वाल्मीकि रामायण में जब हमुमान लंका में सीता जी की खोज करते हुए जाते हैं तो वो लंका का वैभव देख आश्चर्य करते हुए कहते हैं -
स्वर्गोस्य देवलोकाsयमिन्द्रस्येयं पूरी भवते ( वाल्मीकि रामायण, सुंदर कांड ,सर्ग -9 श्लोक 31)
हमुमान लंका को स्वर्ग के समान कहते ,इंद्रलोक के जैसा वैभवशाली कह आश्चर्यचकित हो उठते हैं।
अब जानिए की लंका इंद्रलोक या स्वर्ग की तरह वैभवशाली क्यों थी। वाल्मीकि रामायण फिर कहती है -
' भूमिगृहांशचैत्यगृहान उत्पतन निपतंश्चापि'( सुंदर कांड , सर्ग 12, श्लोक 15
अर्थात हनुमान भूमिगृहों और चैत्यों पर उछलते कूदते हुए जाते हैं ।
चैत्य शब्द वाल्मीकि रामायण में बहुत बार आया है , अयोध्याकाण्ड में ही कम से कम तीन बार आ गया है।
अब जानिए चैत्य शब्द का अर्थ-
चैत्य- बुद्ध मंदिर ( संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ पेज 440)
चैत्य- चैत्यमायतने बुद्ध बिम्बे( मेडिनिकोष)
अर्थात चैत्य ,बौद्ध मंदिर को कहते हैं।
कहने का अर्थ हुआ की लंका निश्चय ही बौद्ध नगरी रही होगी जंहा बौद्ध चैत्य बहुतायत थे ।
इसके अलावा , अयोध्या कांड सर्ग 109 के 34 वें श्लोक में कहा गया है-
'यथा हि चोरः स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि।
तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानां स नास्तिके नाभिमुखो बुधः स्यात् '
जिसका अर्थ गीता प्रेस की वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार दिया है- जिस प्रकार चोर दंडनीय होता है उसी प्रकार वेदविरोधी बुद्ध( बौद्ध मतावलंबी ) भी।
इसके अलावा 15 वीं शताब्दी के गोविंराजकृत व्याख्या में इस श्लोक में आये शब्द 'तथागत ' की व्याख्या करते हुए कहते हैं ' तथागत बुद्धतुल्यम'
अर्थात तथागत का अर्थ बुद्ध जैसा ।
सुरेंद्र कुमार शर्मा (अज्ञात) पुरातत्व वैज्ञानिक ई.बी. कॉडवेल का हवाला देके बताते हैं कि सुंदर कांड ,सर्ग 9 से 13 तक में रावण के अंतःपुर के रात्रिकालीन दृश्य का चित्रण है ,जो अश्वघोष रचित ' बुद्धचरितम( 5/57-61) के गोतम के अंत पुर के दृश्य का अनुकरण है जो की बुद्ध आख्यान का आवश्यक अंग है जबकि वाल्मीकि रामायण का अनावश्यक ।
रामायण में छेद वाली कुल्हाड़ी का जिक्र है, प्रसिद्ध पुरातत्व वैज्ञानिक डाक्टर हँसमुख धीरजलाल सांकलिया ने निष्कर्ष निकाला है कि ईसा पूर्व 300 से 500 से पहले भारत में छेद वाली कुल्हाड़ी का प्रयोग नहीं होता था।
तो, क्या हम यह कह सकते हैं कि रावण दरसल बौद्ध अनुयायी था ? और रामायण की रचना बुद्ध के बहुत बाद की है? शायद पहली ईसा से कुछ पहले या बाद की ?
