसे चमरौटी टोले में और बाकी के या तो सवर्णो या उससे कुछ नीची जातिओ के।
गाँव से बहार जाने के लिए एक ही मुख्य रास्ता था जो की सवर्णों के टोले से होके गुजरता था ,
ठीक एक महीने बाद ,घुरहु के घर में शादी की तैयारी हो रही थी । चंद्रपाल मुम्बई से अपनी शादी के सभी जरुरी सामान ले आया था, नया सूट और काले चमकते जूते ,सेहरा आदि सभी कुछ। मुंबई में रहने के कारण उसे शहर के रहन -सहन की कुछ आदत हो गई थी इसलिए वह अपनी शादी भी शहर के रिवाज की तरह करना चाहता था । बैंड बाजा, घोड़ी,शहरी कपडे आदि सब का उपयोग करने का अरमान था उसे अपनी शादी में ।
चंद्रपाल ने पास के कसबे से अंग्रेजी बैंड और घोड़ी भी माँगा ली थी साथ ही बारात के लिए एक ट्रैक्टर -ट्राली और दुल्हन लाने के लिए जीप ।
जैसे ही अंग्रेजी बैंड और सजी हुई घोड़ी चमरौटी टोले में पहुंची के लोग उन्हें सुनने और देखने के लिए जमा होने लगे।आज तक उनके टोले से किसी की भी बारात में न तो अंग्रेजी बाजा आया था और न ही घोड़ी पर चढ़ के किसी ने बारात ही निकाली थी इसलिए कोतुहल जबरजस्त था चमरौटी टोले में ।
जैसे ही बैंड बाजे वालो ने बैंड पर धुन बजानी शुरू की बच्चे ख़ुशी से उछलने लगे।बुजुर्ग जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सजी घोड़ी और बैंड बाजा नहीं देखा था अपनी बिरादरी की शादी में वे सब काम छोड़ बैंड वाले के पास जमीन पर ही बैठ के उन्हें देखने लगे थे । कई तो उत्सुकतावश घोड़ी को छू भी आते ।
घुरहू सीना फुलाए घूम घूम के सब तैयारियों को जल्दी जल्दी पूरा करवाने में व्यस्त था ।
आस पास के बिरादरी वाले भी चंद्रपाल की बारात निकासी देखने के लिए जमा होने लगे थे ।
तय समय पर बारात निकासी होनी शुरू हो गई । चंद्रपाल सूट पहन के घोड़ी पर बैठे था ,सर पर सजे सेहरे की कलगी दूर से ही चमक रही थी मानो कोई राजकुमार बैठा हो।
बैंडबाजे वाले कभी भंगड़ा बजाते तो कभी फ़िल्मी धुन, पुरे टोले के बच्चे बैंड पर नाच नाच के गिरे जा रहे थे । घोड़ी के साथ औरते स्थानीय भाषा में गीत गाती चल रही थी , कुछ पुरुष घोड़ी के साथ चल रहे थे तो कुछ पहले ही जाके गाँव से बहार खड़ी बारात की ट्राली में बैठ गए थे ।
चंद्रपाल की बारात घोड़ी और बैंड बाजे के साथ नाचते-गाते मुख्य सड़क पर आ गया गई थोड़ी ही देर में बारात सवर्णों के टोले में प्रवेश कर गई।
अभी कुछ दूर ही पहुँचे थे वे लोग कि लगभग 20-30 लोगो की भीड़ लाठी डंडो से लैस ठाकुर हरदेव के घर से निकल के चंद्रपाल की बारात पर टूट पड़ी , ऐसा लग रहा था की वे लोग पहले से तैयारी कर के बैठे थे ।
इस अप्रत्याक्षित हमले से बारात में भगदड़ मच गई, चारो तरफ चीख-पुकार से माहौल गूंज उठा । बैंड वाले अपना बैंड छोड़ के भाग चुके थे ,घोड़ी वाला भी कंही गायब हो गया था।
हमलावर ना तो स्त्री देख रहे थे और ना ही पुरुष सब पर लाठी -डंडे बरसा रहे थें । एक हमलावर ने चंद्रपाल को घोड़ी से खींच लिया और जमीन पर पटक दिया ।
हमलावर के खींचने से सूट चर्र कर के फट गया ,सेहरा उछल के दूर जा गिरा । चंद्रपाल के गिरते ही उस पर अनगिनत लाठियों से प्रहार शुरू हो गया । कुछ ही क्षणों में कंही से उसका हाथ टूट गया तो कंही से पैर, सर पर लाठी लगने से खून की धारा बह के सड़क पर पडी धूल में मिल रही थी।
थोड़ी देर चीखने के बाद चंद्रपाल का शरीर शिथिल पड़ गया ।
हमला करने वाले अभी भी शान्त न हुए थे ,वे लाठी डंडों से वार करने से साथ- साथ भद्दी गालियां देते हुए कह रहे थे- तुम चमा%# की इतनी हिम्मत की हमारे दरवाजो के सामने से घोड़ी पर चढ़ के बारात।निकालो!!..... भो#$% बहुत गर्मी चढ़ी है तुम लोगो को .....माद%^*@
