"तदस्य स्वविषये कार्तान्तिक-नैमित्तक -मौहोर्तिक
पौराणिक इक्षणिक -गूढ़ पुरुषा:...............
. परस्य विषये......
दैवतप्रश्न निमित्तवाय.....
विजयं ब्रुयू:,…...नक्षत्रे दर्षयेयु:"
-अर्थशास्त्र - 13/171/1
चुकी मेरा काम ही कस्टमर डीलिंग का है तो दिन भर किसी न किसी कस्टमर से राजनैतिक मुद्दे पर थोड़ी बहुत बात हो ही जाती है। मेरी शॉप दिल्ली के उत्तर - पूर्वी जिला में है जो बिलकुल उत्तर प्रदेश से सटा हुआ है ,मैं खुद भी मूल रूप से उत्तर प्रदेश का हूँ तो वंहा की घटनाएं चाहे राजनैतिक जो या सांस्कृतिक कंही न कंही प्रभावित करती हीं हैं।
कल उत्तर प्रदेश में बीजेपी की अप्रत्यक्षीत जीत के बारे में जो वँहा के लोगो ने बताया वह यह की जीत का सबसे बड़ा कारण था हिन्दुओ की सपा - बसपा से नाराजगी। नाराजगी का कारण था कि हिंदुओं के मन में यह बात बैठा दी गई है की सपा- बसपा मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाली पार्टियां हैं । यदि ये पार्टियां फिर सत्ता में आईं तो उत्तर प्रदेश पाकिस्तान बन जायेगा । कैराना - अखलाख आदि मुद्दे को गर्मा के बीजेपी ने पहले ही अपनी रणनीति तैयार कर ली थी , उसने रणनीति पर स्पष्ट काम किया और हिन्दुओ का विश्वास जीतने के लिए उसने एक भी सीट मुस्लिम को नहीं दी ।
यह एक बहुत बड़ा रिस्क था किंतु उसको जो छवि बनानी थी हिन्दुओ में उसने बना ली थी। वह लोकसभा के नतीजों के आकंड़े को मान के चल रही थी की वह जीतना भी नरम रुख अपनाने का दिखावा कर ले मुसलमानों के प्रति मुसलमान उसे वोट नहीं देंगे ,तो बेकार में सीट्स क्यों ख़राब करना किसी मुस्लिम को उम्मीदवार खड़ा कर के?
अब लेख को आगे बढ़ाने से पहले ऊपर दिए अर्थशास्त्र के श्लोक का अर्थ जानिए,
कौटिल्य धर्म की राजनीती करने वाले राजा के बारे में निर्देश देते हैं -
' राजा को इस तरह आश्चर्यमयी बातों को उस के सहायक तथा दैवज्ञ ( भविष्यवक्ता ) , नैमित्तिक( शुभ अशुभ बताने वाले) , पौराणिक( कथावाचक) , गुप्तचर आदि सर्वत्र राज्य में प्रचारित करें । शत्रु के राज्य को पराजित करने के लिए राजा को चमत्कारिक और कष्टों से मुक्तिदाता , उसके दैवीय सेना व् उसके दिव्यकोष की सनसनी उसके गुप्तचर फैला देंवे।
यह सर्वज्ञात है कि बीजेपी धर्म की राजनीती करती है और मोदी अभी उसे सर्वेसर्वा अर्थात राजा हैं।लोकसभा चुनाव में "हर हर मोदी" जैसे नारों से मोदी जी ने खुद को हिन्दुओ का रहनुमा प्रचारित करना शुरू कर दिया था । इस काम के लिए उन्होंने कौटिल्य के सुझाये सभी निर्देशों का पालन बखूबी किया प्रचार तंत्र( टीवी) का , शसक्त आईटी फ़ौज खड़ी की जो फोटो एडिट कर ,झूठी खबरों को सोशल मीडिया को खूब प्रचारित करती रही ।
चुकी इन झूठी खबरों को तात्कालिक रूप से प्रमाणित नहीं किया जा सकता अतः जब तक लोगो को सच बात पता चलती तब तक बहुत देर हो गई होती ।
इन सच्ची- झूठी खबरों का नतीजा यह हुआ की एक अंधी फ़ौज मोदी को अपना भगवान् मानने लगी या यूँ कहिये की कल्कि अवतार जो आते ही मुसलमानों को ख़त्म कर देगा ।
धारा 370 को ख़त्म कर देगा।
बांग्लादेशियों को लात मार के निकाल देगा।
जुमले फेंके गए।
आदि भावनात्मक मुद्दों को खूब उछाला गया , रही सही कसर खुद मुसलमानों ने अपनी कट्टरता से पूरी कर दी ।मोदी और उनकी टीम भी यही चाहती थी की मुस्लिम अधिक से अधिक कट्टर हों तकी
