Sunday, 15 July 2018

मुस्लिम शासक, अंग्रेज और कुप्रथाएं-

अक़बर ने दीन-ऐ-इलाही के जरिये उच्च हिन्दुओ और उच्च मुसलमानो को पास लाने का भरकस प्रयास किया ,इस प्रयास में उसने हिन्दुओ के लिए  पवित्र समझी जाने वाली गाय की हत्या को निषेध करवा दिया था। नए मंदिरो को बनाने की छूट दे दी थी । मंदिरो और तीर्थ यात्राओं को कर मुक्त कर दिया था।

उसका प्रयास था कि वह अधिक से अधिक उच्च हिन्दुओ को अपने नव धर्म की तरफ आकर्षित करे, ऐसा हुआ भी दीन-ऐ-इलाही को सबसे पहले अपनाने वाला महेशदास अर्थात बीरबल ही हुआ ।

अक़बर हिन्दुओ के धार्मिक और जातीय स
मसलो में हस्तक्षेप नही करता था यही कारण रहा कि उसने निम्न जातियों के उद्धार के लिए कोई कार्य नही किया था। 'महान' कहलाये जाने के बाद भी  शासन काल में अछूतों का   जातीय शोषण / अत्याचार तो बना ही रहा,   कई कुप्रथाएं भी ज्यूँ की त्युं उसके राज में  चलती रही जिनको अंग्रजो ने आके खत्म किया , उनमे से कुछ कुप्रथाएं इस प्रकार की थीं-

1- काशी - करवट-  काशी धाम में  आदि विशेश्वर के मंदिर के पास कुंए मे कूद कर  भक्त अपनी जान दे देते थे , भक्तो की धारणा थी कि उस कुंए में मरने के बाद सीधा स्वर्ग में जाना होगा।

2- गंगा प्रभाव- अधिक समय बीत जाने के बाद जब किसी वैवाहिक जोड़े को संतान पैदा नही होती थी तो वह ऐसी मनौती मांगता था कि उसका पहला बच्चा होगा तो उसे गंगा में प्रभावित कर देगा। मनौती को पूरी करने के लिए अपने बच्चे को गंगा में छोड़ देते थे। अंग्रजो में 1835 में कानून द्वारा इसे बंद करवाया।

3- सतीदाह- विधवा स्त्रियों को उनके पति के साथ जिंदा जलाये जाने की प्रथा को अंग्रेजो 1863 में कानून द्वारा बंद किया।

4- कन्या वध- कन्या भूर्ण हत्या  को 1870 में कानून बना के रोका गया

5- नर मेध-  ऋग्वेद के शुनःशेप की कहानी के आधार पर निर्धन या अनाथ व्यक्ति को दीक्षित कर उसकी यज्ञ में बलि दी जाती थी जिसको अंग्रजो ने  1845 में ऐक्ट 21 बना के रोका ।

6- हरिबोल- इस प्रथा के अनुसार रोगी को गंगा में ले जाकर उसे गोते दे देकर हरि बुलवाते और उसे मार देते। जो मर जाता उसे बहुत भागयशाली समझते और जो नही मरता उसे वंही घाट पर तड़प तड़प के मरने के लिए छोड़ देते। अंग्रेजो ने 1831 में इस अमानवीय प्रथा पर रोक लगाई।

7- धरना- साधु संत विष या शस्त्र हाथ मे लेके किसी  गृहस्थ के द्वार पर बैठ जाते और उन पर दवाब डालते की उनकी अमुक इच्छा पूरी करे ।कभी कभी गृहस्थ की पत्नी या बेटी से संबंध बनाने पर भी जबरजस्ती करते। अंग्रजो ने सन 1920 में कानून बना इसे बंद करवाया।

इसके अलावा जगन्नाथ धाम में रथ यात्रा के दौरान भक्त लोग रथ के पहिये के नीचे मोक्ष प्राप्ति की आशा में आत्महत्या कर लेते थे । यह जघन्य आत्महत्याएं हर  तीसरे वर्ष रथ यात्रा के दौरान होतीं। अंग्रजो ने इस प्रथा को कानून बना के बंद करवाया। ऐसी अनेक कुप्रथाएं जिन्हें मुस्लिम शासक नही खत्म कर पाए थे उन्हें अंग्रेजो ने खत्म किया।

समझिये की क्यों मात्र दो सालों के राज में अंग्रेजों का विरोध शुरू हो गया था जबकि अक़बर आदि मुस्लिम शासकों का सैकड़ो सालों के बाद भी नही।


Wednesday, 11 July 2018

सूफ़ीवाद

  भारत मे इस्लाम के फैलने का प्रमुख कारण इसका ' तसव्वुफ़ अर्थात सूफ़ी मत रहा है। सूफ़ी मत तलवार से भी अधिक मारक था जिसने बिना खून बहाये अधिक से अधिक हिन्दुओ को अपनी ओर आकर्षित किया।

