" अरे शर्मा साहब!! आइये आइये ..... विराजिए महाराज! " केशव ने ढ़ाबे में प्रवेश करते हुए शर्मा जी देखते हुए कहा ।
शर्मा जी केशव को देख मुस्कुरा दिए और कंधे पर लटकाए झोले को मेज पर रखते हुए सामने पड़ी कुर्सी पर विरजमान हो गए।
" कहिये शर्मा साहब! क्या हाल हैं? सब कुशल मंगल? भाभी जी अब तो नहीं पीटती?" केशव ने चुटकी ली और जोर से हँस दिया।
यूँ केशव को चुटकी लेते हुए शर्मा जी को थोड़ा नागवार गुजरा और वे घूरने वाली नजरो से देखने लगी।
केशव ने उनके मुखमंडल पर नाराजगी की लकीरें देख हँसना बंद करते हुए कहा -" अरे ! मैं तो मजाक कर रहा था ..... " इतना कह केशव ने फिर दाँत निकाल दिए।
अभी शर्मा साहब कुछ बोलने ही वाले थे की केशव ने बीच में आवाज लगा दी -" छोटूSss .... दो चाय …."
छोटू को आर्डर दे वह शर्मा जी से मुखातिब हुआ ।
"और शर्मा साहब सब ठीक है न?'केशव ने पूछा
"सब ठीक है ...पर इस आरक्षण ने देश का बेडा गर्क कर रखा है " शर्मा जी ने उदास होते हुए कहा ।
"क्यों क्या हो गया?" केशव ने उत्सुकता से पूछा।
" योग्यता वाले पीछे रह जा रहें है और अयोग्य आगे आ रहे हैं" शर्मा जी ने गम्भीर होते हुए कहा ।
"कैसे" केशव ने मेज पर हाथ रखते हुए पूछा।
"कैसे क्या!वही आरक्षण के कारण कम अंक वाले आगे आ रहे हैं और अधिक अंक वाले पीछे धकेले जा रहे हैं.....दो दिन पहले भतीजे का एडमिशन करवाने गया था कॉलेज में पर 70%आने के बाद भी एडमिशन नहीं हो पाया जबकि आरक्षण वालो का 50%पर ही हो जा रहा था ।मैरिट वालो की ऐसी तैसी कर दिया है इस आरक्षण ने "शर्मा जी के अंदर का गुबार जैसे फट पड़ने वाला था ।
" ओह! मैरिट का मातम है!!अच्छा क्या आपको पता है कि भारत में ' थर्ड डिवीजन' और पासिंग मार्क्स 40%से घटा के 33% करने की मांग आप लोगों ने ही की थी? " केशव ने मुस्कुराते हुए कहा ।
शर्मा जी को जैसे झटका लगा हो उन्हें सहसा विश्वाश नहीं हुआ और तुरन्त ही कहा -" क्या बात करते हो ?? ऐसा क्यों हुआ था ?"
" ऐसा इस लिए हुआ था शर्मा जी की सन 1857 में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में आधुनिक शिक्षा में केवल दो ही डिवीजन थी , फर्स्ट और सेकेंड ।
न्यूनतम अंक 40%होते थे पास होने के लिए ।
इससे सवर्णो पर गम्भीर संकट खड़ा हो गया था क्यों की 1857 में मद्रास में पहला डिग्री कॉलेज खुला तो उसमे पढ़ने के लिए पर्याप्त विद्यार्थी ही नही मिल रहे थे जबकि पढ़ाने के लिए प्रोफेसर ब्रिटेन से आये थे ।
तब मद्रास के सवर्णो ने ब्रिटिश सरकार से गुहार लगाई की इंटरमीडिएट पास करने के लिए नई थर्ड डिवीजन शुरू की जाए और पासिंग मार्क्स 40% से घटा के 33% कर दिया जाए, ब्रिटिश सरकार ने सवर्णो की बात मान ली और तब से पासिंग मार्क्स 33%चली आ रही है ...." केशव इतना कह के रुक गया ।
थोड़ी देर ख़ामोशी छाई रही ,फिर केशव अपने बदन को ढीला छोड़ता हुआ बोला-