वो उन्हें विलेन बना खुद को हिन्दुओ का रक्षक घोषित कर सकें।
कैराना जैसे घटनाओं को ऐसा उछाला गया ,जैसे पूरे उत्तर प्रदेश से हिन्दुओ का पलायन होने लगा है । न्यूज वालो को अपना हिस्सा मिल गया था ,अब बस उन्हें स्तुतिगान करना था ।
तीन तलाक का मुद्दा मिडिया ने ऐसे उठाया की हिंदुओ को लगने लगा की जैसे वह मुस्लिम समस्या न होके उनकी समस्या हो ,जबकि मौजूद जातिप्रथा के खिलाफ जूं तक नहीं रेंगती ।
हिन्दुओ को ऐसा प्रतीत हुआ की तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं का न होके हिन्दुओ महिलाओं का हो रहा है अतः भारत में ' शरीयत'लागू होने से बचाने के लिए ध्रुवीकरण होने लगा।
विधानसभाओं के ठीक पहले नोटबन्दी कर विपक्षियों की आर्थिक स्वांस नली काट कर उन्हें मृत बना दिया गया , तरीका फिर वही कौटिल्य वाला अपनाया गया प्रचार तंत्र के सहारे जनता को यह समझा दिया गया कि नोटबंदी देश की भलाई यनीं पाकिस्तान ( मुस्लिम) के आतंकवाद के खिलाफ है।
अभी आम भारतीय टीवी की खबरो पर ही भरोसा करता है , पोषित न्यूज वाले दिन रात दिखाने लगे की नोटबंदी से पाकिस्तान को हरा रहे हैं ।जनता में '"देशभक्ति(?) की भावना जगा मुख्य काम यनीं विपक्षियों की आर्थिक स्थिति खराब करने का काम बखूबी पूरा हो चुका था ।
विपक्ष निश्चित ही मोदी के मायावी प्रचार तंत्र से अभी दस साल पीछे चल रहा है ,वह ठीक से कोई भी लूपहोल को जनता के बीच प्रभावी रूप से नहीं रख पाया।
यंहा तक की चुनावी रुख और जनता का रुझान किस तरफ है यह ठीक से आकलन कर ही नहीं पाया या करना ही नहीं चाहा।
मायावती जी जैसी नेत्री की हालत और भी ख़राब हो गई मोदी के इस प्रचार तंत्र में । वो ऐसी नेत्री रही जो बिना किसी मिडीया प्रचार के चुनाव में कूदी जबकि आज लगभग हर घर में टीवी है और लोग न्यूज देखते है । अब यह उनकी नोटबन्दी से आर्थिक स्थिति बिगड़ना कहें या स्वयं का मीडिया से दूर रहना जिस कारण वो प्रचार तंत्र और जुमलेबाजी में पिछड़ गईं।
मायावती मान के चल रही थीं की दलित उनके साथ है किन्तु इस बार वो आकलन करने में चूक गईं। उमके वोट बैंक में कब सेंध लग गई यह उन्हें पता भी न चला ।
रही सही कसर मुसलमानों को 100 के करीब और इतनी ही ब्राह्मणों को सीट्स देके पूरी कर ली।
मुसलमान अव्वल तो उनके साथ थे ही नहीं बल्कि सपा के साथ थे और ब्राह्मण कभी उनके हुए ही नहीं ।ऐसी ही हालात लोकसभा में हुई थी उनकी ब्राह्यणों को सीट्स देके , पता नहीं क्यों वे तब भी नहीं चेती।
भाजपा ने पहले ही मुसलमान विरोधी माहौल बना के हिन्दुओ को अपने पक्ष में किया हुआ था ,उस पर उसने " जय भीम-जय मीम"की अफवाह उड़ा के रहे सही ओबीसी और गैर जाटव वोट भी खिसका दिया । इन्हें लगा की कंही मायावती जी ओवैसी के साथ गठबंधन न कर लें,आखिर मुस्लिम विरोध तो था ही ।मायावती जी भी इस अफ़वाह का खंडन जोर शोर से नहीं कर पाएं .... शायद 100 मुस्लिम कैंडिडेट्स का प्रेम या खोने का डर था ।बाद में यही चुप्पी ले डूबी ।
कुल मिला के जमाना प्रचार तंत्र का है ,प्रचार कीजिये मोदी जी की तरह फिर चाहे केवल 'जुमला' ही क्यों न हो ।विपक्षी दल जितना जल्दी समझ जाएं उनके लिए बेहतर हैं।
पौराणिक इक्षणिक -गूढ़ पुरुषा:...............
