Wednesday, 29 June 2016

बेटी- कहानी



आज कल्पना की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था , वह किसी छोटी बच्ची की तरह पुरे घर में उछलती फिर रही थी,  कभी किचन में जाके देखती की उसकी मम्मी और दीदी क्या बना रही हैं तो कभी ड्राइंग हाल की चीजो को फिर से सजाने लगती तो कभी दिवार पर लगी घड़ी को बेचैनी से देखती।

कल्पना का कोई भाई न था सिर्फ एक बड़ी बहन थी , जो पेशे से डॉक्टर  और विवाहिता थी ।

कल्पना MA  कर चुकी थी और अब एक कम्पनी में नौकरी करती थी । कालेज के दिनों में ही उसकी मुलाकात सुरेश से हुई , फिर यह मुलाकात कब प्यार में बदल गई कल्पना को पता भी न चला । सुरेश भी एक कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर था , दोनों का प्यार जब परवान चढ़ा तो दोनों ने शादी करने का निश्चय किया ।

कल्पना का परिवार मूल रूप से पंजाब का था पर कई वर्षो से उसके पिता वीरेंद्र परिवार के साथ दिल्ली में ही रह रहे थे , यंहा पर उनका फर्नीचर का व्यवसाय था । अपनी दोनों लडकियों को उन्होंने बड़े लाड प्यार से पाला था , कभीं किसी चीज की रोक टोक न थी , बेटियों के फैसले में बहुत कम ही दखलंदाजी करते थे ।

इसलिए  जब कल्पना ने सुरेश से शादी करने का फैसला सुनाया तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं हुई ।

सुरेश हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के एक गाँव के सम्पन्न परिवार से था ,पिता योगेश्वर  सरपंच थे माता चंदादेवी गृहण इसके आलावा  सुरेस ने फरीदाबाद में अपना खुद का एक बड़ा  फ़्लैट लिया हुआ था ..... कुल मिला के अच्छा हिसाब किताब था।

आज सुरेश अपने परिवार के साथ कल्पना के घर अपनी और उसकी शादी पक्की करने आ रहा था ।

तभी डोरबैल बजी , वीरेंद्र जी ने दरवाजा खोला ।

 सामने सुरेश अपने माता- पिता के साथ खड़ा था । दोनों तरफ से एक दूसरे का अभिवादन कर  सभी लोग भीतर  ड्राइंग हाल में बैठ गए ।उसे बाद  दोनों तरफ से जान पहचान की सारी औपचारिकताएं पूरी हुईँ।

नाश्ता पानी करने के बाद रिश्ते की बात पक्की हुई , जो भी लेना देना था सब खुल के बात की सरपंच जी ने ।उसके बाद अगले महीने की डेट फिक्स हुई सुरेश और कल्पना की शादी की ।

अगले महीने निश्चित तारिख पर कल्पना और सुरेश का विवाह बड़े धूम धाम से हुआ ,जो भी तय हुआ था वह सब वसूल लिया वीरेंद्र जी से सरपंच जी ने ।

 कल्पना विदा होके सुरेश के नये फ्लेट फरीदाबाद में रहने लगी ।

 दिन हंसी ख़ुशी से बीत रहे थे , पता ही नहीं चला की कब चार महीने बीत गए ।


एक दिन कल्पना ने सुरेश को वह खुशखबरी सुनाई जिसे सुन सुरेश ख़ुशी से उछल गया , यानि वह बाप बनने वाला था ।पर एक समस्या थी ,चुकी सुरेश और कल्पना फ्लेट में अकेले रहते थे इस कारण कल्पना की देखभाल करने में परेशानी हो रही थी ।

जब सुरेश के पिता सरपंच जी  को यह बात पता चली तो वे भी ख़ुशी से फूल कुप्पा हो गए ,  उन्होंने तुरंत सुरेश से कल्पना को गाँव छोड़ जाने को कहा ताकि उसकी देखभाल हो सके ।इस बात पर कल्पना और सुरेश दोनों राजी  हो गए ,कल्पना ने सोचा इस  चलो इस बहाने उसे सुरेश के परिवारवालों के साथ रहने का मौका भी मिल जायेगा ।

वह माँ बनने के और अपने आने वाले बच्चे के बारे में हजारो ख्वाब लिए  कल्पना सुरेश के गाँव में आ गई ।

गाँव  में भी सरपंच जी ने घर में शहर वाली सारी सुविधाएँ लगवा रखी थीं अतः कल्पना को कोई परेशनी नहीं हुई वंहा एडजस्ट होने में , ऊपरी तल पर उसको एक अलग कमरा मिल गया था ।मोबाइल तो था ही सो कल्पना को सुरेश और अपने माता पिता से संपर्क रखने में भी कोई परेशानी न होती ।

कल्पना जब बोर होती तो गाँव में घूमने निकल जाती ।गाँव में घूमते समय उसे एक चीज बड़ी ही अजीब लगती, उसे पुरे गाँव में छोटी बच्चियां नहीं दिखती ।ऐसा क्यों था ? शायद यह उसका वहम हो ,यह सोच इस बात को वह इग्नोर कर देती ।

