" हुर्र...ह...अह..ह...
"च्....हुर्र...ह...
जैसी आवाजें निकालता हुआ मुन्नालाल जंगल से अपने जानवरो को हांकता हुआ घर लौट रहा था ।पांच बकरियां , दो भैंसे और एक गाय का मालिक था मुन्नालाल , खेतो के किनारे बनी मुश्किल से दो फुट की पगडड्डी पर बड़े ध्यान से और बड़ी सधे हुए चाल से हाँक रहा था वह जानवरो को ।रास्ते के दोनों तरफ गेंहू की फ़सल लह लहा रही थी , स्वभाव से चंचल बकरियां जंगल में पेट भर चरने के बाद भी ललचाई नजरो से गेंहू के हरे हरे पौधों को घूर घूर के देख रहीं थी और जैसे ही मुन्नालाल जरा सा नजरो से चूकता दौड़ के खेतो में मुंह मार देती ।तब मुन्नालाल अपने सोंटे से उनकी पिटाई करता ।
मुन्नालाल रोज इसी तरह जंगल से अपने जानवर चरा के लाता , जंगल में तो जानवर खूब उछल कूद करते और जंहा मर्जी चरते मुन्नालाल उन्हें न टोकता किन्तु जैसे ही वह गाँव की सीमा में प्रवेश करता बहुत सतर्क हो जाता ।अभी तीन महीने पहले जंगल से आते समय वह लघुशंका करने लगा था की इतने में बकरियों ने प्रतापचन्द ठाकुर के खेतो में घुस के खड़ी मटर की फसल को नुकसान पहुंचा दिया ।
जब प्रतापचंद को पता चला तो बहुत भला बुरा कहा ,नौबत मार पीट तक आ गई तब सुलह के लिए मुन्नालाल को एक बकरी का बच्चा देना पड़ा था अन्यथा वे उसके जानवरो को कानीहौज तक पहुंचा देता ।
तब से मुन्नालाल बड़ा सतर्क रहता आते जाते वक्त ।
मुन्नालाल के पास ज्यादा जमीन नहीं थी अतः जीविका का मुख्य साधन उसके पशु ही थे ।मुन्नालाल पशुओ के बच्चे खरीद लेता था और उन्हें पालता था जब वे बड़े हो जाते तो अच्छे मुनाफे में उन्हें बाजार में बेच देता , जो पशुओ से दूध प्राप्त होता वह उसकी अतरिक्त आय होती।
मुन्नालाल का एक ही लड़का था लखपत , लखपत शुरू से ही पढ़ने में बुद्धिमान था अतः मुन्नालाल ने उसे पढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।मुन्नालाल सोचता की लखपत पढ़ लिख जायेगा तो कोई अच्छा काम करेगा उसकी तरह अनपढ़ हो चरवाही नहीं करेगा ।
स्कूली शिक्षा लेने के बाद लखपत ने इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लेना चाहा था मुन्नालाल बहुत खुश हुआ था , उसने अपनी पत्नी के गहने तो बेच ही दिए थे साथ में अपनी जो थोड़ी सी जमीन थी वह भी बेंच दी ।उसे यकीन था की लखपत पढ़ लिख के उसका नाम तो रौशन करेगा ही पुरे रिस्तेदारो का नाम भी रौशन करेगा ।
गाँव में तो छोड़िये, पुरे जवार में भी लखपत जैसा पढ़ने में बुद्धिमान कोई न था आखिर इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश
पाना कोई सरल तो न था ।
दिन बीतते गए, और लखपत आगे बढ़ता गया ।
इधर मुन्नालाल की जिंदगी वैसे ही चलती रही , वही जानवरो को जंगल में चराना और शाम को उन्हें खेतो से बचा के घर लाना ।