स्वर्गोस्य देवलोकाsयमिन्द्रस्येयं पूरी भवते ( वाल्मीकि रामायण, सुंदर कांड ,सर्ग -9 श्लोक 31)
हमुमान लंका को स्वर्ग के समान कहते ,इंद्रलोक के जैसा वैभवशाली कह आश्चर्यचकित हो उठते हैं।
अब जानिए की लंका इंद्रलोक या स्वर्ग की तरह वैभवशाली क्यों थी। वाल्मीकि रामायण फिर कहती है -
' भूमिगृहांशचैत्यगृहान उत्पतन निपतंश्चापि'( सुंदर कांड , सर्ग 12, श्लोक 15
अर्थात हनुमान भूमिगृहों और चैत्यों पर उछलते कूदते हुए जाते हैं ।
चैत्य शब्द वाल्मीकि रामायण में बहुत बार आया है , अयोध्याकाण्ड में ही कम से कम तीन बार आ गया है।
अब जानिए चैत्य शब्द का अर्थ-
चैत्य- बुद्ध मंदिर ( संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ पेज 440)
चैत्य- चैत्यमायतने बुद्ध बिम्बे( मेडिनिकोष)
अर्थात चैत्य ,बौद्ध मंदिर को कहते हैं।
कहने का अर्थ हुआ की लंका निश्चय ही बौद्ध नगरी रही होगी जंहा बौद्ध चैत्य बहुतायत थे ।
इसके अलावा , अयोध्या कांड सर्ग 109 के 34 वें श्लोक में कहा गया है-
'यथा हि चोरः स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि।
तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानां स नास्तिके नाभिमुखो बुधः स्यात् '
जिसका अर्थ गीता प्रेस की वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार दिया है- जिस प्रकार चोर दंडनीय होता है उसी प्रकार वेदविरोधी बुद्ध( बौद्ध मतावलंबी ) भी।
इसके अलावा 15 वीं शताब्दी के गोविंराजकृत व्याख्या में इस श्लोक में आये शब्द 'तथागत ' की व्याख्या करते हुए कहते हैं ' तथागत बुद्धतुल्यम'
अर्थात तथागत का अर्थ बुद्ध जैसा ।
सुरेंद्र कुमार शर्मा (अज्ञात) पुरातत्व वैज्ञानिक ई.बी. कॉडवेल का हवाला देके बताते हैं कि सुंदर कांड ,सर्ग 9 से 13 तक में रावण के अंतःपुर के रात्रिकालीन दृश्य का चित्रण है ,जो अश्वघोष रचित ' बुद्धचरितम( 5/57-61) के गोतम के अंत पुर के दृश्य का अनुकरण है जो की बुद्ध आख्यान का आवश्यक अंग है जबकि वाल्मीकि रामायण का अनावश्यक ।
रामायण में छेद वाली कुल्हाड़ी का जिक्र है, प्रसिद्ध पुरातत्व वैज्ञानिक डाक्टर हँसमुख धीरजलाल सांकलिया ने निष्कर्ष निकाला है कि ईसा पूर्व 300 से 500 से पहले भारत में छेद वाली कुल्हाड़ी का प्रयोग नहीं होता था।
तो, क्या हम यह कह सकते हैं कि रावण दरसल बौद्ध अनुयायी था ? और रामायण की रचना बुद्ध के बहुत बाद की है? शायद पहली ईसा से कुछ पहले या बाद की ?
can you give word to word translation of this verse?
ReplyDeleteवाल्मीकि कृत रामायण अयोध्या कांड सर्ग109 श्लोक 33 व श्लोक 34 का सही भावार्थ ये है
ReplyDeleteजाबालि को भगवान् श्रीराम श्लोक 33 में उसके नास्तिक विचारों के कारण विषमस्थबुद्धिम् एवं अनय बुद्धया शब्दों से वाचित किया है। विषमस्थबुद्धिम् माने वेद मार्ग से भ्रष्ट नास्तिक बुद्धि एवं अनय बुद्धया (अ-नय) माने कुत्सित बुद्धि। श्लोक 33 का अन्वय इस प्रकार होगा –
अहं निन्दामि तत् कर्म कृतम् पितुः त्वाम् आगृह्णात् यः विषमस्थ बुद्धिम् चरन्तं अनय एवं विधया बुद्धया सुनास्तिकम् अपेतं धर्म पथात्
हे जबालि! मै अपने पिता के इस कार्य की निन्दा करता हूँ कि उन्होंने तुम्हारे जैसे वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को अपने यहाँ रखा।
ठीक इसी प्रसंग को आगे बढाते हुए भगवान् श्रीराम कहते हैं कि जाबालि के समान वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को सभा में रखना तो दूर की बात राजा को ऐसे व्यक्ति को एक चोर के समान दण्ड देना चाहिये।
अब गौतम बुद्ध यहाँ कहाँ से आ गए