जब वह किसी महिला से बात करने की कोशिश करती तो वह महिला  बेहद हिचक के साथ करती  ,कुछ एक ने बात भी पर वे राज्य से बाहर की महिलाये थी जिन्हें यंहा ब्याह के लाया गया था ।यह आश्चर्य की बात थी उसके लिए की गाँव में आधे से अधिक महिलाएं दूसरे राज्यों की थीं जिनकी बोली भाषा पूरी तरह से हरियाणवी नहीं थी , दूसरे राज्य की बोली का मिश्रण साफ़ पता चलता था ।

कल्पना के दो महीना ऐसे ही बीत गया ,अब कल्पना का पेट दिखने लगा था।

एक दिन सुबह सुबह सुरेश के माँ चन्दादेवी कल्पना के कमरे में दाखिल होती है और उससे तैयार होने को कहती है ।
"पर माँ जी जाना कँहा है ?" कल्पना ने प्रश्न किया
" अरे पगली ..डॉक्टर के पास ......चैकअप के लिए " चन्दादेवी ने प्यार से कल्पना के सर पर हाथ फेरते हुए कहा

चैकअप की बात सुन कल्पना तुरन्त तैयार हो गई और सास के साथ कार में जा बैठी ।

कार सरपंच खुद चला रहे थे ।

थोड़ी देर मे वे एक क्लिनिक के बाहर खड़े थे ,क्लीनिक काफी बड़ा था ।वोटिंग हाल में पड़ी कुर्सियो पर कंल्पना और चंदादेवी बैठ गए , सरपंच डॉक्टर के केबिन में बात करने चले गए थे।

थोड़ी देर में सरपंच वापस आये और एक छोटा सा परचा चंदादेवी के हाथ में देते हुए बोले -
" जा ... उस कमरे में चली जा बहु को लेके "

चन्दादेवी कल्पना को लेके उस कमरे में चल देती है, उस कमरे में बड़ी बड़ी मशीने लगी थी ।थोड़ी देर वही डॉक्टर आता है जिससे सरपंच ने बात की थी , उसने  कल्पना का अल्ट्रासाउंड किया और उसे वापस जाने को कहा ।
" पर डॉक्टर साहब ...." कल्पना ने कुछ पूछना चाहा तो उसे बीच में ही टोकते हुए डॉक्टर ने कहा -
" रिपोर्ट आने में थोड़ी देर लगेगी .... 20 मिनट बाद आप सरपंच जी को मेरे केबिन में भेज दीजिये " इतना कह डॉक्टर वंहा से निकल गया ।

बीस मिनट बाद सरपंच  डाक्टर केबिन में थे , डाक्टर ने उन्हें रिपोर्ट दिखाते हुए कुछ कहा जिससे उनके चेहरे पर परेशानी झलकने लगी  फिर कुछ बात करके और पैसे देके वह कमरे से बाहर आ गए ।आते ही तुरंत उन्होंने चन्दादेवी से चलने के लिए कहा ।

' सब ठीक तो है न पिता जी?"कल्पना ने सरपंच को परेशान देख पूछा।
पर सरपंच ने बिना कोई जबाब दिए तेजी दे कार की तरफ बढ़ लिए , कार का दरवाजा खोल ड्राइविंग सीट कर बैठ कल्पना और चंदादेवी का इन्तेजार करने लगे ।
रास्ते भर कल्पना पूछती रही पर सरपंच ने कुछ नहीं बताया उल्टा गुस्सा और हो गए । कल्पना ने सरपंच का यह रूप कभी नहीं देखा था अतःवह सहम के खामोश हो गई ।

 घर पहुचने के बाद कल्पना अपने कमरे में चली गई , सरपंच और चन्दादेवी अपने कमरे में ।कल्पना अपने ससुर की इस हरकत से परेशान थी , उसने अपने घर वालो से बात करनी चाहि तो देखा की मोबाइल में बैटरी न होने के कारण वह स्विच ऑफ हो चुका था । यही नहीं एक मुसीबत और थी की उस समय लाइट गई हुई थी कल्पना मन मार के रह गई ।

रात में जब कल्पना सोने जा रही थी तो उसकी सास उसके कमरे में आई और उसके सिराहने बैठ गई और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरने लगी ।
"क्या बात है मम्मी जी ? सब ठीक तो है न ? पिता जी इतने गुस्से में क्यों है" कल्पना ने बैठते हुए पूछा ।
" कल्पना, तुझे सुबह फिर हास्पिटल जाना पड़ेगा ... तैयार रहना " चंदादेवी ने कल्पना को हिदायत भरे लहजे में कहा ।
" क्यों ..." प्रतिउत्तर में कल्पना ने प्रश्न कर दिया , वह हर चीज जानना चाहती थी ।
"देख मैं तुझ से कुछ छुपाउंगी नहीं .... तुझे बच्चा गिरना होगा कल " कल्पना की जिद पर सपाट लहजे में चंदादेवी ने कह ही डाला ।

