Wednesday, 28 December 2016

भारतीय प्राचीन इतिहास



सन् 1920 तक भारत में प्राचीन इतिहास के नाम पर वेद पुराण ही प्रचलित थे जो मिथको, दंतकथाओं , किद्वंतीयो , कल्पनाओ से इतने भरपूर थे की उनमे से यथार्थ इतिहास का पता करना लगभग असम्भव था । ब्राह्मणिक ग्रंथो में जितने भी राजाओ आदि के नाम मिलते हैं उनके जन्म मरण और राज्यकाल की तिथियों का आभाव होने के कारण उन राजाओ का राजनैतिक इतिहास ही नहीं प्रमाणिक हो सकता था ।

उपरोक्त परस्थतियो में जब इतिहास के विद्यार्थी सुमेरियन, बेबीलोन , मिस्री सभ्यतो के बारे में पढ़ते थे की ये सभ्यताए ईसा से तीन चार हजार वर्ष पूर्व की थी तो उनकी प्राचीनता पर आस्चर्य करते थे क्यों की   ब्राह्मणिक साहित्य में सिंधु घाटी जैसी प्राचीन सभ्यता का जिक्र नहीं था , जो सम्पूर्ण पश्चिमोत्तर में फैली थी उसका जिक्र ही नहीं था। पर हाँ, उन ग्रंथो में भारत के लोगो को राक्षस, दानव, असुर आदि नाम देकर विकराल रूप में अवश्य चित्रित किया हुआ था ।

ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम भारत में ' अर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया' की स्थापना की जिसके प्रथम निदेशक सर अलैक्जेंडर जी थे । उनकी देख रेख में भारत में प्राचीन खंडरो और टीलो का उत्खनन आरम्भ किया गया ,सन् 1921 में निदेशक महोदय की देख रेख में श्री दयाराम साहनी ने हड़प्पा टीले की खुदाई कराई। यह टीला वर्तमान पश्चमी पाकिस्तान में लाहौर से 100 मील दूर है , इसकी खुदाई से धरती में छिपे प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का पता चला । उसके बाद मोहन जोदड़ो का । यह सभ्यताए मिश्र, बेबिलोनिया आदि सभ्यताओ के समयकालीन ही थीं।
भारत का इतिहास अभिलेखों से भी जाना गया , सम्राट अशोक से पहले का कोई अभिलेख अभी प्राप्त नहीं हुआ है ,वास्तव में अशोक काल से ही अभिलेखों का बनना आरम्भ हुआ था ।

उसके आलावा पुरातत्व विभाग ने प्राचीन स्मारकों से भी भारत का इतिहास जाना ,इस दिशा में लार्ड केनिंग का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, तक्षशिला , मथुरा, सारनाथ, पाटलिपुत्र, नालंदा साँची, आदि सैकड़ो स्मारको से भारत का प्रचीन इतिहास जाना गया
इसके आलावा विदेशी यात्रियों के भारत की यात्राओ का वर्णनो से भी भारत के इतिहास की जानकारी मिली ।

1-यूनानी आक्रमणकारी सिकंदर के साथ आये आरिस्टबुलस , चारस और उमेनिस जैसे उत्सकी भ्रमक भी थे जिन्होंने अपने भारत भ्रमण के व्रतांत लिपि बद्ध किया और भारत का सजीव चित्रण किया । यद्यपि इनके ग्रन्थ अब मूल रूप से उपलब्ध नहीं हैं पर फिर भी उनके परवर्ती लेखको ने जो उन ग्रंथो के उदहारण अपने ग्रंथो में दिए है उनसे पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त होती है ।

2- सिकंदर के बाद यूनानी शासक सेल्युकस के राजदूत के रूप में मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में 6 वर्ष तक रहा , उसने अपनी पुस्तक 'इंडिका' में तत्कालीन भारतीय राजनैतिक विवरण दिया ।

यूनानियो के बाद चीनी इतिहासकारो द्वारा लिपिबद्ध की गई जानकारियो से हमें भारतीय इतिहास का ज्ञान मिलता है ।

1- शुमासिन- चिंबके प्रथम इतिहासकार शुमाशीन ने प्रथम शताब्दी में भारत की यात्रा की और अपने अनुभवो को लिपिबद्ध किया।

2- फाह्यान - यह चीनी यात्री सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में भारत आया ,यह सन् 399 ई. में भारत आया और लगभग 14 वर्ष रह के बौद्ध धर्म का अध्यन किया और अपने अनुभवो को लिपिबद्ध किया । इसकी लिखी पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भी हो चूका है ।

3-सुंगयुन्- यह 518 ईसा में बौद्ध धर्म ग्रंथो की खोज में  भारत आया था , लगभग 3 वर्ष तक रुक और 160 बौद्ध ग्रंथो को लेके चीन चला गया।