"तो शर्मा जी .... यह थी आपकी 'योग्यता'
शर्मा जी ने अपने माथे पर बल दिया और कुछ बोलने ही वाले थे किन्तु केशव ने कहना जारी रखा-" और सुनिए सर!! ...सन 1821 में ब्रिटिश सरकार ने पूना में एक संस्कृत विद्यालय खोला था ,इस विद्यालय में शिक्षकों के पद के लिए 100%आरक्षण ब्राह्मणों के लिए ही था ।सभी रिक्तियां ब्राह्मण के लिए ही सुरक्षित थी , यद्यपि उस विधालय में सभी जातियों के विद्यार्थियों के लिए प्रवेश की अनुमति थी किन्तु अध्यापक ब्राह्मणों ने इसका घोर विरोध किया और उसके बाद उस विद्यालय में केवल उच्च वर्ग के विद्यार्थियों का ही नामांक किया गया।...... शर्मा जी आपका आरक्षण तो सदियों पहले से चलता आ रहा है" केशव ने शर्मा जी की आँख में आंख डाल के कहा ।
शर्मा जी का चेहरा अब थोड़ा सर्द पड़ गया था , फिर भी केशव को खामोश देख उन्होंने तुरंत कहा -"किन्तु आरक्षण तो केवल दस साल के लिए था पर राजनेता इसे अपने फायदे के लिए बढ़ा देते हैं .... इसलिए आरक्षण की राजनीती बंद होनी चाहिए ताकि सभी को नौकरी मिल सके "
" आरक्षण का मतलब सिर्फ नौकरी पाना नहीं होता शर्मा जी,फिर यह गलत फहमी है कि आरक्षण दस साल के लिए ही था । अनुच्छेद 335 के तहत प्रदत्त नौकरियों में आरक्षण के लिए समीक्षा का प्रवधान नहीं है ,नौकरियों में आरक्षण तब तक रहेगा जब तक समाज में जातिवाद है ।हाँ अनुच्छेद- 330 और 332 के अंतर्गत दी जाने वाली राजनैतिक आरक्षण की सुविधा को प्रत्येक दस साल के बाद आवश्यकता अनुसार समीक्षा कर बढ़ाई जा सकती है।
आज देखिये यदि आरक्षित सीट्स न हों तो एक भी पार्टी दलितों को एक भी टिकट न दे....हर पार्टी आरक्षित सीट्स पर ही मज़बूरी वश टिकट देती है ।अगर ये सीट्स हटा दी जाएं तो एक भी दलित राजनीती में नहीं आ सकता। रही बात नौकरीं की तो रिपोर्ट देखिये अब भी ऊँची जातियो वाले ही हर पोस्ट पर काबिज है "
शर्मा जी थोड़ी देर चुप रहे फिर बोले-" देश में अब कोई जातीय भेदभाव नहीं करता और न ही छुआछूत जैसा कुछ है .... ये तो तुम लोग हो जो ऐसा प्रचारित करते हैं"
केशव शर्मा जी की बात सुन कुछ सोचता हुआ बोला- "अच्छा! शर्मा साहब क्या आप बता सकते हैं कि देश में कितने निम्न जाति के कहे जाने वाले लोग प्रमुख मंदिरों, मठो, अखाड़ों आदि के प्रमुख है ? अथवा महामंडलेश्वर या शंकराचार्य ,धर्मिक न्यास की उपाधि पर बैठे हैं? .... यदि समाज में जातिवाद ख़त्म है तो नाम बताइये दो चार शंकराचार्यो के जो अछूत जाति से आते हों?"
अब शर्मा जी का चेहरा लाल हो गया ,वे तुरंत जेब से मोबाईल निकाल उसे देखते हुए बोले-" अभी जल्दी में हूँ एक काम याद आ गया है .... सब आ के बताता हूं " इतना कह वे अपना झोला उठा तेजी से बाहर की तरफ निकल गए । पीछे से केशव ने आवाज लगाई -
"शर्मा जी ..... चाय तो पीते जाइये....."
