Friday 23 August 2019

बुद्ध, कृष्ण और हेराक्लीज

 कोसंबी जी के अनुसार कृष्ण के बारे में एकमात्र पुरातात्विक प्रणाम है उनका हथियार चक्र ही है , यह हथियार वैदिक नही है । उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर ( दरसल , बौद्ध दक्खिणागिरि) के एक गुफा चित्र में एक रथारोही को चक्र से आदिवासियों पर आक्रमण करते हुए दिखाया गया है जिसका  समय होगा  800 ईसा पूर्व , यह लगभग वही समय होगा जब वाराणसी में मानव बस्ती बसनी शुरू हुई थी ।क्या आपको लगता है कि चक्र एक अच्छा हथियार हो सकता है? मेरे ख्याल से नही! चक्र का इतना तीक्ष्ण होना की उसे फेंक के मारने पर किसी किसी की गर्दन कट जाए यह प्रयोगात्मक रूप से थोड़ा कठिन और बेढंगा है।

फिर कृष्ण ने ऐसा हथियार क्यों चुना जो अच्छा नहीं था ? कंही चक्र  को जानबूझ के है 'हथियार ' तो नहीं बनाया गया है ?
यदि चक्र को हथियार के रूप में हम देखते हैं तो किंदवंतियो और कथाओं में कृष्ण ही एक अकेले  ऐसा पात्र लगते हैं जो चक्र का इस्तेमाल करते हैं  ।

कृष्ण के चक्र का नाम सुदर्शन था जिसका अर्थ होता है 'दिखने में अच्छा' या ' जिसको देख के अच्छा लगे' , क्या हथियार को देख के किसी को अच्छा लग सकता है ? हथियार तो संहारक होता है ,मृत्यु लाता है , भय लाता है । फिर कैसे वह 'सुदर्शन' हो सकता है?

इतिहास में बुद्ध  के साथ भी चक्र जुड़ा हुआ है , बुद्ध ने धम्म चक्र ( धम्म चक्क -पवत्तन) चलाया था जिसके द्वारा आधी दुनिया में बौद्ध धम्म फैला दिया । उनके धम्म  चक्र के दर्शन इतने सु-दर्शन थे की लोग अनायास ही खिंचे चले आते थे ।

  शायद बुद्ध का धम्म चक्क ही कृष्ण का सुदर्शन चक्र है ?

कृष्ण के भाई बलराम जिसे शेषनाग का अवतार समझा जाता है वह द्योतक है कि कृष्ण का नागों से घनिष्ठ  सम्बन्ध था। वासुदेव द्वारा कंस की कैद से निकालते वक्त भी एक कई सरो वाला वासुकी नाग ही  कृष्ण को प्रकृतिक आपदा से बचाता है।

बुद्ध का भी आदिवासी नाग जाति से आत्मीय सम्बन्ध थे, उन्होंने नागों को अपने धर्म में दीक्षित किया । मुचलिन्द नाम के नाग जाति के व्यक्ति ने उनकी प्रकृतिक के प्रोकोप से उनकी रक्षा की थी। नालन्दा और संकस्या जैसे प्रमुख बौद्ध विहारों में नागों के प्रति विशेष श्रद्धा रखी जाति थी और इनका उत्थान नाग पूजा स्थलों से हुआ था।

शायद मुचलिन्द ही कृष्ण का भाई शेषनाग का अवतार बलराम ही था ?

कृष्ण के जीवन के अंतिम समय उनके अपने सगे संबंधियों यानि  यदुवंश का नाश हो जाता है ,कौरव सहित सभी सगे सम्बन्धिय युद्ध में मारे जाते हैं । कृष्ण बिलकुल अकेले किसी अज्ञात जगह पर अपनी जीवन लीला समाप्त करते हैं।

बुद्ध की मृत्यु भी एक गुमनाम देहात में हुई ,परिचारिका के लिए केवल एक भिक्षु उनके साथ था ।उस समय तक युद्ध में उनके सगे संबंधियों यानि  शाक्य (सक्क)काबिले का नाश हो चुका था । उनके दोनों सरंक्षक राजाओं की दयनीय स्थति में मृत्यु हो चुकी होती है। जैसे कृष्ण के हितैषी कौरव और पांडवो की  ।

शायद बुद्ध को ही कृष्ण का चोला पहना के खड़ा किया गया ?

कृष्ण या शिव की मूर्तियों के साथ नाग का चित्रण बहुत बाद का है लगभग 9-10 सदी ,जबकि बुद्ध के साथ नाग (मुचलिन्द) की मूर्तियां चौथी सदी में ही बननी शुरू हो गई थी। नीचे आप चित्र देख सकते हैं।

एक ऐतिहासिक पहलू और देखिये ।

यूनानियों ने चौथी ईसापूर्व जब भारत पर आक्रमण किया तो उनके आख्यानों में भारतीय कृष्ण की कथा के अनुसार एक नर देवता था जिसका नाम हेराक्लीज था  । हेराक्लाज यूनानी आख्यानों में एक मल्ल योद्धा था जिसका रंग कड़ी धूप में काला पड़ गया था । इसने हाइड्रा नाम के एक विशालकाय सर्प को ऐसे ही मारा था जैसे कृष्ण ने कालिय नाग को। हेराक्लाज ने कृष्ण की तरह अनेक अप्सराओं के साथ विवाह किया था ।

भारतीय आख्यानों में कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई यह अस्पष्ट है किंतु यूनानी कथाओं में हेराक्लीज की मृत्यु का कारण स्पष्ट है। कृष्ण की कहानी के अनुसार जरस नाम के एक बहेलिए ने जो कि दरसल कृष्ण का सौतेला भाई था उसने कृष्ण की एड़ी में तीर मारा और वही तीर उनकी मृत्यु का कारण बना। भारतीय लोग यह नही समझ पाते कि आखिर कोई एड़ी में तीर लगने से कैसे मर सकता है? जबकि कृष्ण का जो व्यक्तित्व था वह नायक की तरह था जिसके हजारो अनुचर थें।

इसका जबाब में डी डी  कोसंबी लिखते हैं हेराक्लीज की मृत्यु भी इसी प्रकार विष बुझे तीर से होती है, उसकी मृत्यु आनुष्ठानिक वध से होती है जिसमे बलि दिए जाने वाले का भाई( उत्तराधिकारी ) विष बुझे तीर से करता है ।

तो क्या कृष्ण की कहानी हेराक्लीज के बाद कि है?
बहुत सम्भव है कि हेराक्लीज की कहानी को बा

द में बुद्ध के साथ मिक्स कर के परोसा गया हो ?


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