Monday 11 July 2016

ढाबा - भाग 4



"शर्मा साहब नमस्कार ......ईधर ..." केशव ने हाथ हिलाते हुए कहा
" ओहो!यंहा कोने में हो .... नमस्कार "शर्मा जी ने  ढाबे में प्रवेश करते और  सामने रखे स्टूल पर धम्म से बैठते हुए कहा ।
"  जगह ही यंही मिली आज.....  सब ठीक है न घर पर ? आज तो नहीं मारा भाभी जी ने ?" केशव ने हँसते हुए कहा ।

"सब ठीक है .....मूड वैसे ही खराब है ... तू और खराब मत कर " शर्मा जी थोडा उखड़ से गए ।
"क्या हुआ मालिको?..... कोई परेशानी?'  केशव ने सीरियस हो पूछा और छोटू को आवाज लगाते हुए कहा -
"दो चाय .....और दो मट्ठी ...छोटू "

अब शर्मा जी ने बात आगे बढ़ाई।

"यार!देख तू तो जानता ही है की मैं जातिवाद नहीं मानता , मैं चाहता हूँ की जातिवाद ख़त्म हो जाए " शर्मा जी ने पूछने वाले अंदाज में कहा ।
" बिलकुल ..... यह तो अच्छी बात है " केशव ने जबाब दिया
" पर यार मैं वर्ण व्यवस्था को सही मानता हूँ ... वर्ण व्यवस्था समाज के लिए जरुरी है और हर समाज में वर्ण व्यवस्था है , हमारे ऋषि मुनियो ने जो वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया था वह बहुत सोच समझ के और समाज को व्यवस्थित प्रकार से चलाने के लिए किया था " शर्मा साहब ज्ञान देने मूड में थे ।
" ठीक है जी !!!!... आगे ?" केशव भी ज्ञान लेने के मूड में था।

"देख भाई!,पहले के ज़माने में वर्ण व्यवस्था जन्माना नहीं थी , कोई भी  किसी भी वर्ण में जन्म ले अपने  कर्म के अनुसार वर्ण बदल सकता था .... जैसे वाल्मीकि शुद्र के घर जन्म लेके अपने कर्मो के कारण ब्राह्मण कहलाये " शर्मा जी ने बड़े आत्मविश्वास से कहा
" पर शर्मा साहब , वाल्मीकि तो जन्माना ब्राह्मण थे .....खुद वाल्मीकि रामायण में शुरू में ही लिखा.. उसमे चैक कीजिय वे खुद को प्रचेता के दसवें पुत्र और नारद के भाई बताते हैं ... आपने तो पढ़ी होगी ? " केशव ने प्रश्न वाचक शब्दों में कहा ।

शर्मा साहब को शायद इस जबाब की अपेक्षा न थी अतः थोडा हड़बड़ा गए -
"अ..हाँ ..हाँ बहुत साल पहले पढ़ी थी ... अभी ध्यान नहीं चैक कर के बता दूंगा ...पर वर्ण व्यवस्था अच्छी थी , जैसे जो शिक्षा में प्रांगत हो वह ब्राह्मण , जो युद्ध कला में प्रांगत हो वह क्षत्रिय , जो व्यापार में धन कमाने का इच्छुक हो वह वैश्य और जो इन तीनो कलाओ में अनाड़ी हो वह शुद्र " शर्मा जी लौ में थे अपनी
" केशव कुछ उदहारण देखो.... ऐतरेय ऋषि एक दासी पुत्र थे जो बाद में ब्राह्मण हुए और उन्होने उपनिषद तक लिख दिया .... इसी प्रकार अग्निवेश्य का नाम आता है जिनके वंशधर क्षत्रिय से ब्राह्मण हुए ...और आगे सुनो ... दिवोदास जो की क्षत्रिय थे उनका पुत्र ब्रह्मऋषि हुआ ... बहुत से उदहारण है और .." शर्मा जी कहे जा रहे थे

" और तो और केशव ऋग्वेद के पहले मंडल के सूक्त 112 में एक मन्त्र देखो ' कारुरहं ततोभीष्गुपलप्रक्षिणी ..... परिस्त्रव' अर्थात: हे सोम! मैं मंत्रकर्ता ऋषि हूँ  मेरे पिता चकित्सक है और मेरी माता पत्थर पर अनाज पीसती है ।जिस प्रकार गौ नाना प्रकार चरगाह में चरती है उसी प्रकार हैम लोग विभिन्न व्यवसाय कर धनोपर्जन करते हैं " अब तो शर्मा जी ने पुरे ग्रन्थ खोल दिए

केशव मुस्करा रहा था ।

"तो देखा केशव , वैदिक काल में कोई भी वर्ण बदल सकता था .... ब्राह्मण से शुद्र हो सकता था और शुद्र से ब्राह्मण " शर्मा साहब केशव को मुस्कुराता देख अपनी जीत पक्की समझ रहे थे

" शर्मा साहब ! चलिए आपकी बात मान लेता हूँ .... पर यह बताइये की फिर वर्ण व्यवस्था जन्माना कब हुई ? यानि शुद्र का बेटा शुद्र और ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण ?