श्लोक 34 में बुद्धस्तथागतं में विसर्ग सन्धि है जिसका विच्छेद करने पर बुद्धः + तथागतः एवं इसके बाद शब्द आया है नास्तिकमत्र जिसमें दो शब्द हैं नास्तिकम् + अत्र, इसके बाद आया है विद्धि। इसका अन्वय हुआ – विद्धि नास्तिकम अत्र तथागतम्। अर्थात् नास्तिक (atheist) को केवलमात्र जो बुद्धिजीवी (mere intellectual) है उसके समान (equal) मानना चाहिए। इसके पहले की पंक्ति का अन्वय हुआ – यथा हि तथा हि सः बुद्धाः चोरः – अर्थात् केवलमात्र जो बुद्धिजीवी है उसको चोर के समान मानना चाहिए और दण्डित करना चहिए।
अन्त में गौतम बुद्ध की चोर के साथ उपमा देना यह अनुवाद केवल गलत है।
यहा ये कहा जाए कि बुद्ध का अर्थ तो बुद्धिजीवी है तो फिर बुद्धिजीवी को चोर समान क्यों बताया है ? तो इसका उत्तर है कि अर्थ यथा प्रकरण अनुसार विचार करना चाहिए | यहा नास्तिक बुद्धिजीवी के लिए है न कि सभी बुद्धिजीवो के लिए इसका निर्देश पूर्व श्लोक ३३ में बताया है जहा जाबालि के लिए - " विषमस्थबुद्धिम् बुद्ध्यानयेवंविधया " शब्द से वेद मार्ग भ्रष्ट ,विषम बुद्धि वाला कहा गया है अत: ३४ वे श्लोक में आया बुद्ध शब्द का सम्पूर्ण तात्पर्य होगा - विषम बुद्धि वाला ,वेद विरोधी ,कुत्सित बुद्धि वाला बुद्धिजीवी अर्थात ऐसा व्यक्ति जो अपनी तर्क शक्ति का प्रयोग कुत्सित कार्यो में करता है |
श्लोक कर्ता ने पूर्व में जिस बुद्ध अर्थात बुद्धिजीवी को सम्बोधित किया है उसके ;लक्षण बता दिए है फिर अगले श्लोक में छंद और पुनरुक्ति आदि कारण विचार कर यही लक्षणों का उल्लेख नही किया इसलिए पूर्व श्लोकानुसार यहा बुद्ध का तात्पर्य लेना चाहिए जो कि गौतम बुद्ध में घटित नही होता है | यहा बुद्ध शब्द देख गौतम बुद्ध अर्थ लेना मुर्खता ही है ।
मित्रों ऐसे आरोप लगाने वाले अल्पज्ञानियो की बातों में ना आये ये बुद्धिहीन है।
और आपको भी बुद्धिहीन बनाना चाहते है।
कल को ये लोग यह भी कहेंगे की हनुमान चालीसा में भी रावण अजान करता था,
"रावण जुद्ध अजान कियो तब" ऐसे लोगो की मती सच में मारी गयी है,
ram ne sambuk rishi ko kyon mara?kya yo sudra hai isliye
DeleteSach ko tum nahi juthla sakte chor ho app log..budh ke bahut baad me ramayan likhi gai.jo likha gaya uske uper safai mat do..kabi live news channels per Live debate karo aur b saboot de denge.Ram ek hunkeri khooni raja tha jisne Rishi Sambuk ko is liye mar diya tha kiu vo shudar tha aur bhagwan ki pooja bhakti karta tha..
Deleteआप का ह्रदय से आभार श्लोक का वास्तविक अर्थ समझने के लिए
Deletealpgyani hain ye log kuchh bhi arth nikal lete hain, chalo kam sekam isi bahane ramayan bhi padh lete hain, bhagwan inko sadbuddhi de.
Deleteआपने दिल जीत लिया राहुल जी। 🙏
Deleteउत्तर रामायण के अनुसार जब किसी ब्राह्मण का लड़का मर गया तब वह ब्राह्मण अपने मरे हुए बेटे को ले कर श्री राम के दरबार मे गया! वहाँ जा कर वह ब्राह्मण श्री राम के सामने विलाप करने लगा! जिससे श्री राम का मन व्याकुल हो गया! और उस ब्राह्मण के बेटे के मरने का कारण जानने के लिए उन्होंने स्वर्ग से देवी ऋषि नारदजी को बुलाया! जिस पर नाराजगी बोले कि जंगल मे एक शूद्र तपस्या कर रहा है! जिसकी वजह से ये ब्राह्मण बालक मर गया! और इसी के चलते श्री राम ने शंबूक की हत्या कर दी!
Deleteये कथा है उत्तर रामायण की...
लेकिन जिसने भी ये कथा लिखी है! वो इतना बड़ा मुर्ख होगा जो एक झूठ भी ठीक से नहीं लिख पाया! और इस झूठ पर यकीन करने वाले भी इतने बड़े गधे है! जो ये नही सोच सकते है कि शंबूक के तपस्या करने से सिर्फ एक ब्राह्मण बालक क्यों मर गया? सभी ब्राह्मण के बालकों को मर जाना चाहिए था!
सही बात है गधों की फौज को समझाना मुश्किल ही नहीं नामकुम भी है!