4- हेनसांग- यह चीनी यात्री सम्राट हर्षवर्धन के काल में भारत आया , यह नालंदा विश्वबिद्यालय और कन्नौज में लगभग 16 साल रहा । समूर्ण भारत का भ्रमन किया और अपनी पुस्तक ' पाश्चायत संसार के देश' नामक पुस्तक लिखी जिसमे हर्षवर्धन के काल की राजनैतिक, धार्मिक,सामाजिक अवस्थाओ का स्पष्ट वर्णन किया ।

उसके बाद अरब का भारत के साथ जब संपर्क हुआ तो अरबी इतिहासकारो ने भी भारत भ्रमण
किया और भारत के राजनैतिक , धार्मिक और सामाजिक स्थितियो के बारे में विस्तार से लिखा । इनमे से प्रमुख थे अलमसूदी ,अलबिलादुरि और अलबेरूनी ।

अलबेरूनी 11 शताब्दी में महमूद गजनवी के साथ आया था , इसने भारत में रह के भारतीय संभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त की और 1030 में ' तहकीके हिन्द' नाम की पुस्तक लिखी।
उसने अपनी पुस्तक में लिखा " भारतीयो को प्राचीन इतिहास का ज्ञान नहीं है , जब किसी विद्वान् से भारत के प्राचीन इतिहास की किसी विशेष घटना के बारे में पूछा जाता तो वे उसे बताने में असमर्थ होने के कारण बेतुकी कथाये कहना आरम्भ कर देते'

अत: उपरोक्त विवरणों से हम यह कह सकते हैं  की यदि विदेशी भारत के इतिहास के बारे में नहीं लिखते या प्राचीन इतिहास जानने की लालसा न कर के ' भारतीय पुरात्तव' जैसी संस्था न स्थापित करते तो भारत के लोगो को कभी भी अपने इतिहास का ज्ञान नहीं हो पता। भारतीय लोग अब भी काल्पनिक पुराणिक  गल्प कथाओं में उलझे रहते और कौए तथा अन्य पक्षी सवारी के काम आते हैं इस बात पर भरोसा करते रहते ।


Thursday, 22 December 2016

भुल्लन बाबू-कहानी

  सफेद चमचमाती मेट्रो की खिड़कियों में लगे बड़े बड़े शीशों के भीतर से नीचे सड़क पर दौड़ते वाहनों को बड़े हैरत और जिज्ञासा से निहार रहे थे भुल्लन बाबू , ऐसा लग रहा था कि जैसे वे आसमान में उड़ते हुए नीचे झाँक रहे हों जंहा से सब छोटा छोटा दिख रहा हो।

"दादा रे! अइसन लागत बा कि कौनो बिदेसवा में आई गइली ...एतना भारी भारी बिल्डिंग बन गईल दिल्ली मा की दादा देखै त मुडिया दुखा जाए केहुके  " भुल्लन बाबु बाहर बड़ी बड़ी इमारतों को आस्चर्य से देखते हुए सोच में गुम थे ।

भुल्लन बाबू लगभग 20 साल बाद दिल्ली आ रहे थे , बीस साल पहले गाँव से दिल्ली कमाने आये थे तो पहाड़गंज की झुग्गियों में सर छुपाने की जगह मिली थी । एक खिलौने बनाने वाले कारख़ाने में काम मिल गया था जिसमे हैण्ड प्रेस की मशीन चलाते ।
हैण्ड प्रेस की मशीन चलाते चलाते हाथो में गाँठ  पड़ गई थी ,कई बार सोचते की गाँव वापस भाग जाएँ पर भागते कैसे ।गाँव जाते ही उनका स्वागत लाठियों से जो होना था  ,आखिर टिकोरी लाल की मेहरारू का  खेत जाते हुए हाथ  जो पकड़ लिए थे जबरजस्ती ।
भौजी भौजी कर के बहुत मजाक करते  टिकोरीलाल की मेहरारू से और सोचते की भौजी पट गई है ।
टिकोरी की मेहरारू भी तो हँस हँस के बतियाती थी उनसे तब काहे न सोचें?।

एक दिन सांझ को जब  टिकोरी की मेहरारू खेत पर जा रही थी तब  भुल्लन बाबू मौका समझ के कूद पड़े उस पर , अभी हाथ पकडे ही थे की सामने  से टिकोरी अपने बैलों को हांकता हुआ दिखाई दिया ।
भौजी वैसे तो सरमा के मुस्कुरा रही थीं पर टिकोरी को देख के उनका रंग एक दम से बदल गया और टिकोरी की तरफ देख जोर से चिल्लाई-
" ये संतुओ क बाऊ जीsss.....तनिका इंहा आवा हो sss.. देखा तनी भुल्लनवा हमार हथवा पकड़ के जबरजस्ती करत बा"

 टिकोरीलाल ने भुल्लन को अपनी मेहरारू का हाथ पकड़े देखा .... भुल्लन ने टिकोरी के हाथ में सोंटा देखा , भुल्लन को तो जैसे काटो तो खून ही नहीं ।
टिकोरी की मेहरारू ने जब अपना हाथ झटक के छुटाया तो जैसे उसे होश आया ।
भुल्लन बाबू तुरंत सिर पर पैर रख के भागे पर तब तक टिकोरी पास आ गया था ,उसने हाथ में पकड़ा हुआ  सोंटा निशाना ले  फेंक के मार दिया । सोंटा सीधा बैठक पर लगा ,चीख निकल गई भुल्लन बाबू की किन्तु गिरते पड़ते घर की तरफ भाग लिए ।

