'ओम मणि पद्मे हुम्'
इस मन्त्र के विषय में यह मान्यता फैली है कि संस्कृत का यह मंत्र बौद्ध धर्म शाखा या तिब्बती बौद्ध में प्रचलित है ,यह मंत्र अवलोकितेष्वर यानि करुणा बोधिसत्व का द्योतक है।
ओम का अर्थ ओम है , मणि का अर्थ गहना( माणिक या रौशनी -चमक) है , पद्मे का अर्थ कमल का फूल है जिसका अर्थ चेंतना किया और हुम् का सत/ आंनद अर्थ है।
यह भी आश्चर्य है कि संस्कृत के विद्वान तो इसे बुद्ध का मंत्र तो मानते ही है पर बौद्ध विद्वान भी इसे बुद्ध का मन्त्र मानते हैं।
जबकि सत्य है कि बुद्ध के समय संस्कृत थी ही नहीं।
संस्कृतवादियों का इस मंत्र को बुद्ध का मंत्र बताने का आशय यह रहता है कि बुद्ध को संस्कृत के बाद का सिद्ध किया जा सके ।
किन्तु यह मंत्र बुद्ध वचन नहीं है बल्कि यह मन्त्र वज्रयान के तंत्रवाद का है।
ओम मणि पद्मे हुम् का अर्थ करते हुए देवीप्रसाद जी कहते है कि इसका सीधा अर्थ है 'ओम वह मणि जो पद्म पर विराजमान है'।
तंत्रवाद की योगसाधना को शत-चक्र भेद कहा जाता है । तांत्रिकों के अनुसार इस का सैद्धांतिक आधार शरीर रचना के बारे में है ।
तंत्रवाद के अनुसार दो नाड़ियां हैं जो सुषुम्ना नाड़ी के दोनों ओर समान्तर चलती हैं, सुषुम्ना नाड़ी नितम्ब से लेकर मस्तिष्क तक जाती है और इसी लिए सामान्यतः इसी को रीड की हड्डी माना जाता है।
सुषुम्ना के अंदर एक और नाड़ी मानी जाती है जिसे वज्रख्या कहते हैं इसके बीच एक और नाड़ी है जिसे चित्रिणी कहते हैं। सीधे शब्दों में चित्रिणी सुषुम्ना नाड़ी का अंतरिम भाग है ।
तंत्रवाद में ऐसा माना जाता है कि सुषुम्ना नाड़ी के सात अलग अलग स्थानों पर सात पद्म (कमल) है ।आधुनिक तांत्रिक इसे स्नायुजाल कहते है किंतु प्राचीन तंत्रवाद के जानकार पद्म या कमल को योनि या भग का प्रतीक मानते है। प्राचीन तंत्रवाद में योनि या भग को पद्म से ही दर्शाते थे ।
प्राचीन तंत्रवाद के जानकार एल. डिलवालपोलियो ने कहा "वज्र जिसका दूसरा नाम मणि है वह पुरुष के लिंग का रहस्यमय नाम है ठीक उसी प्रकार जैसे योनि या भग का साहित्यिक नाम पद्म है"
प्रचीन कई सभ्यताओं में भी कमल को योनि का प्रतीकात्मक महत्व दिया गया था , इसलिए सुषुम्ना नाड़ी पर सात कमल नारीत्व के साथ स्थान हैं और तंत्रवाद के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के अंदर हैं ।
विभिन्न तंत्रों के अनुसार सात पद्मो के निश्चित आकार के चित्र होते हैं , इन चित्रों में अधिकाँश पद्मो में त्रिकोण चित्र बने होते हैं । तंत्रवाद में त्रिकोण अनिवार्य भग या योनि का प्रतीक होते हैं ।
शत-चक्र भेद के इन पद्मो पर सात शक्तियों जैसे कुलकुण्डलिनी , वाणिनी, लाकिनी आदि उल्लेख होता है।ये सातों शक्तियां प्रत्येक पद्म पर विरजमान होती हैं।