Adha padhe hue log adhuri jankari hi rakhte he Jo buddhi ko Buddha mante he Buddha khud hi Sri Ram ke putra khush ke vansh me janme to fir ram ji ke samay kese ho gae Thoda padho adha gyan desh barbaad kar deta he apne to arth ka anarth kar diya
ReplyDeleteब्राह्मण पुत्र की मृत्यु।।
ReplyDeleteउत्तर कांड।।
एक दिन श्रीराम अपने दरबार में बैठे थे तभी एक बूढ़ा ब्राह्मण अपने मरे हुये पुत्र का शव लेकर राजद्वार पर आया और ‘हा पुत्र!’ ‘हा पुत्र!’ कहकर विलाप करते हुये कहने लगा, “मैंने पूर्वजन्म में कौन से पाप किये थे जिससे मुझे अपनी आँखों से अपने इकलौते पुत्र की मृत्यु देखनी पड़ी। केवल तेरह वर्ष दस महीने और बीस दिन की आयु में ही तू मुझे छोड़कर सिधार गया। मैंने इस जन्म में कोई पाप या मिथ्या-भाषण भी नहीं किया। फिर तेरी अकाल मृत्यु क्यों हुई? इस राज्य में ऐसी दुर्घटना पहले कभी नहीं हुई। निःसन्देह यह श्रीराम के ही किसी दुष्कर्म का फल है। उनके राज्य में ऐसी दुर्घटना घटी है। यदि श्रीराम ने तुझे जीवित नहीं किया तो हम स्त्री-पुरुष यहीं राजद्वार पर भूखे-प्यासे रहकर अपने प्राण त्याग देंगे। श्रीराम! फिर तुम इस ब्रह्महत्या का पाप लेकर सुखी रहना। राजा के दोष से जब प्रजा का विधिवत पालन नहीं होता तभी प्रजा को ऐसी विपत्तियों का सामना करना पड़ता है। इससे स्पष्ट है कि राजा से ही कहीं कोई अपराध हुआ है।” इस प्रकार की बातें करता हुआ वह विलाप करने लगा।
जब श्रीरामचन्द्रजी इस विषय पर मनन कर रहे थे तभी वसिष्ठजी आठ ऋषि-मुनियों के साथ दरबार में पधारे। उनमें नारद जी भी थे। श्री राम ने जब यह समस्या उनके सम्मुख रखी तो नारद जी बोले, “राजन्! जिस कारण से इस बालक की अकाल मृत्यु हुई वह मैं आपको बताता हूँ। सतयुग में केवल ब्राह्मण ही तपस्या किया करते थे। फिर त्रेता के आरम्भ में क्षत्रियों को भी तपस्या का अधिकार मिल गया। अन्य वर्णों का तपस्या में रत होना अधर्म है। हे राजन्! निश्चय ही आपके राज्य में कोई शूद्र वर्ण का मनुष्य तपस्या कर रहा है, उसी से इस बालक की मृत्यु हुई है। इसलिये आप खोज कराइये कि आपके राज्य में कोई व्यक्ति कर्तव्यों की सीमा का उल्लंघन तो नहीं कर रहा। इस बीच ब्राह्मण के इस बालक को सुरक्षित रखने की व्यवस्था कराइये।”
नारदजी की बात सुनकर उन्होंने ऐसा ही किया। एक ओर सेवकों को इस बात का पता लगाने के लिये भेजा कि कोई अवांछित व्यक्ति ऐसा कार्य तो नहीं कर रहा जो उसे नहीं करना चाहिये। दूसरी ओर विप्र पुत्र के शरीर की सुरक्षा का प्रबन्ध कराया। वे स्वयं भी पुष्पक विमान में बैठकर ऐसे व्यक्ति की खोज में निकल पड़े। पुष्पक उन्हें दक्षिण दिशा में स्थित शैवाल पर्वत पर बने एक सरोवर पर ले गया जहाँ एक तपस्वी नीचे की ओर मुख करके उल्टा लटका हुआ भयंकर तपस्या कर रहा था। उसकी यह विकट तपस्या देख कर उन्होंने पूछा, “हे तपस्वी! तुम कौन हो? किस वर्ण के हो और यह भयंकर तपस्या क्यों कर रहे हो?”
यह सुनकर वह तपस्वी बोले, “महात्मन्! मैं शूद्र योनि से उत्पन्न हूँ और सशरीर स्वर्ग जाने के लिये यह उग्र तपस्या कर रहा हूँ। मेरा नाम शम्बूक है।” शम्बूक की बात सुकर रामचन्द्र ने म्यान से तलवार निकालकर उसका सिर काट डाला। जब इन्द्र आदि देवताओं ने वहाँ आकर उनकी प्रशंसा की तो श्रीराम बोले, “यदि आप मेरे कार्य को उचित समझते हैं तो उस ब्राह्मण के मृतक पुत्र को जीवित कर दीजिये।” राम के अनुरोध को स्वीकार कर इन्द्र ने विप्र पुत्र को तत्काल जीवित कर दिया।
अब इसे हो सकता है मिलावटी कहा जायेगा।।।
Ek gareeb bhakti karne vale ko maar kar Hunkari khooni Ram raja apni power ka istemal karke kiya sabat karna chahta tha.Khooni hunkari isme koi power nahi thi just ek raja tha.