पीछे पीछे टिकोरी लाल सैकड़ो गालियाँ निकालता हुआ भाग रहा था ।

भुल्लन बाबू घर से पीछे बने तबेले में  घुसे और वंहा  रखे भूसे की ढ़ेरी में जा छुपे । भूसे की ढ़ेरी ही एक मात्र ऐसा छुपने का स्थान था जंहा आज तक कोई न खोज पाया था उन्हें ।
उस दिन भी भूसे की ढ़ेरी में ही छुप के अपनी जान बचाई थी जब कई महीने तक स्कूल गोल किये थे ,अचानक पिता जी स्कूल पहुँच गए  हाल चाल लेने भुल्लन का तब मास्टर ने कहा कि उसका नाम तो 6 महीने पहले ही स्कूल से गोल कर दिया गया है ।
बाद में पिता जी ने छानबीन की तो पता चला की भुल्लन बाबू स्कूल गोल कर  गिल्ली डंडा खेलते और  हीरो बन स्कूल की लड़कियों आते जाते  नैन मटक्का करते।

उस दिन इसी भूसे में छुप के अपनी जान बचाई थी ,क़सम से वर्ना पिता जी ने हरे बांस की टहनी तोड़ लिए थे और हरे बासँ की टहनी तो जल्दी टूटती भी नहीं कितना ही जोर से मार लो ।पूरा दो दिन छुपे रहे इसी भूसे में तब जा के गुस्सा शांत हुआ था पिता जी का ।
आज अगर पता चल गया कि टिकोरी की मेहरारू को धर लिए थे तो न जाने क्या होगा , इधर पिता जी की बांस की हरी डंडी जो लगते ही खाल उतार लेती थी और उधर टिकोरी का बांस का सोंटा जो एक पड़ जाए तो बैल को भी जमीन पर लिटा दे ।

दिन भर चुप्पे वहीँ पड़े रहे ,बाहर हंगमा होता रहा ।सब लोग चप्पा चप्पा छान मारे पर भुल्लन बाबू नहीं मिले ।

रात हुई तो भूख सताने लगी ,भुल्लन बाबु चुपचाप भूसे की ढ़ेरी से निकले और भैंस के थन से जा लगे ।
पर यह क्या थन बिलकुल सूखा था एक बूंद भी दूध की नहीं निकल रहा था  । व्याकुल से भुल्लन बाबू किसी तरह तबेले की किंवाड़ फांद घर में दाखिल हुए तो पाया कि अम्मा अभी जग ही रही थी ।
धीरे आवाज में सैकड़ो गरियाने के बाद रोटी दी खाने को , भुल्लन बाबु ने चबर चबर दुइ मिनट में 5 रोटी डकार गएँ ।तृप्त होने के बाद अम्मा  से पता चला की टिकोरिलाल सुबह पंचायत बैठाएगा ,पंचायत का नाम सुन और बासँ की टहनी और सोंटे को याद कर भुल्लन बाबू के पसीने छूट गए ।

अम्मा जब सो गई तो चुपचाप संदूक खोला ,मील पर गन्ना बेच के 200 रूपये मिले थे जो  पोटली में बाँध नया बैल खरीदने के लिए रखे थे ।पोटली समेटी  और अम्मा की चांदी की पायल भी अपने पैजमे की जेब में डाला आधी रात को ही निकल लिए गाँव से ।

सुबह पांच बजे गोरखपुर के स्टेशन से दिल्ली जाने वाली ट्रेन पकड़ लिए और पहुँच गए दिल्ली ।

जब तक जेब में पैसा था तब तक खूब चकल्लस से खाये पीए और खूब लम्पटियाई  किये पर जैसे ही पैसे खत्म हुए हालत खराब हो गई । तब याद आया की एक रिश्तेदार भी रहता है पहाड़गंज में ,किसी तरह उसका पता मालुम किया और जा धमके उसकी झुग्गी में ।बहुत हाथ पैर जोड़ने पर वह भुल्लन बाबू को अपने पास रखने को तैयार हुआ ।
पास ही एक खिलौने बनाने वाले कारख़ाने में नौकरी भी लगवा दी रिस्तेदार ने भुल्लन बाबू की ।
हैण्ड प्रेस मशीन चलानी पड़ती थी ,हाथ में गाँठ  पड़ जाते थे  मशीन चलाते -चलाते ।कई बार सोचे की भाग जाएँ काम छोड़ छाड़ के पर कारखानेदार की मेहरारू  चम्पाकली बहुत मस्त लगती थी भुल्लन बाबू को इसलिए पिले पड़े रहते थे मशीन में कोल्हू के बैल की तरह।