. परस्य विषये......
दैवतप्रश्न निमित्तवाय.....
विजयं ब्रुयू:,…...नक्षत्रे दर्षयेयु:"
-अर्थशास्त्र - 13/171/1
चुकी मेरा काम ही कस्टमर डीलिंग का है तो दिन भर किसी न किसी कस्टमर से राजनैतिक मुद्दे पर थोड़ी बहुत बात हो ही जाती है। मेरी शॉप दिल्ली के उत्तर - पूर्वी जिला में है जो बिलकुल उत्तर प्रदेश से सटा हुआ है ,मैं खुद भी मूल रूप से उत्तर प्रदेश का हूँ तो वंहा की घटनाएं चाहे राजनैतिक जो या सांस्कृतिक कंही न कंही प्रभावित करती हीं हैं।
कल उत्तर प्रदेश में बीजेपी की अप्रत्यक्षीत जीत के बारे में जो वँहा के लोगो ने बताया वह यह की जीत का सबसे बड़ा कारण था हिन्दुओ की सपा - बसपा से नाराजगी। नाराजगी का कारण था कि हिंदुओं के मन में यह बात बैठा दी गई है की सपा- बसपा मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाली पार्टियां हैं । यदि ये पार्टियां फिर सत्ता में आईं तो उत्तर प्रदेश पाकिस्तान बन जायेगा । कैराना - अखलाख आदि मुद्दे को गर्मा के बीजेपी ने पहले ही अपनी रणनीति तैयार कर ली थी , उसने रणनीति पर स्पष्ट काम किया और हिन्दुओ का विश्वास जीतने के लिए उसने एक भी सीट मुस्लिम को नहीं दी ।
यह एक बहुत बड़ा रिस्क था किंतु उसको जो छवि बनानी थी हिन्दुओ में उसने बना ली थी। वह लोकसभा के नतीजों के आकंड़े को मान के चल रही थी की वह जीतना भी नरम रुख अपनाने का दिखावा कर ले मुसलमानों के प्रति मुसलमान उसे वोट नहीं देंगे ,तो बेकार में सीट्स क्यों ख़राब करना किसी मुस्लिम को उम्मीदवार खड़ा कर के?
अब लेख को आगे बढ़ाने से पहले ऊपर दिए अर्थशास्त्र के श्लोक का अर्थ जानिए,
कौटिल्य धर्म की राजनीती करने वाले राजा के बारे में निर्देश देते हैं -
' राजा को इस तरह आश्चर्यमयी बातों को उस के सहायक तथा दैवज्ञ ( भविष्यवक्ता ) , नैमित्तिक( शुभ अशुभ बताने वाले) , पौराणिक( कथावाचक) , गुप्तचर आदि सर्वत्र राज्य में प्रचारित करें । शत्रु के राज्य को पराजित करने के लिए राजा को चमत्कारिक और कष्टों से मुक्तिदाता , उसके दैवीय सेना व् उसके दिव्यकोष की सनसनी उसके गुप्तचर फैला देंवे।
यह सर्वज्ञात है कि बीजेपी धर्म की राजनीती करती है और मोदी अभी उसे सर्वेसर्वा अर्थात राजा हैं।लोकसभा चुनाव में "हर हर मोदी" जैसे नारों से मोदी जी ने खुद को हिन्दुओ का रहनुमा प्रचारित करना शुरू कर दिया था । इस काम के लिए उन्होंने कौटिल्य के सुझाये सभी निर्देशों का पालन बखूबी किया प्रचार तंत्र( टीवी) का , शसक्त आईटी फ़ौज खड़ी की जो फोटो एडिट कर ,झूठी खबरों को सोशल मीडिया को खूब प्रचारित करती रही ।
चुकी इन झूठी खबरों को तात्कालिक रूप से प्रमाणित नहीं किया जा सकता अतः जब तक लोगो को सच बात पता चलती तब तक बहुत देर हो गई होती ।
इन सच्ची- झूठी खबरों का नतीजा यह हुआ की एक अंधी फ़ौज मोदी को अपना भगवान् मानने लगी या यूँ कहिये की कल्कि अवतार जो आते ही मुसलमानों को ख़त्म कर देगा ।
धारा 370 को ख़त्म कर देगा।
बांग्लादेशियों को लात मार के निकाल देगा।
जुमले फेंके गए।
आदि भावनात्मक मुद्दों को खूब उछाला गया , रही सही कसर खुद मुसलमानों ने अपनी कट्टरता से पूरी कर दी ।मोदी और उनकी टीम भी यही चाहती थी की मुस्लिम अधिक से अधिक कट्टर हों तकी
