Sunday, 2 October 2016

ताकि मिलता रहे न्याय -




"सरपंच जी ! पर वह ज़मीन तो हमारी है , आई बाबा के ज़माने से खेती करते आये हैं उस पर " सुरेखा ने घूँघट किये ही जबाब दिया ।
" चुप कर साली! मर्दों के बीच में ऐसी तैसी करवाने बैठी है? ... चपर चपर जुबान मत चला यंहा " सरपंच ने अपनी  छड़ी सुरेखा की तरफ करते हुए क्रोध में भरे शब्दों में कहा ।
"जब तुझे बोलने को कहा जाए तब बोलियो .... अभी मादरजात चुप चाप बैठी रह ..." सरपंच ने आगे कहा ।
" हाँ ...सुन भैयालाल ...ध्यान से सुन ..जिस पांच एकड़ जमीन की दावेदारी तुम लोग कर रहे हो वह तुम्हारी जमीन नहीं है ....अरे मादरजातो तुम्हारे बाप दादा दुसरो के टुकड़ो पर पलते थे और तुम अपनी जमीन की दावेदारी कर रहे हो...कौन सी ज़मीन है तुम्हारी  ? पंचायत का समय बर्बाद कर रहे हो ? इसका जुर्माना हजार रुपया भरना पड़ेगा "

"पर...पर सरपंच जी हमारी बात ... "भैयालाल ने कुछ कहना चाहा
"चुप!...चुप ... हमारी बात टालेगा  तू? कल से तेरा हुक्का पानी बंद करवा दूंगा " भैयालाल का यूँ बीच में बोलना सरपंच को जँचा नहीं और उसने उसकी बात काटते हुए चेतावनी दी ।

इसके बाद पंचायत खत्म कर दी गई , भैयालाल और उसकी पत्नी सुरेखा ने दुखी मन से अपने घर वापस हो लिए ।

यह कहानी है आज से दस साल पहले की ,महाराष्ट्र् के भंडारा जिले के एक छोटे से गाँव की ।भैयालाल भातमांगे  उसकी पत्नी सुरेखा तथा उनके दो बेटे दीपक और रौशन तथा बेटा प्रियंका की ।रौशन जन्म से अँधा था ।

ऊपर जो पंचायत की घटना थी वह  उस 5 एकड़ जमीन के विवाद की थी जिस पर भैयालाल और सुरेखा अपना हक़ जाता रहे थे किन्तु गाँव के वर्चस्वी जातियां अपना कब्ज़ा जमा रही थीं ।मामला पंचायत तक पहुंचा और सरपंच ने वही फैसला सुनाया जो ऊपर बताया गया ।गाँव में मात्र 4 परीवार दलित के थे बाकी सब वर्चस्वकारी जातियां थीं।

कुछ दिन बाद ।

"अजी सुनते हो !"सुरेखा ने भैयालाल की संबोधित किया
"हूँ ?..... क्या है ? "भैयालाल ने नीम की दातुन मुंह में डाले डाले पूछा।
" मैं यह कह रही थी की कब तक इस कच्चे घर में रहेंगे ? अब बच्चे बड़े होने लगे हैं .... मैं कह रही थी की दो कमरे पक्के ईंट के बन जाते तो अच्छा रहता " सुरेखा ने पानी का लोटा भैयालाल को पकड़ाते हुए कहा ।
"हम्म....कह तो तू ठीक रही है .... ज़मीन तो चली ही गई समझो कम से कम रहने का ठिकाना तो पक्का हो जाए , बरसात में कितनी तकलीफ होती है ... ठीक है कल ही ईंट गिरवाता हूँ भट्टे से " भैयालाल ने कुल्ला करते हुए सांत्वना दी सुरेखा को , सुरेखा मुस्कुरा दी ।

अगले दिन दो हजार ईंटे ट्रॉली पर द्वारा भैयालाल के घर पहुँच गई ।भैयालाल का पक्का मकान बनेगा यह गाँव के वर्चस्वकारी जाति के लोगो को एक आँख भी न सुहाया ।भला यह कैसे हो सकता है की एक दलित के उनके गाँव में पक्का मकान बने ?अतः पूरा वर्चस्वकारी जातियो का समूह पहुँच गया भैयालाल के घर ।

"क्या रे भैयालाल ? तेरे पर ज्यादा चर्बी चढ़ गई ? पक्के मकान में रहेगा? " भीड़ में से एक ने भैयालाल की गर्दन पकड़ते हुए कहा
"पर भाऊ .... मेरा मकान जर्जर हो गया है ... देखो ने आप लोग ... पानी टपकता है बरसात में " भैयालाल ने गिड़गिड़ाते हुए अपनी गर्दन छुड़ाने का प्रयास किया ।
"नहीं !तेरे में गर्मी ज्यादा आ गई है ......कुत्ते ...मादर#@ पहले हमारे खिलाफ पंचायत में जाता है और अब पक्का मकान बना रहा है... चटाक!!"भीड़ में से दूसरा व्यक्ति निकला और भैयालाल को चांटा मारते हुए कहा ।
चांटा खा के भैयालाल दर्द से कराह उठा।
"सुन ....हरामी ....मकान में एक भी ईंट लग गई तो तुझे उसी नीव में जिन्दा गाड़ देंगे " तीसरे ने सुरेखा को चेतावनी देते हुये कहा ।