तंत्र साधना में कुण्डलनी शक्ति(सुप्त पड़े नारीत्व) को नितम्बो के पास सुष्मन्ना नाड़ी के अंतरिम केंद्र में जाग्रत किया जाता है और एक एक पद्म पर कर इसे मस्तिष्क तक लाया जाता है । सुषुम्ना के सबसे ऊपरी कमल को सहस्त्र- दल- पद्म कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है हजार पंखुड़ियों वाला कमल । कई विद्वान इसे हजार पिण्डको( अंडों) वाला ऊपरी मस्तिष्क कहते हैं जिसमे सभी पिंडक कुंडली के रूप में पड़े हैं। तांत्रिकों के अनुसार यह चेतना का सबसे उच्चतम निवास है।
तंत्रवाद के अनुसार पुरुषतत्व सहस्त्र-दल- पद्म में नारीत्व के साथ ही विरजमान है और कुण्डलनी शक्ति जब वँहा तक पहुँच जाती है तो पुरुषतत्व के साथ मिल के एक दूसरे में विलीन हो जाती हैं। उनका कोई अलग अस्तित्व नहीं रहता ,सब कुछ नारीत्व में विलीन हो जाता है और चेतना का उच्चतम अवस्था अन्तरतल में जाग्रत हो चुकी होती है।
अब आपकेमस्तिष्क में शायद यह प्रश्न भी आ सकता है कि ओम तो संस्कृत का शब्द है तो बौद्ध धर्म में क्या कर रहा है?
पर यह सत्य नहीं है ओम बौद्ध शाखा के तंत्रवाद का शब्द है जो तांत्रिक क्रियाओं में प्रयोग होता था ।
ठीक ऐसे समझिये की तंत्रवाद के इस मन्त्र 'ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' में नारी शक्ति को जाग्रत किया जा रहा है । अब कोई ऐं ह्रीं क्लीं ' का संस्कृत अर्थ बताये ?
अतः यह कहना की 'ओम मणि पद्मे हुम्' बुद्ध वचन है तो सर्वदा गलत है। बल्कि यह वज्रयान का मंत्र है ।
चित्र-शत-चक्र भेद(सप्त कमल)
क्रमशः
इस मन्त्र के विषय में यह मान्यता फैली है कि संस्कृत का यह मंत्र बौद्ध धर्म शाखा या तिब्बती बौद्ध में प्रचलित है ,यह मंत्र अवलोकितेष्वर यानि करुणा बोधिसत्व का द्योतक है।
ओम का अर्थ ओम है , मणि का अर्थ गहना( माणिक या रौशनी -चमक) है , पद्मे का अर्थ कमल का फूल है जिसका अर्थ चेंतना किया और हुम् का सत/ आंनद अर्थ है।
यह भी आश्चर्य है कि संस्कृत के विद्वान तो इसे बुद्ध का मंत्र तो मानते ही है पर बौद्ध विद्वान भी इसे बुद्ध का मन्त्र मानते हैं।
जबकि सत्य है कि बुद्ध के समय संस्कृत थी ही नहीं।
संस्कृतवादियों का इस मंत्र को बुद्ध का मंत्र बताने का आशय यह रहता है कि बुद्ध को संस्कृत के बाद का सिद्ध किया जा सके ।
किन्तु यह मंत्र बुद्ध वचन नहीं है बल्कि यह मन्त्र वज्रयान के तंत्रवाद का है।
ओम मणि पद्मे हुम् का अर्थ करते हुए देवीप्रसाद जी कहते है कि इसका सीधा अर्थ है 'ओम वह मणि जो पद्म पर विराजमान है'।
तंत्रवाद की योगसाधना को शत-चक्र भेद कहा जाता है । तांत्रिकों के अनुसार इस का सैद्धांतिक आधार शरीर रचना के बारे में है ।
तंत्रवाद के अनुसार दो नाड़ियां हैं जो सुषुम्ना नाड़ी के दोनों ओर समान्तर चलती हैं, सुषुम्ना नाड़ी नितम्ब से लेकर मस्तिष्क तक जाती है और इसी लिए सामान्यतः इसी को रीड की हड्डी माना जाता है।