कभी कभी चाय पानी पूछ लेती थी और हंस के बात भी कर लेती थी ,भुल्लन बाबू  कंही सुने थे की 'लड़की हंसी तो फंसी' इसलिए उनको पक्का एतबार हो गया था कि कारखानेदार की मेहरारू उन से फंस गई थी  ।अब बस भुल्लनबाबू 'शुभ महूर्त'का इंतेजार कर रहे थे की कब वे कारखानेदार की मेहरारू उनकी बांहों में झूले ।एक दिन मौका मिला, कारखानेदार बाहर गया हुआ था और चम्पाकली  अकेली थी ,उ चाय बना के लाइ और हँस के पकड़ा दी।भुल्लन बाबू ने आव देखा न ताव 'जय बजरंग बली .... तोड़ दुश्मन की नली' कह कूद पड़े अखाड़े में ,झट चम्पाकली को बांहों में समेट लिया ।

पर यह क्या सिग्नल ग्रीन की जगह रेड कैसे हो गया ? भुल्लन बाबू आगे कुछ और कर पाते की एक जोरदार- झन्नाटेदार लप्पड़ गाल पर पड़ा की  सारे रोमांटिक इमोशन ऐसे उड़ गएँ जैसे बिजली के तार पर में बैठे कौओं को कोई पत्थर मार के उड़ा दे ।  झट चंपाकली को छोड़ के भाग लिए ..... पीछे चम्पाकली सैकड़ो गालियाँ देती रही ।

आह!!यंहा भी फेल ....

फटाफट  झुग्गी में आ अपने कपडे समेटे और रिस्तेदार के घर में जो थोड़े बहुत पैसे और कीमती सामान था उसे उठा सीधा गोरखपुर की ट्रेन पकड़ी ।
अगर दिल्ली में रुकते तो कारखानेदार जान ही ले लेता उसकी । उसके बाद कभी पलट के न देखा दिल्ली की तरफ।

गांव में आ सब थोड़ा गुस्सा हुए पर बहुत दिन बीत गएँ थे इस लिए सबने माफ़ कर दिया भुल्लन बाबू को । पिता जी ने शादी करवा दी और फिर तीन बच्चे हो गएँ ।वैसे अब सुधर गएँ थे भुल्लन बाबू  पर लम्पटपन  अब भी बंद न हुआ था ,जब भी मौका मिलता गांव की औरतों को छूने की कोशिश कर ही लेते थे ।

आज बीस साल बाद उनका फिर से  दिल्ली आना हुआ ,भुल्लन बाबू के छोटे भाई की नौकरी दिल्ली मे लगने के कारण उसने यंही स्थाई निवास बना लिया था । भुल्लन बाबू को खेत के लिए ट्रैक्टर लेना था अतः उन्होंने छोटे भाई की सलाह पर दिल्ली से ट्रैक्टर खरीदने का मन बनाया  । छोटे भाई ने हिदायत दी थी की स्टेशन पर उतरने के बाद बस में न बैठे बल्कि मेट्रो पकड़ ले आखिर पैसा पास है और मेट्रो में सुरक्षित रहता है यात्री।

बगल में झोला दबाये भुल्लन बाबू मेट्रो में सवार हो लिए थे ,सीट नहीं मिली इसलिए बगल में पैसो का झोला दबाये मेट्रो कोच के बीच में गड़े पोल पर कमर लगाये यात्रा कर रहे थे ।

भुल्लन बाबू अभी आस्चर्य से बाहर देख ही रहे थे की एक भीनी सी खुश्बू उनके नथुनों से टकराई ।
खुशबु जानना थी ,भुल्लन बाबू आँख बंद कर खुशबु का मजा लेने लगे ।फिर आँख खोल कोच में देखने लगे , पहली बार कोच में नजर पड़ी उनकी अन्यथा वे तो बाहर के ही नज़ारे देखने में ही खोये हुए थे।

भुल्लन बाबू ने दिखा कोच खचाखच भरी हुई है , पर सब अपने में ही मस्त हैं। कोई फोनवा का तार कान में घुसेड़े हुये है तो कोई हाथ के दोनों अंगूठे से फोनवा में  खिचर पिचर कर के मुस्कुरा रहा है ।

भुल्लन बाबू उस जानना इत्र की खुश्बू में फिर लीन हो गएँ अचानक उनको ऐसा लगा की कोई उनके पीठ से पीठ सटा रहा है । उन्होंने पलट के देखा तो एक खूबसूरत लड़की उनकी पीठ से पीठ सटाये मुस्कुरा रही थी ।
भुल्लन बाबू को तो जैसे यकीं ही न हुआ की दिल्ली में कदम रखते ही इतनी खूसूरत लड़की यूँ उन से सट जायेगी । अब भुल्लन बाबू ने अपनी दुविधा दूर करने के लिए अपनी कमर को तनिक और पीछे किया और तिरछी आँख कर देखने लगे की लड़की की क्या हरकत होती है ।
लड़की बिना कोई आपत्ति किया यूँ ही खड़ी रही ,अब तो भुल्लन बाबू का दिल बल्लियां उछलने लगा, सोचने लगे की -

