Sunday, 7 January 2018

जानिए क्या है वाममार्ग-

बहुत से लोग वामपंथ के बारे में बात करते हैं , खासकर सनातनी पंथ के लोग वामपंथ को हिक़ारत के नज़रों से देखते आएं हैं अथवा शत्रुभाव से देखते आएं हैं  अतः कई ऐसे मित्र होंगे जो वामपंथ के बारे में बाते तो सुनते हैं किन्तु वामपंथ क्या है इसके बारे में नहीं जानते होंगे, इसलिए पेश है एक छोटा सा लेख वामपंथ या वामाचार के विषय में ताकि अनभिज्ञ लोग वामपंथ के विषय में मुख्य बिंदुओं को जान सकें।

वामाचार एक ऐसा दर्शन है जिसे सनातनी विद्वान् उलटी धारा की साधना या दर्शन मानते हैं। वामपंथ का दार्शनिक आधार है कि जीव शिव और शक्ति से निर्मित है ,उसी से छूटकर जीव माया के प्रभाव में बह के जन्म ग्रहण करता है अतः यदि जीव मोक्ष् प्राप्त करना चाहे तो उसे उलटकर उस उद्गम की ओर जाना चाहिए जंहा से माया नि:सृत हुई है।

जब जीव शिव  और शक्ति में निहित था तब वह सच्चिदानंद स्वरूप और अद्वैत की स्थिति में था उससे छूटने के बाद वह द्वैत में आया। अतः संसार में वह कुछ वस्तुओँ को प्रिय और कुछ को अप्रिय समझता है इसी प्रिय और अप्रिय लगने के भाव से विधि और निषेधता के नियम बने हैं जो की बिलकुल कृत्रिम हैं । दरसल संसार का कोई भी कृत करणीय या करणीय नहीं है , मनुष्य के जीवन में कोई भी क्रिया ऐसी नहीं जो पाप या पुण्य का कारण हो ।
वामाचार का की मुख्य धारणा यह है कि कर्म और अकर्म के भेद को कैसे मिटाया जा सकता है , कर्तव्य और अकर्तव्य की भिन्नता को कैसे समाप्त किया जा सकता है । संसार की सभी वस्तुएं शिव और शक्ति में निहित है अतः संसार की कोई वस्तु घृणा योग्य नहीं है , वामाचार में साधना की सच्ची सफलता इस बात पर निर्भर है कि घृणा को कैसे अघृणा में बदल सकें।
स्थूल को भी सूक्ष्म स्तर पर ले जा के उसे आत्मसात कर सकें।

वामाचार के घृणित से अघृणित बनाने की साधना का सबसे बढ़िया नमूना औघड़ पंथ में हुआ , एक अच्छा सिद्ध औघड़ साधक उसे कहा गया जो मल और मिठाई में अंतर न करे। वामाचार की साधना इस बात पर जोर देती है कि संसार से मुक्ति का उपाय उससे भागना नहीं बल्कि उसे सर्वरूप में स्वीकार करना है। जो चीज मनुष्य को नीचे गिराती है वही मनुष्य को ऊपर भी उठाती है जैसे सीढ़ी नीचे उतारती है तो ऊपर भी ले जाती है ऐसा वाम साधना का विश्वास रहा है। शायद इसीलिए वाम मार्ग में पंच मकर साधना का प्रचलन हुआ  , पंच मकर पूजने के कारण वामपंथ को दूषित समझा गया जबकि तंत्रवाद में पंच मकर पूजा का जो अर्थ वह ऐसा नहीं समझा गया ।

पहली सीढ़ी में अवश्य ही मद्य, मांस, मीन, मुद्रा और मैथुन का सेवन या पूजन किन्तु दूसरी सिद्धि की दूसरी सीढ़ी पंच मकर नही है । तीसरी सीढ़ी योग प्रधान है ।दक्षिणपंथी( सनातनी) नेति अर्थात elimination पर विश्वास करते हैं जबकि वाममार्ग उदात्तीकरण अर्थात sublimation की प्रक्रिया में विश्वास करते हैं। जीव जब शिव- शक्ति से विमुक्त होके 'हंस' की स्थिति में है , हंस उलटकर जब तक  संह अर्थात ' सोSहम ' की वृति में नही पहुँच जाता तब तक वह सांसारिक बंधनों से मुक्त नहीं होगा।





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