भारत मे इस्लाम के फैलने का प्रमुख कारण इसका ' तसव्वुफ़ अर्थात सूफ़ी मत रहा है। सूफ़ी मत तलवार से भी अधिक मारक था जिसने बिना खून बहाये अधिक से अधिक हिन्दुओ को अपनी ओर आकर्षित किया।
अरब के लोगो ने दर्शन के लिए ' फ़लसफ़ा' शब्द का इस्तेमाल किया ,'सूफ़ी' शब्द ' फ़लसफ़ा' के 'सफा' से बना है जिसका अर्थ है दार्शनिक। हम कह सकते हैं कि सूफ़ीवाद इस्लाम का निचोड़/ केंद्र था जो लोगो को जबरजस्ती तलवारों के बल से मुसलमान बनाने के पक्ष में नही था । जो लोग यह मानते थे कि कुरआन ईश्वर और समाधि ,ईश्वर और चिंतन में सम्बन्ध है और यही उस तक पहुचने का मार्ग है वह इस्लाम की कट्टरता के घेरे से निकल के सूफी हो गए। हालांकि की हम यह कह सकते हैं कि अरब के लोगो ने यह धारणा यूनान से ली है किंतु यह भी सच था कि अरब और यूनान का भारत से प्राचीन रिश्ता रहा है। इसलिए इतिहासकार मानते हैं कि दर्शन पहले भारत से यूनान पहुँचा और फिर वंहा से अरब।
फिर यह भी सच है कि अरब में इस्लाम के आने से पहले बौद्ध धर्म का भी प्रभाव रहा था , बलख का नौ बिहार दरसल नौ विहार या बौद्ध मठ था और इसका पुजारी बरामका कहलाता था यँहा बुद्धदेव की पूजा होती थी ।
अरब के नगरो में यहूदी मत, ईसाइयत, बौद्ध, हिंदुत्व, और इस्लाम का का मिलन हुआ ।
अतः अरब वालों को सूफिज्म का ज्ञान पहले से था हाँ , यह जरुर हुआ कि इस्लाम मे आने के बाद उस दर्शन का स्वरूप थोड़ा बदल गया , भारत आ के उसने और भी विस्तार किया ।
सूफी मत के अनुसार-
1- सूफी का प्रमुख कर्तव्य ध्यान और समाधि है, प्रार्थना और नाम स्मरण है । इन्ही तरीको से वह परमात्मा मिलन की राह पर अग्रसर होता है।
2- अस्तित्व केवल परमात्मा का है , वह प्रत्येक वस्तु में है और प्रत्येक वस्तु परमात्मा में है।
3- सारी वास्तविकता एक ही है ।
4- सभी धर्मिकता और नैतिकता का आधार प्रेम ही है।प्रेम के बिना धर्म और नीति दोनो निर्जीव हैं।
किन्तु यंहा गौर करने लायक वात यह थी कि जैसा कि ऊपर भी बताया गया है को मौलिक इस्लाम और सूफिज्म में अंतर होने के कारण इसे पसंद नही किया गया । जैसे कि संगीत इस्लाम मे हराम करार दिया गया किन्तु सूफ़ी मत वाले संगीत को अपनी साधना का जरिया मानने लगे। कब्र पूजना इस्लाम मे हराम करार दिया गया किन्तु सूफ़ीवाद कब्र पूजता रहा।
इसलिए सूफ़ीओं को मुल्लाओं और इस्लाम के ठेकेदारों की नजरों में काफ़िर करार कर दिए गया , उन्हें प्राण दंड दिया जाने लगा । मनसूर- अल- हज्जाज , सरमद आदि ऐसे ही सूफ़ी थें जिनको इस्लामिक ठेकेदारों ने कत्ल कर दिया ।
आज भी मजारों पर जो हिन्दू श्रद्धा से सर झुकाता है वह सूफियों के कारण ही सम्भव हुआ था। मज़ार में हिन्दुओ को अपने देवी देवता नजर आते हैं। जो चमत्कार करते हैं, आशीर्वाद देते हैं। सूफिज्म रहस्यवाद की पूर्ति करता है।
देखिये, मज़ार ने हिन्दू देवी -देवताओं की मूर्तियों को कैसे अंगीकार कर लिया है। क्या यह किसी मस्जिद में संभव है?
