Friday, 10 February 2017

पहला प्रेम पत्र- कहानी

" अबे देख वो आ रही है ..... जा कर ले बात" नन्नू ने कोहनी मारते हुए कहा ।
"जाऊं?..... सच में जाऊँ क्या?"केशव ने थूक अंदर सटकते हुए कहा ।
" तो कब जायेगा?  अबे अब नहीं जायेगा तो कोई आ जायेगा.... देख अकेली है आज कह दे अपने दिल की बात ..... चल जल्दी जा " नन्नू ने लगभग धक्का देते हुए कहा।
"धक्का क्यों दे रहा है बे? जाता हूँ..... चल जा रहा हूँ" केशव ने शर्ट सही करते हुए कहा ।
"जा रहा हूँ .... जा रहा हूँ .... साले एक घण्टे से टूशन सेंटर के बाहर इंतेजार करवा रहा है .... और अब आ गई तो आगे बढ़ ही नहीं रहा है .... मैं बोल दूँ क्या उसे आई लव यू? .….. तेरे से नहीं हो रहा है तो?" नन्नू ने पहले गुस्से के और फिर व्यंग में कहा ।

"अबे मुंह तोड़ दूंगा तेरा जो दुबारा ऐसा बोला तो ....भाभी है तेरी वो.... समझा " केशव ने पलट के  नन्नू को घुसा दिखाते हुए कहा।
" अबे मजनू की औलाद..... भाभी तो वह जब बनेगी जब तू उसे बोलेगा.... अब जा भी वर्ना मैंने चला जाऊंगा" नन्नू ने गुस्से में कहा और बस्ता उठा लिया।
" ठीक है .... जा रहा हूँ यार....थोड़ी हिम्मत तो करने दे" केशव ने एक जोरदार सांस ली और फिर छोड़ी ।
" तो जाऊं?" के केशव ने एक कदम आगे बढ़ाया और फिर रुक के नन्नू से पूछने लगा।
नन्नू ने दांत पीसे तो वह आगे बढ़ा।

विभा ने केशव को अपनी ओर आते देखा तो नजरे दूसरी तरफ कर ली जैसे देखा ही न हो ।
" वि......" अभी आधा ही नाम ले पाया था केशव विभा का की पीछे से विभा की सहेली ने आवाज लगा दी।
"विभाsss.... जरा रुक मैं भी आ रही हूँ" ये सहेली थी विमला ।

विमला को यूँ विभा के पीछे आता देख केशव घबरा गया वह तुरंत चुप हो दूसरी तरफ देखने लगा ।
विभा ने केशव की इस हरकत पर मुंह बिचका लिया जैसे कह रही हो 'तेरे बस की न है कुछ' और विमला से बाते करने लगी।

पीछे केशव खड़ा ही रहा गया , नन्नू ने आज भी उसे पचासों गलियां दी । ये महीने में दूसरा मौंका था जब केशव ने विभा से बात करने का मौका गँवा दिया था ।

" अबे ऐसे न बन पाएगा तू मजनू?तेरे बस की न है ....बेकार में समय मत खराब कर .... तेरी वजाय से स्कूल गोल करना पड़ता है.... मास्टर ने कंही शाम की हाजरी ले ली तो ऐसी तैसी कर  देगा दोनों की " नन्नू ने केशव पर लानत भेजते हुए कहा।
" तो क्या करूँ? आवाज ही बंद हो जाती है उसके सामने" केशव ने हताश होते हुए कहा ।
" अरे !मर्द बन मर्द..... "नन्नू ने सीना ठोकते हुए कहा।
" साले! वोटर आईडी बनने के लिए अभी दो-तीन  साल है " केशव ने कहा।
" अबे वो वाला मर्द नहीं बल्कि वो वाला मर्द जो खून से अपनी गर्लफ्रेंड को लेटर लिखता है ....फिर देख लड़की कैसे नहीं पटती"नन्नू ने जोश में कहा।
"अच्छा तुझे कैसे पता? "केशव ने आस्चर्य से पूछा।
"मेरा भाई है न कल्लू जो बारवी में पड़ता है .... उसने  शीला  को अपने खून से लेटर लिखा था ....बस पट गई.....अबे पटी क्या फ्लैट हो गई .... इस वैलेंटाइन पर दोनों घूमने भी जा रहे हैं "
"अच्छा ! सच में ? " केशव को अब दुगना आस्चर्य हुआ..." क्या सच में पट गई शीला उस कालिये नाग से ?

