Friday, 9 March 2018

पेरियार- जानिए कुछ पहलुओं को

पेरियार कपोल कल्पित देवी देवताओं और ईश्वर को नहीं मानते थे , कई बार इस पर वे पण्डे पुजारियों से जम के बहस करते। 19 वर्ष की आयु में नागम्मई नामक कन्या से विवाह हो गया ।विवाह के बाद परिवार की अन्धविश्वसी परम्पराओं का वे खुल के विरोध करने लगे, व्रत वाले दिन वे जानबूझ के अपनी पत्नी से स्वादिष्ट पकवान बनवाते ,खुद भी खाते और अपनी पत्नी को भी खिलाते। अपनी पत्नी को मंदिर नहीं जाने देते थे , घर पर अपने अछूत कहे जाने वाले मित्रों को बुला अपने साथ भोजन करवाते। घर में इस बात को लेके बहुत बखेड़ा होता पर पेरियार अपनी आदतों को नहीं बदलते थे । एक बार उन्होंने अपनी पत्नी का मंगलसूत्र/ हँसुली/ सुहाग चिंन्ह उतरवा दिया जिससे उनके परिवार वालों और उनमे काफी कहा सुनी हो गई , नाराज पेरियार घर से भाग गयें और कलकत्ता , बनारस आदि तीर्थ स्थानों का भ्रमण करते रहें। साधू महात्माओं के साथ उन्होंने काफी समय बिताया ,जीवन के खट्टे मीठे अनुभव लेते रहें । फिर संयासी जीवन की हकीकत जान के उससे मोहभंग हुआ तो वापस घर आ गए और पिता जी के साथ व्यापार में हाथ बंटाने लगें।

इसके बाद वे नगर पालिका के चेयर मैन बने।जिस समय पेरियार इरोड नगर पालिका के चेयर मैन थे उस समय राजगोपालाचारी सलेम नगर पालिका के चेयर मैन थे । पेरियार की संगठन क्षमता को देख के राजगोपालाचारी ने उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का प्रस्ताव रखा जिसे उन्होंने ने स्वीकार कर लिया क्यों उस समय कांग्रेस के घोषित उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति ,अछूतोंउद्धार , नशाबन्दी व आर्थिक सुधार उनकी विचार धारा से मेल खाते थे।

उस समय कांग्रेस का दक्षिण में प्रभाव नहीं था , पेरियार की संगठन क्षमता ने कांग्रेस को नया बल दिया । पेरियार का भाषण सुनने लाखो लोग खींचे चले आते थे। गांधी के असहयोग आंदोलन में निष्ठा से साथ दिया। उसके बाद गांधी ने जब नशाबन्दी का आंदोलन चलाया तो पेरियार ने अपनी जमीन पर लगे हजारो ताड़ के पेड़ों को कटवा दिया था क्यों की उनसे नशीली ताड़ी निकली जाती थी । अंग्रेजी अदालतों का बहिष्कार करने के लिए उन्होंने उस समय पचास हजार के प्रोनोट जला दिए थे जो की उस समय एक बड़ी राशि मॉनी जाती थी।

पेरियार के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना वाइकोम की मानी जाती है।

त्रावनकोर कोचीन के राजा ने बाइकोम में मंदिर बनवाकर  ब्राह्मण पुजारियों को दे दिया था , पुजारियों ने मंदिर के पास के रास्ते पर अछूतों के चलने पर प्रतिबंद लगा दिया तो अछूत अपने गाँव की बस्ती में नजरबंद हो गए क्यों की मुख्य सड़क मंदिर के बगल से होके ही जाती थी जिस पर उनके चलने पर प्रतिबंद लगाया जा चुका था।

उसी मंदिर में राजा की अदालत भी लगती थी ,एक।केस में इजवा जाति जो अछूत जाति थी उस जाति के वकील माधवन को एक केस के सिलसिले में राजा की अदालत में जाना पड़ गया इस पर पुजारियों ने माधवन को मारने पीटने के अलावा बहुत अपमानित करा। इस घटना को लेके केरल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के पी मेनन और उपाध्यक्ष जार्ज जोसेफ ने विरोध किया और आंदोलन आरम्भ किया तो राजा ने उन्हें जेल में डाल दिया।

अतः उन्होंने जेल से ही पेरियार को वाइकोम आंदोलन का नेतृत्व करने की अपील की।  पेरियार ने जब छुआछूत के विरुद्ध आंदोलन तेज किया तो उन्हें भी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया । इसके बाद इस आंदोलन की कमान उनकी पत्नी और बहन कन्नमल , एस रामनाथन ने संभाली । यह आंदोलन इतना प्रचंड हुआ की राजा को घबरा के सभी लोगो को रिहा करना पड़ा। इसके बाद पेरियार जननायक बन के उभरे।