चंद्रपाल बेहोश पड़ा था , घुरहु तथा अन्य बारातियो को भी गंभीर चोटे आई । हमलावरों का खेल तक़रीबन 10 मिनट चला , उसके बाद वे हमलावार बारातियो को चीखते पुकारते हुए पास के घरो में गायब हो गए ।
जो बाराती पहले ही गाँव से बाहर खड़ी ट्राली और जीप में बैठ गए थे वे चीख पुकार सुन के घटनास्थल पर पहुंचे । जिस जीप में चंद्रपाल की बारात जानी थी अब उसी में उसे और अन्य घायलों को जिला अस्पताल में भर्ती कराने ले जाया जा रहा था।
चंद्रपाल की माँ दहाड़े मार के रोते हुए घायल चंद्रपाल और घुरहू को हवा कर रही थी। बदहवासी में हाथ का कोई पंखा ना मिला तो जीप में रखे अखबार को मोड़ के ही हवा करने लगी थी।
मुड़े हुए अखबार के मुख्य पेज पर एक खबर छपी थी - एक दलित बनेगा भारत का राष्ट्रपति'
कंधे पर फावड़ा लिए अपने खेत की तरफ जाते हुए घुरहू ने जब पाण्डेय जी की 'गर्जना' सुनी तो वंही ठिठक कर रुक गया। घुरहू ने तुरन्त भय से दोनों हाथ जोड़े लिए और सर को झुकाते हुए कहा- " पाय लागू पण्डे जी "
"हम्म बड़ी मस्ती में जा रहा है ? क्या बात है ? " पाण्डेय जी ने पूछा ।
" पाण्डे जी ... उ हमरे बड़का बेटवा चंद्रवा का बिआह पक्का हो गइल ,अगले महीनवा में " घुरहु का चेहरा ख़ुशी से खिल गया किन्तु नजरे झुकी ही रही।
" अच्छा, वही चंद्रवा जो बम्बई गया है कमाने क्या? पाण्डेय जी ने पूछा ।
" हाँ जी , उहै चंद्रवा .... बम्बई में कौनो फैक्ट्री में सुपरवाइजर है । अब बिआह लायक होइ गइल बाय और कमाई भी ठीक बाय ओकर " घुरहु ने कहा
पाण्डेय जी घुरहू की इस बात पर थोड़ा असहज होते हुए कहा - " ठीक है , चमरौटी में सबन के लड़के धीरे धीरे बाहर निकल रहें और शहर में काम धाम कर के अच्छा पैसा काम रहें है , अइसन ही चली तो यंहा खेतो में काम कौन करेगा? हुक्का- पानी बन्द करना पड़ेगा का तुम लोगन का ?"
घुरहु बुरी तरह सहम गया पांडेय जी की धमकी से हाथ जोड़ते हुए कहने लगा -
" पांड़े जी, हम हैं न मजदूरी करने के लिए , अब लडिके बाले थोडा पढ़ लिख लेहल त दुइ पैसा कमाए चली गइलन "
"चल ठीक है जैसी तुम लोगो की मति ....अब जा इहाँ से " - पाण्डेय जी ने घुरहु को झिड़कते हुए कहा , घुरहु ने पाण्डेय जी के पैर छुए और तेजी से खेतो की तरफ निकल गया ।
उत्तर प्रेदश का यह एक छोटा सा गाँव था , जिसमे करीब 80 घर होंगे ,जिसमे 20-25 घर दक्षिण दिशा में बसे चमरौटी टोले में और बाकी के या तो सवर्णो या उससे कुछ नीची जातिओ के।
गाँव से बहार जाने के लिए एक ही मुख्य रास्ता था जो की सवर्णों के टोले से होके गुजरता था ,
ठीक एक महीने बाद ,घुरहु के घर में शादी की तैयारी हो रही थी । चंद्रपाल मुम्बई से अपनी शादी के सभी जरुरी सामान ले आया था, नया सूट और काले चमकते जूते ,सेहरा आदि सभी कुछ। मुंबई में रहने के कारण उसे शहर के रहन -सहन की कुछ आदत हो गई थी इसलिए वह अपनी शादी भी शहर के रिवाज की तरह करना चाहता था । बैंड बाजा, घोड़ी,शहरी कपडे आदि सब का उपयोग करने का अरमान था उसे अपनी शादी में ।
चंद्रपाल ने पास के कसबे से अंग्रेजी बैंड और घोड़ी भी माँगा ली थी साथ ही बारात के लिए एक ट्रैक्टर -ट्राली और दुल्हन लाने के लिए जीप ।
जैसे ही अंग्रेजी बैंड और सजी हुई घोड़ी चमरौटी टोले में पहुंची के लोग उन्हें सुनने और देखने के लिए जमा होने लगे।आज तक उनके टोले से किसी की भी बारात में न तो अंग्रेजी बाजा आया था और न ही घोड़ी पर चढ़ के किसी ने बारात ही निकाली थी इसलिए कोतुहल जबरजस्त था चमरौटी टोले में ।