"ससुरा गाँव रह के एक्को मेहरारू और न ही लड़की उनको भाव दी  और इंहा देखो आते ही खूबसूरत मेम सट गईं उससे ....साला पिछड़े गाँव की पिछड़ी मेहरारू और लइकी लोग .. उँह ....आई दादा कितना निक और खूबसूरत मेम है "

अब कांख में दबाये पैसे के झोले को भूल कर लड़की की पीठ से पीठ रगड़ने लगे ,थोड़ी देर में उत्तेजना से एक दम पसीने पसीने हो गएँ ।अब सोचा की लड़की पट ही गई तो हाथ से छू के भी देख लिया जाए और एक हाथ पीछे कर लड़की के कमर तक ले आये।

तभी अचानक वज्रपात हुआ और सारी खड़ी फसल नष्ट ...... लड़की का तमाचा इतना जोरदार था कि पूरा कोच अपना मोबाइल छोड़ देखने लगा ।
फिर तो लड़की ने दे लप्पड़ दे लप्पड़ ...... दोनों कान सूजा दिए भुल्लन बाबू के और बीसियों गालियां और धमकियां देने लगी ।
भुल्लन बाबू झट से लड़की के कदमो में लोट गएँ और कान पकड़ के माफ़ी मांगने लगे ,लड़की का मन थोड़ा पसीजा और उसने भुल्लन बाबू को माफ़ कर दिया ।

"साला दिल्ली हमको कदम रखते हुए  फिर पिटवा दिया .... अब नहीं रुकना दिल्ली में न तो जाने  कितनी बार पिटेंगे .... भक्क साला ई मेट्रो पेट्रो और ई बिल्डिंग सिल्डिंग सब साला अभी गिर जाए ... हे!सीयू बाबा पूरी दिल्ली  कौनो गड्ढा में धंसी  जाये .... दादा रे" अपने सूजे हुए कानो को सहलाते हुए कोसा ।

भुल्लन बाबू ने भाई के पास जाने का इरादा कैंसिल कर फिर वापस गोरखपुर की टिकट कटवा ली ।

बस यंही तक थी कहानी .....


Monday, 19 December 2016

जानिये क्यों रखी गईं स्त्रियां शुद्र श्रेणी में -



 हम जानते हैं कि कृषि की खोज स्त्रियों ने की थी जो की  बाद में पुरुष के आधीन हो गया । धरती को स्त्री की संज्ञा इस लिए भी दी गई की वह भी स्त्री की भांति प्रजनन( कृषि/ प्रकृति )की  उत्पादन क्रिया करती है । विश्वास यह था कि प्रकृति की उत्पादन क्रिया स्त्री की प्रजनन क्रिया से जुडी हुई है इसलिए विश्व के विभिन्न जनजातीयों में कृषि सम्बंधित मुख्य अनुष्ठान क्रियाएं स्त्री सम्बंधित ही रही हैं।
सारे भारत में वर्षा की पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने सम्बंधित अनुष्ठान(जादू- टोने) लगभग स्त्रियों द्वारा ही सम्पन्न होते रहे हैं , कई विद्वानों ने यह तथ्य भी जुटाएं है कि प्राचीन जनजातियों में धर्मिक कार्य और पूजा अर्चना स्त्रियों द्वारा ही सम्पन्न होते थे।

कालांतर में जब पुरुष ने  चरवाही छोड़ कृषि पर अपना वर्चस्व बनाया तो स्त्री के आधीन देवियों शक्तियों को न केवल पुरुष सत्ता के लिए खतरनाक माने जाने लगा बल्कि उन्हें अशौचकारी अर्थात अछूत भी समझा जाने लगा ।

आप इससे समझिये की लाल रंग मासिक धर्म कर प्रतीक है ,इसे गेरुआ रंग भी दे दिया जाता है ।
पिछड़े तबके खासकर जनजातियां ,कई पिछड़ी जनजातियों के कृषि कर्म  में गेरुआ रंग को बहुत शुभ और शगुन के रूप में  माना जाता है । बुआई जैसे कृषि कर्म करने से पहले उत्तरी भारत के कई भील जाति के लोग खेत के एक कोने में एक पत्थर के टुकड़े को सिंदूर रंग के रख देते हैं ।उनका विश्वास होता है कि इससे कृषि उत्पादन बढ़ता है ।