" क्या ???.... क्या कह रहीं है आप ? .... पागल तो नहीं हो गईं है आप ? " कल्पना ने आश्चर्य और गुस्से भरे लहजे में बिस्तर से उतरते हुए कहा ।

 " हिंदी तणे समझ कोई न आवे के ? तुझे सुबह हमारे साथ हॉस्पिटल जाना होगा अपना बच्चा गिराने वास्ते " चन्दा देवी का अब लहजा और व्यवहार एक दम से बदल गया
"आप लोग पागल हैं क्या ?.... मैं नहीं करवाउंगी अबोर्शन ... और क्यों करवाऊँ?" कल्पना का गुस्सा अब सातवे आसमान पर था ।

" देख छोरी! बच्चा तो तुझे गिराना ही पड़ेगा.... म्हारे खानदान में लड़की पैदा नहीं होती ....म्हारे ही क्यों गाँव में किसी के घर छोरी नहीं पैदा होती । छोरी जन्मना पाप है इस गाँव में .... छोरी बड़ी होके नाक कटवाती है ...इसलिए इस गाँव में कोई छोरी को न जन्मता है ... म्हारे घर भी कोई छोरी न जन्मेगी " चंदादेवी कहे जा रही थी
" तेरी कोख में छोरी है ... इसलिए गिरना तो पड़ेगा ही "

" क्या पागलपन है यह ..... आप भी एक औरत हैं ... ऐसी बाते कैसे कर सकती हैं .....मैं नहीं अबोर्शन करवाउंगी चाहे कुछ भी हो जाए "कल्पना ने गुस्से से चीखते हुए कहा ।

" बच्चा तो गिराना ही पड़ेगा .... चाहे राजी से या गैर राजी से " इतना कह चन्दा देवी तेजी से कमरे में बाहर निकल जाती है और बाहर से कुण्डी बंद कर देती है ।

कल्पना को अब समझ आता है की गाँव में उसने कोई छोटी बच्ची क्यों नहीं देखी थी । वह  रोते हुए अपना मोबाइल लेती है जो चार्ज पर लगा होता है , वह सुरेश का नंबर मिला के उसको सारी बात बताती है । सुरेश बिना किसी आश्चर्य और ठन्डे लहजे में  कल्पना को समझाता है -
"सुनो कल्पना! जैसा पिता जी और माँ कह रहे हैं वैसा कर लो ....उसमे कोई बुराई नहीं यह हमारे परिवार की इज्जत की बात है ..... अगला बच्चा हमारा लड़का ही होगा तुम यकीं करो फिर तुम्हे ऐसा करने की जरुरत नहीं रहेगी ....पर अभी माँ जैसा  कह रही है वैसा ही करो "
इतना कह के रमेश ने उधर से फोन काट दिया ।कल्पना एक  दम सन्न, उसे सुरेश से ऐसी उम्मीद नहीं थी वह धडाम से फर्श पर गिर पड़ी ।

आंसू थे के रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे ,उसने अपने पापा को फोन मिलाने के लिए नंबर डायल कर दिया ।तभी अचानक दरवाजा खुला और चंदादेवी तेजी से अंदर दाखिल हुई , उसने कल्पना से फोन छीन लिया और स्विच ऑफ कर दिया ।

फोन लेके वह कमरे से बाहर निकल गई , अंदर कल्पना चीखती रही ।

सुबह दरवाजा खुला और चन्दादेवी ने अंदर आते ही कल्पना को कहा -
"जल्दी चल ...बाहर सरपंच जी तेरा इन्तेजार कर रहे हैं "
पर कल्पना अब भी वंही फर्श पर बैठी रोये जा रही थी , उसने जैसे चंदादेवी की बात सुनी ही नहीं ।

चंददेवी ने खीजते हुए कल्पना के बाल पकडे और जोरदार तमाचा गाल पर जड़ दिया ।
तमाचा लगने से कल्पना के मुंह से खून बहने लगा , उसने अपने बाल छुटाने की कोशिश करते और चीखते हुए कहा -
"मैं नहीं करवाउंगी अबोर्शन ..... मुझे अपने बच्ची की हत्या नहीं करनी .....मुझे अपने पापा के पास जाना है "

पर चंदादेवी ने बिना उसकी बात सुने बाल पकड़ के घसीटने लगी ।कल्पना असहनीय पीड़ा से तड़प उठी और उसने चंददेवी के हाथ पर जोर से काट लिया ।

चंदादेवी की चीख निकल गई ।

चीख सुन सरपंच जी भागते हुए ऊपर आये और चन्दा देवी का हाथ बुरी तरह लहूलुहान देखा तो गुस्से में पागल हो गए ।उन्होंने जोरदार तमाचा कल्पना को जड़ दिया , तमाचा इतना जोरदार था की कल्पना चक्कर खाते हुए पलंग के कोने से टकराई । टक्कर तेज थी , कल्पना का सर फट गया था ।एक तेज चीख के साथ कल्पना बेहोश हो गई ।