जैसे ही बैंड बाजे वालो ने बैंड पर धुन बजानी शुरू की बच्चे ख़ुशी से उछलने लगे।बुजुर्ग जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सजी घोड़ी और बैंड बाजा नहीं देखा था अपनी बिरादरी की शादी में वे सब काम छोड़ बैंड वाले के पास जमीन पर ही बैठ के उन्हें देखने लगे थे । कई तो उत्सुकतावश घोड़ी को छू भी आते ।
घुरहू सीना फुलाए घूम घूम के सब तैयारियों को जल्दी जल्दी पूरा करवाने में व्यस्त था ।
आस पास के बिरादरी वाले भी चंद्रपाल की बारात निकासी देखने के लिए जमा होने लगे थे ।
तय समय पर बारात निकासी होनी शुरू हो गई । चंद्रपाल सूट पहन के घोड़ी पर बैठे था ,सर पर सजे सेहरे की कलगी दूर से ही चमक रही थी मानो कोई राजकुमार बैठा हो।
बैंडबाजे वाले कभी भंगड़ा बजाते तो कभी फ़िल्मी धुन, पुरे टोले के बच्चे बैंड पर नाच नाच के गिरे जा रहे थे । घोड़ी के साथ औरते स्थानीय भाषा में गीत गाती चल रही थी , कुछ पुरुष घोड़ी के साथ चल रहे थे तो कुछ पहले ही जाके गाँव से बहार खड़ी बारात की ट्राली में बैठ गए थे ।
चंद्रपाल की बारात घोड़ी और बैंड बाजे के साथ नाचते-गाते मुख्य सड़क पर आ गया गई थोड़ी ही देर में बारात सवर्णों के टोले में प्रवेश कर गई।
अभी कुछ दूर ही पहुँचे थे वे लोग कि लगभग 20-30 लोगो की भीड़ लाठी डंडो से लैस ठाकुर हरदेव के घर से निकल के चंद्रपाल की बारात पर टूट पड़ी , ऐसा लग रहा था की वे लोग पहले से तैयारी कर के बैठे थे ।
इस अप्रत्याक्षित हमले से बारात में भगदड़ मच गई, चारो तरफ चीख-पुकार से माहौल गूंज उठा । बैंड वाले अपना बैंड छोड़ के भाग चुके थे ,घोड़ी वाला भी कंही गायब हो गया था।
हमलावर ना तो स्त्री देख रहे थे और ना ही पुरुष सब पर लाठी -डंडे बरसा रहे थें । एक हमलावर ने चंद्रपाल को घोड़ी से खींच लिया और जमीन पर पटक दिया ।
हमलावर के खींचने से सूट चर्र कर के फट गया ,सेहरा उछल के दूर जा गिरा । चंद्रपाल के गिरते ही उस पर अनगिनत लाठियों से प्रहार शुरू हो गया । कुछ ही क्षणों में कंही से उसका हाथ टूट गया तो कंही से पैर, सर पर लाठी लगने से खून की धारा बह के सड़क पर पडी धूल में मिल रही थी।
थोड़ी देर चीखने के बाद चंद्रपाल का शरीर शिथिल पड़ गया ।
हमला करने वाले अभी भी शान्त न हुए थे ,वे लाठी डंडों से वार करने से साथ- साथ भद्दी गालियां देते हुए कह रहे थे- तुम चमा%# की इतनी हिम्मत की हमारे दरवाजो के सामने से घोड़ी पर चढ़ के बारात।निकालो!!..... भो#$% बहुत गर्मी चढ़ी है तुम लोगो को .....माद%^*@
चंद्रपाल बेहोश पड़ा था , घुरहु तथा अन्य बारातियो को भी गंभीर चोटे आई । हमलावरों का खेल तक़रीबन 10 मिनट चला , उसके बाद वे हमलावार बारातियो को चीखते पुकारते हुए पास के घरो में गायब हो गए ।
जो बाराती पहले ही गाँव से बाहर खड़ी ट्राली और जीप में बैठ गए थे वे चीख पुकार सुन के घटनास्थल पर पहुंचे । जिस जीप में चंद्रपाल की बारात जानी थी अब उसी में उसे और अन्य घायलों को जिला अस्पताल में भर्ती कराने ले जाया जा रहा था।
चंद्रपाल की माँ दहाड़े मार के रोते हुए घायल चंद्रपाल और घुरहू को हवा कर रही थी। बदहवासी में हाथ का कोई पंखा ना मिला तो जीप में रखे अखबार को मोड़ के ही हवा करने लगी थी।
मुड़े हुए अखबार के मुख्य पेज पर एक खबर छपी थी - एक दलित बनेगा भारत का राष्ट्रपति'
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