शमी देवी जिला तिरुनेवेली में आर्य पम्परा के नाम पर गुरुकुल की स्थापना हुई जिसमें पेरियार कोषाध्यक्ष थें। इस गुरुकुल का उद्देश्य था धार्मिक शिक्षा, समाज सेवा और राष्ट्रीय भावना जागृत करना। इस गुरुकुल में दान देने वाले अधितर छोटी जाति से आते थे परंतु प्रबंध सिमित में मुख्यतः उच्च वर्ण के ही लोग थें। गुरुकुल में छोटी जाति के छात्रों से बहुत भेदभाव होता था यंहा तक की उनके लिए खाना भी घटिया किस्म का बनाया जाता था जबकि उच्च जाति के छात्रों को अच्छा खाना दिया जाता ।

पेरियार  ने जब इस भेदभाव का विरोध किया तो उच्चवर्णीय समिति के प्रबंधकों को नागवार गुजरा किन्तु भेदभाव की नीति बंद नहीं हुई तो पेरियार ने सभी दानकर्ताओं से दान ना देने की अपील की ।परिणामस्वरूप गुरुकुल बंद हो गया ,इससे चिढ के उच्च वर्णीय लोगो ने  राजगोपालाचारी से पेरियार को कांग्रेस से निष्कासित करने की अपील की किन्तु  भारी समर्थन होने के कारण उनकी अपील रद्द कर दी गई ।

परन्तु उस समय कांग्रेस में जो निर्णय लिए जाते वे अधिकतर उच्च वर्ण के लोगों के हितों को ध्यान में रख के लिए जाते थे और निम्न वर्ण के लोगो के विरुद्ध होते थे। अतः उन्होंने नौकरियों और विधान सभा में निम्न जाति के लोगो के लिए आरक्षण की मांग उठाई जिसका ब्राह्मण वर्ग ने जम के विरोध किया। 1925 में जब कांचीवरम कांग्रेस अधिवेशन में पेरियार ने दुबारा यह मांग उठाई तो उन पर ईंट पत्थरो से जानलेवा हमला कर दिया गया। उसी समय पेरियार को यह अहसास हो गया था कि तमिलनाडु कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष रहने के बाद भी उनकी स्थिति क्या है ,दरसल कांग्रेस का सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय एकता जैसी बातें झूठी थीं । उस समय कांग्रेस की आड़ में उच्च वर्णीय लोग अपना एजेंडा सेट किये हुए थें। विधवा पुनर्विवाह, बाल विवाह पर रोक, मंदिरों पर एकाधिकार समाप्त हो,छुआछूत को कानूनी अपराध माना जाए  जैसे अनेक मुद्दे थे जिनको लेके पेरियार कांग्रेस के ध्यान ने देने पर नाराज थे।

कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने रूस, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों की यात्रा की और वँहा की राजनैतिक तथा सामाजिक संरचनाओं पर काफी रिसर्च किया।

यात्रा से वापस आने के बाद पेरियार ने निम्न जातियो / आदिवासियों / पिछड़े को ब्रह्मणिक व्यवस्था से आजाद कराने के प्रयत्न में जुट गएँ।
कई पुस्तकें लिखी जिसमे 'सच्ची रामायण ' प्रमुख रही । उनका मानना था की रामायण दरसल आर्यो(वैदिकों)  का द्रविणो पर आक्रमण की कहानी है। वे मानते थे की दलित/ आदिवासी/ पिछड़े आदि निम्न जातियों की दुर्दशा का कारण धर्म और ईश्वर की कल्पना है जिसके सहारे सदियों से उच्च वर्ण के लोग शोषण कर रहे हैं।

उनके मुख्य उद्देश्य थे-

ईश्वर नाम की कल्पना और धर्म की समाप्ति।
ब्राह्मणवाद की समाप्ति।
कांग्रेस और गांधीवाद की समाप्ति ।
सामजिक बुराइयों की जड़ से समाप्ति और एक आदर्श समाज की स्थापना ।


उच्च जाति के लोगो द्वारा निम्न जाति पर हो रहे अत्याचार और हमलों को रोकने के लिए पेरियार ने स्वाभिमान अन्दोलन चलाया था जो बाद में द्रविण कजगम पार्टी के नाम से जाना गया।

वे हमेशा काली कमीज पहनते थे ,इसलिए कई पत्रकारों ने उनके आंदोलनों को ' काली कमीज आंदोलन' भी कहते थे। उनकी काली कमीज व्यवस्था परिवर्तन का सूचक थी।


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