केशव की बात सुन एक सैकिण्ड के लिए शर्मा जी रुके और गुस्से से केशव की तरफ देख फिर आगे बढ़ गएँ।
" छोटूss..... दोनों चाय इधर ले आया और कुछ खाने को भी "केशव मुस्कुराया और छोटू को आवाज लगाई ।
शर्मा जी केशव को देख मुस्कुरा दिए और कंधे पर लटकाए झोले को मेज पर रखते हुए सामने पड़ी कुर्सी पर विरजमान हो गए।
" कहिये शर्मा साहब! क्या हाल हैं? सब कुशल मंगल? भाभी जी अब तो नहीं पीटती?" केशव ने चुटकी ली और जोर से हँस दिया।
यूँ केशव को चुटकी लेते हुए शर्मा जी को थोड़ा नागवार गुजरा और वे घूरने वाली नजरो से देखने लगी।
केशव ने उनके मुखमंडल पर नाराजगी की लकीरें देख हँसना बंद करते हुए कहा -" अरे ! मैं तो मजाक कर रहा था ..... " इतना कह केशव ने फिर दाँत निकाल दिए।
अभी शर्मा साहब कुछ बोलने ही वाले थे की केशव ने बीच में आवाज लगा दी -" छोटूSss .... दो चाय …."
छोटू को आर्डर दे वह शर्मा जी से मुखातिब हुआ ।
"और शर्मा साहब सब ठीक है न?'केशव ने पूछा
"सब ठीक है ...पर इस आरक्षण ने देश का बेडा गर्क कर रखा है " शर्मा जी ने उदास होते हुए कहा ।
"क्यों क्या हो गया?" केशव ने उत्सुकता से पूछा।
" योग्यता वाले पीछे रह जा रहें है और अयोग्य आगे आ रहे हैं" शर्मा जी ने गम्भीर होते हुए कहा ।
"कैसे" केशव ने मेज पर हाथ रखते हुए पूछा।
"कैसे क्या!वही आरक्षण के कारण कम अंक वाले आगे आ रहे हैं और अधिक अंक वाले पीछे धकेले जा रहे हैं.....दो दिन पहले भतीजे का एडमिशन करवाने गया था कॉलेज में पर 70%आने के बाद भी एडमिशन नहीं हो पाया जबकि आरक्षण वालो का 50%पर ही हो जा रहा था ।मैरिट वालो की ऐसी तैसी कर दिया है इस आरक्षण ने "शर्मा जी के अंदर का गुबार जैसे फट पड़ने वाला था ।
" ओह! मैरिट का मातम है!!अच्छा क्या आपको पता है कि भारत में ' थर्ड डिवीजन' और पासिंग मार्क्स 40%से घटा के 33% करने की मांग आप लोगों ने ही की थी? " केशव ने मुस्कुराते हुए कहा ।
शर्मा जी को जैसे झटका लगा हो उन्हें सहसा विश्वाश नहीं हुआ और तुरन्त ही कहा -" क्या बात करते हो ?? ऐसा क्यों हुआ था ?"
" ऐसा इस लिए हुआ था शर्मा जी की सन 1857 में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में आधुनिक शिक्षा में केवल दो ही डिवीजन थी , फर्स्ट और सेकेंड ।
न्यूनतम अंक 40%होते थे पास होने के लिए ।
इससे सवर्णो पर गम्भीर संकट खड़ा हो गया था क्यों की 1857 में मद्रास में पहला डिग्री कॉलेज खुला तो उसमे पढ़ने के लिए पर्याप्त विद्यार्थी ही नही मिल रहे थे जबकि पढ़ाने के लिए प्रोफेसर ब्रिटेन से आये थे ।
तब मद्रास के सवर्णो ने ब्रिटिश सरकार से गुहार लगाई की इंटरमीडिएट पास करने के लिए नई थर्ड डिवीजन शुरू की जाए और पासिंग मार्क्स 40% से घटा के 33% कर दिया जाए, ब्रिटिश सरकार ने सवर्णो की बात मान ली और तब से पासिंग मार्क्स 33%चली आ रही है ...." केशव इतना कह के रुक गया ।
थोड़ी देर ख़ामोशी छाई रही ,फिर केशव अपने बदन को ढीला छोड़ता हुआ बोला-
"तो शर्मा जी .... यह थी आपकी 'योग्यता'
