क्या चार्ज है ? " सुनील ने पूछा।
" सिंगल शॉट का पांच सौ और फुल नाइट सर्विस का पंद्रह सौ, अगर दो लोग है तो ढाई हजार ... दो लोगो से ज्यादा नहीं ... " रूबी ने हाथ घुमातें हुए एक साँस में समझाने वाले लहजे में कहा ।
" नहीं मैं सिंगल ही हूँ .....पूरी रात का कुछ कम होगा क्या ?" सुनील ने मुस्कुराते हुए कहा।
" नही .... रेट में कोई हेर फेर नहीं .... और हाँ !पैसा एडवांस देना होगा " रूबी ने सर हिला के मना करते हुए रूखेपन से कहा ।
" अच्छा..अच्छा!! चलो बैठो " सुनील ने रूबी को मोटरसाइकिल पर बैठने का इशारा किया ।
रूबी मोटरसाइकिल पर उचक के सुनील के पीछे जा बैठी।
सुनील मोटरसाइकिल स्टार्ट कर तेजी से दौड़ाने लगा, पीछे बैठी रूबी ने दुपट्टे से अपना चेहरा ढँक लिया।शायद वह चाहती थी की कोई उसे पहचाने न।
" क्या नाम है तुम्हरा? " थोड़ी देर मोटरसाइकिल चलाते रहने के बाद सुनील ने पीछे मुड़ते हुए रूबी से पूछा।
" रूबी...." रूबी ने ठन्डे लहजे में उत्तर दिया।
" रहती कँहा हो?" सुनील ने फिर प्रश्न किया ।
" क्या करेगा जान के ? नाम - गाँव जान के क्या करेगा? तू जिस काम के लिए ले जा रहा है वह काम होना चाहिए बस ... बाकी क्या करना है तुझे? " रूबी ने कुछ तीखे अंदाज में कहा तो सुनील झेंप के चुप हो गया ।
"और कितनी दूर है तेरा घर? " रूबी ने कुछ देर बाद पूछा शायद वह बोर होने लगी थी या ज्यादा दूर जाने से डर लग रहा था।
" बस .... अगले कट से दो गली बाद "सुनिल मुस्कुराते हुए कहा ।
दो- तीन मिनट बाद एक गली के सामने गली में पहुँचने के बाद सुनील ने मोटरसाइकिल रोक ली और रूबी को मोटरसाइकिल से उतारते हुए कहा की वह पहले वह घर का ताला खोलेगा और उसके पांच मिनट बाद रूबी आये ताकि अगर पडोसी उसकी मोटरसाइकिल की आवाज़ से जग भी जाएँ तो उसे अकेला ही देखें।
रूबी ने ऐसा ही किया , सुनील ने पहले जा के अपने घर का ताला खोला और बाइक पार्क कर आधा गेट खोले रखा। कुछ क्षण बाद रूबी चुप चाप घर के अंदर आ गई तो सुनील ने तेजी से दरवाज़ा बंद कर दिया ।
कमरे के अंदर पहुँच सुनील ने रूबी को सोफे पर बैठने का इशारा किया और खुद फ्रिज से बोतल निकाल कर एक गिलास में पानी उड़ेल पीने लगा ।
पानी पी लेने के बाद उसने एक गिलास और भरा और रूबी की तरफ बढ़ा दिया ।
रूबी ने कुछ संकुचाते हुए पानी का गिलास थामा और एक सांस में खाली कर दिया । पानी पीने के बाद गिलास मेज पर रखते हुए उसने सुनील की तरफ देखा और कहा- तो! शुरू करें?
