अक़बर ने दीन-ऐ-इलाही के जरिये उच्च हिन्दुओ और उच्च मुसलमानो को पास लाने का भरकस प्रयास किया ,इस प्रयास में उसने हिन्दुओ के लिए पवित्र समझी जाने वाली गाय की हत्या को निषेध करवा दिया था। नए मंदिरो को बनाने की छूट दे दी थी । मंदिरो और तीर्थ यात्राओं को कर मुक्त कर दिया था।
उसका प्रयास था कि वह अधिक से अधिक उच्च हिन्दुओ को अपने नव धर्म की तरफ आकर्षित करे, ऐसा हुआ भी दीन-ऐ-इलाही को सबसे पहले अपनाने वाला महेशदास अर्थात बीरबल ही हुआ ।
अक़बर हिन्दुओ के धार्मिक और जातीय स
मसलो में हस्तक्षेप नही करता था यही कारण रहा कि उसने निम्न जातियों के उद्धार के लिए कोई कार्य नही किया था। 'महान' कहलाये जाने के बाद भी शासन काल में अछूतों का जातीय शोषण / अत्याचार तो बना ही रहा, कई कुप्रथाएं भी ज्यूँ की त्युं उसके राज में चलती रही जिनको अंग्रजो ने आके खत्म किया , उनमे से कुछ कुप्रथाएं इस प्रकार की थीं-
1- काशी - करवट- काशी धाम में आदि विशेश्वर के मंदिर के पास कुंए मे कूद कर भक्त अपनी जान दे देते थे , भक्तो की धारणा थी कि उस कुंए में मरने के बाद सीधा स्वर्ग में जाना होगा।
2- गंगा प्रभाव- अधिक समय बीत जाने के बाद जब किसी वैवाहिक जोड़े को संतान पैदा नही होती थी तो वह ऐसी मनौती मांगता था कि उसका पहला बच्चा होगा तो उसे गंगा में प्रभावित कर देगा। मनौती को पूरी करने के लिए अपने बच्चे को गंगा में छोड़ देते थे। अंग्रजो में 1835 में कानून द्वारा इसे बंद करवाया।
3- सतीदाह- विधवा स्त्रियों को उनके पति के साथ जिंदा जलाये जाने की प्रथा को अंग्रेजो 1863 में कानून द्वारा बंद किया।
4- कन्या वध- कन्या भूर्ण हत्या को 1870 में कानून बना के रोका गया
5- नर मेध- ऋग्वेद के शुनःशेप की कहानी के आधार पर निर्धन या अनाथ व्यक्ति को दीक्षित कर उसकी यज्ञ में बलि दी जाती थी जिसको अंग्रजो ने 1845 में ऐक्ट 21 बना के रोका ।
6- हरिबोल- इस प्रथा के अनुसार रोगी को गंगा में ले जाकर उसे गोते दे देकर हरि बुलवाते और उसे मार देते। जो मर जाता उसे बहुत भागयशाली समझते और जो नही मरता उसे वंही घाट पर तड़प तड़प के मरने के लिए छोड़ देते। अंग्रेजो ने 1831 में इस अमानवीय प्रथा पर रोक लगाई।
7- धरना- साधु संत विष या शस्त्र हाथ मे लेके किसी गृहस्थ के द्वार पर बैठ जाते और उन पर दवाब डालते की उनकी अमुक इच्छा पूरी करे ।कभी कभी गृहस्थ की पत्नी या बेटी से संबंध बनाने पर भी जबरजस्ती करते। अंग्रजो ने सन 1920 में कानून बना इसे बंद करवाया।
इसके अलावा जगन्नाथ धाम में रथ यात्रा के दौरान भक्त लोग रथ के पहिये के नीचे मोक्ष प्राप्ति की आशा में आत्महत्या कर लेते थे । यह जघन्य आत्महत्याएं हर तीसरे वर्ष रथ यात्रा के दौरान होतीं। अंग्रजो ने इस प्रथा को कानून बना के बंद करवाया। ऐसी अनेक कुप्रथाएं जिन्हें मुस्लिम शासक नही खत्म कर पाए थे उन्हें अंग्रेजो ने खत्म किया।