Deleteपहले तो तुम ये बताओ कि शूद्र कौन है और शूद्र का सही अर्थ क्या है? और शंबूक की तपस्या की वजह से एक ब्राह्मण बालक ही क्यों मरता है? उस हिसाब से तो सभी ब्राह्मणों के बालकों को मर जाना चाहिए था?
Deleteइस संसार मे राम सत्य हैं किसी संस्कृति शब्द के अर्थ का अनर्थ निकलना गलत बात है
ReplyDeleteअगर राम का नाम सत्य होता तो उसका प्रचार करने की क्या जरूरत है।प्रचार उस बात का किया जाता है जिसको प्रत्येक जन मानस के दिमाग में भरना होता है।क्योंकि झूठ की एक प्रकृति है।वो एक बार में दिमाग में नही बैठती,उसको बार बार बोलना पड़ता है।इसलिए हमारे झूठेश्वर कहते हैं की झूठ बोलो,और बोलो,जितनी बार बोल सको उतनी बार बोलो झूठ बोलो झूठ बोलो झूठ बोलो
Deleteयह एक जातिवाद को पुनर्स्थापित करने का गहरा खड्यंत्र है..इसकी जितनी भी भर्त्सना की जाय कम है..
ReplyDelete-निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद ,7-8-2020
Bilkul theek bola ye chor log hi hai..
ReplyDeleteआरोप क्या है?
ReplyDeleteरामायण तथागत बुद्ध के बाद लिखी हुई एक कहानी है!....
कैसे आरोप ?? ....
यथा हि चोरः स तथा ही बुद्ध स्तथागतं नास्तीक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तीके नाभि मुखो बुद्धः स्यातम् -अयोध्याकांड सर्ग 110 श्लोक 34
“जैसे चोर दंडनीय होता है इसी प्रकार बुद्ध भी दंडनीय है तथागत और नास्तिक (चार्वाक) को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए. इसलिए नास्तिक को दंड दिलाया जा सके तो उसे चोर के समान दंड दिलाया ही जाय. परन्तु जो वश के बाहर हो उस नास्तिक से ब्राह्मण कभी वार्तालाप ना करे! (श्लोक 34, सर्ग 109, वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड.)”
👆👆👆.......
इस श्लोक में बुद्ध-तथागत का उल्लेख होना हैरान करता है और इसके आधार पर मैं इस तर्क को अकाट्य मानता हूँ कि बुद्ध पहले हुए और रामायण की रचना बाद में की गई.
उत्तर - यह जो प्रसंग चल रहा है इसमें यदि हम इस श्लोक से पहले के श्लोक की ओर देखें तो बुद्ध शब्द का प्रयोग किया गया है जो कि स्पष्ट रूप से गौतम बुद्ध के लिये नही है। इसी श्लोक की कड़ी में 34 नम्बर श्लोक आता है और इसमें बुद्ध शब्द का फिर से उपयोग किया गया है ठीक उसी सन्दर्भ में जिसमें पिछले श्लोक में बुद्ध शब्द का प्रयोग आया है।
जाबालि को भगवान् श्रीराम श्लोक 33 में उसके नास्तिक विचारों के कारण विषमस्थबुद्धिम् एवं अनय बुद्धया शब्दों से वाचित किया है। विषमस्थबुद्धिम् माने वेद मार्ग से भ्रष्ट नास्तिक बुद्धि एवं अनय बुद्धया (अ-नय) माने कुत्सित बुद्धि। श्लोक 33 का अन्वय इस प्रकार होगा –
अहं निन्दामि तत् कर्म कृतम् पितुः त्वाम् आगृह्णात् यः विषमस्थ बुद्धिम् चरन्तं अनय एवं विधया बुद्धया सुनास्तिकम् अपेतं धर्म पथात्
हे जबालि! मै अपने पिता के इस कार्य की निन्दा करता हूँ कि उन्होंने तुम्हारे जैसे वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को अपने यहाँ रखा।