शर्मा साहब गहरी सोच में पड़ गए , थोड़ी देर सोचने के बाद बोले -
" यह सब मलेच्छ लोगो के कारण हुआ है उन्होंने ही हिन्दु धर्म को भ्रष्ट किया है " शर्मा साहब एक दम उत्तेजित हो बोले ।
" ब्राह्मणो जायमानोहि ..... गुप्तये ..... मनु महाराज कहते हैं अध्याय 1के श्लोक 99 में  कह रहे है ...यानि ब्राह्मण जन्म लेते ही पृथ्वी के समस्त जीवो में श्रेष्ठ हो जाता है .... अब बताइये जो जन्म लेते ही श्रेष्ठ हो जाये वह कोई भी कर्म कर ले हेय कैसे बनेगा?" अब केशव ने प्रश्न किया ।

शर्मा साहब फिर सोचने लगे और बोले -" यह सब  मिलावटी हैं .....मैक्समूलर जैसे अंग्रेजो ने मिलावट कर दी है कई ग्रन्थो में "
" ओह! चलो ठीक .. माना मिलावट कर दी होगी , पर शुद्रो दलितों  का उपनयन संस्कार क्यों बंद कर दिया गया ? क्या वह भी अंग्रेजो ने बंद करवाया ?बिना उपनयन संस्कार के गुरुकुल में प्रवेश निषेध था और बिना गुरुकुल में प्रवेश के पढाई कैसे संभव था ?

शर्मा साहब को समझ नहीं आ रहा था की क्या बोले वे बेचैनी से ढाबे में रखे मर्तबानो को देखने लगे ।फिर कुछ सोच के बोले-
"वर्ण व्यवस्था दूसरे देशो में भी है .... वंहा के समाज में भी वर्ण के अनुसार बंटा हुआ है .... अमेरिका जैसे देशो में भी "
" न! वंहा वर्ण नहीं बल्कि नस्ल यानि race है , काला -गोरा भेदभाव आदि नस्लीय है पर वर्ण में यदि शुद्र गोरा भी हुआ तो भी वह शुद्र ही रहेगा और यदि ब्राह्मण काला भी हुआ तो शीर्ष पर रहेगा "

"प....पर..." शर्मा साहब ने कुछ कहना चाहा
" अब मेरी बात सुनिए शर्मा साहब ..." केशव ने बीच टोकते हुए कहा ।
" आपके वर्ण व्यवस्था के अनुसार शुद्र /अछूत को न तो विद्या ग्रहण करने का अधिकार है ,न उसे अपनी रक्षा करने के लिए हथियार उठाने का अधिकार है,न ही अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए व्यापार करने का अधिकार है ।तो!, अब प्रश्न यह उठता है की यदि तीनो वर्णों में (ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य) अपना कम सही से नहीं करता है तो क्या होगा? " केशव ने प्रश्न किया

"क्या मतलब ? मैं समझा नहीं ...." शर्मा जी ने आँखे गोल करते हुए पूछा ।

"मतलब की यह जैसे की, मान लीजिये ब्राहमण अपना काम सही से नहीं करता और वह दोनों वर्णों को शिक्षा देने से इंकार कर देता है फिर क्या होगा? या शिक्षा के बहाने उन्हें अन्धविश्वास और पाखंड की तरह धकेल देता है तो क्या होगा?" केशव अपनी लौ में कहे ही जा रहा था , कहते कहते उसने सोचने वाले अंदाज में आँखे बंद कर ली ।फिर कुछ क्षण आँखे बंद किये किये ही बोलना शुरू किया

"इसी प्रकार क्षत्रिय हथियार के बल पर सभी का शोषण करता है तो क्या होगा?या मान लीजिये ब्रहमण,क्षत्रिय,वैश्य तीनो साधन और शक्ति सम्पन्न हैं और अपनी ताकत का नाजायज फायदा उठा के शुद्र जिसके पास न विद्या है , न हथियार हैं , न धन है उसका शोषण करते हैं तो शुद्र क्या करेगा?
शुद्र न तो पढ़ा लिखा है, न ताकतवर है और न धन है उसके पास ऐसी स्थिति में वह कैसे मुकाबला करेगा ऊपर के तीनो वर्णों का? उसे जीवन भर गुलामी करनी पड़ेगी ऊपर के तीनो वर्णों की , अन्याय अत्याचार सहना पड़ेगा।
फिर एक दिन इन्ही शुद्रो में से किसी को अछूत बना दिया जायेगा" केशव अब भी आँखे बंद किये हुए बोले जा रहा था ।

अचानक ठक की आवाज से उसका ध्यान टूटा , उसने आँखे खोल के देखा तो सामने छोटू दो चाय के गिलास मेज पर रख रहा था ।"ठक" की आवाज मेज पर गिलास रखने की ही थी ।
केशव ने चौंक के पूछा - "शर्मा जी कँहा चले गए ?"
" शर्मा जी तो थोड़ी देर पहले ही चले गए .... एक चाय ले जाऊं क्या ? छोटू ने बताते हुए प्रश्न किया।

"चले गए !!..... नहीं ले मत जा .. मैं ही पी लेता हूँ शर्मा जी की भी " इतना कह केशव हँस दिया ।




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