बुद्ध के बारे में यह भ्रंति फैली हुई है की बुद्ध शव को देख दुखो से घबरा के अपनी पत्नी और पुत्र को छोड़ के घर से भाग गए थे ? पर ,यह केवल मिथ्या बात है इसमें सच्चाई नहीं ।
बुद्ध का नाम गोतम (जिसका अर्थ होता है बेल )था और वे सक्क ( संकृत में शाक्य) जनजाति से थे । गोतम का जन्म भी सक्को के टोटम पांच पेड़ो(साल) के झुरमुट के नीचे हुआ था, ये साल के झुरमुट उनकी मातृदेवी लुम्बनी को समर्पित थें ।शायद इसी कारण उनका नाम गोतम अर्थात बेल (लता) रखा गया था। गोतम का संस्कृत का सिद्धार्थ नाम बहुत बाद में दिया गया है, जब अश्वघोष जैसे ब्राह्मणो ने बौद्ध धर्म अपना के पालि साहित्यों को संकृत में अनुवाद करना शुरू कर दिया था ।
गोतम के पिता सक्क ( सक्क का अर्थ है साग- सब्जी सम्बन्धी) गणराज्य के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके थे , खेती करते थे ,हल चलाते थें( देखें डी डी कोसंबी की पुस्तक प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता )।
। शाक्य गणराज में शाक्यों का अपना एक संघ था और राज्य के सभी फैंसले यह संघ ही करता था । संघ का नियम था की गण राज्य के प्रत्येक युवक को 20 साल का होने पर संघ का सदस्य बनना पड़ता था । अत: सिद्धार्थ को भी 20 साल का होने पर सदस्य बनाया गया । सिद्दार्थ 8 साल तक संघ के सक्रीय सदस्य रहें ।
शाक्य गणराज के पूर्व में कौलिय गणराज्य था और रोहिणी नदी दोनों राज्यो की विभाजक रेखा थी , अक्सर नदी के पानी को लेके दोनों राज्यो में झड़प होती रहती थी ।
परन्तु एक बार पानी को लेके शाक्यों और कोलिय किसनो में गंभीर झड़प हुई , बात युद्ध तक अ पहुची । शाक्य सेनापति ने कौलियो के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के लिए संघ की अनुमति प्राप्त करने के लिए सभा बुलाई । सभा में युद्ध करने का प्रस्ताव पारित हो गया , अंत में सेनापति ने सभी सदस्यों से एक बार फिर पूछा की युद्ध से किसी को आपत्ति तो नहीं है ?
इस पर गोतम ने खड़े होके युद्ध पर आपत्ति करते हुए कहा की यह मामला बैठ के भी सुलझाया जा सकता है , युद्ध से युद्ध के बीज बो उठते है और स्थाई हल नहीं निकलता ।
गोतम ने कहा कीकौलिय हमारे पडोसी है और झगडे का सही कारण पता कर उसका निवारण किया जाए इसके लिए पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाई जाये जो दोनों पक्षो के मसलो को शांति पूर्वक हल करे।
इस तरह गोतम के विरोध करने पर सभा अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दी गई ।
अगले दिन सेनापति ने अनिवार्य सैनिक भर्ती का प्रस्ताव रखा , गोतमने उसका विरोध किया और कहा की न वे अनिवार्य सैनिक बनेंगे और न ही युद्ध में भाग लेंगे ।
इस पर संघ ने गोतम पर तीन दण्डो का प्रवधान रखा
1- फांसी
2- देश निकाला परिव्राजकके रूप में
3- परिवार के लोगो का सामाजिक बहिस्कार तथा सम्पति जब्त
तब गोतम ने संघ से प्रार्थना की कि कृपया परिवार का सामजिक बहिस्कार न करें और न ही उनकी सम्पति छीने , अपराधी मैं हूँ इसलिए चाहे मुझे देश निकाला दे दें या फांसी पर चढ़ा दें ।
उनकी इस बात पर संघ में काफी विचार विमर्श हुआ , अत: यह निर्णय लिया गया की गोतम को परिव्राजक के रूप में देश निकाला दे दिया जाए ।
घर आके गोतम ने यह बात अपने परिवार वालो को बताइये तो वे बहुत दुखी हुए,पत्नी कच्चाना ( बाद में संस्कृत में यशोदा/ यशोदरा)साथ आना चाहती थी पर गोतम ने समझाया की यह संघ की निति के विरुद्ध है और उन्हें अकेले ही देश छोड़ना होगा । अंत में गोतम अपनी पत्नी कच्चना और परिवार वालो को समझाने में सफल हो जाते हैं ।
उसके बाद कपिलवस्तु में उनका प्रब्रज्य संस्कार के बाद गोतम ने अपनी यात्रा आरम्भ की और अनोमा नदी की ओर चल पड़े( अनोमा नदी जिसे वर्तमान में आमी नदी कहा जाता है वह मेरे गांव से मुश्किल से 15 किलो मीटर की दूरी पर है) ।
और.... वंहा से शुरू हुआ गोतम के बुद्ध बनने सफर।
अपने पिता की मृत्यु पर बुद्ध कपिलवस्तु वापस लौटे , उसके बाद उनकी माता और पत्नी कच्चना भी बौद्ध संघ में शामिल हुईं और भिक्षुणी बनी। थेरी गाथाओं में लगभग 75 भिक्षुणीयो का उल्लेख है जिसमें कच्चाना और रुक्मिन देइ (संस्कृत में महामाया किया गया) शामिल है ।
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