आज ढ़ाबे में रोज की अपेक्षा ज्यादा चहल पहल थी, अधिकतर कुर्सियां हटा के उनकी जगह नई चादर बिछा दी गई थी जिन पर बहुत से लोग पालथी मार बैठे हुए आपस में बाते कर रहे थे ,चादर के सामने ही एक मेज बिछा उसपर कई भगवानो की फूल माला चढ़ी हुई तस्वीरे रखी थी जिसके आगे सुगन्धित धूप जल रही थी । धूप की भीनी भीनी सुगंध दूर से ही संकेत कर रही थी की कोई धर्मिक प्रोग्राम होने वाला है ।
केशव ने ढाबे के मालिक रामप्यारे की तरफ देखा तो वह नया कुर्ता पायजामा पहने जल्दी जल्दी एक सिल्वर की परात में से छोटी छोटी कागज की थैलियों में बूंदी भर रहा था , शायद प्रसाद के रूप में बांटने के लिए। जब रामप्यारे ने केशव को देखा तो मुस्कुरा दिया ।
केशव ने रामप्यारे से पूछा -" का हो? आज कुछ विशेष बा का? इस सब का है? "केशव ने चादर पर बैठे लोगो की तरफ इशारा करते हुए कहा ।
रामप्यारे ने बूंदी की थैली भरते हुए मुस्कुरा के कहा " केशव भइया!आज हमरे हरिद्वार वाले गुरु आ रहे हैं ,प्रवचन देंगे ....उन्ही की तैयारी है"
"चाय तो मिलेगी न "केशव ने सिगरेट सुलगाते हुए पूछा ।
"हाँ हाँ...मिलेगी काहे नहीं भइया.... किन्तु तनिक देर लगेगी....आप बैठिए हम भिजवाते हैं थोड़ी देर में ....अभी गुरु जी कौनो बखत आने वाले ही होंगे ...आप भी उनका परवचन सुनिए .…बहुत ज्ञान ध्यान की बाते कहते हैं वो "रामप्यारे ने गर्व से कहा।
"ठीक है भाई!....कोने में बैठा हूँ.....चाय वंही भिजवा देना " केशव् ने कहा और कोने में पड़ी कुर्सी पर जा बैठा।
कुछ ही मिनटों में ढाबे के आगे एक सफ़ेद वैन आ के रुकी ,उसका दरवाजा खोल एक 50-55 साल के बुजुर्ग गेरुआ वस्त्र पहने प्रकट हुए । गले में बीसियों छोटी बड़ी रुद्राक्ष की माला और दसो उंगलियों में रंग बिरंगे पत्थरो की अंगूठियां।
रामप्यारे गुरु जी को देखते ही उनके चरणों में दंडवत हो गया , गुरु जी मुँह से कुछ न बोले केवल बात से आशीर्वाद देने का इशारा भर किया।
आशीर्वाद लेने के बाद रामप्यारे बड़े आदर से उन्हें आसान की तरफ ले गया और वँहा उन्हें विरजमान करवाया। बाकी दरी पर बैठे लोगो ने भी बारी बारी गुरु जी के पैर छुए और गुरु जी का आशीर्वाद ग्रहण किया ।
एक गिलास खालिस दूध और कुछ फल ग्रहण करने के बाद गुरु जी ने प्रवचन देना शुरू किया ,केशव अब भी कोने में बैठा हुआ था और गुरु जी के प्रवचन सुन रहा था । हाँ, चाय अभी तक नहीं मिली थी उसे।
गुरु जी बहुत देर तक धर्म -शास्त्रों की महत्वता ,ईश्वर आदि पर प्रवचन देते रहे और फिर बोले -" इंसान तो पांच तत्वों से बना हुआ पुतला मात्र है जिसे जिसे ईश्वर ने अपने अपने कर्मो को भुगतने के लिए संसार में भेजा है"
केशव ने सिगरेट को बुझा एक तरफ फेंकते हुए पूछा " गुरु जी पांच तत्व कौन कौन से हैं?
किसी का अचानक यूँ बीच में टोकना और वह भी प्रश्न पूछना गुरु जी को नागवार और क्रोध उनके चेहरे पर झलकने लगा ,किन्तु अगले ही क्षण सामान्य होते हुय मुस्करा के बोले -" अग्नि,वायु,जल ,पृथ्वी और आकाश.......इन पांचों तत्वों का पुतला है मानव"
"और आत्मा?....आत्मा क्या है?" केशव ने पूछा
"आत्मा परमात्मा का अंश है .... पांचों तत्व द्वारा निर्मित शरीर में आत्मा वास करती है ," गुरु जी ने समझाने वाले लहजे में कहा ।
पूरा माहौल प्रभावित हो गुरु जी के ज्ञान का अमृतपान कर रहा था ।
"तो गुरु जी ! क्या सही है कि मानव पांच तत्वों का पुतला है ? "केशव ने कुछ कंफर्म करने वाले लहजे में पूछा।
"हाँ.... बिलकुल सही ... क्या तुम्हे एक बार बताने में समझ नहीं आता?"गुरु जी ने थोड़ा नाराज होते हुए कहा।
" जी, कंफर्म कर रहा था .... पांच तत्व हुए ,पृथ्वी ,वायु, अग्नि ,जल और आकाश .... ठीक!!?"