हम जानते हैं कि स्त्री के मासिक चक्र के दौरान होने वाला रक्त स्त्राव मानव प्रजनन का आधार होता है और यह मासिक चक्र स्त्री देहं की स्वाभाविक क्रिया है ।
चुकी कृषि की खोज का श्रेय स्त्रियों को जाता है तब पिछड़े तबकों में जिनमे स्त्री का संबंध कृषि से बना उसके प्रजननशीलता की प्रत्येक अत्यंत पवित्र और पूजनीय मानी जाती रही ।
इसका उदहारण हम तंत्रवादी अनुष्ठानों में देख सकते हैं जंहा स्त्री शरीर विशेष होता है , दरसल ये अनुष्ठान आदिम स्तर कृषि उत्पादन ( जीविकोपार्जन) के जादू टोने थे । आज विज्ञानं के आधार पर ये अनुष्ठान बेशक अंधविश्वास प्रतीत होते हों किन्तु आदिम समय में ये मनोविज्ञान और भौतिक सामर्थ का प्रतीक थे जो स्त्री की विशेष महत्वता को दर्शाते है इसलिए स्त्री की प्रजनन प्रक्रिया का केंद्र रहना स्वभाविक था ।बंगाल के दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान सिन्दूर खेला तंत्रिकवाद का ही एक हिस्सा रहा है।

गौरतलब है कि ब्राह्मणिक ग्रन्थो में स्त्री का रजोस्त्राव को इतना दूषित माना गया है कि उसका देवस्थलों पर जाना निषेध तो है ही घरो की रसोई में जाने से लेके शैय्या पर बैठना तक निषेध है।
जबकि इसके उलट निचली और अछूत कही जाने वाली जातियों के कृषि कर्मकांडो में स्त्री के रक्त स्त्राव को पवित्र और उत्पादन वृद्धि का प्रतीक माना गया है ।

इसके अतिरिक्त तंत्रवाद में मासिक चक्र के रक्त या स्त्री की प्रजनन अंग को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है जबकि ब्राह्मणिक विचारधारा में इस महत्व को उलट दिया गया ।
कबीर जैसे अनेक निचली जाति के संतो ने इस  ब्राह्मणिक 'सूतक' का खंडन जोरदार ढंग से किया है ।इसी ब्राह्मणिक  'सूतक'अथवा 'अशौच' की अवधारणा और निषेध की मान्यता के चलते स्त्रियां उपनयन ,वेदाध्यन , पितृ संपत्ति आदि  अधिकारों से वंचित होने  के कारण पूरी तरह से पुरुषों पर आश्रित होती चलीं गईं उन्हें शूद्रों की श्रेणी में रख दिया गया ।

Thursday, 15 December 2016

जानिए चार्वाक(लोकायत) मत के विषय में

प्रचीन भारत के जनसमूहों में एक  लंबी और गौरवशाली विचारधारा रही है जिसने अपनी साफगोई ,निर्भीकता और विज्ञानसम्मत तर्क के बल पर अडम्बकारी और शोषक ब्राह्मणिक दृष्टिकोण के लिए जबरजस्त चिंता बनाये रखी जब तक की शोषणकारी शक्तियों ने उन्हें नष्ट नहीं कर दिया ।

लोकायत( चार्वाक दर्शन) विचारधारा भी उनमें से एक रही जिसका निर्ममता से दमन किया गया और लुप्त कर दिया गया ।

लोकायत  के विषय में कहा गया है  -लोकेषु आयत: लोकायत: अर्थात लोगो में प्रचलित ।

हलाकि वेदों और उपनिषदों में आद्य भौतिकतावादी चिंन्ह सर्वत्र विद्यमान है किन्तु लोकायत   भौतिकतावाद से भिन्न रही ।   वैदिक साहित्य में ऐसे नास्तिक मतों का उल्लेख  है जो  किसी काल्पनिक आत्मा -परमात्मा का खंडन का 'भूत' को ही अंतिम सत्य सत्य मानते थे ।लोकायत विचारधारा मूल भारतीय चिंतन परम्परा में निरंतर मान्य किन्तु वैदिक वैचारिक परम्परा के लिए हमेशा खतरा बनी रही।

बौद्ध ग्रन्थ 'दिव्यवादन' में लोकायत को ऐसा दर्शन बताया गया है जो सामान्य लोगो में प्रचलित था ।

आदि शंकराचार्य ने लोकायत मातानुयायिओ को साधारण जन (प्राकृत जना:) बताया है।

मनुस्मृति के भाष्यकार मेधातिथि ने अपने भाष्य में उल्लेख किया  है कि लोकायत नाम का शास्त्र था ।उन्हीने न्याय और हेत्वाभास शास्त्रों के रूप लोकायत नाम का शास्त्र बताया है।

दासगुप्त ने बताया है कि लोकायत नाम का कोई ग्रन्थ था जिस पर 150 ईसापूर्व से पहले या तीन सौ वर्ष से भी पूर्व कम से कम एक भाष्य लिखा गया था ।
उन्होंने आगे उल्लेख किया है कि यह नास्तिक मत कि इस जन्म के बाद कोई जीवन नहीं है और मृत्यु के साथ चेतना नष्ट हो जाती है उपनिषद काल में अच्छी तरह स्थापित हो चूका था ।उपनिषद इसी मत का खंडन करना चाहते थे।

वृहदारण्यक उपनिषद में याज्ञवल्क्य ने ऐसे ही एक नास्तिक मत का उल्लेख किया है।

दीघनिकाय के 'समज्ज फल सुत्त' में लोकायतों के उपदेश का विस्तार से वर्णन मिलता है, अजित केशकंबली ,पूरन कश्यप, मस्करीन गोसाल आदि के विचार लोकायत के ही विचार थे।

