आइये , उखाड़ फेंके ईश्वर अल्लाह के जाल को
विश्व में जितने भी देश उन्नति कर पायें हैं वे धर्म के जाल से मुक्त होके ही कर पाए हैं , धर्म के जाल से मुक्त होने की वैचारिक क्रांति उन देशो में पहले शुरू हो गई थी।
जर्मनी में मार्टिन लूथर ने पोप और उसकी प्रतिनिधियों को चुनौती 16 शताब्दी में ही देनी शुरू कर दी थी। उन्होंने कहना शुरू कर दिया था की क्यों न पोप और पादरी को चोर ठगों की तरह दंड दिया जाए क्यों की वे भी अध:पतन के मुख्य कारण होते हैं।
उन्होंने कहा की मैं किसी दिन पोप के समस्त नियमो को जला दूंगा, लूथर ने लोगो को समझाया की तीर्थ यात्राओं तथा धार्मिक अवकाशो से दैनिक कार्य की हानि होती है और आर्थिक नुकसान होता है।
चिंतन के क्षेत्र में भी संशयवादी पद्दति ने एक क्रांति की , स्पिनोजा ने कहा " ईश्वर के अस्तित्व के पक्ष में एकमात्र तर्क उस के बारे में हमारा अज्ञान ही है " । निस्ते ने कहा" ईश्वर मर गया है" , मार्क्स ने धर्म को अफीम की संज्ञा दी इसी तरह फायरबाख ने भौतिक दर्शन की ध्वजा फहराई।
पर अफ़सोस की बात की आधुनिकता और जड़ता के के खिलाफ यह क्रांति विश्व के सभी देशो में एक साथ नहीं चली इसलिए विभिन्न देशो में विकास और चेतना का स्तर भिन्न भिन्न है। अतएव उन में सामाजिक क्रांति का अवतरण एक साथ नहीं बल्कि क्रमिक हुआ ।
इस वैचारिक क्रांति के कारण ही मशीन का सबसे पहले निर्माण इंग्लेंड में हुआ और उद्योगिक क्रांति के साथ प्रथम जनतांत्रिक क्रांति यंही हुई।
दूसरी तरफ भारत ऐसा देश है जंहा आज भी आम जनता ईश्वर और धर्म के शिकंजे में जकड़ी हुई तरह तरह के धंधेबाजो का शिकार हो रही है जिस कारण भारत में बेशक नाम के लिए जनतंत्र स्थापित हो गया हो पर असल में आज भी समांत तंत्र ही सांस ले रहा है।
तो मेरे मित्रो, आइये प्रण कीजिये की हम इस ' सर्वोच्च सत्ता' और उसके दलालों धर्म गुरुओ को जड़ से उखड फेकेंगे और मानव हित में नई क्रांति करेंगे जंहा ईश्वर अल्लाह और उसके दलाओ की कोई जगह नहीं होगी , केवल इंसानियत रहेगी।
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