सरपंच और चंदादेवी को समझ नहीं आया की क्या करें , थोड़ी देर वे ऐसे ही खड़े रहे फिर उन्हें डॉक्टर का ध्यान आया तो उमहोने उसे फोन लगाया।

थोड़ी देर में डॉक्टर आया , उसने कल्पना का मुआयना किया और बोला-
" यह तो मर चुकी है... लगता है की ज्यादा खून बह गया  "
" अब क्या करें डॉक्टर साहब " सरपंच ने डॉक्टर से कहा
" घबराओ मत! जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करो .....पुलिस से तो आप निपट ही लेंगे ?" डॉक्टर ने सरपंच की तरफ देखते हुए कहा ।
" हाँ पुलिस की चिंता मत करो ... आगे बताओ क्या करना है " सरपंच ने डॉक्टर से पूछा ।

उसके बाद डॉक्टर उन्हें कुछ समझाने लगा ,सरपंच हाँ में हाँ मिला रहा था ।चन्दा देवी ने तुरंत कमरे में फैले खून को साफ़ किया ।

थोड़ी देर में पुलिस आई  तो सरपंच ने इंस्पेक्टर को अलग बुला एक भारी पैकेट पकड़ा दिया , उसके बाद पुलिस ने पंचनाम बनाया की कल्पना की मौत सीडियो से गिरने से हुई है ।

फिर उसके बाद सुरेश को और फोन किया गया , उसके दो घण्टे बाद कल्पना के घरवालो को ।

सुरेश कल्पना शमशान घाट पर कल्पना की लाश जलने से पहले पहुँच चुका था ,धीरे से उसे सब कुछ बता दिया गया था ।

कल्पना की लाश लगभग जल चुकी थी उसके बाद रोते बिलखते कल्पना के माता पिता पहुंचे ।

वे कल्पना को अग्नि में जलता देख रहे थे .....कँहा अग्नि के सात फेरे देके उन्होंने कल्पना को विदा किया था ।


बस यंही तक थी कहानी ...

Tuesday, 28 June 2016

एक छोटी सी प्रेम कहानी



रोज की तरह आज भी सुनील डीटीसी बस में बैठा  आईटीओ स्थित अपने ऑफिस जा रहा था।

निसंदेह बस हमेशा की तरह खचा खच भरी हुई  ।

एक एक ऊपर एक आदमी चढ़े जा रहे थे मानो साँस लेने तक की जगह नहीं थी  पर सुनील भीड़ चीरने की आदत थी और उसने को किसी तरह एंट्री गेट से पीछे वाली सीट ले ली थी ।उसके  बगल वाली सीट पर एक बुजुर्ग आदमी बैठा हुआ था । सुनील अपने मोबाइल का हेडफोन लगाये आँखे बंद किये हुए गाने सुनने में मग्न  , उसे पता था की उसका स्टेण्ड आने में अभी 35-40 मिनट लगने ही हैं ।

बस हर स्टेण्ड पर रूकती हुई चल रही थी , जितनी सवारियां उतरती ऑफिस समय होने के कारण उससे ज्यादा चढ़ जाती । सुनील इन सब से बेखबर आँख बंद किये हुए गानो का मजा लेने में डूबा हुआ था ।

 अचानक उसके नथुनो में एक भीनी और मदहोस करने परफ्यूम की खुसबू टकराई ,उसने झट से आँखे खोली तो उसने देखा की उसकी सीट से लग के एक लड़की खड़ी हुई थी । लड़की ने दुपट्टे से अपना चेहरा ढँक रखा था , जैसा की आज कल लड़कियो का फैशन है धूप से बचने के लिए सुल्ताना डाकू बन जाती है वैसे ही उस लड़की ने भी चेहरा स्कार्फ से  बांधे हुए था ।

अब सुनील ने चेहरे से नजर हटा के लड़की के बाकी शरीर का जायजा लिया  , लड़की  ने लाल रंग  स्लीव लैस टॉप और काले रंग की टाइट स्लैक्स पहने हुए थी ,खुले बरगैंडी कलर के बाल ,  उन्नत वक्ष, हाथो का रंग बिलकुल दूध सा गोरा , कमर पतली ( जीरो फिगर वाली), हलके निकले हुए नितंब जो की टाइट स्लेक्स से उनकी आकृति का साफ अहसास हो रहा था ।

"उफ़्फ़ लड़की है या क़यामत ?"- सुनील ने लगभग होश में आते हुए अपने ने मन ही मन में कहा ।

तभी सुनील की नजर लड़की के हाथ पर गई , हाथ पर हिंदी में लिखा था ' नजमा' ।

वाह!बिलकुल अपने नाम के जैसी है ' किसी सुन्दर नज़्म की तरह - सुनील ने फिर अपने मन में सोचा ।
तभी सुनील को कुछ ख्याल आया , वह झट खड़ा होता हुआ लड़की से बोला " आप मेरी मेरी सीट पर बैठ जाइए " ।
लड़की ने एक बार सुनील की तरफ देखा और बिना कुछ बोले सुनील की सीट पर बैठ गई ।