उसके बाद भीड़ ने ईंटो को तोड़ दिया और बहुत सी ईंटे अपने साथ ले गई ।
पीछे भैयालाल का पूरा परिवार भय और आतंक से बिलखकता रहा।

थोड़े दिनों बाद घटना ।

सुरेखा एक खेत में काम कर रही थी की पास के दूसरे गाँव का दलित व्यक्ति जिसका नाम कामतेप्रसाद था वह भी मजदूरी कर रहा था ।कामते प्रसाद का  किसी बात पर उच्च जातीय मालिक से विवाद हो जाता है , मालिक और कई सारे लोग कामते प्रसाद को बहुत मारते पीटते है जिससे उसे गंभीर चोटे आती हैं ।बात पुलिस तक पहुँचती है ,थाने में सुरेखा कामते प्रसाद के दोषियों को पहचान कर देती है की किस किस ने कामते प्रसाद को मारा है ।

दोषी गिरफ्तार कर लिए जाते हैं पर उसी दिन ही जमानत लेके छूट जाते हैं ।
किंतु, यह तो वर्चस्वकारी जातियो के लिए असहनीय हो जाता है की एक दलित उनके खिलाफ थाने में गवाही दे ,यह तो सरासर अपमान लगा उन्हें अपने प्रति ।

अगले दिन वे लोग सुरेखा के गाँव अपनी जाति के लोगो के पास पहुँच जाते है ,सुरेखा के गांव के वर्चस्वकारी जाति के लोग पहले से ही जमीन आदि को लेके रंजिश रखे हुए थे, और अब सुरेखा की हिम्मत पुलिस तक जाने की हो गई थी ।उन्हें लगा की यदि इसी तरह हिम्मत आती रही तो कल को उनके खिलाफ भी पुलिस तक जा सकती  अतः उन्होंने सुरेखा और उसके परिवार वालो को सबक सिखाने की सोची ।

सैकड़ो की भीड़ एकत्रित हो चल पड़ी भैयालाल के घर की तरह,सबके हाथो में कुछ न कुछ हथियार के तौर पर था
।लगभग सौ घरो के गाँव में मात्र 4 घर दलितों के थे ,वर्चस्वकारी जातियॉ की उग्र भीड़ अपने घरो की तरफ आते देख भय से चारो घर के दरवाज़े बंद कर लिए गए ।

भीड़ भैयालाल के घर के आगे रुकी और दरवाजे पर खड़ी खड़ी गलियों की देने लगी -
" निकलो हरामजादों ... निकल कुतिया !साली गवाही देगी पुलिस को ... निकल "भीड़ सुरेखा के घर के दरवाजे को पीटते हुए कह रही थी ।
अंदर भैयालाल ,सुरेखा और उसके बच्चे मारे डर के कोने में छुपे कांप रहे थे ।

थोड़ी ही देर में भीड़ ने दरवाज़े को उखाड़ दिया , पुरे परिवार को खींच के बाहर निकाल लिया गया ।भीड़ ने लाठी डाँडो से भैयालाल ,दीपक और रौशन पर हमला कर दिया ।रौशन तो जन्म से अँधा था किन्तु भीड़ ने उस पर भी  तरस न खाया ।

भीड़ में से कुछ लोग सुरेखा और उसकी बेटी प्रियंका को मारते पीटते झाड़ियो के पीछे ले गए , उसके बाद उनकी सिर्फ चीखे ही सुनाई आई ।

भीड़ ने पूरा घर तबाह कर दिया,रौशन और दीपक को पीट पीट कर मार दिया गया भैयालाल को मरा समझ के छोड़ा । सुरेखा और प्रियंका को मार दिया गया था , उनके शरीर पर कपड़ो के नाम पर चीथड़े थे शरीर का एक भी अंग ऐसा न था जन्हा घाव न थे ...... दोनों के हर अंग पर गहरे घाव के निशान थे ...हर अंग पर।चार लाशें बिछ गईं थी , केवल भैयालाल की सांसे चल रही थी ।

पुलिस बहुत देर में पहुंची ,कार्यवाई तो और भी सुस्त हुई लाशो का पोस्टमार्टम ठीक से नहीं किया गया ।मामला दबने वाला था की कुछ पत्रकारो ने दिलचस्पी ली अतः केस कोर्ट तक पहुंचा ।फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस की सुनवाई हुई जिसमे 54 आरोपी बनाये गए ,जिसमे 4 को मृत्यु दंड की सजा हुई और दो को ता-उम्र कैद। आरोपियों पर sc/st ऐक्ट के तहत केस दर्ज नहीं हुआ था  ,बाद में उच्च न्यायलय ने निचली अदालत का फैसला रद्द करते हुए आरोपियों को मृत्यु दंड की जगह आजीवन कारावास की सजा दी ।

भैयालाल को गांव छोडना पड़ा,अपनी 5एकड़ जमीन और घर दोनों को छोड़ के जाना पड़ा , sc/st ऐक्ट के तहत केस न दर्ज होने के कारण उन्हें मुआवजा भी न मिला ।दस साल हो गए किन्तु न्याय की लड़ाई जारी है ।आज भी महाराष्ट्र् में  वर्चस्वकारी जातियां sc/st ऐक्ट को ख़त्म करने के लिए गोल बंद हो रहीं है ताकि भैयालाल जैसे लोगो को न्याय न मिल पाये ।


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