माधव ने अपने सर्वदर्शनसंग्रह में लोकायत के होने की बात मानी है।

न्यायमंजरी में चार्वाकों के मत का उल्लेख है कि जंहा शरीर रहता है वँहा तक एक तत्व सभी अनुभवों का भोक्ता और दृष्टा के रूप में रहता है किंतु मृत्यु के बाद ऐसा कोई तत्व नहीं रहता।


इस तरह से विभिन्न वैदिक और अवैदिक ग्रन्थो में लोकायत अर्थात चार्वाक दर्शन का उल्लेख है , लोकायतों के तर्क का मुख्य बिंदु यह था कि चेतना तभी तक है जब तक शरीर रहता है शरीर न होने पर चेतना का कोई अस्तित्व नहीं रहता ।इसलिए यह चेतना शरीर का कार्य होना चाहिए ।
'अग्निहोत्र,तीनो वेद ,सन्यासी बनकर तीन काष्ठ खंड लेना ,शरीर पर भस्म पोत लेना ये बुद्धि और पौरुष से रहित व्यक्तियों की जीविका के साधन है "
'चार तत्वों भूमि,जल ,अग्नि,वायु से ही चेतना की उतपत्ति होती है जिस प्रकार चावल आदि पदार्थो के मिश्रण मद शक्ति उत्तपन होती है'
'न तो कोई स्वर्ग है न मोक्ष, और न कोई परालौकिक आत्मा "
'ज्योतिष्टोम यज्ञ में मारा गया पशु यदि स्वर्ग जायेगा तो यजमान स्वयं अपने पिता को इस तरह स्वर्ग क्यों नहीं पहुंचा देता? '
' वेदों के रचियेता भांड ,धूर्त और निशाचर हैं '

आदि विचार लोकायत मत के ही थे , अतः आप समझ सकते हैं कि लोकायतों को क्यों लुप्त किया गया।



Monday, 12 December 2016

दस्ताने



  सुबह के तकरीबन दस बज रहे होंगे , मार्किट जाते समय एक रेड लाइट पर जैसे ही मैंने बाइक रोकी की एक दस बारह साल का लड़का लगभग दौड़ता हुआ मेरे पास आया और कहने लगा -
"भैया दस्ताने खरीद लो "
हलकी सर्दी तो थी ही बाइक चला के हाथ भी थोड़े सुन्न से हो गए थे ।मैंने एक नजर उस पर डाली तो पाया कि उस दुबले पतले से लड़के  हाथों में कंपड़े और रैक्सिन के 10-15 जोड़े दस्ताने थे ।
उसने फिर कहा " भैया .... दस्ताने खरीद लो'
खरीदने का मन तो था पर मैंने लापरवाही से पूछा-कितने के दे रहा है ?
" कपडे वाले 100 रूपये के और रैक्सिन के 170 रूपये के "उसने दोनों दस्ताने मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा

मैंने रैक्सिन का दस्तान लिया और उसे पहन के देखा तो ठीक लगा , फिर मैंने उससे पूछा -
"कितने का लगायेगा?
" भैया 20 रूपये काम दे देना ....आप 150 दे देना " उसने अपने हाथ में पकडे हुए दस्तानों को सही करते हुए कहा ।

मैंने दस्ताना उतार उसे पकड़ाते हुए कहा- " 100 रूपये में देना हो तो बता ?
उसने दस्ताना वापस करते हुए कहा - भैया बोहनी करनी है आप 120 रूपये दे दीजिए"
मुझे 120 रूपये में सौदा बुरा नही लगा ,मैंने पर्स से 150रूपये निकाल के लड़के  को पकड़ा दिया ।तभी ग्रीन लाइट हो गई और पीछे का ट्रैफिक तेज तेज हॉर्न मारने लगा ,मैंने मोटर साईकिल आगे बढ़ा दी ।
वह लड़का मोटरसाइकिल के साथ साथ भागता रहा और दस दस के तीन नोट निकल के पकड़ता रहा ।

कुछ दूर चलने के बाद मैं सोचने लगा की सिर्फ दिल्ली में ही हजारो लोग इस तरह रेड लाइट पर छोटा मोटा सामान बेच में अपना गुजर बसर करते हैं तो पूरे देश में करोडो लोग होंगे जो रेडलाइट पर सामान बेच के अपना जीवन यापन करते होंगे । ये लोग गरीब तो होते हैं किन्तु स्वाभिमानी होते हैं जो छोटा मोटा सामान तो रेडलाइट पर बेच लेते हैं किंतु भीख नहीं मांगते।आप सब ने भी रेडलाइट पर यह नजारा देखा होगा की ट्रैफिक रुकते ही आपकी गाडी/बस के आस पास दासियों  वेंडर छोटी मोटी चीजे लेके बेचने आ जाते हैं  जो अधिकतर आस पास की झुग्गी झोडियो के गरीब फाटे हाल लोग होते हैं ।