सुनील सीट के साथ खड़ा हो गया ,पर उसकी निगाहे लड़की पर ही टिकी रहीं और वह मन्त्र मुग्ध सा उसे देखे जा रहा था । लड़की भी बार बार सुनील की तरफ कनखियों से देखे जा रही थी ।अभी बस कुछ दूर चली ही थी की सुनील के कानो में लड़की की मधुर आवाज गूंजी -
' आप ऐसे खड़े खड़े थक जायेंगे , आइये आप भी बैठ जाइए ' लड़की थोडा खिसकते हुए जगह बनाने की कोशिश करती हुई बोली ।

सुनील तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई हो , परी जैसी लड़की के साथ बैठने का ' सौभाग्य' कैसे गंवा सकता था वह ? सो ' थैंक्यू ' कहने की औपचारिकता पूरी कह झट चार इंच की जगह में  टेढ़ा होके बैठने की कोशिश करने लग गया। अब लड़की के बदन से सुनील का बदन टकराने लगा , सुनील का शरीर मानो जलने लगा हो लड़की के बालो से आती हुई खुसबू उसकी धड़कने बंद कर रहीं थी । फिर भी वह अपनी सांसो पर काबू करता हुआ बोला -कँहा तक जाएँगी आप?"
" जी , नवोदिता कॉलेज तक " लड़की ने कहा
' ओह ! तो आप कॉलेज में हैं , नवोदिता कालेज तो आई टी ओ के पास है , कौन सी स्ट्रीम है ?
सुनील ने बात आगे बढ़ाई
' बी कॉम फाइनल एयर ' लड़की ने कहा ' आप क्या करते हैं?- अब लड़की ने सुनील से प्रश्न किया ।

" मैंने पिछले साल ही बीकॉम पास किया है और पार्ट् टाइम अकाउंट्स की जॉब कर करता हूँ साथ ही सिविल की परीक्षाएं दे रहा हूँ - सुनील ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया ।

" ओह , यह तो बहुत अच्छी बात है ' लड़की ने कहा

" मेरा नाम सुनील है और क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ ? सुनील ने हिचकते हुए पूछने का नाटक किया जबकी उसने लड़की के हाथ पर नजमा लिखा हुआ पढ़ लिया था पर बात बढ़ाने के लिए सुनील ने पूछा।
" मेरा नाम नजमा है " लड़की ने जबाब देते हुए अपने चेहरे से दुपट्टा हटाते हुए कहा ।

जैसे ही लड़की ने चेहरे से दुपट्टा हटाया सुनील की आँखे आश्चर्य और  ख़ुशी से फ़ैल गईं । नज़मा का चेहरा दुपट्टे से हटाने के बाद ऐसा लगा जैसे बादलो से चाँद निकल आया हो ।
नजमा ने जब सुनील को इस तरह अपनी तरफ देखते हुए पाया तो वह झेंपते हुए बोली -"क्या देख रहे हो?

नज़मा की बात सुन जैसे सुनील को होश आया ही उसने नजरे  हटाते हुए कहा ' कुछ नहीं , आप बहुत खूबसूरत हैं बिलकुल किसी फ़िल्म की नायिका जैसी "
सुनील की बात सुन नज़मा केवल मुस्कुरा दी और नज़ारे नीचे कर लिया
सुनील का दिल और जोर से धड़कने लगा ....दोनों सारे रास्ते बात करते हुए जा रहे थे, बीच बीच में बातो के दौरान नज़मा की हंसी सुनील के दिल को चीर देती  ।

आईटीओ.... कंडक्टर की कर्कश आवाज सुनील के कानो से टकराई , सुनील हड़बड़ा के खड़ा हुआ और कुछ सोच के अपना नंबर एक विजिटिंग कार्ड पर लिख के नज़मा को देता हुआ बोला- "मेरा स्टॉप आ गया है , मुझे जाना होगा आप मेरा नंबर रखिये यदि अच्छा लगे तो कॉल करियेगा ।"

नज़मा ने सुनील का नंबर अपने पर्स में रखते हुए सुनील की तरफ देखा और हलके से मुस्कुराई ।

सुनील भी मुस्कुराया और फ़टाफ़ट बस से निचे उतार गया । उतरने के बाद भी जब तक बस चल नहीं दी सुनील नज़मा को देखता ही रहा ।

उस दिन सुनील का मन काम पर नहीं लगा और बार बार मोबाईल को निकाल चैक करता रहा की कंही नज़मा की कॉल तो नहीं आई? पर नजमा की कोई भी कॉल पुरे दिन नहीं आई । सुनील का सारे दिन मूड ऑफ रहा और वह नज़मा के बारे में ही सोच उखाड़ सा रहा ।