अरब के लोगो ने दर्शन के लिए ' फ़लसफ़ा' शब्द का इस्तेमाल किया ,'सूफ़ी' शब्द ' फ़लसफ़ा' के 'सफा' से बना है जिसका अर्थ है दार्शनिक। हम कह सकते हैं कि सूफ़ीवाद इस्लाम का निचोड़/ केंद्र था जो लोगो को जबरजस्ती तलवारों के बल से मुसलमान बनाने के पक्ष में नही था । जो लोग यह मानते थे कि कुरआन ईश्वर और समाधि ,ईश्वर और चिंतन में सम्बन्ध है और यही उस तक पहुचने का मार्ग है वह इस्लाम की कट्टरता के घेरे से निकल के सूफी हो गए। हालांकि की हम यह कह सकते हैं कि अरब के लोगो ने यह धारणा यूनान से ली है किंतु यह भी सच था कि अरब और यूनान का भारत से प्राचीन रिश्ता रहा है। इसलिए इतिहासकार मानते हैं कि दर्शन पहले भारत से यूनान पहुँचा और फिर वंहा से अरब।
फिर यह भी सच है कि अरब में इस्लाम के आने से पहले बौद्ध धर्म का भी प्रभाव रहा था , बलख का नौ बिहार दरसल नौ विहार या बौद्ध मठ था और इसका पुजारी बरामका कहलाता था यँहा बुद्धदेव की पूजा होती थी ।
अरब के नगरो में यहूदी मत, ईसाइयत, बौद्ध, हिंदुत्व, और इस्लाम का का मिलन हुआ ।
अतः अरब वालों को सूफिज्म का ज्ञान पहले से था हाँ , यह जरुर हुआ कि इस्लाम मे आने के बाद उस दर्शन का स्वरूप थोड़ा बदल गया , भारत आ के उसने और भी विस्तार किया ।
सूफी मत के अनुसार-
1- सूफी का प्रमुख कर्तव्य ध्यान और समाधि है, प्रार्थना और नाम स्मरण है । इन्ही तरीको से वह परमात्मा मिलन की राह पर अग्रसर होता है।
2- अस्तित्व केवल परमात्मा का है , वह प्रत्येक वस्तु में है और प्रत्येक वस्तु परमात्मा में है।
3- सारी वास्तविकता एक ही है ।
4- सभी धर्मिकता और नैतिकता का आधार प्रेम ही है।प्रेम के बिना धर्म और नीति दोनो निर्जीव हैं।
किन्तु यंहा गौर करने लायक वात यह थी कि जैसा कि ऊपर भी बताया गया है को मौलिक इस्लाम और सूफिज्म में अंतर होने के कारण इसे पसंद नही किया गया । जैसे कि संगीत इस्लाम मे हराम करार दिया गया किन्तु सूफ़ी मत वाले संगीत को अपनी साधना का जरिया मानने लगे। कब्र पूजना इस्लाम मे हराम करार दिया गया किन्तु सूफ़ीवाद कब्र पूजता रहा।
इसलिए सूफ़ीओं को मुल्लाओं और इस्लाम के ठेकेदारों की नजरों में काफ़िर करार कर दिए गया , उन्हें प्राण दंड दिया जाने लगा । मनसूर- अल- हज्जाज , सरमद आदि ऐसे ही सूफ़ी थें जिनको इस्लामिक ठेकेदारों ने कत्ल कर दिया ।
आज भी मजारों पर जो हिन्दू श्रद्धा से सर झुकाता है वह सूफियों के कारण ही सम्भव हुआ था। मज़ार में हिन्दुओ को अपने देवी देवता नजर आते हैं। जो चमत्कार करते हैं, आशीर्वाद देते हैं। सूफिज्म रहस्यवाद की पूर्ति करता है।
देखिये, मज़ार ने हिन्दू देवी -देवताओं की मूर्तियों को कैसे अंगीकार कर लिया है। क्या यह किसी मस्जिद में संभव है?
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