अब लखपत एक इंजिनियर बन चुका था , शहर में ऊँचे वेतन वाली नौकरी और बड़ा सा फ्लैट जल्द ही प्राप्त हो गए उसे । विवाह भी एक सम्पन्न परीवार की कन्या से हो गया ,जीवन की सभी सुख सुविधाये और मान-सम्मान उसके पास था ।
मुन्नालाल अब बूढ़ा हो चुका था , पत्नी भी बीमार अमूमन बीमार सी ही रहती ।पशुओ की देखभाल न कर पाने के कारण उसने सभी पशु बेच दिए थे , जो लखपत पैसे भेजता उसी से निर्वाह हो रहा था ।यूँ तो लखपत हर माह निश्चित धन मुन्नालाल को भेज देता था खर्चे के लिए किन्तु मुन्नालाल चाहता था की इस बुढ़ापे में वह और उसकी पत्नी लखपत के साथ रहें , अकेलापन उसे अखरता था ।
सच यह था की जिंदगी भर गाँव, जंगल और जानवरो के बीच रह रह के वह नीरस हो गया था ।
अब वह और उसकी पत्नी शहर में लखपत के साथ बचे हूए दिन आराम से काटना चाहते थे ।
लखपत से कई बार अपनी इच्छा जाहिर करने के बाद आखिर लखपत ने मुन्नालाल और उसकी पत्नी को अपने पास शहर बुला ही लिया ।
शहर आके मुन्नालाल बहुत खुश हुआ ,बड़ी बड़ी इमारते, चमकती गाड़िया, रंग बिरंगे परिधान में स्त्री पुरुष , साफ़ सड़के आदि उसे रोमांचित कर दे रहे थे ।वह तो जैसे सपनो की दुनिया में आ गया हो , लखपत में घर में सभी आधुनिक सुविधाये मौजूद थी जिनका वह जी भर के मजा ले रहा था ।
लखपत ने दो कुत्ते पाल रखे थे जिनको उसका नौकर देखभाल करता था , वह कुत्तो को नहलाता, खाना खिलाता तथा उन्हें बाहर घुमाने ले जाता ।
एक दिन मुन्नालाल सोफे पर बैठा टीवी देख जोर जोर से हँस रहा था ,उसे ऐसा करता देख दूसरे मौजूद लखपत की पत्नी ने चिढ़ते हुए लखपत से कहा -
" जब देखो सोफे पर बैठे बैठे टीवी देखते रहते है और चाय पानी की फरमाइस करते रहते हैं " लखपत की पत्नी ने कहा
"ओहो!तो क्या हो गया... नौकर तो है न !" लखपत ने उत्तर दिया
"नौकर तो हैं पर सारा दिन इन्ही की जी हुजूरी में लगे रहेगे तो बाकि के काम कब करेंगे वे ?" पत्नी ने थोडा गुस्से में जबाब दिया
" तो क्या करें ? गाँव तो भेज नहीं सकते फिर से ... " लखपत ने असमर्थता जताते हुए कहा ।
" गाँव भेजने की जरुरत नहीं .... एक आइडिया है मेरे पास " पत्नी ने लखपत से मुस्कुराते हुए कहा ।
फिर उसके बाद लखपत की पत्नी लखपत के कान में कुछ कहने लगी जिसे सुन लखपत मुस्कुरा दिया ।
अगले सुबह कुत्तो की देखभाल करने वाला नौकर नहीं आया, लखपत ने मुन्नालाल से कहा -
" बाबू जी , कुत्तो की देखभाल करने वाला नौकर बीमार है और कुछ दिन नहीं आएगा .... आप गाँव में तो जानवरो की देखभाल करते ही थे ... कुछ दिन कुत्तो को संभाल लीजिये "
लखपत की बात सुन मुन्नालाल को आश्चर्य हुआ , जिंदगी भर तो जानवरो की देखभाल करता ही रहा है वह ।बुढ़ापे में जानवरो से दूर रहे इसी लिए वह लखपत के पास आया है और वह कुत्तो की देखभाल करने को कह रहा है .... और फिर उसने तो गाय भैंसो और बकरियो की देखभाल की है कुत्तो की नहीं ।