ठीक इसी प्रसंग को आगे बढाते हुए भगवान् श्रीराम कहते हैं कि जाबालि के समान वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को सभा में रखना तो दूर की बात राजा को ऐसे व्यक्ति को एक चोर के समान दण्ड देना चाहिये।
अब गौतम बुद्ध यहाँ कहाँ से आ गए
श्लोक 34 में बुद्धस्तथागतं में विसर्ग सन्धि है जिसका विच्छेद करने पर बुद्धः + तथागतः एवं इसके बाद शब्द आया है नास्तिकमत्र जिसमें दो शब्द हैं नास्तिकम् + अत्र, इसके बाद आया है विद्धि। इसका अन्वय हुआ – विद्धि नास्तिकम अत्र तथागतम्। अर्थात् नास्तिक (atheist) को केवलमात्र जो बुद्धिजीवी (mere intellectual) है उसके समान (equal) मानना चाहिए। इसके पहले की पंक्ति का अन्वय हुआ – यथा हि तथा हि सः बुद्धाः चोरः – अर्थात् केवलमात्र जो बुद्धिजीवी है उसको चोर के समान मानना चाहिए और दण्डित करना चहिए।
अन्त में गौतम बुद्ध की चोर के साथ उपमा देना यह अनुवाद केवल गलत है।
यहा ये कहा जाए कि बुद्ध का अर्थ तो बुद्धिजीवी है तो फिर बुद्धिजीवी को चोर समान क्यों बताया है ? तो इसका उत्तर है कि अर्थ यथा प्रकरण अनुसार विचार करना चाहिए | यहा नास्तिक बुद्धिजीवी के लिए है न कि सभी बुद्धिजीवो के लिए इसका निर्देश पूर्व श्लोक ३३ में बताया है जहा जाबालि के लिए - " विषमस्थबुद्धिम् बुद्ध्यानयेवंविधया " शब्द से वेद मार्ग भ्रष्ट ,विषम बुद्धि वाला कहा गया है अत: ३४ वे श्लोक में आया बुद्ध शब्द का सम्पूर्ण तात्पर्य होगा - विषम बुद्धि वाला ,वेद विरोधी ,कुत्सित बुद्धि वाला बुद्धिजीवी अर्थात ऐसा व्यक्ति जो अपनी तर्क शक्ति का प्रयोग कुत्सित कार्यो में करता है |
श्लोक कर्ता ने पूर्व में जिस बुद्ध अर्थात बुद्धिजीवी को सम्बोधित किया है उसके ;लक्षण बता दिए है फिर अगले श्लोक में छंद और पुनरुक्ति आदि कारण विचार कर यही लक्षणों का उल्लेख नही किया इसलिए पूर्व श्लोकानुसार यहा बुद्ध का तात्पर्य लेना चाहिए जो कि गौतम बुद्ध में घटित नही होता है | यहा बुद्ध शब्द देख गौतम बुद्ध अर्थ लेना मुर्खता ही है ।
मित्रों ऐसे आरोप लगाने वाले अल्पज्ञानियो की बातों में ना आये ये बुद्धिहीन है।
और आपको भी बुद्धिहीन बनाना चाहते है।
कल को ये लोग यह भी कहेंगे की हनुमान चालीसा में भी रावण अजान करता था,
"रावण जुद्ध अजान कियो तब" ऐसे लोगो की मती सच में मारी गयी है,
आपने सत्य कहा है कि रामायण बाद में लिखी गई है. भगवान गौतम बुद्ध का उपदेश हैं कि सुर्य,चंद्र और सत्य कभी छूप नहीं सकता है.
ReplyDelete🙏
सबसे बड़ा चोर तो तू है।
ReplyDeleteBuddhas all stories and history written in Pali-Prakrit where as all the vedic Literatures in Sanskrit-Devnagari . Devnagri script started developing during 400AD and completly developed by 700AD, whereas the Pali and Prakrit are much older and goes to BC.with proven Archeological Finds. Sanskrit-Devnagari doesnt have any archelogical finds. Instead the first Sanskrit inscription was in Brahmi Script found at Junagarh dated 150AD.Hence it can be concluded with surity that the Ramayana is Post Buddha besides whta has been mentioned by the author's blog herewith.