अरब के लोगो ने दर्शन के लिए ' फ़लसफ़ा' शब्द का इस्तेमाल किया ,'सूफ़ी' शब्द ' फ़लसफ़ा' के 'सफा' से बना है जिसका अर्थ है दार्शनिक। हम कह सकते हैं कि सूफ़ीवाद इस्लाम का निचोड़/ केंद्र था जो लोगो को जबरजस्ती तलवारों के बल से मुसलमान बनाने के पक्ष में नही था । जो लोग यह मानते थे कि कुरआन ईश्वर और समाधि ,ईश्वर और चिंतन में सम्बन्ध है और यही उस तक पहुचने का मार्ग है वह इस्लाम की कट्टरता के घेरे से निकल के सूफी हो गए। हालांकि की हम यह कह सकते हैं कि अरब के लोगो ने यह धारणा यूनान से ली है किंतु यह भी सच था कि अरब और यूनान का भारत से प्राचीन रिश्ता रहा है। इसलिए इतिहासकार मानते हैं कि दर्शन पहले भारत से यूनान पहुँचा और फिर वंहा से अरब।

फिर यह भी सच है कि अरब में  इस्लाम के आने से पहले बौद्ध धर्म का भी प्रभाव रहा  था , बलख का नौ बिहार दरसल नौ विहार या बौद्ध मठ था और इसका पुजारी बरामका कहलाता था यँहा बुद्धदेव की पूजा होती थी ।

अरब के नगरो में यहूदी मत, ईसाइयत, बौद्ध, हिंदुत्व, और इस्लाम का का मिलन हुआ ।

अतः अरब वालों को सूफिज्म का ज्ञान पहले से था हाँ , यह जरुर हुआ कि इस्लाम मे आने के बाद उस दर्शन का स्वरूप थोड़ा बदल गया , भारत आ के उसने और भी विस्तार किया ।

सूफी मत के अनुसार-
1- सूफी का प्रमुख कर्तव्य ध्यान और समाधि है, प्रार्थना और नाम स्मरण है । इन्ही तरीको से वह परमात्मा मिलन की राह पर अग्रसर होता है।

2- अस्तित्व केवल परमात्मा का है , वह प्रत्येक वस्तु में है और प्रत्येक वस्तु परमात्मा में है।

3- सारी वास्तविकता एक ही है ।

4- सभी धर्मिकता और नैतिकता का आधार प्रेम ही है।प्रेम के बिना धर्म और नीति दोनो निर्जीव हैं।


किन्तु यंहा गौर करने लायक वात यह थी कि जैसा कि ऊपर भी बताया गया है को मौलिक इस्लाम और सूफिज्म में अंतर होने के कारण इसे पसंद नही किया गया । जैसे कि संगीत इस्लाम मे हराम करार दिया गया किन्तु सूफ़ी मत वाले संगीत को अपनी साधना का जरिया मानने लगे। कब्र पूजना इस्लाम मे हराम करार दिया गया किन्तु सूफ़ीवाद कब्र पूजता रहा।

इसलिए सूफ़ीओं को  मुल्लाओं और इस्लाम के ठेकेदारों की नजरों में काफ़िर करार कर दिए गया , उन्हें प्राण दंड दिया जाने लगा । मनसूर- अल- हज्जाज , सरमद आदि ऐसे ही सूफ़ी थें जिनको इस्लामिक ठेकेदारों ने कत्ल कर दिया  ।

आज भी मजारों पर जो हिन्दू श्रद्धा से सर झुकाता है वह  सूफियों के कारण ही सम्भव हुआ था। मज़ार में हिन्दुओ को अपने देवी देवता नजर आते हैं। जो चमत्कार करते हैं, आशीर्वाद देते हैं। सूफिज्म रहस्यवाद की पूर्ति करता है।

देखिये, मज़ार ने  हिन्दू देवी -देवताओं की मूर्तियों को कैसे अंगीकार कर लिया है। क्या यह किसी मस्जिद में संभव है?


Wednesday, 4 July 2018

शेयर्ड सायकोटिक डिसऑर्डर -


कई सालों पहले मैं दोस्तों के साथ राजस्थान के मेंहदीपुर बाला जी के मंदिर में गया था , उसकी मान्यता यह बताई  जाती है कि उस मंदिर में ' ऊपरी हवाओं' जैसे भूत प्रेत आदि का इलाज होता है।

जिज्ञासावश मैं भी चला गया था कि देखूं आखिर भूत प्रेत होते कैसे हैं?

