इतिहासकारो का मानना है कि लगभग 1700 ईसा पूर्व आर्यो की पहली लहर यूरेशिया ( वर्तमान उज़्बेकिस्तान, ईरान, मीडिया( {फ़ारस} आदि )से और दूसरी ईसा के पहली सदी के आस पास भारत पहुँची । मुख्यत: आर्यो के चारागाह लंबे सूखे के कारण मवेशियों और उनके भरण पोषण के लिए पर्याप्त नही थे अतः देशांतरण उनकी मजबूरी थी ।
इस बात की पुष्टि हित्ती मुहरों पर उत्कीर्ण विशिष्ट कूबड़ वाले भारतीय बैल के चित्र से स्पष्ट हो जाती है। हित्ती भाषा भी मूल रूप से आर्य भाषा ही है , खत्ती शब्द हित्ती का पर्याय है जो संस्कृत में क्षत्रिय बन जाता है और पालि में खत्तिय । सिन्धु सभ्यता को नष्ट करने में लोहे के हथियारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा था , लोहे का ज्ञान हित्तियो द्वारा ही भारत में पहुँचा।
ईरान , मीडिया ,उज्बेकिस्तान के लोग संस्कृत से मिलती जुलती भाषा बोलते थे , जावेस्ता में तो एक चौथाई शब्द संस्कृत के ही जान पड़ते हैं। 1400 ईसा पूर्व के आस पास के मितन्नी अभिलेखों से पता चलता है कि भारतीय आर्य देवताओ की उपासना करने वाले लोग ईरान की उरमिया झील ( उर प्रदेश) के पास बसे हुए थे , संस्कृत ग्रन्थों में उर स्थान का जिक्र बहुत बार आया है। ऋग्वैदिक अप्सरा उर्वशी उर प्रदेश की ही थी। ईरान में इन्द्र, मित्र, वरुण आदि देवताओं की पूजा होती थी परंतु ज़रतुशत/ ज़रदुश्त द्वारा बहिष्कृत करने और फिर नए आश्रय की तलाश में ये वंहा से पलायन कर गयें। बाद में ईरानियों ने मित्र , वरुण , इन्द्र आदि की पूजा बंद कर दी किंतु अग्नि को भारतीय आर्य की तरह पूजते रहें।
ईरानी ग्रन्थो में राजा यम / यिम के 'वर' की जानकारी मिलती है , यह वर ऐसा आयताकार स्थान था जंहा मृत्यु, जाड़े की शीत या पाप घुस नही सकती थी , यह वही स्वर्गलोग था जिसका सीमित वर्णन संकृत ग्रन्थों में आता है । निषेध भंग के कारण दंड की भागी बनी जनता को बचाने के लिए राजा यम ने स्वयं मृत्यु को अपनाया इस प्रकार वह पहला मरने वाला देवता बना। ऋग्वेद में भी वह पहला मरने वाला देवता है आज भी मृत्यु का देवता है , प्राचीन समय मे जब किसी की मृत्यु होती थी तो वह यम की नगरी में ही अपने पूर्वजो से मिलता था। बाद में यम यातनाएं देने वाला नरक का देवता बना दिया गया ।
ग्रन्थो में जिस प्रकार की वर/ यमलोक की जानकारी मिलती है ठीक उसी प्रकार की लंबाई चौड़ाई के आयताकार बाड़े को सोवियत पुरातत्व विद्वानों ने उज्बेकिस्तान में खोज निकाले हैं, इस 'वर/ यम लोक ' का जिक्र आचार्य चतुरसेन जी ने भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ' वयं रक्षाम: में किया है। वर में पत्थर की दीवारों से बने छोटे छोटे कमरे बने हुए थे जिनमें वे संकट के समय रहते थे और बीच की खुली जगह में अपने पशुओं को बांध देते थे। यम और उसका वर/यमलोक( अधिकार क्षेत्र) एक सत्यता थी जिसकी यादे आर्य अपने साथ भारत लाएं।