ReplyDeleteOhh really?😂 Bhai apka bidhaa max to max 3000years old hai ri8??? Aur ram setu ke jo archeological evidence hai vo 7000years old hai.. scientists nebhi ram setu ko man made bola hai around 5000-7000 years old...ab aap scientist kobhi ni manoge kya?😂 Acha manlo ki ram setu natural hai okay 1 pal ke liye....to kya aap batasakte ho ram setu ka natural kese bana hoga by geological and archeological way?😂 And also can u prove how ravan mahal in srilanga (SIGIRIYA) made? How that mounten is looks like it was cutted with soard?...sirji pehle jao ravan palace and ram setu per reseaech krlo fir baat krna😂😂 aur fir bolna ki ramayan 1 kaplanik hai😂😏 bhale likhne ka time baad me hoga but jo ghatit hua hai vo budhaa sebhi pehle hai😂...and valmiki ramayan ka original text available nahi h kisikepass bhi sabke pass copy hai then how can u say that it is not older then buddha?😂 Jo sirf 3000 saal purana hai?😂...hindu ke kitne sare temples me evidences mile hai 5000sebhi jada purane hone ka...😎
Deleteआइए जानते हैं सच्चाई क्या है?प्लेनेटोरियम सॉफ्टवेयर अर्थात तारामंडल सॉफ्टवेयर के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व 12:05 पर हुआ था।यूनीक एग्जीबिशन ऑन कल्चरल कॉन्टिन्यूटी फ्रॉम ऋग्वेद टू रोबॉटिक्स के अनुसार श्री राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व हुआ था। यह बात अपने आप में ही हास्यप्रद है। 😁😂😂🤣
Deleteचूंकि वाल्मिकी रामायण के अनुसार :-
ततो य्रूो समाप्ते तु ऋतुना षट् समत्युय: । ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ॥ नक्षत्रेsदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु । ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥ प्रोद्यमाने जनन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् । कौसल्याजयद् रामं दिव्यलक्षसंयुतम् ॥
भावार्थ- चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में कौशल्यादेवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवन्दित श्री राम को जन्म दिया।
और हम यह ही जानते हैं कि इस समय कलियुग चल रहा है।और श्री राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को हुआ था।एवं विद्वानों के मतानुसार इस समय कलियुग चल रहा है जिसकी आधी अवधि व्यतीत हो चुकी है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार युगों की आयु इस प्रकार हैं
1) सतुयुग - 17 लाख 28 हजार वर्ष (1728000)
2) त्रेता युग - 12 लाख 90 हजार वर्ष(1296000)
3)द्वापर युग - 8 लाख 64 हजार वर्ष (864000)
4) कलियुग- 4लाख 32 हजार वर्ष(432000) है।
चूंकि वाल्मिकी रामायण के अनुसार श्री राम त्रेता में उस समय थे जब वह समाप्त होने वाला था। आज 2022 चल रहा है और विद्वानों के अनुसार कलियुग आधा निकल गया है अर्थात 432000/2=216000 पहले द्वापरयुग समाप्त हुआ था। तथा द्वापर युग में भी 864000 थे। अगर इन दोनों को मिला लिया जाए तो 216000+864000= 10 लाख 80 हजार वर्ष होते हैं। और रामायण के अनुसार राम ने 11000 वर्षों तक शासन किया था। और उनकी मृत्यु के कुछ वर्षों बाद ही द्वापर का आरंभ हो गया था। अगर मोटा मोटा अनुमान लगाया जाए तो वैदिक गणना के अनुसार राम का जन्म लगभग 10 लाख 91 हजार(216000+864000+11000) वर्ष पहले हुआ था। 😂😂🤣🤣😄😅😅 दोनों में कोई आपस में मेल नहीं खाता। फिर भी आपको अंडभक्तों को मूर्ख बनाकर मुफ्त की खिचड़ी खानी है। अब आप दर्शकों को बताइए की कौन सी बात सही है? तारामंडल साफ्टवेयर की जो यह बताता है कि श्री राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व (आज से 7136) साल पहले हुआ था। या उस किताब की जो यह बताती है कि यह बताती है कि श्री राम का जन्म
चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को आज से लगभग 10 लाख 91 हजार साल पहले हुआ था। अब यहां कुछ आंडूभक्त आकर ज्ञान पेलेंगे 😜। उनसे मेरा यही कहना है कि बेटा अगर अंडभक्ति की जगह पढ़ने में ध्यान दिया होता तो तुम इन बातों को समझ पाते। और सुनो! 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व जो राम का जन्म बताया गया है वह भी फर्जी है और इसके रिसर्चचर भी नसे में धुत्त थे। क्योंकि उन्हें इतना भी नहीं पता था कि राम का जन्म चैत्र ( शुक्ल पक्ष नवमी) को हुआ था और चैत्र का महीना अंग्रेजी(गेगोरियन) कलैंडर के हिसाब से मार्च-अप्रैल में पढ़ता है। कहा मार्च-अप्रैल और कहां जनवरी 😂😂🤣। इसलिए कहता हूं कि इन चंपक-नंदन की कहानियों में कुछ नहीं रखा।