रात के बारह बजे करीब  जब सुनील सोने की तैयारी कर रहा था तो उसके फोन पर नज़मा का फोन आया , सुनील की मानो जान लौट आई हो । उस रात नज़मा और सुनील की बहुत देर तक बात हुई । इसके बाद दोनों तरफ से फोन करने का सिलसिला चल उठा , फोन के बाद मुलाकातो का दौर भी शबाब पर आ गया ।

थियेटर में लास्ट की कोने वाली सीट्स लेके फिल्म देखना और पुराने किले की सुनसान झाड़ियो में बैठना दोनों का आएदिन का शग़ल सा हो गया था ।

 अब दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते थे पर धर्म और मजहब की दिवार बीच में आ गई , जैसा की ऐसी कहानी वाली फिल्मो में होता है न तो सुनील का मुच्छड़ बाप एक मुसलमान लड़की को अपनी बहु बनाने को तैयार न था और न ही नज़मा का खूसट बाप ही एक हिन्दू दामाद के लिए तैयार था बल्कि उसने  तो सुनील को देख लेने की धमकी भी दे दी थी ।

नज़मा से शादी की अड़चनों को देख सुनील ने अपने दोस्त केशव से सहायता लेने की सोची , पर पता चला की केशव काम के सिलसिले में 10-15 दिन के लिए दिल्ली से बाहर गया हुआ है ।

कोई रास्ता न देख और नज़मा के प्यार में पागल सुनील ने खुद ही नज़मा के घरवालो से बात करने का फ़ैसला लिया । शाम को सुनील नजम के घर पंहुचा तो नज़मा का बाप अपने नज़मा से छोटे दोनों बेटो और बेगम  के साथ कमरे में बैठा चाय पी रहा था पास ही नज़मा खड़ी थी , सभी किसी बात पर जोर जोर से हंस रहे थे । सुनील ने फ़िल्मी अंदाज में दरवाजे पर लात मारते हुए जोर से चिल्ला के कहा-
 " नज़माssssss...'

इतना जोर से सुनील का चीखना सुन नज़मा ने गुस्से  और इठलाते अन्दाज में कहा ' क्या है इतनी जोर से क्यों चिल्ला रहे हो ? अब्बा जान घर पर ही हैं "

नज़मा की बात सुन सुनील डर से एक दम से चुप हो गया और उसने फुसफुसाते हुए कहा की -" तुम्हारे अब्बा  से हम दोनों की शादी की बात करनी है "

" ये लो ये आ गए अब्बा " -नज़मा ने कमरे से आते हुए अपने  अब्बा की तरफ इशारा करते हुए कहा ।

 अब्बा बिलकुल फ़िल्म अमर अकबर अन्थॉनी के ऋषि कपूर की ग्रलफ्रेंड के अब्बा ' झुम्मन मिंया ' जैसा था , रंगीन दाढ़ी ,छोटा कद हाथ में छड़ी लिए सीधा सुनील के सामने खड़ा हो गएँ और नज़मा के  दोनों भाई अब्बा के  अगल बगल।

क्या है बे? क्यों हमारी लड़की को परेशान कर रहा है ?"नज़मा के अब्बा ने गर्दन ऊपर तक करते हुए अपने से तक़रीबन 1.5 फुट लंबे सुनील से पूछा
" अब्बा जान ... मैं आपकी लड़की का हाथ मांगने आया हूँ? सुनील ने कहा
' ओये , हमें अपनी लड़की का हाथ तुझे देके उसको टुंडीबनना है क्या , नामाकूल?... चल फूट ले यंहा से , ये बेंत देखी है तूने?" - अब्बा ने सुनील को धक्का देते हुए कहा

" ओह, हो अब्बा तुम भी नहीं समझते ... हाथ मांगने का मतलब है की यह मुझ से शादी करना चाहता है " नज़मा ने बीच में नाराज़ सी होते हुए कहा ।

इधर नज़मा की अम्मी ने सुनील को देखा तो पास आके उसके गालो पर चिकोटी काटते हुए बोली हँसती हुई बोली  " ओये कितना क्यूट मुंडा  है , बिलकुल रणवीर कपूर जैसा .... मुझे तो बहुत पसंद आया "

इतना सुनते ही नज़मा के अब्बा का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया , गुस्से से छड़ी नज़मा की अम्मी के हाथ पर मारते  हुआ बोले " चुप कर उल्लू की पट्ठी, तुझे तो हर जवान लड़का क्यूट ही लगता है ... हट इधर से "

हाथ पर छड़ी लगने से नज़मा की अम्मी मुँह बिचकाती हुई एक तरफ हो गई ।

" तब हाथ क्यों मांग रहा है पूरा शरीर मांगे ना!! ......नज़मा तुम्हारी शादी फिर भी  इस गधे से नहीं हो सकती क्यों की यह हिन्दू है " इतना कह अब्बा ने टंगड़ी फंसाते हुए विश्राम मुद्रा में खड़े सुनील को अचानक गिरा दिया ।