यही 'वर/ यमलोक' बाद में यूनानी आख्यानों में औजियन ( गंदगी से भरा) की अश्वशाला के रूप में वर्णित हुआ जिसे यूनानी देवता हेराक्लीज ने साफ किया ।
इस बात की पुष्टि हित्ती मुहरों पर उत्कीर्ण विशिष्ट कूबड़ वाले भारतीय बैल के चित्र से स्पष्ट हो जाती है। हित्ती भाषा भी मूल रूप से आर्य भाषा ही है , खत्ती शब्द हित्ती का पर्याय है जो संस्कृत में क्षत्रिय बन जाता है और पालि में खत्तिय । सिन्धु सभ्यता को नष्ट करने में लोहे के हथियारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा था , लोहे का ज्ञान हित्तियो द्वारा ही भारत में पहुँचा।
ईरान , मीडिया ,उज्बेकिस्तान के लोग संस्कृत से मिलती जुलती भाषा बोलते थे , जावेस्ता में तो एक चौथाई शब्द संस्कृत के ही जान पड़ते हैं। 1400 ईसा पूर्व के आस पास के मितन्नी अभिलेखों से पता चलता है कि भारतीय आर्य देवताओ की उपासना करने वाले लोग ईरान की उरमिया झील ( उर प्रदेश) के पास बसे हुए थे , संस्कृत ग्रन्थों में उर स्थान का जिक्र बहुत बार आया है। ऋग्वैदिक अप्सरा उर्वशी उर प्रदेश की ही थी। ईरान में इन्द्र, मित्र, वरुण आदि देवताओं की पूजा होती थी परंतु ज़रतुशत/ ज़रदुश्त द्वारा बहिष्कृत करने और फिर नए आश्रय की तलाश में ये वंहा से पलायन कर गयें। बाद में ईरानियों ने मित्र , वरुण , इन्द्र आदि की पूजा बंद कर दी किंतु अग्नि को भारतीय आर्य की तरह पूजते रहें।
ईरानी ग्रन्थो में राजा यम / यिम के 'वर' की जानकारी मिलती है , यह वर ऐसा आयताकार स्थान था जंहा मृत्यु, जाड़े की शीत या पाप घुस नही सकती थी , यह वही स्वर्गलोग था जिसका सीमित वर्णन संकृत ग्रन्थों में आता है । निषेध भंग के कारण दंड की भागी बनी जनता को बचाने के लिए राजा यम ने स्वयं मृत्यु को अपनाया इस प्रकार वह पहला मरने वाला देवता बना। ऋग्वेद में भी वह पहला मरने वाला देवता है आज भी मृत्यु का देवता है , प्राचीन समय मे जब किसी की मृत्यु होती थी तो वह यम की नगरी में ही अपने पूर्वजो से मिलता था। बाद में यम यातनाएं देने वाला नरक का देवता बना दिया गया ।
ग्रन्थो में जिस प्रकार की वर/ यमलोक की जानकारी मिलती है ठीक उसी प्रकार की लंबाई चौड़ाई के आयताकार बाड़े को सोवियत पुरातत्व विद्वानों ने उज्बेकिस्तान में खोज निकाले हैं, इस 'वर/ यम लोक ' का जिक्र आचार्य चतुरसेन जी ने भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ' वयं रक्षाम: में किया है। वर में पत्थर की दीवारों से बने छोटे छोटे कमरे बने हुए थे जिनमें वे संकट के समय रहते थे और बीच की खुली जगह में अपने पशुओं को बांध देते थे। यम और उसका वर/यमलोक( अधिकार क्षेत्र) एक सत्यता थी जिसकी यादे आर्य अपने साथ भारत लाएं।
यही 'वर/ यमलोक' बाद में यूनानी आख्यानों में औजियन ( गंदगी से भरा) की अश्वशाला के रूप में वर्णित हुआ जिसे यूनानी देवता हेराक्लीज ने साफ किया ।
रोचक जानकारी
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