Thursday 17 August 2017

पकवान- कहानी



माथे पर चन्दन का लम्बा तिलक लगाएं स्वामी जी ऊँचे मंच पर बैठे लोगो को आत्मा- परमात्मा पर प्रवचन दे रहे थे । कुछ क्षण रुक पास पड़े मिश्री और इलाइची के पात्र से कुछ मिश्री के टुकड़े और इलाइची उठा मुंह में डालते हुए फिर से प्रवचन देने लगे- भक्तो! कलियुग युग में जो व्यक्ति गुरुओं की सेवा करेगा, धर्म पुरुषो की सेवा करेगा, ब्राह्मण- गाय की सेवा करेगा , दान- पुण्य करेगा वह अपने समस्त पापो से मुक्त हो बैकुंठ धाम जायेगा...... वह स्वर्ग जा सभी सुखों का भोग करेगा.....जो यंहा जितना दान-पुण्य करेगा , धर्म पुरुषो की सेवा करेगा वह स्वर्ग में आन्नद ही आनंद का भोग करेगा उसकी आत्मा वंहा सभी सुख भोगेगी "

उनके प्रवचन पर जनता झूम झूम जा रही थी ,चारो तरफ भक्तिमय माहौल के साथ स्वामी जी के जयकारे गूंज रहे थे।

इसी तरह आत्मा द्वारा  स्वर्ग में अनगिनत  परालौकिक सुखो  के भोगने का आश्वासन दे स्वामी जी ने कुछ घंटे बाद अपने प्रवचन का समापन किया।

घुरहू हाथ जोड़े उठा और स्वामी जी से अपने घर भोजन के लिए आग्रह करने लगा।
घुरहू ने कहा -" महाराज! मेरी पत्नी ने आज  रसगुल्ले, इमरती, शुद्ध दूध की रबड़ी, बर्फी , देशी घी की पूड़ी- कचौड़ी, मोतीचूर के लड्डू, बादाम की खीर, पनीर की सब्जी ...और न जाने क्या क्या बनाया है ... आपस आग्रह है कि आज रात का भोजन मेरे घर कर मुझे कृतज्ञ करें"

स्वामी जी वैसे शायद मना कर देते किन्तु इतने सारे पकवानों का नाम सुन उनके मुंह में पानी आ गया अतः घुरहू का आग्रह ठुकरा न पाएं और चल दिए घुरहू के घर रात का भोजन करने।

घुरहू ने स्वामी जी के  भोजन के लिए साफ- सुधरा आसन बिछा दिया । स्वामी जी घुरहू की श्रद्धापूर्वक आव भगत देख के गदगद हुए जा रहे थे ।

स्वामी जी को आसन पर बैठाने के बाद घुरहू बोला -"महाराज ! जब तक भोजन नहीं आता तब तक कुछ वार्तालाप ही हो जाए....मैं भोजन के बारे में ही बता दूं" और इतना कह घुरहू आने वाले भोजन के बारे में बताने लगा ।
"कढ़ाई में छन-छन करता हूआ शुद्ध देशी घी जिसकी सुगंध ही व्यक्ति का मन मोह ले ,उसमे सिंकती हुई कचौड़ियां जिसमे भरे हुए है  बादाम- काजू , मुन्नका... आहा!... वो सफ़ेद शुद्ध चासनी में डूबे तेज भूरे रंग के गुलाब जामुन.... वाह!... वह गाय के खोये से बनी पिस्ता वाली बर्फी...... जिसपर करीने से काजू कात के लगाये गएँ हैं.... वाह!"

घुरहू स्वाद लेके खाने में एक एक व्यंजन की तारिफ कर रहा था ,तारीफ़ सुन स्वामी जी बेकाबू हो रहे थे  भूंख कंट्रोल से बाहर हुई जा रही थी। आँखों के सामने घुरहू के बताये व्यंजनो के दृश्य सजीव हो उनके इर्द - गिर्द नाचने लगे थे।

तकरीबन आधी रात होने वाली थी किन्तु घुरहू ने अब तक स्वामी जी के सामने भोजन नहीं परोसा था बस व्यंजनो की प्रसंसा किये जा रहा था-
" पहले धार के दूध की गाढ़ी खीर , खीर में केसर, बादाम से हल्का सुनहरा रंग .… वाह .. जैसे अमृत हो... और पनीर की सब्जी..." घुरहू पनीर की सब्जी के बारे में बताने वाला ही था कि उसकी पत्नी एक थाली में चटनी रोटी लेके आई और स्वामी जी के सामने रख चली गई।

 सुखी रोटी और चटनी देख स्वामी जी क्रोध मे खड़े होते हुए बोले-"मुर्ख....अधर्मी ....पापी... कितने घण्टे से तू मुझे  यंहा भूँखा बैठाये हुए है , व्यंजनो के नाम बता बता उसकी तारीफ किये जा रहा है और खाने को यह सुखी रोटी और चटनी !!"

घुरहू हाथ जोड खड़ा हो गया और  बोला- महाराज! जिस तरह से सुबह आप हमें सारा दिन स्वर्ग में मिलने वाले अद्धभुत और वैभवशाली वस्तुओ को बता के खुश कर रहे थे वैसे ही मैं भी आपको स्वादिष्ट व्यंजनो के बारे में बता के खुश कर रहा था .... आप हमें खुश कर रहे थे और मैंने आप को खुश कर दिया .... आप को ये सब व्यंजन मैं स्वर्ग में अवश्य खिला दूंगा.... अभी तो आप चटनी रोटी  खाइये " इतना कह घुरहू के चेहरे पर एक व्यंगात्मक मुस्कान छा गई।

स्वामी जी  घुरहू की बात सुन अवाक रह गए  , उन्हें आशा न थी घुरहू जैसा अनपढ़ उनसे ऐसी बात कर सकता है । वे किंकर्तव्यविमूढ़  हो कुछ क्षण खड़े रहे फिर मुड़े और तेजी से घुरहू के घर से निकल गएँ।

सुबह पता चला  की स्वामी जी वापस अपने धाम चले गए हैं।



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