मनुष्य के मरने के बाद क्या होता है ? क्या इस दुनिया के अलावा भी ऐसी कोई अलौकिक दुनिया है जंहा मरने के बाद इंसान की आत्मा पहुँचती है? मरने के बाद उस आत्मा का क्या होता है? क्या वह दूसरी दुनिया ठीक वैसी ही जैसी यंहा की दुनिया?
ऐसे कई प्रश्न और जिज्ञासाएँ इंसान के मस्तिष्क में प्रचीन काल से उमड़ते- घुमड़ते रहें है । साधारण मनुष्य के इन्ही स्वभाविक जिज्ञासाओं और प्रश्नो की महत्वता का लाभ उठाते हुए धूर्त लोगो ने इनके उत्तर में कई काल्पनिक कहानियां गढ़ लीं । स्वर्ग- नर्क , जन्नत - दोज़ख आदि काल्पनिक स्थानों का निर्माण किया गया , आत्मा या रूह नाम की काल्पनिक चीज की व्याख्या को और विस्तृत किया गया ।
जिस चीज को मनुष्य पृथ्वी पर अच्छी और वैभवशाली समझता है उसके मिलने की कल्पना स्वर्ग / जन्नत में कर दी गई और जिस चीज को हेय , भय या दुःख का कारण समझता है उसे नर्क/ दोज़ख में रख के साधारण जन को आतंकित करता रहा।
मरने के बाद आत्मा कँहा जाती है , मरने के बाद दूसरी दुनिया कैसी होती है जैसी काल्पनिक शंकाओं से सिर्फ अनपढ़ ही नहीं ग्रसित है अपितु विदेशो में पढ़े लिखे युवा भी इन धार्मिक/ मज़हबी मिथकीय प्रश्नो में उलझ के अवसादित रहते हैं, दो दिन पहले अख़बार में एक घटना पढ़ी जो की दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाले युवक के साथ घाटी । नवदीप नाम के युवक ने घर की दूसरी मंजिल से कूद के ख़ुदकुशी कर ली, नवदीप स्वीडन में रह के पढाई कर रहा था उसके माता- पिता भी विदेश में अच्छी पोस्ट पर हैं ।
कई दिनों से 25 वर्षीय नवदीप मरने के बाद की जिंदगी को लेके अवसादित था , वह जानना चाहता था कि मरने के बाद तथाकथित आत्मा कँहा जाती है।वो मौत के बाद ज़िंदगी के होने और ना होने को लेकर इन दिनों कुछ ज़्यादा ही जिज्ञासु हो गया था। वो हर पल मरने के बाद इंसान को होनेवाले तजुर्बे के बारे में जानना समझना चाहता था और इसी कोशिश में उसने ना सिर्फ़ कई किताबें पढ़ीं, बहुत से लोगों से बात की, बल्कि इंटरनेट पर भी लाइफ़ आफ्टर डेथ को लेकर रिसर्च करता रहा और अंत में अपने मामा के घर से कूद के उसने आत्महत्या कर ली।
यह बेहद दुःखद है कि एक होनहार अल्पआयु में ही काल्पनिक प्रश्नो के चंगुल में फंस के अपना जीवन समाप्त कर देता है।
वास्तव में आत्मा नाम की कोई चीज नहीं है और न ही मरने के बाद वह किसी अन्य दुनिया में जाती है। बुद्ध ने आत्मा 62 प्रकार की कल्पनाओं को परीक्षा के आधार पर मिथ्या सिद्ध किया ' सबबासकसुत्त ' में श्रावस्ती के जेतवन में अनाथ पिंडक के विहार में उन्होंने कहा था कि '"इस क्षणिक आत्मा को अपरिवर्तनीय , नित्य, समझना तथा ऐसा समझना कि वह सदा से थी और सदा रहेगी , एक भ्रांति है.... भ्रांति की खाई है"
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