Saturday, 15 September 2018

जानिए गणपति के मूषक का रहस्य-

  आपने मेरे पहले लेख में पढ़ा कि गणपति के हस्ती मुख होने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? कैसे गुप्त काल मे  गणपति अर्थात गणों( संघ) के नायक का परिवर्तन कर उन्हें देवता बनाया गया । जैसा की बताया गया कि गणपति का हस्ती मुख दरसल उन राजसत्ताओं का प्रतीक था जिनका सम्बन्ध हाथी टोटम से रहा होगा। जैसे कि मतंग सत्ता, खरगेवाल सत्ता आदि

गणपति की मूर्ति का दूसरा अभिन्न अंग होता है मूषक, मूषक को उनकी सवारी के रूप में दर्शाया जाता है। क्या एक चूहा किसी व्यक्ति की सवारी हो सकता है? तो, आईए इस भाग में जाने की दरसल  वह मूषक किसका प्रतीक है।

प्रसिद्ध इतिहासकार केपी जायसवाल (1881-1937) अपनी पुस्तक ' इंडियन हिस्ट्री' में कहते हैं कि" हमे प्राचीन इतिहास में चूहों अथवा मूषकों का भी उल्लेख मिलता है। मूषक वही थे जो प्राम्भिक ग्रीक कथाकारों की कथाओं में मूसिकन कहलाते थे।मूषक और मूसिकन दोनों नामो में काफी समानता है। यदि यह बात सत्य है तो यदि हमें ग्रीक कथाकारों की पर विश्वास करना चाहिए तो हमे यह भी मानना पड़ेगा कि सिकंदर के अभियान के समय ये मूषक एक सामुदायिक जनजातीय जीवन बिता रहे थें।"


अतः ये स्पष्ट है कि हाथियों या मतंगो की भांति इन चूहों या मूषकों का भी टोटमवादी अतीत था ।

जनरल आफ दी बिहार एंड ओरिसा रिसर्च सोसायटी का हवाला देते हुए चट्टोपाध्याय बताते हैं  मूषक लोग दक्षिण भारत के निवासी थें, महाभारत में बताया गया है कि वे  वनवासियों  के साथ रहते थे। निश्चय ही इनका प्रदेश कलिंग से ज्यादा दूर नही रहा होगा क्यों कि नाट्यशास्त्र में ( लगभग 200 ईसापूर्व) में तोमल, कोसल , और मोसल( मूशिका) जनों का उल्लेख है। पुराणों में विंध्य देशों में ' स्त्री राज्य' अर्थात मातृसत्तामक सत्ता का उल्लेख है । याद कीजिये कि अशोक के कलिंग विजय की जो कथा कही जाती है उसमे उसकी भिड़ंत स्त्री सैनिको से होती है, ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब सत्ता या तो मातृसत्तामक हो अथवा सत्ता में स्त्री की महत्वपूर्ण भूमिका रहती हो अतः हम यह कह सकते हैं कि विंध्य राज्यों में स्त्री राज्य के साथ मूषक टोटमवादियों का भी अस्तित्व रहा होगा । यह भी हो सकता है कि दरसल विंध्य के स्त्री राज्यों का टोटम मूषक ही रह हो।

हमे सीधा यह तो पता नही मिलता की मूषकों की राजसत्ता कौन सी थी किन्तु इसके ऐतिहासिक प्रमाण जरूर मिलते हैं कि किसी प्राम्भिक सत्ता ने मूषकों को पराजित अवश्य किया था ,मूषकों के पराजित होने की कथा प्रसिद्ध हस्तिगुफ़ा में कलिंग के राजा खारवेल के शिलालेखों में मिलती है । ये शिलालेख 160 ईसा पूर्व बताए जाते हैं।  जायसवाल जिन्होंने इन शिलालेखों को पढ़ने में अपना पूरा जीवन बिता दिया था बताते हैं कि शिलालेख की चौथी पंक्ति में उल्लेख है कि राजा खारवेल ने मूषिकों को पराजित किया ।

दुखद यह है कि सभी ऐतिहासिक और शोधकार्यो के बाद भी हस्तिगुफ़ा के लेख आज भी पूरी तरह से नही पढ़े गए जिससे हमें मूषिकों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त हो सके। यंहा तक कि यह भी नही पता चला कि उस गुफा के नाम हस्तिगुफ़ा क्यों पड़ा? और हस्ती से उनका किस सत्ता से सम्बन्ध है ।

इस गुफा के निर्माण बौद्ध / जैन धर्मावलंबियों ने बनाया था ।इसका मतलब की गुफा में जो शिलालेखों में मूषिकों की पराजय का विवरण है उनका  गणपति के देवता बनने में कोई न कोई संकेत अवश्य है । जो भी हो पर यह ऐतिहासिक प्रमाण है की प्राचीन भारत मे हस्ती कबीले भी थें और मूषक कबीले भी , हमारे पास हस्ती कबीले विजयी होने और मूषक कबीले के पराजित होने के प्रमाण है इसलिए इतिहाकारों कि धारण है की गणपति की मूर्ति के पीछे किसी हस्ती क़बीले( शायद खारवेल) द्वारा अपना साम्राज्य स्थापित करने का इतिहास छिपा है।

मोरे और डेवी ने मिश्र में जनजातियों से साम्राज्य बनने तक के काल का बहुत गहन शोध कार्य किये थे, उन्होंने मुख्यतया टोटमवादी प्रमाणों के आधार पर सिद्ध किया कि राज्य के उदय का इतिहास देवताओं के उदय का भी इतिहास था।

अतः हम यह कह सकते हैं कि गणपति हस्तिमुख उनके हाथी के टोटम( झंडे) का प्रतीक था और उनके पैरों में पड़ा चूहा पराजित मूषक जनजाति का प्रतीक । एक आश्चर्यजनक चीज और देखने को मिलती है , वह है उड़ीसा के बौद्ध विहारों में जो गणेश की प्रतिमाएं मिलती हैं वे स्त्री काया लिए हुए है ,अर्थात 64 योगनियों में सम्लित हैं। ऐसा कैसे हुआ कि गणेश को स्त्री बना दिया गया ? या कंही वास्तव में गणेश योगनी अर्थात मातृसत्तामक सत्ता का प्रतीक तो नही थे?

इन सवालों का जबाब जानिए मेरे अगले लेख में ...

1 comment:

  1. लाजवाब पोस्ट के साथ सटीक आकलन।

    बेहतरीन जानकारी।

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