Wednesday, 27 March 2019

खोए हुए नगर की तलाश

ईसा के जन्म से कई शताब्दी पहले ही बौद्ध धर्म चीन में भली भांति परिचित हो चुका था । सू- मा-चेइन नाम के चीनी लेखक ने ईसा के जन्म से एक शताब्दी पूर्व अपने इतिहास में बौद्ध धर्म के बारे में जिक्र किया है।

चीन के प्रबुद्ध लोग बौद्ध धर्म के ज्ञान की प्राप्ति के लिए लालायित हो उठे थें, उन्हें यह विश्वाश था कि गोतम की भूमि पर अपने अधूरे ज्ञान की पूर्ति होगी।  इन्ही आकांक्षाओं के वसीभूत हो वे कठिन पहाड़ियों की चढ़ाई कर, तपा देने वाले रेगिस्तानों , जमा देने वाली सर्द हवाओं और बर्फ की चोटियों, घने और खतरनाक जंगलो , चोर लुटरों द्वारा जान के भय को त्याग ,विभिन्न यातनाओं के झेलकर भारत आएं । यंहा के बौद्ध विहारों -विश्वविद्यालयों  में ज्ञान प्राप्त किया , राज दरबारों में रुके और अपनी यात्राओं को लिपिबद्ध किया ।

सिन्धु सभ्यता के विषय मे जानने की मेरी इच्छा इतनी तीव्र है कि जब मैने यह पढ़ा था कि हरियाणा के राखीगढ़ी गांव में भी सिंधु सभ्यता के बहुत से अवशेष मिले हैं तो मेरी यंहा जाने की जाग उठी थी। करीब दो सालों से यंहा जाने की सोच रहा था ताकि अपनी आंखों से उस सभ्यता के अवशेषों को देख सकूं जो कभी हमारे पूर्वजों की रही थी।  राखीगढ़ी में  1997 से खुदाई चालू  है , अब तक वंहा  सिंधू सभ्यता के मानव कंकाल , बर्तन, आभूषण , कंघी आदि चीजे प्राप्त हुई हैं। दिल्ली से राखीगढ़ी की दूरी लगभग 160 किलो मीटर की है । सुबह घर से निलने के बाद दिल्ली और बहादुरगढ़ का भयंकर जाम झेलते हुए , उबड़- ख़बड़ रास्तो को पार करते हुए तकरीबन साढ़े चार घण्टे में मैं राखीगढ़ी पहुंचा । राखीगढ़ी गांव को पार कर जब आप अंतिम छोर पर पहुंचेगे तो वंहा आपको कई घर अनुसूचित जाति के दिखाई देंगे ,महिलाओं का पहनावा और बर्तनों के प्रयोग से ही आपको यह अंदाजा हो जायेगा कि ये सिंधु संस्कृति के वंशज है किन्तु अब विपन्न अवस्था मे हैं। उन्ही के घरों के सामने ही महान सिंधु सभ्यता के अवशेष वाले मिट्टी के टीले शुरू हो जाते हैं।

मैंने एक व्यक्ति से पूछा कि म्युजियम कँहा है ? तो उसने एक बड़ी निर्माणधीन इमारत को दिखाते हुए कहा कि अभी बन रहा है। मैं उस निर्माणधीन इमारत के अंदर गया और वंहा के ठेकेदार से जानकारी लेने लगा।उस ठेकदार ने बताया कि अभी म्युजियम की इमारत बन रही है , जो वस्तुएं खुदाई में अभी तक निकली हैं वे किसी और म्युजियम में रखी हुई हैं जब इमारत बन जाएगी तब वे चीजे यंहा लाई जाएंगी।
मैं निराश हो गया , इतनी दूर कष्ट सह के आना बेकार रहा। फिर मैने कार वापस मोड़ी और टीले के सामने ले जा के खड़ी कर ऊपर टीले पर चढ़ कर देखने लगा। वंहा कई मिट्टी के टीले थें, कुछ को खोद के गड्ढा बना दिया गया था जिसमे लोहे की जाली लगा के बंद कर दिया गया था । गड्ढा होने के कारण उनमे पानी भर गया था जो तालाब जैसा प्रतीत हो रहा था। कुछ टीले अब भी ऐसे थें जिनकी खुदाई नही हुई थी।  बाकी चारो तरफ खेत ही खेत दिख रहे थें।


मैं नीचे उतर आया और किसी स्थानीय व्यक्ति से इस विषय में विस्तार से जानना चाह रहा था , पर अधिकतर लोग इस विषय मे अनभिज्ञ थें , उन्हें यह तो पता था कि खुदाई में कुछ निकला तो है पर उसका क्या महत्व है वह नही जानते हैं । थोड़ा खोजने पर अनिल नाम के एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि रुक रुक के खुदाई चलती है, पिछली बार जो खुदाई हुई थी उसे पाट दिया गया है क्यों कि जब तक म्युजियम नही बन जाता तब तक उन चीजों को रखने की व्यवस्था नही है।जब म्युजियम बन जायेगा तब दुबारा खुदाई होगी। राखीगढ़ी और उससे लगता एक गांव को आर्कियोलॉजिकल साइट घोषित कर दिया गया है,गांव कभी खाली करवाया जा सकता है । राखीगढ़ी में सिन्धु सभ्यता का विस्तार लगभग 3 किलो मीटर रेडियस में है । सिन्धु सभ्यता के  समय की एक बड़ी बस्ती रही होगी । अनिल ने बताया कि उसने खुदाई में मिट्टी की ईंटो की दीवार और पीतल के बर्तन देखे थें पर वह जगह अब दुबारा पाट दी गई है , ताकि चोरो और जानवरों से सुरक्षित रखा जा सके ।

कुछ फोटो लेने के बाद मैं खाली हाथ और निराश हो वापस चल दिया। यह मेरे लिए बहुत दुख की बात थी , मैं फाहियान की तरह कामयाब नही हो पाया। मेरा समय, पैसा और मेहनत सब बेकार चली गई थी।










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