Thursday, 5 January 2017

जानिए क्या है महिलाओं से अभद्रता का कारण ?


आने कई बार बच्चो के व्यवहार को नोटिस किया होगा की जिस काम को मना करो बच्चे उसी काम को करने के लिए लालायित रहते हैं।

जैसे यदि उन्हें कहो की मिट्टी में मत खेलो तो वे मिट्टी में ही खेलने की कोशिश करेंगे,अमुक चीज मत खाओ तो उनकी कोशिश रहेगी की नजर बचा के उस चीज को खा लें ।
कहने का अर्थ है कि जिस कार्य के लिए उन्हें डांटा जाता है वे जिज्ञासावश उसी काम को करने की कोशिश करते हैं।वे उत्सुकता से उस काम को कर अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करते हैं जिस काम के लिए बड़े उन्हें मना करते हैं।

मैं एक सरकारी विद्यालय में पढ़ा हुआ हूँ ,जंहा दो पालियों में पढाई होती थी ।सुबह की पाली में लड़कियां और दोपहर की पाली में लड़के ।
जब लड़कियों का विद्यालय का समय समाप्त होता तो उसके बाद लड़को की कक्षाएं लगती ।
लड़के और लड़कियों का आपस में बात करना तो बहुत दूर एक दूसरे से  मिलना भी नहीं होता था ।

बहुत से लड़के जो मिडिल की कक्षाओं में प्रवेश कर चुके थे वे लड़कियों के प्रति आकर्षित थे  ।लड़कियों से बात करने के लिए उत्सुक होते , उनसे बात करने की यत्न करते जिसके लिए वे लड़कियों की छुट्टी होने से पहले ही विद्यालय के गेट के आस पास खड़े हो जाते थे ।

बचपन से ही लड़कियों से दूर रहने के कारण उन लड़कों में लड़कियों के प्रति एक अलग सी उत्सुकता और जिज्ञासा पनप गई थी, लड़कियां जैसे उनके लिए दूसरे ग्रह से आई हों ।वे लड़कियों से बात करने , उन्हें देखने -छूने और मित्रता करने के लिए बहुत हद तक विक्षिप्त से रहते ।

कई बार उन लड़कों की यह विक्षिप्तता छेड़खानी के रूप में उभर के आती थी , लड़कियों की स्कर्ट उठा के भाग जाना उनके लिए आम बात होती  ।
निश्चित  ही उनकी वह हरकते उन्हें मानसिक सुख देती थी की इस बहाने उन्होंने लड़कियों को छुआ तो ।

किन्तु जब मैं को-एड प्राइवेट विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों को देखता या मिलता तो उनमें लड़कियों के प्रति यह उत्सुकता बहुत कम मिलती । वे सहज रहते लड़कियों को लेके ,उनमे वैसी विक्षिप्तता न के बराबर ही मिलती जो सरकारी विद्यालय में लड़कियों से अलग पढ़ने वाले बहुत से छात्रों में मिलती ।


दो दिन पहले मैं आगरा ताज़महल देखने गया , वंहा भारतीय लोगो के अलावा अच्छी खासी भीड़ विदेसी  सैलानियों की थी ।
उन विदेशी  सैलानियों में दो बेहद खूसूरत लड़कियां थी जो ताजमहल के अंदर अपना फोटो शूट कर रहीं थी ।
एक लड़की ने स्कार्ट पहनी हुई थी जो कमर से थोड़ी नीचे थी, टॉप भी छोटा सा पहना था ।कुल मिला के पेट और कमर का पूरा हिस्सा दिख रहा था ।
लडकिया अपने में मग्न फोटो शूट कर रहीं थी ,विदेशी सैलानी उन पर जरा सा भी नजर नहीं डाल रहे थे किंतु भारती पुरुषो के लिए यह किसी अजूबे से कम नहीं था ।
अधितर लोगो की नज़रे लड़की की कमर पर टिकी हुई थी ,लड़के तो खड़े होके निहारने लगे उनका वश चलता तो जरूर उस लड़की को छू के देखते।

कुछ देर के लिए भीड़ सी एकत्रित हो गई ,आखिर  लडकिया असहज हो के वँहा से चली ही गईं।

अभी हाल में हुई बेंगलुरु की घटना चर्चा में है ,बैंगलुरु जैसी घटनाएं भारत के हर गली मोहल्ले में लगभग रोज ही घटित होती हैं।
हर घटना के प्रकाश में आने के बाद सरकारे और जनता कड़े कानून की बात करती हैं किन्तु ऐसी घटनाएं न रुकी है न रुकेंगी क्यों की हम जड़ तक पहुँच ही नहीं पा रहे हैं इन घटनाओं के पीछे की मानसिकता को ।

हमारी शिक्षा प्रणाली और सामाजिक परिवेश ऐसा है कि हम लड़को के लिए लड़कियों को किसी अजूबे से कम नहीं बना देते हैं,आपस में बात करने से लेके साथ पढ़ने तक पर ढेरो पाबंदी लग जाती है ।

जैसा मैंने ऊपर बच्चो वाला उदहारण दिया है कि जिस चीज को मना करो बच्चो में उसके प्रति उत्सुकता बढ़ती जाती है , यही हाल यंहा भी है उत्सुकता धीरे धीरे समय के अनुसार विक्षिप्तता में बदलती जाती है फिर उस विक्षिप्त के सामने चाहे कम कपडे वाली महिला हो या बुर्के में उससे कोई  फर्क नहीं पड़ता उस पर ।



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