सुनील रूबी की बात सुन उसके पास आ के बैठ गया और उसका दुपट्टा हटा के उसके स्तनों को निहारते हुए बोला-रिलैक्स! अभी सारी रात बाकी है... कुछ इंजॉय करते हैं पहले"
फिर वह उठा और कपड़े बदलने लगा,कपडे बदल के वह फिर फ्रिज के पास जा पहुंचा और फ्रिज में रखी सिग्नेचर की बोतल निकाल के वापस फ्रिज को बंद कर दिया । दो गिलास पानी की बोतल और नमकीन - काजू से भरी कटोरी ले के रूबी के पास जा बैठा।
दो पैग बना के एक रूबी की तरफ बढ़ाते हुए बोला- लो ....कुछ मूड बनाओ यार... मजा दुगना आएगा"
"मैं शराब नहीं पीती .... " रूबी ने हाथ से गिलास हटाते हुए कहा।
"एक पैग तो ले लो...तुम तो शरमा रही हो.. इस काम में तो यह चलता है... मूड बन जायेगा " सुनील ने थोड़ा जिद करते हुए कहा।
सुनील के बार बार जिद और आग्रह करने पर आख़िर रूबी मान ही गई , उसने गिलास उठाया और होठो से लगा एक सिप ले लिया ।
"तुम इस धंधे में कब आईं?" सुनील ने नमकीन की प्लेट रूबी की तरफ सरकाते हुए पूछा।
सुनील का प्रश्न सुन रूबी का खिला हुआ चेहरा एक दम से मुरझा सा गया , कई दबे हुए दर्द एकाएक उभर आये ।जैसे ऊपर से ठंडी पड़ चुकी राख को कोई कुरेद के दबी आग को फिर से हवा दे दे।
"देखो तुम बताना नहीं चाहती हो तो कोई बात नहीं .... मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था ...तुम धंधे वाली लगती नहीं हो न " सुनील ने रूबी को ख़मोश देख कहा।
"क्या बताऊँ!कुछ बताने लायक है ही कँहा... कौन अपनी खुशी से बनना चाहता है वैश्या!.... यह सब इश्क़ का नतीजा है"रूबी ने एक साँस में पूरा गिलास खाली कर दुःख भरे किन्तु व्यंग वाले अंदाज में कहा ।
" इस शराब से भी कड़वी जिंदगी की कहानी है मेरी"रूबी ने छत की तरफ देखा और आँखे बंद करते हुए बोली।
उसके बाद रूबी ने अपनी कहानी बतानी शुरू की , कैसे वह एक लड़के के प्यार के चक्कर में फंस के बंगाल से दिल्ली आ गई थी। दिल्ली में उन्होंने शादी भी कर ली , एक बच्ची भी पैदा हो गई । एक दिन लड़के ने अचानक बताया कि लड़के के पिता जो इस शादी के खिलाफ थे उन्होंने लड़के की शादी कंही और तय कर दी थी, अगर वह उनकी बात नहीं मानेगा तो उसे जायजाद से बेदखल कर देंगे , जायजाद काफी थी जिसे लड़का छोड़ने की हिम्मत नही कर पाया । फिर एक दिन तलाक़- तलाक़ बोल के हमेशा के लिए छोड़ के चला गया। लड़के को कँहा खोजती? वह कभी अपने घर लेके ही नहीं गया बस इतना सुना था उसके मुंह से की वह राजस्थान का रहने वाला था ,उस पर विश्वास कर घर छोड़ के भाग आई थी।वापस अपने घर जा नहीं सकती थी, मैं अपने घर वालो के लिए मर चुकी थी।
सुनील ख़ामोशी से रूबी की बात सुन रहा था ।
" मैंने पहले तो आत्महत्या करने की सोची पर फिर सोचा की बच्ची का क्या कसूर! कई जगह नौकरी भी करने की कोशिश की पर अकेली जान के हर कोई मेरे जिस्म को ही पाना चाहता था ... इसलिए सोचा की जब वही करना है तो खुल के क्यों न किया जाए .... अपनी मर्जी से ग्रहाक और अपनी मर्जी से पैसा" यह कहते हुए रूबी के गालों से दो आंसू लुढ़क गएँ।
"और बच्ची को कँहा छोड़ के आती हो?" सुनील ने पूछा।
" आया के पास ...."रूबी ने आँखे बंद किये ही उत्तर दिया..
