Monday, 17 July 2017

एक शहीद ये भी-



कल दिल्ली में चार सफाई कर्मियों की मौत की खबर पढ़ी, सेफ्टिक टैंक को साफ़ करने के दौरान जहरीली गैसों से उनका दम घुटने के कारण उनकी मौत हो गई।
यह पहली घटना नहीं बल्कि ऐसा कोई दिन ही होता होगा जब देश के किसी न किसी कोने में किसी न किसी सफाई कर्मचारी की मौत होती है ।

यदि कोई सैनिक बार्डर पर दुश्मनों से लड़ता हुआ मारा जाता है तो उसके प्रति पुरे देश की आम और ख़ास जनता में शोक और संवेदनाओं की लहर दौड़ पड़ती है , ऐसा होना भी चाहिए आखिर सैनिक हमारी ही सुरक्षा के लिए शहीद होते हैं।
सफाई कर्मचारी भी हमारी ही सुरक्षा में लगा एक सैनिक ही होता है जो हमारे लिए ही शहीद होता है ,किन्तु जब वह शहीद होता है तो देश में कोई शोक और संवेदनाओं की लहर नहीं होती। उसके शहादत पर कोई चर्चा नहीं होती , शायद ऐसी जातियता की मानसिकता के कारण होता है।

सफाई कर्मचारी ....जो नंग्गे बदन बिना किसी जीवन रक्षक उपकरण के बदबूदार , जहरीली गैसों से भरे गटर में उतर जाता है बिना अपनी जान की परवाह किये ठीक वैसे ही जैसे एक सैनिक हमारी रक्षा के लिए बिना बुलेटप्रूफ जैकेट के उतर जाता है मैदान में ।
ये सफाईकर्मी जो उतर जाता है गटर साफ करने ताकि शहर में गंदगी न हो ... ताकि हमारे घरो -सड़को में गंदगी न हो और देश की जनता परेशान न हो बीमार न पड़े ....स्वस्थ रहे ।
बार्डर पर दुश्मन पडोसी मुल्क का सैनिक होता है जबकि यहाँ बीमारियां और जनता की परेशानियां जिससे एक सफाई कर्मचारी बखूबी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए लड़ता है ।

सोचिये जब भरी बारिश होती है , शहर के गली मोहल्ले की सड़के पानी और कूड़े करकट से बिलकुल जाम हो जाती है जिनमे पैदल चलना भी नामुमकिन हो जाता है , हमारे घरो तक में पानी भर जाता है जीवन दूभर हो जाता है । तब ऐसे में सफाई कर्मचारी नाम का सैनिक बिना किसी जीवन रक्षक उपकरण के अपनी जान पर खेल, दिन रात जानलेवा गटर में घुस घुस के उसे साफ़ करता है ताकि हमारा जनजीवन सुगम हो सके ।

आउटलुक पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल लगभग 1000 सफाई कर्मचारी गटर साफ़ करते हुए शहीद हो जाते हैं । आउटलुक पत्रिका यह दावा करती है की उसके पास 2015 में मारे गए सफाई कर्मचारियों जिनकी मौत सैफ्टिक टैंक और गटर साफ करते हुई है उनका ब्यौरा है जिसकी संख्या 300 से अधिक है ,ये आंकड़े स्वयं पत्रिका ने एकत्रित किये है जबकि पूर्ण आंकड़े सरकार उपलब्द करवाने में असमर्थ है मृतको की संख्या सालाना 1000 से अधिक भी हो सकती है ।

आगे पत्रिका लिखती है की चैन्नई के तांबरम में रहने वाली नागम्मा अभी साफ़ सफाई का कार्य करती हैं । उनकी दो बेटियां है , उनके पति की मृत्यु 2007 में गटर साफ़ करते हुए थी जिसमें तीन अन्य सफाई कर्मचारियों की भी मौत हुई थी , सरकार ने कोई भी आर्थिक मदद नहीं की और न ही अन्य लोगो ने ।कहते कहते नागम्मा के आँखों में आंसू आ जाते हैं ।

हैदराबाद की दलित बस्ती में एक गन्दी सी झोपडी में बड़ी मुश्किल से गुजर बसर करने वाली श्रीलता बताती है उनके पति की मृत्यु सैफ्टिक टैंक साफ़ करते हुए मौत हुई उनकी 8 साल की बेटी ग्रीष्मा बताती है की वह बड़ी होके डॉक्टर बनना चाहती है क्यों की डॉक्टरों ने उसके पिता का इलाज ठीक से नहीं किया ... पापा गटर से बहार निकाले गए थे न इसलिए कोई डॉक्टर उन्हें छूने को तैयार न था ... मैं बड़ी होके अपने लोगो का ढंग से इलाज करुँगी " यह कह के ग्रीष्मा और उसकी माँ दोनों रोने लगे।

जिस समय आप मेरा लेख पढ़ रहे होंगे उस समय देश में हजारो सफाई सैनिक अपनी जान जोखिम में डाल के गटर और सीवर में उतर रहें होंगे ताकि आम जनता बीमारियो से बची रहे पर वह सैनिक खुद विषाणुओं और जहरीली गैसों से अपनी जान नहीं बचा पाता। मरने वाले सफाई सैनिको के परिवारवाले कितने दयनीय स्थिति में रहते हैं और जिन्दा रहने के लिए कितना संघर्ष करते हैं इसकी कल्पना करना मुश्किल है ।

केंद्र सरकार से लेके राज्य सरकार और जिला प्रशाशन की भयानक अवहेलना झेलते इन सफाई सैनिक परिवरो को भी देश के लोगो की सांत्वना और मदद की जरुरत है .... ठीक वैसे ही जैसे बार्डर पर मरने वाले सैनिक परिवारो को ।

एक बात और, जिस दिन गटर /टैंक  सफाई करते समय सिर्फ एक जाति विशेष के लोग न मर के अपने को उच्च जाति के कहलाने वाले भी मरने लगेंगे उसी दिन सफाई का काम मशीनों द्वारा होने लगेगा।
तब तक हम अभिशप्त हैं अपने भाइयों की मौत पर रोने के लिए ....


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