" माँ कसम.... तुझे से क्यों झूठ बोलूंगा? ... और हाँ खबरदार मेरे भाई को कालिया नाग बोला तो!!" नन्नू ने केशव को धमकाया ।
" ठीक है यार!! चल पक्का मैं भी खून से लैटर लिखता हूँ विभा को कल"केशव ने जोश में कहा ।
"शाब्बाश!!" नन्नू ने केशव के कंधे पर हाथ मारा और दोनों बस्ता उठाये घर चल दिये।

अगले दिन ।

"हां शाबाश!!....ले मार अपनी कलाई में ब्लेड...और निकाल खून" नन्नू ने टॉपज़ का नया ब्लेड केशव को थमाते हुए कहा ।
केशव ने ब्लेड किया और काफी देर उसे घूरने के बाद कांपते हाथो से हल्का सा काट लगाया , कट लगते ही चीख निकल गई पर इतना खून न निकला की दो अक्षर भी लिखे जा सके ।
नन्नू ने उसे डांटते हुए कहा -" अबे! ऐसे न बनेगा तू मजनू.....तेरे बस की कुछ नहीं है... एक कट न लग रिया है  तुझ से और लोग हाथ तक काट लेते हैं गर्लफ्रेंड के चक्कर में "
"डर लग रहा है ....मेरे बस की न है यह खून-बून निकालना.....पापा ने कटा हाथ देख लिया तो ऐसी तैसी कर देंगे" केशव ने ब्लेड फेंकते हुए कहा ।

बहुत देर तक खमोशी छाई रही ।
फिर अचानक नन्नू उछलते हुए बोला" आइडिया.... तेरा काम हो जायेगा"
"कैसे ?देख अब पैर काटने की बात करियो"केशव ने डरते हुए कहा ।
"न बे....न हाथ काटने का और न पैर....और रंग भी खून का "नन्नू ने कहावत की ऐसी तैसी करते हुई कहा ।
" अच्छा कैसे?"केशव ने पूछा।
"देख उसे नहीं पता होगा की तू किसके खून से लेटर लिख रहा है ...लेटर खून से ही लिखा जायेगा पर ...किसी और के खून से" नन्नू ने अपनी खोपड़ी को झटका देते हुए कहा।

"किसके? " केशव ने मुंह फाड़ते हुए पूछा।
" मेरे भाई कल्लू के खून से " नन्नू ने अपना आडिया बताया।
"वो क्यों लिखेगा हमारे लिए?" केशव ने पूछा।
"लिखेगा भाई.... लिखेगा....वो मेरा भाई है जानता हूँ उसे .....पर तुझे 50 रूपये का इंतेजाम करना पड़ेगा।
"प्...पचास..रूपये.....बहुत ज्यादा है" केशव ने हकलाते हुए कहा ।
"अबे इससे कम में नहीं देगा वह अपना खून.....तुझे विभा पटानी है कि नहीं....एक्सपीरियंस वाले से काम करवाएगा तो खर्चा तो ज्यादा देना ही होगा  ?" नन्नू ने फ़ाइनल राउंड समझाया।
"ठीक है"केशव के मुंह से धीरे से आवाज निकली।
"तो डन!....तू बस  पचास रुपये का इंतेजाम कर ..कल तेरा काम कराता  हूँ उससे "नन्नू ने इतना कहा और बाहर निकल गया  ।

अगले दिन नन्नू और केशव कल्लू के सामने हाजिर थे, बन्दे ने पचास रुपये पहले ही धरवा लिए थे ।
उसके बाद कागज और एक कलम निकाल ली ।
"हाँ भाई लल्लू.... तो क्या नाम है तेरी लैला का ?" कल्लू ने केशव से पूछा।
" कल्लू भाई ... विभा"केशव ने अटकते हुए कहा ।
"कितनी बार बात की है तूने उससे?" कल्लू ने पैर फैलाते हुए पूछा।
" अभी तक एक बार भी नहीं" केशव ने सर झुकाते हुए कहा ।
"अच्छा!.... लैटर थमा देगा उसे ?" कल्लू ने फिर पूछा।
"मुश्किल है भाई,अभी तक तो बात करने में ही डर जाता है "नन्नू ने आगे बढ़ के कहा ।
"हम्म...होता है ....तू ऐसा कर 20 रूपये का इंतेजाम और कर लैटर पहुचाने का जिम्मा मेरा" कल्लू ने कान में ऊँगली डाल खुजाते हुए कहा ।
" 20 रूपये और...... " केशव ने मारे आस्चर्य से कहा।
" अबे देदे.... नहीं तो तू लैटर लिखवा भी लेगा तो दे नहीं पायेगा...."नन्नू ने केशव को समझाते हुए कहा ।
" ठीक है कल दे दूंगा...."केशव ने बुझे मन से कहा।

तो उसके बाद कल्लू उर्फ़ कालिया नाग ने अपनी कलाई से पर हल्का सा ब्लेड मारा और एक शीशी निकाल ली जिसमे पहले से ही खून भरा हुआ था ।
कलाई से दो तीन बून्द खून निकाल उस शीशी में मिला हिलाने लगा।
"भाई ये किसका खून है?" केशव ने हैरानी से पूछा।
"बकरे का ...." कल्लू ने शीशी को टेबल पर रखते हुए कहा ।
"पर आप तो अपने असली खून से लिखने वाले थे न लैटर" केशव ने मध्यम आवाज में पूछा।
केशव की बात सुन कल्लू रुक गया और केशव के कंधे पर हाथ रखता हुए दार्शनिक अंदाज में बोला-"देख बच्चे ...प्यार और जंग में सब जायज है .... मेरा दो बूंद खुन ही तेरे पचास रूपये से ज्यादा कीमती है ....तू घुठलियां मत गिन बस आम खाने की तैयारी कर ....लैला तेरी होगी ...अबे लल्लू ....एक्सपीरियंस की कीमत होती है .... समझा"
"जी भाई"केशव ने बुझे मन से कहा ।