यूँ अचानक धड़ाम से गिरे हुए सुनील को बहुत गुस्सा आया उसने मन ही मन सैकड़ो गालियां निकालीं पर कुछ नहीं कर नही सकता था ,आखिर वे तीन और यह अकेला । उसने लाचारी में  आस पास नजर घुमाई तो सामने एक नल दिखाई दिया , उसके जी में आया की सनी देवल की तरह वह भी 'अशरफ अलीss' चिल्लाता हुआ नल उखड के बुड्ढे के सर पर दे मारे पर नल उखाड़ना उसके बस की बात नहीं थी इस लिए मन मसोस के रह गया  ।

 नज़मा उसके पास आई और उसे खड़ा करते हुए बोली - ' "अब्बा अब हिंदू मुसलामन का किस्सा पुराना हो गया है , मैं शादी करुँगी तो सुनील से ही चाहे कोर्ट मैरिज ही क्यों न करनी पड़े।
सुनील अब चौकन्ना होके खड़ा था की कंही बुड्ढा फिर न उसकी लापरवाही का फायदा उठा उसे टंगड़ी मार के गिरा दे । सुनील चौकन्ना हो अब्बा को देखने लगा


" घूर घूर के क्या देख रहा है ?" नज़मा के बाप ने सुनील की तरफ देखते  हुए कहा

घूर घूर के क्या देख रहा है मुएँ ?आय हाय इतनी देर से घूरे जा रहा ?...कोई जोर से उसे कह रहा था

सुनील जैसे सपने  से जागा हो , उसने देखा की बस चल रही है और वह अब भी सीट के पास खड़ा था ,  सामने दुप्पटे से मुंह ढके वही लड़की ' नज़मा'  अपनी सीट से खड़ी थी और उससे के पूछ रही थी । पर यह क्या नज़मा की आवाज तो मर्दाना मिश्रित आ रही थी जैसे की किन्नरो की आवाज होती है ।

' क्या घूर रहा है इतनी देर से चिकने ? चलना है कंही तो बोल ?तेरे लिए रेट में कन्सेशन '-नज़मा ने दुपट्टा हटाते हुए सुनील की तरफ आँख मारते हुए  कहा ।

सुनील तो वैसे ही उसकी आवाज सुन के बेहोश होने वाला था उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला दुपट्टा हटते ही नज़मा की शेविंग किया चेहरा देख पूरा बेहोश हो चुका था ।

बस ... इतनी सी थी यह प्रेम कहानी

- केशव
'

Sunday, 26 June 2016

धंधा - कहानी




शहर से दूर एक निर्जन और वीरान जगह पर एक मंदिर और एक मजार थी, जिस रास्ते पर यह मजार और मंदिर था उस के आस पास बहुत घना जंगल था जिस कारण लोग बाग़ बहुत कम उधर से गुजरते थे केवल चरवाहे जंगल में अपने पशु चराने सुबह शाम उधर से जाते थे वीरान मंदिर को देख कर कई साल पहले वंहा एक बाबा ने अपना डेरा जमा लिया था । बाबा दिन भर गाँव गाँव और शहर जाके भीख मांगता था , उसे पैसे के अलावा आंटा दाल तेल आदि भी खूब मिलता था जिसे वह अपने खाने के लिए बचा के बाकी का बेंच देता था जिससे अच्छे पैसे भी मिल जाते थे ।

मंदिर के साथ जो मज़ार थी उसमे भी एक फ़कीर ने अपना डेरा जमा लिया था , वह भी गाँव गाँव- शहर  जाके भीख मांगता और अच्छी आमदनी करता ।

शाम को बाबा और फ़कीर दोनों मिलते पर एक दूसरे से बोलते नहीं थे , फ़कीर जब बाबा को देखता तो अल्लाह तौबा कह के मुंह फेर लेता और जब बाबा फ़कीर को देखता तो राम राम किसका मुंह देख लिया कह के मुंह फेर लेता। यह क्रिया कई  सालो तक चलती रही , बाबा और फ़कीर दोनों भीख मांगते और अपने लिए बचा के शेष बेंच देते ।

पर पिछले कुछ सालो से दोनों को भीख मिलना कम हो गया था ,जिसके दरवाजे पर जाते वही उन्हें भगा देता । दिन बहुत कठिनाई से गुजर रहे थे दोनों के पर अब भी दोनों एक दूसरे से बात नहीं करते थे ।


कुछ महीने और बीत गए , अब दोनों को भीख मिलनी लगभग बंद सी हो गई थी । बाबा शरीर सूख के काँटा हो गया था , एक दिन शहर से भीख मांगते हुए वापस आते हुए बहुत थक गया पर झोली खाली थी । थक के वह मंदिर के चबूतरे पर सुस्ताने के लिए बैठ गया, तभी मज़ार पर रहने वाला फ़क़ीर भी शहर से भीख मांग कर वापस आ गया , उसके भी गाल पिचके हुए और शरीर पतला हो गया था लगता था की कई रोज से भरपेट खाना नहीं मिला था। झोला उसका भी खाली था ।

