Thursday 9 March 2017

प्यार- कहानी

 " मेरी बात मान ले राकेश !लड़की अच्छी है, आख़िर बहुत लंबी उम्र होती है .…जिंदगी अकेले काटना बहुत मुश्किल होता है" माँ ने  रसोई से दूध का गिलास ला मेज पर रखते हुए कहा।

"माँ! फिर तुम  शुरू हो गईं"राकेश ने गिलास मे रखे दूध को निप्पल में डालते हुए थोड़ा झुंझुला के कहा ।

"तेरे भले के लिए ही कह रही हूँ ....मैं कब तक रहूंगी यंहा? और फिर अभी नमिता सिर्फ दो साल की है ...कैसे सँभालेगा तू अकेला? " अब नाराज़ होने की बारी माँ की थी।

राकेश खामोश रहा और चुपचाप नमिता के मुंह में दूध का निप्पल लगाए उसे देखता रहा ।

कुछ देर चुप रहने के बाद मां राकेश के पास आई और कंधे  पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा ।
"देख राकेश! मैं मानती हूँ की बहुत प्यार करता था तू विभा से ...पर मेरे बच्चे! अब विभा को गए डेढ़ साल हो गएँ ,मैं मानती हूँ की उसे भूलना तेरे आसान न होगा पर सिर्फ उसकी यादो के सहारे जिंदगी तो नहीं कटेगी न....बच्ची का मुंह देख और शादी के लिए हाँ कर दे,तू नहीं संभाल पायेगा इस दुधमुंही बच्ची को"

राकेश ने माँ की तरफ देखा और फिर नमिता की तरफ, नमिता अब भी दूध पीने में मग्न थी।

"नहीं माँ, मैं नहीं करूँगा अब शादी । मेरी विभा की आखरी निशानी ही मेरे जीवन का मकसद बनेगी,मैं किसी और से अपने प्यार का बंटवारा नही कर सकता "रमेश ने नमिता को चूमते हुए सर्द लहज़े में जबाब दिया ।

माँ के मुंह से कोई शब्द न निकला ,वह लाचार सी राकेश को देखती रही।
कुछ दिन बाद वो वापस गाँव अपने पति यानी राकेश के पिता के पास लौट गईं। जाती भी क्यों न आखिर गाँव में खेती के अलावा नौकरी भी है पति की अतः राकेश के पास ज्यादा दिन नहीं रुक सकती थी।

बचे सिर्फ राकेस और डेढ़ साल की नमिता ।

जब से विभा की मौत हुई तब  से राकेश ही उसकी मां बन गया था । समय समय पर दूध गर्म कर के पिलाना, डायपर बदलना आदि सभी काम वह स्वयं करता ।

इस काम के लिए उसने पहला ऑफिस जंहा उसे अच्छी सैलरी मिलती थी वह छोड़ दिया और एक ऐसे ऑफिस में लगभग आधी सैलरी में काम करने लगा ताकि उसे नमिता के लिए अधिक समय मिल सके ।

समय निकलता गया, नमिता पहले घुटनो से फिर पैरों से दौड़ने लगी । नमिता को स्कूल फिर कॉलेज तक लाते लाते राकेश ने न जाने कितनी राते और दिन अकेले दर्द से सही पर नमिता को इस बात का कभी अहसास नहीं होने दिया  , काम और फिर नमीता की देखभाल करते करते समय से पहले ही बूढ़ा लगने लगा था वह।

इस बीच माँ बाप का साथ भी छूट गया । गाँव की सब जमीन जायजाद बेच के राकेश ने शहर में ही प्रोपर्टी खरीद ली थी , यह नमीता की ही जिद थी की उसका एक फ्लैट किसी पॉश एरिये में हो ।
पॉश एरिये में फ्लैट महंगा था अतः केवल गाँव की जमीन बेचने से भर काम न चला बल्कि अपनी सारी जमा पूंजी भी लगा देने के साथ पुराना घर भी बेचना पड़ा तब जा के फ्लैट ख़रीदा गया ।


नमीता बहुत खुश थी।

करीब एक साल बाद.....

"पापा अगर मैं शादी करुँगी तो उसी से वर्ना आत्महत्या कर लुंगी "नमीता ने सुबकते हुए कहा ।
"पर नमीता हम तो अभी ठीक से उसे जानते भी नहीं..... मुझे वह लड़का सही नहीं लगता " राकेश ने गुस्से से कहा ।
"आपको तो अच्छा लगेगा ही नहीं ... अरे आप क्या जानो प्यार क्या होता है ? मेरी माँ होती तो ऐसा नहीं होने देती ... आप को तो कोई मतलब ही नहीं मेरी खुशियों से "इतना कह नमीता गुस्से से चिल्लाने लगी और फिर फूट के रो पड़ी।

राकेश स्तब्ध बहुत देर तक खड़ा रहा ,फिर नमीता के पास आ के बोला-" बेटी मैं तेरे भले के लिए कह रहा हूँ .....जब वह लड़का अपने पिता के साथ रिस्ते की बात करने आया था तो दहेज में यह फ्लैट मांग रहा था "
"अरे झूठ मत बोलिये वह आपसे अपने लिए नहीं मांग रहा था बल्कि वह कह रहा था कि आप यह फ्लैट मेरे नाम कर दें .... आखिर आपके बाद तो  मुझे ही मिलने वाला है न ....तो इसमें गलत क्या कहा उसने ? .... मुझे लगता है कि आप मुझे कुछ देना ही नहीं चाहते " नमीता का गुस्सा इस बार और अधिक था ।

राकेश कुछ न बोला बस नमीता की बाते सुने जा रहा था।


कुछ दिन बाद नमीता की शादी हुई , विदाई के वक्त राकेश ने नमीता के हाथ में फ्लैट ट्रांसफर के कागज़ात थमा दिए । कागज़ात देख के नमीता बहुत खुश हुई और बोली-
"पापा आप टेंशन न लें ... आप का ही घर है आप जींतने दिन चाहे यंही रहिये"

राकेश मुस्कुरा दिया , ईधर नमीता की डोली उठी उधर राकेश का बैग ।

बैग में सिर्फ एक जोड़ी कपडे और उसकी पत्नी विभा की तस्वीर के अलावा कुछ न था ।
राकेश चल दिया था एक अनजान सफर में।


बस यही तक थी कहानी....


 picture from Google -



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