Friday, 17 March 2017

जानिए क्या है 'पुनः जीवित 'होने का रहस्य -


 रात को जब सब बैठे थे तो गाँव से जुडी कई बातें चल निकली , इन्ही बातों के दौरान माँ ने बताया कि उनकी एक दादी थीं जो मर के जिन्दा हो गई थी और जिन्दा होने के बाद उन्होंने बताया कि वो यमराज के दरबार से वायस आ गई क्यों की तब उनका मरने का समय नहीं आया था।

शायद ऐसे किस्से आपने भी कभी न कभी किसी बुजुर्ग से सुने ही होंगे की उनके ज़माने में फला आदमी मर कर जिन्दा हो गया था , क्या वाकई ऐसा होता है कि कोई मर के जिन्दा हो जाए? कोई तथाकथित यमराज के दरबार से वापस आ जाये क्यों की उसका समय नहीं आया था मरने का?

ऐसी कहानियों के आधार पर लोग लोग परलोक, यमलोक या स्वर्ग नर्क को सिद्ध करते थे , दरसल ये कहानियां वह होती थी जो उन्होंने अपने जीवन में कभी सुनी होती थी ।

धार्मिक और मज़हबी रूप से मृत्यु एक रहस्मय घटना है जिसमे आत्मा शरीर से निकल जाती है ,अधिकतर धर्म -मज़हब इसी आत्मा का शरीर से निकल के परमात्मा के समक्ष पेश होने के आधार पर ही केंद्रित हैं ।

आम अर्थों में मृत्यु का अर्थ होता है ,सांस का रुक जाना ,दिल की धड़कन का रुक जाना , किसी भी बाहरी स्पर्श का व्यक्ति पर कोई असर न होना  ऐसी स्थिति में जबड़ा डीला पड़ जाता है और आँखे खुली रह जाती हैं ।तब व्यक्ति को मारा हुआ मान लिया जाता है।

किन्तु,वैज्ञानिक आधार  मृत्यु को एक नहीं बल्कि दो रूपो में समझा जाता है ।
एक तो क्लिनिकल मृत्यु और दूसरा बायोलॉजिकल मृत्यु।

क्लिनिकल मृत्यु का अर्थ होता है दिल की धड़कन और सांस लेने की प्रक्रिया का किसी कारण से रुक जाना। इस परिस्थिति में यदि व्यक्ति को 5 मिनट के भीतर ऑक्सीजन दे दी जाए तो या किसी केस में  छाती पर विशेष प्रकार से चोट की जाए तो फेफड़े व दिल पुनः क्रियाशील हो सकते हैं। विज्ञान के अनुसार यह मृत्यु की स्थिति नहीं है और इसे टाला जा ससकता है ।

जो 'मर के जिन्दा ' हुए लोग यमराज, नर्क स्वर्ग , परलोक आदि की कहानियां सुनाते है दरसल वे सब मामले 'क्लिनिकल मौत'के ही मामले होते हैं। 'मर चुके' लोगों को जैसे ही फिर से पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है वे फिर से जीवित हो उठते हैं और अपने अनुभवों को वैसा ही सुनाते हैं जैसा उन्होंने अपने जीवन में दूसरों से सुन रखा होता है।

एक बात और गौर कीजिए की धार्मिक लोग कहते हैं कि ईश्वर एक है तो जितने ऐसे 'पुर्नजीवित' के मामले मिलते हैं उसमे ऐसा कोई हिन्दू नहीं मिलता जो यह कहता हो की वह अल्लाह के दरबार से वापस आया हो या ऐसा कोई मुस्लिम नहीं मिलता जो यमराज के दरबार से वापस आया हो ।

डाक्टर रेमण्ड मूडी और डाक्टर एलिजाबेथ कुबलर जैसे मनोवैज्ञानिकों ने कई दशकों तक इस तरह के 'पुनः जीवित'लोगो का अध्ययन किया और उन मरणासन्न अनुभवों को लिपिबद्व किया ।
तथाकथित ' पुनः जीवित' लोगो ने अपने अंतिम 4-5 मिन्ट्स के अनुभवों के बारे में जो बताया उसे मनोवैज्ञानियो ने पांच अवस्थाओं में बांटा है।

पहली अवस्था में मर रहा व्यक्ति एक दम शांत हो जाता है ,ऐसा लगता है कज डर और दुःख की भावना उससे दूर जा चुकी है ।उसके अंदर अपनत्व और प्रेम की भावना का संचार तेजी से होता है।

