Friday, 23 March 2018

सम्राट अशोक और बौद्ध धम्म-

अधिकतर भारतीय इतिहासकारो (?) का यह मानना है की सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध की विभीषिका से दुखी होके बौद्ध धर्म ग्रहण किया था, इस घटना पर कई फ़िल्म और सीरियल
भी बन चुके हैं जिस कारण आम धारणा भी यही बन गई ।
पर क्या यह घटना सत्य है? क्या वास्तव में अशोक ने युद्ध की विभीषिका से दुखी होके बौद्ध धर्म अपनाया था ? क्या वास्तव में वह बौद्ध बना था ?
जी नहीं , ये कहानी झूठ है की सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया था क्यों की वह तो शुरू से ही बौद्ध था । उसका पिता बिन्दुसार और उसके पूर्वज पहले से ही बौद्ध थे अत: अशोक का बाद में बौद्ध धर्म अपनाने की कहानी झूठी साबित होती है , देखें कैसे –
हम अधिक पीछे न जाके अपनी बात बिन्दुसार से शुरू करते हैं , सम्राट बिन्दुसार का जन्म 299 ईसा पूर्व हुआ और मृत्यु 269 ईसा पूर्व । ग्रीक लेखको ने इन्हें ‘ अमित्रघातक’ कहा जिसका अर्थ होता है शत्रुओ का नाश करने वाला । इन्होंने मगध का साम्राज्य दक्षिण भारत के कोंकण, मदुरई, कर्णाटक तक को जीत कर विस्तार किया । बिन्दुसार ने बौद्ध धर्म को दक्षिण तक फैलाया और कई शीला लेख लिखवाएं , उनके राज्य में बौद्ध धर्म राज धर्म बना रहा ।
कहा जाता है की बिन्दुसार के कई ( लगभग 16) रानियां थीं और 101 पुत्र थे और 99 को मार के अशोक राजगद्दी पर बैठा , परन्तु यह सत्य प्रतीत नहीं होता । लामा तारनाथ ने अपने ग्रन्थ ‘ बौद्ध धर्म का इतिहास’ के पेज नम्बर 18 पर लिखा है बिन्दुसार की केवल तीन रानियां थी और 6 सौतले भाई और 4 बहने थी ।
अशोक का युद्ध केवल सुसीम से हुआ था जो की बिन्दुसार की पहली पत्नी से हुआ था और अशोक से बड़ा था । सुसीम बिन्दुसार की मृत्यु के उपरांत मगध का राजा बनाना चाहता था परन्तु दरबारी और जनता उसे नहीं चाहते थे अत: जब अशोक का राज्याभिषेक होना था तब सुसीम और अशोक का युद्ध हुआ जिसमें सुसीम मारा गया ।
शिलालेख 5 जो की अशोक ने अपने राज्यभिषेक के 13 साल बाद लिखवाया था उसमें उसने अपने भाई बहनो का जिक्र किया है जो अलग अलग प्रान्तों की राजधानियों में रह रहें थे और अशोक ने उन्हें धम्म महापात्र नियुक्त किया हुआ था । अत: अशोक का 99 भाइयो का मार के गद्दी प्राप्त करने की बात झूठ है ।
वह कहानी जो अशोक के बारे में प्रचलित है की उसने बौद्ध धर्म अपनाया था वह कपोल कल्पित है , जब अशोक के पिता और पूर्वज पहले से ही बौद्ध थे तो अशोक तो स्वयं ही बौद्ध था , उसे बौद्ध धर्म अपनाने की क्या जरूरत थी?
अशोक की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधकारी मौर्य राजा लगभग 52 साल तक मगध में शासक रहें ।
बिम्बिसार से लेके अशोक के पुत्र कुणाल और उसके वंसज ब्रहद्रथ ( जिसे शुंग ने छल से मारा था ) सभी बौद्ध राजा रहें ।
सम्राट अशोक कलिंग विजय से पूर्व एक साम्राज्यवादी थे , लेकिन विजय के पश्चात वे एक आदर्श मानव बने , इनके वयक्तित्व में विशेष गुणों का विकास हो गया था । सत्य, दया, उदारता आदि विशेष गुण उन्होंने अपना लिए थे । कलिंग युद्ध के बाद उन्होंने दिग्विजय की नीति त्याग दी और अपने पूर्वजो की तरह बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में मन लगाया । उन्होंने प्रचारको और उपदेशकों का विशाल दल तैयार किया जिसने विश्व के लगभग आधे भाग को अपने धम्म से जीत लिया । उन्होंने पशु बलि , मदिरा आदि व्यसनों पर रोक लगाई ।
दरसल उस समय बहुसंख्यक समाज जो की बौद्ध रहा था उसमे में शांति, नैतिकता आदि की भावना और आचरण प्रबल रही होगी जिससे समाज के बड़े वर्ग ने अशोक के अनावश्यक युध्द का विरोध किया होगा ।चुकी कोई भी सत्ताधारी बहुसंख्यक समाज की भावनाओ को कुचल कर ज्यादा दिन राज नहीं कर पाता है तो यही डर की भावना अशोक में भी होगी क्यों की अशोक प्रजा के खिलाफ नहीं जा सकता था ।
उस समय के समाज में बौद्ध धर्म भली भांति प्रचलित और स्वीकार था अत: जब सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को राज धर्म बनाया तो समाज में उसका स्वागत हुआ और इसी के चलते वह चीन, जापान, कोरिया आदि दूर देशो तक बौद्ध धर्म का विस्तार कर पाया ।
सम्राट अशोक ने 14 शीला लेख ( पेशवर, जूनागढ़, देहरादून, मानसेहरा, पुरी, जैगढ़, करनाल, आदि ) लिखवाये जिसमें धम्मोपदेश लिखवाये। सात स्तम्भ लेख लिखवाये ( दिल्ली, मेरठ, इलाहाबाद , रामपुरवा, सारनाथ, लौरिया, साँची). कई गुहा लेख लिखवाये जिसमें की गया के निकट की पहाड़ी के गुहा लेख प्रसिद्ध हैं ।




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