कल्लू ने बकरे के खून से लैटर लिखना शुरू किया पहली ही लाइन की  शुरुआत शेर लिख के की ,शेर था -
"लिखता हूँ खून से स्याही मत समझना।
मरता हूँ तुम्हरी याद में जिन्दा मत समझना.

"वाह कल्लू भाई वाह .... मजा आ गया ...क्या शेर लिखा है "केशव ने ख़ुशी से उछलते हुए कहा ।
"अबे बावले..... इसी की तो कीमत है "कल्लू ने गर्व से मुस्कुराते हुए कहा ।

"तुम्हारा चाहने वाला.... केशव"हाँ तो हो गया तेरा प्रेम पत्र पूरा। कल्लू ने लेटर को अंतिम रूप देते हुए कहा ।

"वाह!कल्लू भाई....मजा आ गया कसम से मैं न लिख पाता ऐसा लैटर...." केशव ने ख़ुशी से उछलते हुए कहा ।

अगले दिन कल्लू को ले केशव और नन्नू विभा के ट्यूशन जाने के रास्ते में खड़े थे ।
जैसे ही विभा दूर आती नजर आई केशव ने कल्लू को इशारा किया,कल्लू ने विभा को देखा तो देखता ही रह गया ।

वह लैटर देने के लिए आगे बढ़ा , पर अचानक बीच रास्ते में ही वह रुका और जेब से कलम निकाल हाथ पर घाव बनाने लगा  उसके बाद उसने लैटर निकाला और खून से कुछ लिखने लगा  । केशव को समझ नहीं आ रहा था क्या वह कर क्या रहा है।

तब तक विभा ने कल्लू को देख लिया था , वह कल्लू के सामने से आगे बढ़ी तो कल्लू ने उसे आवाज दी ।
विभा कल्लू की आवाज सुन रुक गई , कल्लू उस्क्व पास आ बाते करने लगा।

केशव और नन्नू उन्हें दूर से देख रहे थे किंतु उनकी बातें सुनने में असमर्थ थे ।

थोड़ी देर बात करने के बाद कल्लू ने लैटर निकाला और विभा को दे दिया । विभा ने थोड़ा न नुकार कर के आखिर लैटर ले ही लिया।

केशव ने जब विभा को लेटर लेते हुये देखा तो बहुत खुश हुआ ,ख़ुशी से उसका दिल जोर जोर धड़कने लगा ।अब तो विभा उसकी हो गई।

जब विभा उसके पास से गुजरी तो उसे देख मुस्कुरा दी ,केशव तो जैसे हवा में उड़ने लगा .....अब तो पट गई ।
विभा के जाने के बाद कल्लू उनके पास आया तो केशव ने पूछा की आखिर उसने बीच रास्ते में लैटर में और क्या लिख दिया ?।
कल्लू ने कोई जबाब नहीं दिया बस मुस्कुरा दिया ।

उसी दिन केशव ने ख़ुशी में सभी दोस्तों को समोसों की पार्टी दी ,आखिर विभा ने उसका प्रेम पत्र स्वीकार जो कर लिया था । सभी दोस्तों ने उसे खूब बधाइयाँ दी ,आखिर केशव जंग जीत ही गया था।

अगले दिन केशव विभा से मिलने उसके ट्यूशन के रास्ते मे खड़ा था किंतु आज विभा ट्यूशन आई ही नहीं ।

दो दिन बाद विभा और कल्लू एक रेटोरेन्ट में बैठे बाते कर रहे थे , केशव को यह खबर नन्नू ने दी।
पहले तो केशव को यकीन न हुआ फिर साथ चलके देखा तो वाकई छगनलाल के रेस्टोरेंट में दोनों बैठे प्यार भरी बातें कर रहे थे ।

केशव को माजरा समझ नहीं आया ,विभा को यूँ कल्लू के साथ बैठे प्यार भरी बातें करते हुए उससे सहन न हुआ वह बाहर निकल आया ।
पीछे पीछे नन्नू भी आ गया , बहुत पूछने पर नन्नू ने बताया कि कल्लू ने जो बीच रास्ते में लैटर पर कुछ लिखा था दरसल वह केशव का नाम काट के अपना नाम ' कल्लू'लिख दिया था । इसलिए विभा कल्लू से इम्प्रेस हो गई और उससे प्यार करने लगी।

केशव के आगे अँधेरा छाने लगा।

बस यंही तक थी कहानी.....

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