समझिये की क्यों मात्र दो सालों के राज में अंग्रेजों का विरोध शुरू हो गया था जबकि अक़बर आदि मुस्लिम शासकों का सैकड़ो सालों के बाद भी नही।
उसका प्रयास था कि वह अधिक से अधिक उच्च हिन्दुओ को अपने नव धर्म की तरफ आकर्षित करे, ऐसा हुआ भी दीन-ऐ-इलाही को सबसे पहले अपनाने वाला महेशदास अर्थात बीरबल ही हुआ ।
अक़बर हिन्दुओ के धार्मिक और जातीय स
मसलो में हस्तक्षेप नही करता था यही कारण रहा कि उसने निम्न जातियों के उद्धार के लिए कोई कार्य नही किया था। 'महान' कहलाये जाने के बाद भी शासन काल में अछूतों का जातीय शोषण / अत्याचार तो बना ही रहा, कई कुप्रथाएं भी ज्यूँ की त्युं उसके राज में चलती रही जिनको अंग्रजो ने आके खत्म किया , उनमे से कुछ कुप्रथाएं इस प्रकार की थीं-
1- काशी - करवट- काशी धाम में आदि विशेश्वर के मंदिर के पास कुंए मे कूद कर भक्त अपनी जान दे देते थे , भक्तो की धारणा थी कि उस कुंए में मरने के बाद सीधा स्वर्ग में जाना होगा।
2- गंगा प्रभाव- अधिक समय बीत जाने के बाद जब किसी वैवाहिक जोड़े को संतान पैदा नही होती थी तो वह ऐसी मनौती मांगता था कि उसका पहला बच्चा होगा तो उसे गंगा में प्रभावित कर देगा। मनौती को पूरी करने के लिए अपने बच्चे को गंगा में छोड़ देते थे। अंग्रजो में 1835 में कानून द्वारा इसे बंद करवाया।
3- सतीदाह- विधवा स्त्रियों को उनके पति के साथ जिंदा जलाये जाने की प्रथा को अंग्रेजो 1863 में कानून द्वारा बंद किया।
4- कन्या वध- कन्या भूर्ण हत्या को 1870 में कानून बना के रोका गया
5- नर मेध- ऋग्वेद के शुनःशेप की कहानी के आधार पर निर्धन या अनाथ व्यक्ति को दीक्षित कर उसकी यज्ञ में बलि दी जाती थी जिसको अंग्रजो ने 1845 में ऐक्ट 21 बना के रोका ।
6- हरिबोल- इस प्रथा के अनुसार रोगी को गंगा में ले जाकर उसे गोते दे देकर हरि बुलवाते और उसे मार देते। जो मर जाता उसे बहुत भागयशाली समझते और जो नही मरता उसे वंही घाट पर तड़प तड़प के मरने के लिए छोड़ देते। अंग्रेजो ने 1831 में इस अमानवीय प्रथा पर रोक लगाई।
7- धरना- साधु संत विष या शस्त्र हाथ मे लेके किसी गृहस्थ के द्वार पर बैठ जाते और उन पर दवाब डालते की उनकी अमुक इच्छा पूरी करे ।कभी कभी गृहस्थ की पत्नी या बेटी से संबंध बनाने पर भी जबरजस्ती करते। अंग्रजो ने सन 1920 में कानून बना इसे बंद करवाया।
इसके अलावा जगन्नाथ धाम में रथ यात्रा के दौरान भक्त लोग रथ के पहिये के नीचे मोक्ष प्राप्ति की आशा में आत्महत्या कर लेते थे । यह जघन्य आत्महत्याएं हर तीसरे वर्ष रथ यात्रा के दौरान होतीं। अंग्रजो ने इस प्रथा को कानून बना के बंद करवाया। ऐसी अनेक कुप्रथाएं जिन्हें मुस्लिम शासक नही खत्म कर पाए थे उन्हें अंग्रेजो ने खत्म किया।
समझिये की क्यों मात्र दो सालों के राज में अंग्रेजों का विरोध शुरू हो गया था जबकि अक़बर आदि मुस्लिम शासकों का सैकड़ो सालों के बाद भी नही।