प्रधान मंत्री जी देश को कैशलैस बना रहे हैं और यदि सच में कैशलैस हो गया देश तो इन गरीबो का क्या होगा? रेडलाइट कुछ सैकिंड या कुछ मिनट की होती है ऐसे में कौन अपना मोबाइल निकाल के paytm करेगा या अपना कार्ड स्वाइप करेगा? कुछ सैकेंडों की रेडलाइट कँहा इतना समय किसी के पास?
अभी तो जेब में हाथ डाला और पैसे निकाल के दे दिए ।

जब इनसे कोई सामान नहीं खरीदेगा तो इनका क्या होगा?ये मेहनतकश लोग तब भीख मांगने पर मजबूर होंगे अथवा अपराध करने में ।

तब कौन होगा इनकी उस स्थिति का जिम्मेदार ?
दिमाग में कई प्रश्न घुमड़ आये ....

Sunday, 4 December 2016

जानिए क्या है स्वर्ग /जन्नत


स्वर्ग नर्क या जन्नत दोज़ख ये वो शब्द हैं जिनका विषय लिए बिना दुनिया का कोई आस्तिक धर्म ग्रन्थ पूरा नहीं होता ।धर्म -मज़हब इन्ही स्वर्ग नर्क , जन्नत दोज़ख का लालच और भय लिए जनता को आतंकित या लूटते चले आ रहे हैं ।
स्वर्ग पाने और उसके आनंद को भोगने का इतना प्रबल इच्छा पैदा कर दी जाती है धर्म मज़हब द्वारा की मनुष्य सभी कर्मकांड करने के अलावा खुद को बम्ब से उड़ा देने में भी नहीं हिचकता ।

गीता में कृष्ण से कहलवा जाता है - हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम् जित्वा भोग्यसे महीम"
अर्थात- अर्जुन , अगर तू मारा जाएगा तो स्वर्ग जायेगा और यदि विजयी होगा तो पृथ्वी का भोग करेगा।

यंहा स्वर्ग का लालच देके युद्ध के लिए तैयार किया जा रहा है अर्जुन को , अर्जुन को स्वर्ग का लालच दे अपने ही बंधुओ और सम्बन्धियो की हत्या करने के लिए प्रौत्साहित किया जा रहा है ।

अब स्वर्ग क्या है ?

स्वर्ग की व्याख्या ग्रन्थों में इस प्रकार की गई है - पदम् पुराण के अध्याय 90 में लिखा है - जंहा दिव्य अनान्द होते हैं ,जंहा अनेक सुंदर वस्तुएं होती हैं ,सुंदर बाग़ बग़ीचे होते हैं , शुभ कार्य होते हैं  ,कामना के सभी फलों के वृक्ष होते हैं (जिस वृक्ष के नीचे जिस चीज की कामना की जाए वह पूरी हो जाए ) , यात्रा के लिए विमान होते हैं इत्यादि

अब इसी प्रकार का जन्नत का वर्णन  क़ुरान में देखिये -
सुर:अल-वाक़िआ , आयत 12से 37

नेमत के बागों में ,फिर रहे होंगे उनके पास बच्चे(किशोर अवस्था)  सदैव रहने वाले ,कटोरे और जग लिए हुए और प्याला स्वच्छ शराब का , उससे न कोई सर दर्द होगा न बुद्धि  विकार आएगा ,और फल जो चाहे चुन लें ,पक्षियों के मांस जो उनको प्रिय हों ,और बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें , जैसे मोती के दाने अपने आवरण के अंदर , बदला उन कर्मो का जो वो करते हैं ,बेर के वृक्षो जिनमे कोई काँटा न होगा ,गुच्छेदार केले ,और बहता हुआ पानी ,प्रचुर मात्रा में फल जो न कभी समाप्त होंगे न कोई रोका टोकी होगी ,हमने उन महिलाओं को विशेष रूप से बनाया है मन मोहने वाली और सामान रूप से "


है न कमाल का लालच ! एक व्यक्ति जिन भौतिक वस्तुओं की जरुरत रखता है वह सभी स्वर्ग जन्नत में देने का वादा किया जाता है धर्म मज़हब में ।
व्यक्ति संसार में अभाव ग्रस्त रहे ,दुखी रहे ,हीनता के दिन गुजारे किन्तु धर्म मज़हब का झण्डा उठाये सब सहता रहे इस लालच में की स्वर्ग जन्नत में उसकी सभी जरूरते पूरी हो जाएंगी ।

क्या आप भी इसी कारण झंडा उठाये हैं?
सोचिये....

और हाँ ...नास्तिकों का स्वर्ग जन्नत में प्रवेश निषेध है क्यों की स्वर्ग जन्नत के ठेकेदारों को भय था कि कंही नास्तिक लोग उनकी धूर्तता की पोल न खोल दें :)
"न तत्र नास्तिकाः यति"
अर्थात नास्तिक स्वर्ग नहीं पाते ....