मुन्नालाल चाह के भी मना नहीं कर पाया लखपत को ,और कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं था उसके पास ।
अब मुन्नालाल सुबह पांच बजे उठ जाता , कुत्तो को दो घण्टे बाहर घुमा के लाता फिर उनको नहलाता उन्हें खिलाता शाम को भी यही नियम बन गया था। कई दिन बीत गए किन्तु कुत्तो की देखभाल कारने वाला नौकर वापस नहीं आया, मन मार के मुन्नालाल को ही देखभाल कारना पड़ रहा था कुत्तो का ।कई बार कुत्तो को सम्भलना बड़ा मुश्किल हो जाता था बूढ़े मुन्नालाल के लिए ,गांव में तो कुछ दुरी पर ही बकरियो से खेतो को बचाना पड़ता था किन्तु यंहा तो कुत्तो पर पुरे समय नजर रखनी पड़ती थी ।
एक बार तो एक कुत्ते ने स्कूल जाते हुए एक बच्चे को काट लिया था तब कितना गुस्सा हुआ था लखपत उस पर उसकी पत्नी ने अलग से उस पर लापरवाही का इल्जाम लगाया था ,उसकी आँखों से आंसू ही निकल आये थे बुढ़ापे में यह बेज्जती ।
मुन्नालाल अब और सतर्कता से कुत्तो की देखभाल करता ताकि उससे कंही गलती न हो जाये , हाथ में जंजीर पकडे वह कुत्तो के साथ साथ ही चलता ...वह चरवाहा ही रहा बस जानवर बदल गए थे।
हाँ ! अब
हुर्र...ह...अह..ह...
"च्....हुर्र...ह...
के स्थान पर मुंह से -
आऊ.....आउ
ले...ले..
की ध्वनी निकालता
बस यंही तक थी कहानी ....
"च्....हुर्र...ह...
जैसी आवाजें निकालता हुआ मुन्नालाल जंगल से अपने जानवरो को हांकता हुआ घर लौट रहा था ।पांच बकरियां , दो भैंसे और एक गाय का मालिक था मुन्नालाल , खेतो के किनारे बनी मुश्किल से दो फुट की पगडड्डी पर बड़े ध्यान से और बड़ी सधे हुए चाल से हाँक रहा था वह जानवरो को ।रास्ते के दोनों तरफ गेंहू की फ़सल लह लहा रही थी , स्वभाव से चंचल बकरियां जंगल में पेट भर चरने के बाद भी ललचाई नजरो से गेंहू के हरे हरे पौधों को घूर घूर के देख रहीं थी और जैसे ही मुन्नालाल जरा सा नजरो से चूकता दौड़ के खेतो में मुंह मार देती ।तब मुन्नालाल अपने सोंटे से उनकी पिटाई करता ।
मुन्नालाल रोज इसी तरह जंगल से अपने जानवर चरा के लाता , जंगल में तो जानवर खूब उछल कूद करते और जंहा मर्जी चरते मुन्नालाल उन्हें न टोकता किन्तु जैसे ही वह गाँव की सीमा में प्रवेश करता बहुत सतर्क हो जाता ।अभी तीन महीने पहले जंगल से आते समय वह लघुशंका करने लगा था की इतने में बकरियों ने प्रतापचन्द ठाकुर के खेतो में घुस के खड़ी मटर की फसल को नुकसान पहुंचा दिया ।
जब प्रतापचंद को पता चला तो बहुत भला बुरा कहा ,नौबत मार पीट तक आ गई तब सुलह के लिए मुन्नालाल को एक बकरी का बच्चा देना पड़ा था अन्यथा वे उसके जानवरो को कानीहौज तक पहुंचा देता ।
तब से मुन्नालाल बड़ा सतर्क रहता आते जाते वक्त ।