गुरु जी ने इस बार कुछ नहीं कहा केवल सहमति से सर हिला दिया।
" किन्तु गुरु जी , क्या आपको पता है कि पृथ्वी अपने आप में कोई तत्व नहीं है क्यों की यह खुद 100 से अधिक तत्वों से बनी हुई है । जिनमे से आठ तत्व प्रमुख हैं जैसे ऑक्सीजन ,एल्युमिनियम ,सिलिकॉन,लोहा, कैल्शियम,सोडियम, पोटैशियम , मैग्नीशियम आदि ....तो इसे 'पृथ्वी' तत्व कहना गलत नहीं हुआ क्या? "
" वायु भी कोई 'तत्व'नहीं बल्कि गैसों का मिश्रण है जिनमे ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन आदि प्रमुख हैं ..... तब ऐसे में वायु ' तत्व ' क्या हुआ ?
गुरु जी केशव की बात सुन रहे थे किंतु चेहरे पर कई भाव आ जा रहे थे ।
" इसी प्रकार अग्नि भी कोई 'तत्व'नहीं बल्कि ज्वलन प्रक्रिया है ।एक घटित हो रही घटना है जिसमे पदार्थ हवा में मिलने वाली ऑक्सीजन से रासायनिक तौर पर मिलते हैं और प्रकाश तथा ताप छोड़ते हैं ।अतः यह स्पष्ट है कि अग्नि कोई पदार्थ न होके एक ऐसी प्रक्रिया है जो ऑक्सीजन के बिना अस्तित्व में नहीं आ सकती .... " केशव ने आगे कहना जारी रखा।
"जल भी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का योगिक है न की पदार्थ "केशव ने कहा और कुछ देर चुप हो गुरु जी को देखने लगा ।
अब लोग भी चुपचाप वार्ता का अनान्द ले सुन रहे थे , अब गुरु जी की तरफ से लोगो का ध्यान हट केशव की तरफ जाने लगा था ।
"गुरूजी ,आकाश तत्व ईश्वर का द्योतक है किंतु आकाश में ईश्वर है यह कपोलकल्पित है । दुनिया ने रॉकेट, अंतरिक्ष यान , उपग्रह आदि भेज दिये है आकाश में किन्तु आपके तथाकथित 'ईश्वर 'का पता नहीं चला।" केशव ने कहा ही था कि गुरु जी तपाक से बोले -
"अगर मैं कंहु आकाश का मतलब आसमान है तो? कह गुरु जी अर्थपूर्ण मुस्कुरा दिये ।
"तो !! ...तो गुरु जी आपके इस आकाश का ढांचा उस में मौजूद द्रव्यमान से निर्धारित होता है । यदि वस्तुएं( गैस आदि) गायब हो जाएं तो न आकाश का पता चलेगा न काल का ..... जो आकाश स्वयं वस्तुओं के अस्तित्व पर आश्रित है वह वस्तुओं के बनाने में कैसे सामग्री हो सकता है ?
गुरु जी का क्रोध अब बढ़ता जा रहा था ...
" तू की नास्तिक लगता है .....नास्तिक भी तो चार तत्वों को मानते है ..वायु, अग्नि,जल,पृथ्वी...उसका क्या ?"
"जी नास्तिक भी मानते हैं ... ये बात काफी हद तक सही है किंतु चार्वाक ने मरने में बाद 'तत्वेषु लीन: भी कहा है न की' पंचतत्व गत:' अतः वे उपरोक्त चार तत्वों को अप्रत्यक्ष न मान नए तत्वों को मानने को कहता है ....धर्म के पंचतत्व स्थिर है जबकि चार्वाक स्थिर नहीं बल्कि नए तत्वों को मानाने की बात करता है "केशव ने उत्तर दिया ।
"तो...दुष्ट तू कहना चाहता है कि आत्मा नहीं है ईश्वर नहीं है ?"गुरु जी ने एक दम उठते हुए कहा ।
"
"बिलकुल नहीं हैं" केशव ने कहा।
" तो ये ब्रह्मांड किसने बनाया? ...शरीर किस ने और किससे बनाया?.... तेरे जैसे दुष्ट ने बनाया है क्या? " गुरु जी ने आवेश आ पूछा और खड़े हो गएँ और जोर जोर से खाँसने लगे।
इतने में गुरु जी का चेला दौड़ता हुआ आया और गुरु जी को सहारा देने लगा ।गुरु जी ने हाथ से इशारा किया और चेला उन्हें वापस कार में ले जाता हुआ बोला - अभी गुरु जी विश्राम करेंगे ....बाकी कल प्रवचन होगा...,"
"अरे गुरु जी .... बताऊँ क्या की शरीर किससे बना है और आत्मा क्या है?"केशव ने जाते हुए गुरु जी से ऊँची आवाज में पूछा ।
गुरु जी ने एक क्षण मुड़ के केशव की तरफ क्रोध से देखा और चेले के कंधे पर हाथ रख ढाबे से निकल गएँ।
"छोटूSs ....चाय ला भाई....बहुत देर हो गई...."केशव ने मुस्कुराते आवाज लगाई ।
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