आइए जानते हैं सच्चाई क्या है?प्लेनेटोरियम सॉफ्टवेयर अर्थात तारामंडल सॉफ्टवेयर के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व 12:05 पर हुआ था।यूनीक एग्जीबिशन ऑन कल्चरल कॉन्टिन्यूटी फ्रॉम ऋग्वेद टू रोबॉटिक्स के अनुसार श्री राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व हुआ था। यह बात अपने आप में ही हास्यप्रद है। 😁😂😂🤣
ReplyDeleteचूंकि वाल्मिकी रामायण के अनुसार :-
ततो य्रूो समाप्ते तु ऋतुना षट् समत्युय: । ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ॥ नक्षत्रेsदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु । ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥ प्रोद्यमाने जनन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् । कौसल्याजयद् रामं दिव्यलक्षसंयुतम् ॥
भावार्थ- चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में कौशल्यादेवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवन्दित श्री राम को जन्म दिया।
और हम यह ही जानते हैं कि इस समय कलियुग चल रहा है।और श्री राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को हुआ था।एवं विद्वानों के मतानुसार इस समय कलियुग चल रहा है जिसकी आधी अवधि व्यतीत हो चुकी है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार युगों की आयु इस प्रकार हैं
1) सतुयुग - 17 लाख 28 हजार वर्ष (1728000)
2) त्रेता युग - 12 लाख 90 हजार वर्ष(1296000)
3)द्वापर युग - 8 लाख 64 हजार वर्ष (864000)
4) कलियुग- 4लाख 32 हजार वर्ष(432000) है।
चूंकि वाल्मिकी रामायण के अनुसार श्री राम त्रेता में उस समय थे जब वह समाप्त होने वाला था। आज 2022 चल रहा है और विद्वानों के अनुसार कलियुग आधा निकल गया है अर्थात 432000/2=216000 पहले द्वापरयुग समाप्त हुआ था। तथा द्वापर युग में भी 864000 थे। अगर इन दोनों को मिला लिया जाए तो 216000+864000= 10 लाख 80 हजार वर्ष होते हैं। और रामायण के अनुसार राम ने 11000 वर्षों तक शासन किया था। और उनकी मृत्यु के कुछ वर्षों बाद ही द्वापर का आरंभ हो गया था। अगर मोटा मोटा अनुमान लगाया जाए तो वैदिक गणना के अनुसार राम का जन्म लगभग 10 लाख 91 हजार(216000+864000+11000) वर्ष पहले हुआ था। 😂😂🤣🤣😄😅😅 दोनों में कोई आपस में मेल नहीं खाता। फिर भी आपको अंडभक्तों को मूर्ख बनाकर मुफ्त की खिचड़ी खानी है। अब आप दर्शकों को बताइए की कौन सी बात सही है? तारामंडल साफ्टवेयर की जो यह बताता है कि श्री राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व (आज से 7136) साल पहले हुआ था। या उस किताब की जो यह बताती है कि यह बताती है कि श्री राम का जन्म
चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को आज से लगभग 10 लाख 91 हजार साल पहले हुआ था। अब यहां कुछ आंडूभक्त आकर ज्ञान पेलेंगे 😜। उनसे मेरा यही कहना है कि बेटा अगर अंडभक्ति की जगह पढ़ने में ध्यान दिया होता तो तुम इन बातों को समझ पाते। और सुनो! 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व जो राम का जन्म बताया गया है वह भी फर्जी है और इसके रिसर्चचर भी नसे में धुत्त थे। क्योंकि उन्हें इतना भी नहीं पता था कि राम का जन्म चैत्र ( शुक्ल पक्ष नवमी) को हुआ था और चैत्र का महीना अंग्रेजी(गेगोरियन) कलैंडर के हिसाब से मार्च-अप्रैल में पढ़ता है। कहा मार्च-अप्रैल और कहां जनवरी 😂😂🤣। इसलिए कहता हूं कि इन चंपक-नंदन की कहानियों में कुछ नहीं रखा।
😂😂😂हा ये रावण बौद्ध ही था महासौगत था जो की बौद्ध प्राचीन ग्रंथ सद्धर्मलंकावतार सूत्र में प्राचीन सम्यकसम्बुद्ध भगवान जो की भगवान गोतम बुद्ध जी से पुर्व के थे उन्होंने उपदेश दिया था रावण को ये ग्रंथ पढ सकते हैं. वैसे बहोत विशाल साहीत्य है धम्म का अभीतक बहोत से आवरण में हे बातें जब ओ आवरण हट जाएगा तो और भी बहोत कुछ पता चलेगा 😁बहोत सी बातें छुपाई गयी है
ReplyDelete😁तृतीय प्रसिद्ध रामायण (योगवासिष्ठमहारामायण) में दो वशिष्ठ जी राम जी को कहते हैं कि शुन्यवादिओ का शुन्य विज्ञानवाद का विज्ञप्तिमात्र और ब्रह्मवादिओ का ब्रम्ह एक ही है कोई भेद नहीं है 😁योगवासिष्ठमहारामायण ओथेन्टीक माना जाता है
ReplyDeleteअब ये माध्यमिक दर्शन का शुन्यवाद, योगाचार दर्शन का विज्ञानवाद ये सब श्रीराम जी के गुरू वशिष्ठ जी को भी पता थे 😁पढीए योगवासिष्ठमहारामायण 😁👍