मुन्नालाल के पास ज्यादा जमीन नहीं थी अतः जीविका का मुख्य साधन उसके पशु ही थे ।मुन्नालाल पशुओ के बच्चे खरीद लेता था और उन्हें पालता था जब वे बड़े हो जाते तो अच्छे मुनाफे में उन्हें बाजार में बेच देता , जो पशुओ से दूध प्राप्त होता वह उसकी अतरिक्त आय होती।
मुन्नालाल का एक ही लड़का था लखपत , लखपत शुरू से ही पढ़ने में बुद्धिमान था अतः मुन्नालाल ने उसे पढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।मुन्नालाल सोचता की लखपत पढ़ लिख जायेगा तो कोई अच्छा काम करेगा उसकी तरह अनपढ़ हो चरवाही नहीं करेगा ।
स्कूली शिक्षा लेने के बाद लखपत ने इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लेना चाहा था मुन्नालाल बहुत खुश हुआ था , उसने अपनी पत्नी के गहने तो बेच ही दिए थे साथ में अपनी जो थोड़ी सी जमीन थी वह भी बेंच दी ।उसे यकीन था की लखपत पढ़ लिख के उसका नाम तो रौशन करेगा ही पुरे रिस्तेदारो का नाम भी रौशन करेगा ।
गाँव में तो छोड़िये, पुरे जवार में भी लखपत जैसा पढ़ने में बुद्धिमान कोई न था आखिर इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश
पाना कोई सरल तो न था ।
दिन बीतते गए, और लखपत आगे बढ़ता गया ।
इधर मुन्नालाल की जिंदगी वैसे ही चलती रही , वही जानवरो को जंगल में चराना और शाम को उन्हें खेतो से बचा के घर लाना ।
अब लखपत एक इंजिनियर बन चुका था , शहर में ऊँचे वेतन वाली नौकरी और बड़ा सा फ्लैट जल्द ही प्राप्त हो गए उसे । विवाह भी एक सम्पन्न परीवार की कन्या से हो गया ,जीवन की सभी सुख सुविधाये और मान-सम्मान उसके पास था ।
मुन्नालाल अब बूढ़ा हो चुका था , पत्नी भी बीमार अमूमन बीमार सी ही रहती ।पशुओ की देखभाल न कर पाने के कारण उसने सभी पशु बेच दिए थे , जो लखपत पैसे भेजता उसी से निर्वाह हो रहा था ।यूँ तो लखपत हर माह निश्चित धन मुन्नालाल को भेज देता था खर्चे के लिए किन्तु मुन्नालाल चाहता था की इस बुढ़ापे में वह और उसकी पत्नी लखपत के साथ रहें , अकेलापन उसे अखरता था ।
सच यह था की जिंदगी भर गाँव, जंगल और जानवरो के बीच रह रह के वह नीरस हो गया था ।
अब वह और उसकी पत्नी शहर में लखपत के साथ बचे हूए दिन आराम से काटना चाहते थे ।
लखपत से कई बार अपनी इच्छा जाहिर करने के बाद आखिर लखपत ने मुन्नालाल और उसकी पत्नी को अपने पास शहर बुला ही लिया ।
शहर आके मुन्नालाल बहुत खुश हुआ ,बड़ी बड़ी इमारते, चमकती गाड़िया, रंग बिरंगे परिधान में स्त्री पुरुष , साफ़ सड़के आदि उसे रोमांचित कर दे रहे थे ।वह तो जैसे सपनो की दुनिया में आ गया हो , लखपत में घर में सभी आधुनिक सुविधाये मौजूद थी जिनका वह जी भर के मजा ले रहा था ।
लखपत ने दो कुत्ते पाल रखे थे जिनको उसका नौकर देखभाल करता था , वह कुत्तो को नहलाता, खाना खिलाता तथा उन्हें बाहर घुमाने ले जाता ।