शर्मा जी ने अपने माथे पर बल दिया और कुछ बोलने ही वाले थे किन्तु केशव ने कहना जारी रखा-" और सुनिए सर!! ...सन 1821 में ब्रिटिश सरकार ने पूना में एक संस्कृत विद्यालय खोला था ,इस विद्यालय में शिक्षकों के पद के लिए 100%आरक्षण ब्राह्मणों के लिए ही था ।सभी रिक्तियां ब्राह्मण के लिए ही सुरक्षित थी , यद्यपि उस विधालय में सभी जातियों के विद्यार्थियों के लिए प्रवेश की अनुमति थी किन्तु अध्यापक ब्राह्मणों ने इसका घोर विरोध किया और उसके बाद उस विद्यालय में केवल उच्च वर्ग के विद्यार्थियों का ही नामांक किया गया।...... शर्मा जी आपका आरक्षण तो सदियों पहले से चलता आ रहा है" केशव ने शर्मा जी की आँख में आंख डाल के कहा ।
शर्मा जी का चेहरा अब थोड़ा सर्द पड़ गया था , फिर भी केशव को खामोश देख उन्होंने तुरंत कहा -"किन्तु आरक्षण तो केवल दस साल के लिए था पर राजनेता इसे अपने फायदे के लिए बढ़ा देते हैं .... इसलिए आरक्षण की राजनीती बंद होनी चाहिए ताकि सभी को नौकरी मिल सके "
" आरक्षण का मतलब सिर्फ नौकरी पाना नहीं होता शर्मा जी,फिर यह गलत फहमी है कि आरक्षण दस साल के लिए ही था । अनुच्छेद 335 के तहत प्रदत्त नौकरियों में आरक्षण के लिए समीक्षा का प्रवधान नहीं है ,नौकरियों में आरक्षण तब तक रहेगा जब तक समाज में जातिवाद है ।हाँ अनुच्छेद- 330 और 332 के अंतर्गत दी जाने वाली राजनैतिक आरक्षण की सुविधा को प्रत्येक दस साल के बाद आवश्यकता अनुसार समीक्षा कर बढ़ाई जा सकती है।
आज देखिये यदि आरक्षित सीट्स न हों तो एक भी पार्टी दलितों को एक भी टिकट न दे....हर पार्टी आरक्षित सीट्स पर ही मज़बूरी वश टिकट देती है ।अगर ये सीट्स हटा दी जाएं तो एक भी दलित राजनीती में नहीं आ सकता। रही बात नौकरीं की तो रिपोर्ट देखिये अब भी ऊँची जातियो वाले ही हर पोस्ट पर काबिज है "
शर्मा जी थोड़ी देर चुप रहे फिर बोले-" देश में अब कोई जातीय भेदभाव नहीं करता और न ही छुआछूत जैसा कुछ है .... ये तो तुम लोग हो जो ऐसा प्रचारित करते हैं"
केशव शर्मा जी की बात सुन कुछ सोचता हुआ बोला- "अच्छा! शर्मा साहब क्या आप बता सकते हैं कि देश में कितने निम्न जाति के कहे जाने वाले लोग प्रमुख मंदिरों, मठो, अखाड़ों आदि के प्रमुख है ? अथवा महामंडलेश्वर या शंकराचार्य ,धर्मिक न्यास की उपाधि पर बैठे हैं? .... यदि समाज में जातिवाद ख़त्म है तो नाम बताइये दो चार शंकराचार्यो के जो अछूत जाति से आते हों?"
अब शर्मा जी का चेहरा लाल हो गया ,वे तुरंत जेब से मोबाईल निकाल उसे देखते हुए बोले-" अभी जल्दी में हूँ एक काम याद आ गया है .... सब आ के बताता हूं " इतना कह वे अपना झोला उठा तेजी से बाहर की तरफ निकल गए । पीछे से केशव ने आवाज लगाई -
"शर्मा जी ..... चाय तो पीते जाइये....."
केशव की बात सुन एक सैकिण्ड के लिए शर्मा जी रुके और गुस्से से केशव की तरफ देख फिर आगे बढ़ गएँ।
" छोटूss..... दोनों चाय इधर ले आया और कुछ खाने को भी "केशव मुस्कुराया और छोटू को आवाज लगाई ।
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