Wednesday 21 September 2016

बुद्ध की युद्ध ?



शाक्य(सक्क) और कोलियों राज्यो  में रोहिणी नदी विभाजक रेखा थी ,एक बार दोनों राज्यो के नागरिको में पानी लेने के पीछे झगड़ा हुआ जिसमे दोनों पक्षो को बेहद गंभीर चोट आईं।

इस बात पर दोनों राज्यो के वैमनस्य में अधिक बढ़त हुई और दोनों राज्य के सैनिक आमने सामने आ गएँ ।शाक्य सेनापति ने कोलियों से युद्ध छेड़ने के लिए संघ से अनुमति मांगी ।संघ में सेनापति के युद्ध करने के प्रस्ताव को को पारित कर दिया , किन्तु नियम के अनुसार सेनापति ने सभी सदस्यों को संबोधित करते हुए पूछा की इस प्रस्ताव पर किसी को ऐतराज तो नहीं है ? इस पर सिद्धार्थ( गौतम/गोतम) ने सभा में खड़े होके युद्ध के खिलाफ बोला, उन्होंने कहा -
" युद्ध से कोई समस्या हल नहीं होती और न ही उद्देश्य पूरा होता है , एक युद्ध दूसरे युद्ध का बीज बो देता है ।कोलिय और शाक्य निकट पडोसी है अतः जो भी समस्या है उसे शांति पूर्वक हल किया जाना चाहिए '

इस प्रकार सिद्धार्थ युद्ध में भाग लेने से मना कर देते हैं अतः परिणाम स्वरुप उन्हें उन्हें देश परिवार और राज्य छोड़ के परिवार निकाला दे दिया जाता है।


अशोक(असोक) कलिंग जीतने के लिए युद्ध करता है किन्तु युद्ध की विभीषिका देख कर आगे से कभी युद्ध नहीं करने का प्रण लेता है उसके बाद वह अन्य देशो में बौद्ध धर्म प्रचारित प्रसारित करता है किन्तु बिना युद्ध लड़े।चीन, श्रीलंका  कोरिया , जापान , वर्मा, वियतनाम जैसे देशो में बौद्ध संस्कृति फैलती है बिना युद्ध किये ।

युद्ध कैसा भी हो चाहे विस्तार के लिए या आत्मरक्षा के लिए अंतत: नुकसान सिर्फ आम जनमानस का ही होता है फिर चाहे वह आर्थिक हो या शारीरिक ।युद्ध हमेशा अपने पीछे कर्दन,रुदन,चीत्कार, शोक छोड़ जाता है पीढ़ियों के लिए ।

वैदिक धर्म कहता है "धर्म हिंसा तथैव च: " (धर्म के लिए हिंसा श्रेष्कर है ) यंहा हिंसा देश के लिए नहीं धर्म के लिए करने का विधान है कहा गया है
वह यह भी कहता है "वैदिक हिंसा , हिंसा न भवति:'( अर्थात वैदिक हिंसा हिंसा नहीं कहलाती ) यंहा भी हिंसा धर्म के लिए ही कही गई है न की देश के लिए ।

इसी प्रकार क़ुरान में भी जगह जगह  गैर ईमान वालो से युद्ध करने के लिए कहा गया है , दारुल हर्ब को दारुल इस्लाम बनाने के लिए ।

मोदी जी आपने वियतनाम में जाके कहा है की 'उन्होंने तुम्हे युद्ध दिया , हमने तुम्हे बुद्ध दिया ' ।

मैं जानता हूँ की आज सभी लोग पाकिस्तान से युद्ध चाहते हैं , सारा देश क्षुब्द है अपने वीर सैनिको को खो के अतः वे ' आक्रमण'  चाहता है  'युंद्ध देहि' कह रहा है ।पर वाकई यह हकीकत है की युद्ध केवल जज्बातों से नहीं लड़ा जाता उसके लिए कूटनीति बहुत जरुरी है ।
आज देशवासियो की जो मांग आपसे है वह अपेक्षित थीं,आपने किया क्या था सोचिये ।
नकली लाल किला बनवाके उस पर तुरंत मौजूदा प्रधान मंत्री
की खिल्ली उड़ाना ।टीवी प्रोग्राम में ' ओबामा ओबामा' कह के चिढ़ाना आदि सब आपने ही किया था चुनाव जीतने के लिए ।अब जब सच में हमला हुआ है तो जनता आपको आपके ही वादे याद दिला रही है ।

पर यह आप पर निर्भर है की आप अपने पडोसी को 'बुद्ध ' देना चाहते हैं की 'युद्ध' किन्तु इतना निवेदन है सत्ता के लिए ऐसे वादे मत कीजिये जनता से की उसे निभाना मुश्किल हो जाए , सत्ताएं आती तो आती जाती रहती हैं ।
फोटो साभार गूगल





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