बहुत समय पहले एक कहानी पढ़ी थी, उस कहानी का मुख्य मात्र एक बहुत नामी वकील होता है जो कभी कोई केस नहीं हारता था। उसकी एक आदत की जब वह अदालत में किसीं केस पर जिरह करता तो अपने कोट के ऊपर वाले बटन को बाएं हाथ की उंगलियों से घुमाता रहता था ।
एक दिन एक महत्वपूर्ण केस पर जिरह करते समय वकील का हाथ आदतानुसार कोट के बटन पर जाता है ,किन्तु कोट पर बटन नहीं मिलता । वकील बेचैन हो उठता है वह बार बार अपना हाथ कोट के उस स्थान पर लेके जाता है किंतु वँहा बटन न मिलने से बहुत परेशान हो उठता है। बटन न घुमा पाने के कारण वह इतना नर्वस हो जाता है उसे लगता है कि वह केस हार जायेगा , उसके मन में यह बात बैठ गई थी बटन घुमाने से वह केस जीतता है।
घबराहट में जिरह न कर पाने के वह केस लगभग हारने वाले ही होता है कि तभी अदालत का समय पूरा हो जाता है , जज अगले दिन की डेट दे देता है। घर आके वह सारी बात अपनी पत्नी को बताता है तो उसकी पत्नी कहती है कि कल कोट धोते समय बटन टूट गया था बाद में वह बटन टाँकना भूल गई थी । वकील की पत्नी कोट का बटन पुनः टांक देती है , अगले दिन वकील अदालत में जाता है और आदतन अनुसार कोट का बटन घुमाता रहता है जिससे उसका आंतरिक विश्वास मजबूत रहता है और हारा हुआ केस जीत जाता है।
कोट का बटन घुमाना उस वकील की आदत थी यह एक तरह से उसके आत्मविश्वास( चेतन मन) को सबलता देता था जिससे वह खुद को केस पर केंद्रित कर पाता था , केस की बारीकियों पर अच्छी पकड़ कर पाता था। कोट का बटन न घुमा पाने के कारण वह खुद को नर्वस पाता है और केस हारने लगता है,उसका आत्मविश्वास कमजोर हो उठता है ।
आत्मविश्वास या आंतरिक विश्वास( मन की सबलता) का आभव मनुष्य में और भी कई प्रकार प्रकट होता है । इससे मनुष्य में विविध प्रकार की विचित्रता उतपन्न हो जाती है , ऊपर दिए वकील की कहानी की तरह बहुत से लोग विशेष तिथि,रंग, आभूषण, के प्रति अन्धविश्वसी हो जाते है और उन्हें शुभ या अशुभ समझने लगते है। इस प्रकार से ऐसे भाव उसके अचेतन मन में बैठ जाते जिन्हें वह काल्पनिक ईश्वर से जोड़ देता है ,इसी भावों के आधार पर उसका आत्मविश्वास कमजोर या मजबूत होने लगता है।
कई लोग मेरी नास्तिकता को लेके मुझ से असहज रहते हैं, उन्हें लगता है कि जैसा वे ईश्वर को मानते और जानते रहें है वैसा मैं क्यों नही मानता हूँ? उस भेड़ चाल में मैं क्यों नहीं शामिल हूँ जिसमे वे सब है। पर मुझे उन से शिकायत कम् ही रहती है क्यों की मैं जानता हूँ की उनका अचेतन मन ईश्वर की वैसी ही कल्पना स्वीकार कर चुका है जैसा उस वकील ने अपने कोट के बटन को घुमाने से केस जीतने का सम्बन्ध स्थापित कर लिया था। उनके आत्मविश्वास को बनाये रखने के लिए ईश्वर की परिकल्पना उनके लिए जरुरी है।
ईश्वर कल्पना ही सही किन्तु उन्हें इस कल्पना से सबलता मिलती है, मैं ऐसा मानता भी हूँ की कमजोर आत्मविश्वसियों के लिए यह जरुरी भी है अन्यथा वे टूट जायेंगे । जब तक उनका अचेतन मन स्वयं सबल हो ईश्वरीय रूपी कल्पना के पट्टे को उतार न फेंके तब तक उनका आस्तिक बने रहना अच्छा है।