वो उन्हें विलेन बना खुद को हिन्दुओ का रक्षक घोषित कर सकें।
कैराना जैसे घटनाओं को ऐसा उछाला गया ,जैसे पूरे उत्तर प्रदेश से हिन्दुओ का पलायन होने लगा है । न्यूज वालो को अपना हिस्सा मिल गया था ,अब बस उन्हें स्तुतिगान करना था ।
तीन तलाक का मुद्दा मिडिया ने ऐसे उठाया की हिंदुओ को लगने लगा की जैसे वह मुस्लिम समस्या न होके उनकी समस्या हो ,जबकि मौजूद जातिप्रथा के खिलाफ जूं तक नहीं रेंगती ।
हिन्दुओ को ऐसा प्रतीत हुआ की तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं का न होके हिन्दुओ महिलाओं का हो रहा है अतः भारत में ' शरीयत'लागू होने से बचाने के लिए ध्रुवीकरण होने लगा।
विधानसभाओं के ठीक पहले नोटबन्दी कर विपक्षियों की आर्थिक स्वांस नली काट कर उन्हें मृत बना दिया गया , तरीका फिर वही कौटिल्य वाला अपनाया गया प्रचार तंत्र के सहारे जनता को यह समझा दिया गया कि नोटबंदी देश की भलाई यनीं पाकिस्तान ( मुस्लिम) के आतंकवाद के खिलाफ है।
अभी आम भारतीय टीवी की खबरो पर ही भरोसा करता है , पोषित न्यूज वाले दिन रात दिखाने लगे की नोटबंदी से पाकिस्तान को हरा रहे हैं ।जनता में '"देशभक्ति(?) की भावना जगा मुख्य काम यनीं विपक्षियों की आर्थिक स्थिति खराब करने का काम बखूबी पूरा हो चुका था ।
विपक्ष निश्चित ही मोदी के मायावी प्रचार तंत्र से अभी दस साल पीछे चल रहा है ,वह ठीक से कोई भी लूपहोल को जनता के बीच प्रभावी रूप से नहीं रख पाया।
यंहा तक की चुनावी रुख और जनता का रुझान किस तरफ है यह ठीक से आकलन कर ही नहीं पाया या करना ही नहीं चाहा।
मायावती जी जैसी नेत्री की हालत और भी ख़राब हो गई मोदी के इस प्रचार तंत्र में । वो ऐसी नेत्री रही जो बिना किसी मिडीया प्रचार के चुनाव में कूदी जबकि आज लगभग हर घर में टीवी है और लोग न्यूज देखते है । अब यह उनकी नोटबन्दी से आर्थिक स्थिति बिगड़ना कहें या स्वयं का मीडिया से दूर रहना जिस कारण वो प्रचार तंत्र और जुमलेबाजी में पिछड़ गईं।
मायावती मान के चल रही थीं की दलित उनके साथ है किन्तु इस बार वो आकलन करने में चूक गईं। उमके वोट बैंक में कब सेंध लग गई यह उन्हें पता भी न चला ।
रही सही कसर मुसलमानों को 100 के करीब और इतनी ही ब्राह्मणों को सीट्स देके पूरी कर ली।
मुसलमान अव्वल तो उनके साथ थे ही नहीं बल्कि सपा के साथ थे और ब्राह्मण कभी उनके हुए ही नहीं ।ऐसी ही हालात लोकसभा में हुई थी उनकी ब्राह्यणों को सीट्स देके , पता नहीं क्यों वे तब भी नहीं चेती।
भाजपा ने पहले ही मुसलमान विरोधी माहौल बना के हिन्दुओ को अपने पक्ष में किया हुआ था ,उस पर उसने " जय भीम-जय मीम"की अफवाह उड़ा के रहे सही ओबीसी और गैर जाटव वोट भी खिसका दिया । इन्हें लगा की कंही मायावती जी ओवैसी के साथ गठबंधन न कर लें,आखिर मुस्लिम विरोध तो था ही ।मायावती जी भी इस अफ़वाह का खंडन जोर शोर से नहीं कर पाएं .... शायद 100 मुस्लिम कैंडिडेट्स का प्रेम या खोने का डर था ।बाद में यही चुप्पी ले डूबी ।
कुल मिला के जमाना प्रचार तंत्र का है ,प्रचार कीजिये मोदी जी की तरह फिर चाहे केवल 'जुमला' ही क्यों न हो ।विपक्षी दल जितना जल्दी समझ जाएं उनके लिए बेहतर हैं।
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