सुषुम्ना के अंदर एक और नाड़ी मानी जाती है जिसे वज्रख्या कहते हैं इसके बीच एक और नाड़ी है जिसे चित्रिणी कहते हैं। सीधे शब्दों में चित्रिणी सुषुम्ना नाड़ी का अंतरिम भाग है ।
तंत्रवाद में ऐसा माना जाता है कि सुषुम्ना नाड़ी के सात अलग अलग स्थानों पर सात पद्म (कमल) है ।आधुनिक तांत्रिक इसे स्नायुजाल कहते है किंतु प्राचीन तंत्रवाद के जानकार पद्म या कमल को योनि या भग का प्रतीक मानते है। प्राचीन तंत्रवाद में योनि या भग को पद्म से ही दर्शाते थे ।
प्राचीन तंत्रवाद के जानकार एल. डिलवालपोलियो ने कहा "वज्र जिसका दूसरा नाम मणि है वह पुरुष के लिंग का रहस्यमय नाम है ठीक उसी प्रकार जैसे योनि या भग का साहित्यिक नाम पद्म है"
प्रचीन कई सभ्यताओं में भी कमल को योनि का प्रतीकात्मक महत्व दिया गया था , इसलिए सुषुम्ना नाड़ी पर सात कमल नारीत्व के साथ स्थान हैं और तंत्रवाद के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के अंदर हैं ।
विभिन्न तंत्रों के अनुसार सात पद्मो के निश्चित आकार के चित्र होते हैं , इन चित्रों में अधिकाँश पद्मो में त्रिकोण चित्र बने होते हैं । तंत्रवाद में त्रिकोण अनिवार्य भग या योनि का प्रतीक होते हैं ।
शत-चक्र भेद के इन पद्मो पर सात शक्तियों जैसे कुलकुण्डलिनी , वाणिनी, लाकिनी आदि उल्लेख होता है।ये सातों शक्तियां प्रत्येक पद्म पर विरजमान होती हैं।
तंत्र साधना में कुण्डलनी शक्ति(सुप्त पड़े नारीत्व) को नितम्बो के पास सुष्मन्ना नाड़ी के अंतरिम केंद्र में जाग्रत किया जाता है और एक एक पद्म पर कर इसे मस्तिष्क तक लाया जाता है । सुषुम्ना के सबसे ऊपरी कमल को सहस्त्र- दल- पद्म कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है हजार पंखुड़ियों वाला कमल । कई विद्वान इसे हजार पिण्डको( अंडों) वाला ऊपरी मस्तिष्क कहते हैं जिसमे सभी पिंडक कुंडली के रूप में पड़े हैं। तांत्रिकों के अनुसार यह चेतना का सबसे उच्चतम निवास है।
तंत्रवाद के अनुसार पुरुषतत्व सहस्त्र-दल- पद्म में नारीत्व के साथ ही विरजमान है और कुण्डलनी शक्ति जब वँहा तक पहुँच जाती है तो पुरुषतत्व के साथ मिल के एक दूसरे में विलीन हो जाती हैं। उनका कोई अलग अस्तित्व नहीं रहता ,सब कुछ नारीत्व में विलीन हो जाता है और चेतना का उच्चतम अवस्था अन्तरतल में जाग्रत हो चुकी होती है।
अब आपकेमस्तिष्क में शायद यह प्रश्न भी आ सकता है कि ओम तो संस्कृत का शब्द है तो बौद्ध धर्म में क्या कर रहा है?
पर यह सत्य नहीं है ओम बौद्ध शाखा के तंत्रवाद का शब्द है जो तांत्रिक क्रियाओं में प्रयोग होता था ।
ठीक ऐसे समझिये की तंत्रवाद के इस मन्त्र 'ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' में नारी शक्ति को जाग्रत किया जा रहा है । अब कोई ऐं ह्रीं क्लीं ' का संस्कृत अर्थ बताये ?
अतः यह कहना की 'ओम मणि पद्मे हुम्' बुद्ध वचन है तो सर्वदा गलत है। बल्कि यह वज्रयान का मंत्र है ।
चित्र-शत-चक्र भेद(सप्त कमल)
क्रमशः