एक दिन एक महत्वपूर्ण केस पर जिरह करते समय वकील का हाथ आदतानुसार कोट के बटन पर जाता है ,किन्तु कोट पर बटन नहीं मिलता । वकील बेचैन हो उठता है वह बार बार अपना हाथ कोट के उस स्थान पर लेके जाता है किंतु वँहा बटन न मिलने से बहुत परेशान हो उठता है। बटन न घुमा पाने के कारण वह इतना नर्वस हो जाता है उसे लगता है कि वह केस हार जायेगा , उसके मन में यह बात बैठ गई थी बटन घुमाने से वह केस जीतता है।
घबराहट में जिरह न कर पाने के वह केस लगभग हारने वाले ही होता है कि तभी अदालत का समय पूरा हो जाता है , जज अगले दिन की डेट दे देता है। घर आके वह सारी बात अपनी पत्नी को बताता है तो उसकी पत्नी कहती है कि कल कोट धोते समय बटन टूट गया था बाद में वह बटन टाँकना भूल गई थी । वकील की पत्नी कोट का बटन पुनः टांक देती है , अगले दिन वकील अदालत में जाता है और आदतन अनुसार कोट का बटन घुमाता रहता है जिससे उसका आंतरिक विश्वास मजबूत रहता है और हारा हुआ केस जीत जाता है।
कोट का बटन घुमाना उस वकील की आदत थी यह एक तरह से उसके आत्मविश्वास( चेतन मन) को सबलता देता था जिससे वह खुद को केस पर केंद्रित कर पाता था , केस की बारीकियों पर अच्छी पकड़ कर पाता था। कोट का बटन न घुमा पाने के कारण वह खुद को नर्वस पाता है और केस हारने लगता है,उसका आत्मविश्वास कमजोर हो उठता है ।
आत्मविश्वास या आंतरिक विश्वास( मन की सबलता) का आभव मनुष्य में और भी कई प्रकार प्रकट होता है । इससे मनुष्य में विविध प्रकार की विचित्रता उतपन्न हो जाती है , ऊपर दिए वकील की कहानी की तरह बहुत से लोग विशेष तिथि,रंग, आभूषण, के प्रति अन्धविश्वसी हो जाते है और उन्हें शुभ या अशुभ समझने लगते है। इस प्रकार से ऐसे भाव उसके अचेतन मन में बैठ जाते जिन्हें वह काल्पनिक ईश्वर से जोड़ देता है ,इसी भावों के आधार पर उसका आत्मविश्वास कमजोर या मजबूत होने लगता है।
कई लोग मेरी नास्तिकता को लेके मुझ से असहज रहते हैं, उन्हें लगता है कि जैसा वे ईश्वर को मानते और जानते रहें है वैसा मैं क्यों नही मानता हूँ? उस भेड़ चाल में मैं क्यों नहीं शामिल हूँ जिसमे वे सब है। पर मुझे उन से शिकायत कम् ही रहती है क्यों की मैं जानता हूँ की उनका अचेतन मन ईश्वर की वैसी ही कल्पना स्वीकार कर चुका है जैसा उस वकील ने अपने कोट के बटन को घुमाने से केस जीतने का सम्बन्ध स्थापित कर लिया था। उनके आत्मविश्वास को बनाये रखने के लिए ईश्वर की परिकल्पना उनके लिए जरुरी है।
ईश्वर कल्पना ही सही किन्तु उन्हें इस कल्पना से सबलता मिलती है, मैं ऐसा मानता भी हूँ की कमजोर आत्मविश्वसियों के लिए यह जरुरी भी है अन्यथा वे टूट जायेंगे । जब तक उनका अचेतन मन स्वयं सबल हो ईश्वरीय रूपी कल्पना के पट्टे को उतार न फेंके तब तक उनका आस्तिक बने रहना अच्छा है।
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