प्रचीन तंत्रवाद में प्रजनन और उर्वरता के कारण प्रकृति को स्त्री देह का स्वरूप माना गया है । तंत्रवाद में पुरुष (जल)गौड़ रहा है इसलिए इसका प्रमुख चिंतन स्त्री के आस- पास घूमता रहा है। स्त्री प्रमुखता होने कारण इसे मातृसत्तात्मक पक्ष कहा गया। सिन्धु सभ्यता में तंत्रवाद के बहुत अवशेष देखने को मिलते हैं अतः विद्वानों के अनुसार निश्चय ही सिन्धु सभ्यता मातृसत्तामक रही होगीं।
बाद के पितृसत्तामक सिद्धान्तों में स्त्री यानी प्रकृति गौड़ हो गई और पुरुष चिंतन का केंद्र बन गया।
शिव- शक्ति की धारणा तंत्रवाद के प्रकृति और पुरुष के सिद्धांत की ही उपज है ।
भारत के तंत्रवाद और चीन के ताओवाद में बहुत सी समानता है,जिस प्रकार तंत्रवाद में सृष्टि की उत्पत्ति मैथुन क्रियाओं से बताई गई है वैसे ही ताओवाद में अलग अलग सिद्धान्तों में मैथुन से ही सृष्टि की उत्पत्ति बताई गई है।
ब्रिटिश प्रख्यात विद्वान जोसेफ निधम ने अपनी पुस्तक ' साइंस एंड सिविलाइजेशन इन चीन' में बताया है की चीन के ताओवाद और भारतीय तंत्रवाद में गहरा संबंध रहा है। उनके अनुसार ताओवाद का प्रकृतिक चिंतन ही चीन के सभी विज्ञानों का आधार है। चीन में ताओवाद का उदय लगभग ईसा दूसरी सदी पूर्व माना गया है।
जिज़ प्रकार भारतीय तंत्रवाद में प्रकृति और पुरुष(जल)" माने गए हैं जो बाद के चिन्तनों में शिव-शक्ति के रूप में अपनाए गए वैसे ही ताओवाद में भी पुरुष और प्रकृति का सिद्धांत रहा था । स्त्री( प्रकृति) को 'यीन' और पुरुष को 'यांग' माना गया है। इस प्रकार सभी नरम, शीतल, अंधकारमय, निष्क्रिय वस्तु स्त्री जातीय अर्थात 'यीन' है और सभी कठोर, उष्ण, आलोकमय और सक्रिय वस्तु पुरुष जातीय है।
ताओवाद के सिद्धांत के अनुसार शारीरक देह ही सभी कुछ है, शारीरिक अमरत्व की प्राप्ति किसी अलौकिक क्रियाओं द्वारा नही बल्कि भौतिक क्रियाओं पर निर्भर करता है जैसे-
1-श्वशन तकनीक
2-सूर्य की किरणों से चिकित्सा
3-व्यायाम क्रियाएं
4-यौन क्रियाये
5- रासायनिक और औषधीय तकनीक
6-आहार सम्बन्धी क्रियाएं
हम देखते हैं कि ये सभी सिद्धान्त भारतीय तंत्रवाद के सिद्धांतों से हूबहू मेल खाते हैं , तंत्रवाद में 'देहतत्व'ही सभी कुछ है, योग साधना , व्यायाम की क्रियाओं को जिन्हें प्राणायाम तथा आसान कहा जाता था। यौन साधना तंत्रवाद में प्रमुख रही । नीधम ने कहा है कि जिस प्रकार तंत्रवाद में पूजरिनो( योगनी, भैरवी), का महत्व था उसी प्रकार ताओवाद में भी पुजारिन अर्थात 'वू' का महत्व था । वे आगे कहते हैं कि जिज़ प्रकार मातृसत्तामक पक्ष में आदर्शवादी समाज का निर्माण होता है वैसे ही ताओवादियों का भी सिंद्धात था।
ताओवाद को नष्ट करने वाला कंफ्यूशियस सिद्धात था , कंफ्यूसियस को 'यांग' प्रधान चिंतन कहा गया है अर्थात पुरुष प्रधान या पितृसत्तामक पक्ष ।जैसा की भारत मे भी मातृसत्तामक पक्ष वाले सिन्धु सभ्यता को नष्ट करने वाला पितृसत्तामक पक्ष । पुरुष चिंतन सिद्धान्त से ही 'ईश्वर' की कल्पना का प्रादुर्भाव हुआ।
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