दूसरी अवस्था- इस अवस्था में सुनने की शक्ति बहुत अधिक हो जाती है ,व्यक्ति को लगता है कि वह अपने शरीर से बाहर आ रहा है और अपने मरे हुए शरीर को ऊपर से देख रहा है।

तीसरी अवस्था- इस अवस्था में व्यक्ति बहुत विशाल काले आसमान के भीतर प्रवेश कर रहा  है, वह बहुत तेज गति से जैसे कोई उल्का पिंड हो उस तरह बदलो में प्रवेश कर रहा है।
कई लोगो को ऐसा अनुभव हुआ की वे भयंकर तूफ़ान में घिर गएँ हो और चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा हो ,कुछ को ऐसा लगा की वे किसी अँधेरी सुरंग में घुस गएँ हो ।

चौथी अवस्था- इस अवस्था में बहुत सी चमकदार और सुनहरी सफ़ेद रौशनी दिखाई देती है जिसमे सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई देता है ,मानो चाँदनी से नहाई हुई । इस अवस्था में ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ पीछे छूट गया हो ,मोह माया से व्यक्ति मुक्त हो गया हो।

पांचवी और अंतिम अवस्था- इस अवस्था में व्यक्ति उस स्थान में प्रवेश करता हुआ अनुभव करता है जंहा से रौशनी आती दिखाई देती है ।यंहा उसे अपने प्रियजन अथवा रिस्तेदार दिखाई देते हैं जो उससे पहले मर चुके होते हैं । कई लोगो को यमराज या ईश्वर का दरबार दिखाई देता है कइयों को सुंदर प्रकृतिक दृश्य दिखाई देते हैं ।

इस अवस्था में ऐसी तनाव मुक्त स्थिति होती है जैसा व्यक्ति ने जीवन में कभी अनुभव नहीं किया होता है ।अतः इस स्थिति को व्यक्ति परमान्नद सा अनुभूत करता है । यही कारण है जब व्यक्ति 'पुर्नजीवित ' होता है तो उसे परम् आन्नद की अनुभूति से निकल जाने का दुःख होता है और वह कुछ मिनटों तक मानसिक स्थिर होने में लगते हैं ।

इन अनुभवों का विश्लेषण करने वाले वैज्ञानिकों ने माना है कि दिल की धड़कन बंद हो जाने के कारण मस्तिष्क को ऑक्सीजन मिलनी बंद हो जाती है  इसके कारण आदमी कल्पना के चित्र बनाने लगता है जिसे मतिभ्रम कहा जाता है ।वह जो कुछ भी देखता और समझता है वह छलावा मात्र होता है जो उसके द्वारा सुनी सुनाई बातों पर निर्भर होता है।

क्लिनिकली मृत व्यक्ति को जो कुछ पांच अवस्थाओं में अनुभव होता है उसे ' हैल्युसिनेशन' अर्थात दृष्टि व् श्रवण भ्रम कहा जाता है  जो शरीर के अंदर जैविक व् रासायनिक असंतुलन के कारण होता है  ।इसमें सब कुछ कल्पना के आधार पर होता है न की किसी दैविक ।

वैज्ञानिकों ने कहा है कि अंतिम पांचवी अवस्था जिसमे व्यक्ति ईश्वर आदि से मिलाने या  परम अनान्द दैवीय अनुभूति का दावा करता है उस हैल्युसिनेशन की स्थिति को कई नशीली दवाईओ से भी क्रिएट किया जा सकता है ।
सभ्य समाज के लिए नशा हानिकारक है और किसी भी व्यक्ति को नशा नहीं करना चाहिए  किंतु एल एस डी नामक की नशीली दवाई लेने पर व्यक्ति ऐसे ही परमान्नद कर सकता है।

कई तथाकथित योगी और धर्म के धंधेबाज ऐसे हैल्युसिनेशन( श्रवण / दृष्टि भ्रम)  द्वारा परमानन्द का दावा करते हैं अपने भक्तों के बीच । किन्तु हैल्युसिनेशन चाहे तथाकथित योग से हो या नशीली दवाइयों से है तो वह भ्रम और कल्पना ही ....अतः ऐसी झूठी कल्पनाये निंदनीय और समाज के लिए खतरनाक होती हैं।




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