सुनील का मूड कुछ ऑफ सा हो गया था रूबी की कहानी सुन के पर कुछ शराब का शुरुर और कुछ रूबी को दिए पैसे का ख्याल कर उसने रूबी को आलिंगन किया और उसे वस्त्रहीन कर दिया।
तभी जोर से डोरबैल बजने की आवाज़ सुनाई दी।
"कौन होगा? " रूबी ने सुनील से घबराते हुये पूछा ।
सुनील को खुद नही समझ आया की इतनी रात को कौन आ सकता है । उसने तौलिया लपेटी और अजमंजस में दरवाजें को खोला । दरवाजा खोलते ही उसके होश उड़ गएँ, काटो तो खून नहीं। सामने उसकी पत्नी चंद्रिका खड़ी थी , साथ में उसका भाई और माँ भी ।
"अच्छा! मैं दो दिन के लिए मायके क्या गई तुम घर में रंडी लाके गुलछर्रे उड़ाने लगे.... घर को कोठा बना दिया" चन्द्रिका ने आग उगलते हुये शब्दो में कहा और सुनील को धक्का देते हुए अंदर दाखिल हो गई। उसके पीछे उसकी मां और भाई भी। किसी पडोसी ने सुनील ने देख लिया था रूबी को घर लाते हुए और उसने चंद्रिका को फोन कर दिया था ।
" वो...वो... तुम गलत समझ रही हो" सुनील ने घबराए और लड़खड़ाई हुई आवाज़ में कहा ।
" मैं क्या समझ रही हूँ यह अभी बताती हूँ " चंद्रिका चीखती हुई उस कमरे में प्रवेश कर गई जंहा रूबी थी।रूबी ने जब शुरगुल सुना तो वह कपडे पहने लगी किन्तु अर्धनशे होने के कारण उसका दिमाग और हाथ-पाँव सही के काम नहीं कर रहे थे , शरीर का ऊपरी भाग अब भी खुला था ।
चंद्रिका ने रूबी को जब इस हालत में देखा तो वह क्रोध में लगभग विक्षिप्त हो गई।
"कुतिया... रंडी...#$%…..&%$.... मेरे घर को कोठा बना दिया ....तेरी आग आज शांत करुँगी ...." और बहुत सी गालियों बकती हुई चंद्रिका ने रूबी के बाल पकड़ अपने हाथ में लपेट लिए। रूबी दर्द से चीख उठी और दोनों हाथों से चंद्रिका की पकड़ को छुटाने की कोशिश करने लगी । किन्तु चंद्रिका की पकड़ इतनी मजबूत थी की रूबी सिवाय चीखने के कुछ न कर पा रही थी। सुनील रूबी को छुटाने की कोशिश करने लगा पर चंद्रिका ने उसे इतनी जोर से धक्का दिया की वह लड़खड़ा के दरवाजे से टकरा गया, नशे में होने के कारण वैसे ही वह सही से खड़ा नही हो पा रहा था।
चंद्रिका रूबी को गालियां बकती हुई किसी विक्षिप्त की तरह उस पर लात घूसे बरसा रही थी। रूबी दर्द के मारे सिर्फ चीख रही थी कुछ बोल न पा रही थी।
चंद्रिका ने रूबी का सर कांच की मेज पर इतनी जोर से मारा की 12 mm का मोटा कांच चकना-चूर हो उठा । कांच के कई टुकड़े रूबी के गले और चेहरे पर अंदर तक धंस गए थे जिनमें से खून की तेज धार बहने लगी थी । किन्तु चन्द्रिका का इस पर कुछ असर नहीं हो रहा था , वह तो रूबी को पीटे जा रही थी। कुछ देर बाद रूबी का शरीर शांत हो गया, चंद्रिका को जैसे होश आया और उसने रूबी को छोड़ दिया । चन्द्रिका ने देखा की पूरे घर में खून ही खून बिखरा हुआ था , उसके खुद के कपडे और हाथ रूबी के खून से सने हुए थे । रूबी मर चुकी थी।
बस यहीं तक थी कहानी.....