मंदिर में बहुत दूर दूर के लोग आये हुए थे, भूत प्रेत से बाधित मरीज़ो का परिसर अलग था । जंहा कई भूत प्रेत से पीड़ित मरीजों को बांध के भी रखा गया था , ख़ास बात यह थी की वंहा महिला मरीज़ो की संख्या बहुत अधिक थी। एक महिला जोर जोर से चिल्लाने लगी तो एक सेवादार आया और महिला को उसके बालों से पकड़ के बुरी तरह पीटने लगा था । कोई उस सेवादार को नहीं रोक रहा था , न मंदिर में दर्शन के लिए आये लोग और ना ही कोई अन्य मंदिर का कर्मचारी। महिला को  बुरी तरह पीटने के बाद सेवादार चला गया ,महिला कभी रोती तो कभी और जोर से चीखने लगती। साफ़ जाहिर था कि वह किसी मनोरोग से पीड़ित थी न की किसी भूत प्रेत से।

वंहा मरीज़ो की संख्या बहुत अधिक थी, इतनी की कई मनोरोगी मंदिर के पास वाली पहाड़ी पर भी थे जो अजीब अजीब हरकते कर रहे थे ,जैसे पेट पर बड़ा सा पत्थर रख के  लेटना, कूदना , आसमान की तरफ देख कर जोर जोर से चीखना आदि। 99% यंहा आने वाले भूत प्रेत से पीड़ित परिवार या तो गरीब परिवार से थे या मध्यवर्गीय परिवार से जो या तो पैसे के आभाव में मरीज का साइकैट्रिस्ट से नहीं करवा पाएं या अत्याधिक धार्मिकता और अंधविश्वास के चलते यंहा छोड़ के चले गएँ।

यंहा आने वाले मरीजों में मनोरोगी होने का  प्रत्यक्ष आभास और प्रमाण मिल जाता है , किन्तु कई मरीज ऐसे होते हैं जिनका आभास आस पास के लोगो को नहीं हो पाता।ये मनोरोगी प्रत्यक्ष रूप से सामान्य नजर आते हैं , अत्याधिक धार्मिक या सन्वेदनशील हो सकते हैं जिसे लोग नजरन्दाज कर देते है।

आपने कई ऐसे लोग देखें होंगे जो भगवान् या अन्य किसी आत्मा आदि से बाते करने का दावा करते हैं, अपनी चमत्कारिक शक्तियों से लोगो के कष्ट दूर करने का दावा करते हैं ।

 बुराड़ी में हुई 11 सदस्यों की  सामूहिक आत्महत्या वाले केस में भी ऐसा ही हुआ, पुलिस का दावा है कि ललित जो अत्याधिक धार्मिक प्रवृत्ति का था उसे सपने में उसके मृत पिता जी आते थे और निर्देश देते थे।उन निर्देशों को वह रजिस्टर पर उतार लेता था। ठीक ऐसे ही संजय दत्त की एक फिल्म भी आई थी जिसमे वह गाँधी जी को देखने की बात करता है और उनसे बाते करने का दावा भी।

ललित अपने पिता की आत्मा से जो बातें करता उन्हें पूरे परिवार के एक जगह बैठा के सुनाता।  परिवारवाले ललित को चमत्कारिक शक्तियों वाला समझते थे और वही सभी फैंसले लेता था। पिता की आत्मा जो निर्देश देती थी उसे वह रजिस्टर में उतार लेता था। भागवान से मिलने और मोक्ष् प्राप्त करने की बात भी उससे पिता की आत्मा ने ही निर्देश दिया था ,जिसके कारण पूरा परिवार फंदे पर लटक गया।

विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ललित शेयर्ड सायकोटिक डिसऑर्डर का शिकार था , इस बीमारी में मरीज को लगता है कि वह किसी मृत व्यक्ति से बात कर रहा है। जैसा संजय दत्त उस मूवी में गांधी जी आत्मा से बात करता है, ऐसे ही ललित अपने पिता की आत्मा से बात करता है। इस बीमारी में मरीज के शरीर में अचानक बदलाव आते हैं और  उसकी आवाज़ वा आवभाव बदल जाते हैं ।देखने में ऐसा लगता है जैसे उस पर कोई आत्मा या भूत प्रेत आ गया हो। इस बीमारी का इलाज संभव है किंतु लोग इसे आत्मा आदि का किया मान के इलाज नहीं करवाते और अंधविश्वास के जाल में फँसते रहते हैं।

आप शेयर्ड सायकोटिक डिसऑर्डर के बारे में यंहा पढ़ सकते हैं-

https://www.webmd.com/schizophrenia/guide/shared-psychotic-disorder

वेदो के रचनाकारों को 'दृष्टा' कहा गया है , जिन्होंने दावा किया था कि उन्होंने  ईश्वर की को देखा और उसकी वाणी सुन वेदों की रचना की ।

 मुहम्मद साहब को भी जीब्रील नाम का फरिश्ता दिखाई देता है और वे उसकी बातों को वैसे ही कुरआन के रूप में दर्ज करते हैं जैसे की ललित अपने पिता की आत्मा के निर्देश पर रजिस्टर.... तो आप समझ ही गए होंगे धर्म- मज़हब की कहानी...

मुक्त होइये ऐसे शेयर्ड सायकोटिक डिसऑर्डर द्वारा लिखे गए रिस्टर्स से

फोटो साभार गूगल-