एक दिन मुन्नालाल सोफे पर बैठा टीवी देख जोर जोर से हँस रहा था ,उसे ऐसा करता देख दूसरे मौजूद लखपत की पत्नी ने चिढ़ते हुए लखपत से कहा -
" जब देखो सोफे पर बैठे बैठे टीवी देखते रहते है और चाय पानी की फरमाइस करते रहते हैं " लखपत की पत्नी ने कहा
"ओहो!तो क्या हो गया... नौकर तो है न !" लखपत ने उत्तर दिया
"नौकर तो हैं पर सारा दिन इन्ही की जी हुजूरी में लगे रहेगे तो बाकि के काम कब करेंगे वे ?" पत्नी ने थोडा गुस्से में जबाब दिया
" तो क्या करें ? गाँव तो भेज नहीं सकते फिर से ... " लखपत ने असमर्थता जताते हुए कहा ।
" गाँव भेजने की जरुरत नहीं .... एक आइडिया है मेरे पास " पत्नी ने लखपत से मुस्कुराते हुए कहा ।
फिर उसके बाद लखपत की पत्नी लखपत के कान में कुछ कहने लगी जिसे सुन लखपत मुस्कुरा दिया ।
अगले सुबह कुत्तो की देखभाल करने वाला नौकर नहीं आया, लखपत ने मुन्नालाल से कहा -
" बाबू जी , कुत्तो की देखभाल करने वाला नौकर बीमार है और कुछ दिन नहीं आएगा .... आप गाँव में तो जानवरो की देखभाल करते ही थे ... कुछ दिन कुत्तो को संभाल लीजिये "
लखपत की बात सुन मुन्नालाल को आश्चर्य हुआ , जिंदगी भर तो जानवरो की देखभाल करता ही रहा है वह ।बुढ़ापे में जानवरो से दूर रहे इसी लिए वह लखपत के पास आया है और वह कुत्तो की देखभाल करने को कह रहा है .... और फिर उसने तो गाय भैंसो और बकरियो की देखभाल की है कुत्तो की नहीं ।
मुन्नालाल चाह के भी मना नहीं कर पाया लखपत को ,और कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं था उसके पास ।
अब मुन्नालाल सुबह पांच बजे उठ जाता , कुत्तो को दो घण्टे बाहर घुमा के लाता फिर उनको नहलाता उन्हें खिलाता शाम को भी यही नियम बन गया था। कई दिन बीत गए किन्तु कुत्तो की देखभाल कारने वाला नौकर वापस नहीं आया, मन मार के मुन्नालाल को ही देखभाल कारना पड़ रहा था कुत्तो का ।कई बार कुत्तो को सम्भलना बड़ा मुश्किल हो जाता था बूढ़े मुन्नालाल के लिए ,गांव में तो कुछ दुरी पर ही बकरियो से खेतो को बचाना पड़ता था किन्तु यंहा तो कुत्तो पर पुरे समय नजर रखनी पड़ती थी ।
एक बार तो एक कुत्ते ने स्कूल जाते हुए एक बच्चे को काट लिया था तब कितना गुस्सा हुआ था लखपत उस पर उसकी पत्नी ने अलग से उस पर लापरवाही का इल्जाम लगाया था ,उसकी आँखों से आंसू ही निकल आये थे बुढ़ापे में यह बेज्जती ।
मुन्नालाल अब और सतर्कता से कुत्तो की देखभाल करता ताकि उससे कंही गलती न हो जाये , हाथ में जंजीर पकडे वह कुत्तो के साथ साथ ही चलता ...वह चरवाहा ही रहा बस जानवर बदल गए थे।
हाँ ! अब
हुर्र...ह...अह..ह...
"च्....हुर्र...ह...
के स्थान पर मुंह से -
आऊ.....आउ
ले...ले..
की ध्वनी निकालता
बस यंही तक थी कहानी ....
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