दोनों ने एक दूसरे को देखा पर इस बार पता नहीं क्या समझ के फ़कीर ने बाबा से ' आदाब' कह दिया और उसी चबूतरे पर बैठ गया । बाबा ने भी प्रतिउत्तर में बुझे मन से  राम राम कहा । जंहा पहले  वे दोनों एक दूसरे का मुंह तक नहीं देखना पसंद करते थे वंही आज एक दूसरे की बातो का जबाब दे रहे थे , शायद यह आपसी मज़बूरी का असर था ।

फ़क़ीर ने बाबा की तरफ देखते हुए कहा" क्या बात है ? बहुत कमजोर लग रहे हो "
बाबा ने फ़कीर की बात सुन के एक ठंडी आह भरी और कहा " क्या बताऊँ भाई , कई दिनों से आधे पेट खा के गुजरा कर रहा हूँ । गाँव गांव भटकने के बाद भी भीख नहीं मिलती है , शहर में भी अब कोई एक रुपया भी नहीं देता,  बड़ी मुश्किल से दस बीस रूपये हो पाते हैं और मुट्ठी भी आंटा । जाने लोगो को क्या हो गया है ,कोई भी भगवान् के नाम पर भीख देने को राजी नहीं है ।

फ़कीर ने कहा - यह बात तुम बिलकुल सही कह रहे हो , अपना भी ऐसा ही हाल है । कोई भी अल्लाह के नाम पर पैसा देने को तैयार नहीं । गाँव में जाओ तो लोग बच्चों के हाथो से आधी कटोरी आंटा भेज देते हैं जिससे खाने भर का भी पूरा नहीं हो पाता।

बाबा ने आगे कहना जारी रखा- हाँ,लगता है की सभी नास्तिक हो गए हैं । पहले कितना मिलता था , कितना दान करते थे लोग की खाने के अलावा बहुत सा बेंच भी देते थे जिससे नगद पैसा भी बहुत आ जाता था , शाम के लिए शराब का  इंतेजाम भी आराम से हो जाता था ।

फ़क़ीर ने कहा - सही कहा , मैंने भी कई दिनों से चिलम नहीं लगाई , महंगाई इतनी हो गई है की लोगो ने खैरात देना बंद सा कर दिया है ।
बाबा ने कहा - ऐसे तो हम भूखे मर जायेंगे
फ़क़ीर ने आकाश की तरफ देखा और ठंढी आह भरते हुए  कहा - "हाँ कुछ उपाय करना पड़ेगा ताकि आमदनी आये "

बाबा बहुत देर तक गंभीर मुद्रा में आँख बंद कर के सोचता रहा , फिर उसने आँखे खोली तो बोला -
"हम थक गए हैं लोगो के दरवाजे दरवाजे जा जा के अब....कोई ऐसा  उपाय ऐसा करना पड़ेगा की लोग हमारे पास आये" ।

 फ़क़ीर ने सहमति से सर हिलाया।

बाबा ने फ़कीर के कान में बहुत देर तक कुछ समझता रहा , फ़कीर बीच बीच में सहमति में  सर हिलाता रहा।

दो दिन बाद चरवाहे जब अपने पशु को लेके उस मंदिर के पास से गुजरे तो उन्हें बहुत अच्छी खुशबू हवा मे महकती हुई महसूस हुई ,वे जिज्ञासा वश खुशबू के स्रोत की तरफ चल दिए । उन्होंने देखा की मंदिर के परिसर में एक लंगोटी पहने बाबा ध्यान मुद्रा में बैठा है । उसके चारो तरफ धुनि जल रही है और खुशबू उसी में से आ रही है । चरवाहो ने सोचा की कोई बड़ा साधू है और वे श्रद्धा वश वंही बैठ गए  । थोड़ी देर बाद बाबा ने आँखे खोली और सब पर जल छिड़कता हुआ मन्त्र बुदबुदाने लगा । बाबा ने जल की कुछ बुँदे सामने बने ताजा बने  कुण्ड में रखी टुकड़े की हुई लकडियो पर डाला । जल पड़ते ही कुण्ड की लकडियो में आग लग गई । चरवाहों ने जब यह दृश्य देखा तो वे बाबा को कोई सिद्ध पुरुष समझ के उसके कदमो में लोट गए ।

 चरवाहों ने बाबा से पूछा की आप कौन हैं ?

बाबा ने उत्तर दिया की वह अब से पहले हिमालय की गुफाओ में तपस्या कर रहा था और कल ही यंहा आया है ,लोगो की मन की मुरादे पूरी करने के लिए ही वह अपनी तपस्या छोड़ के आया है ।

चरवाहे बाबा की जय जयकार करने लगे और तुरंत अपनी गाय से दूध दुह के बाबा को भेंट कर दिया । बाबा ने दूध पीते हुए कहा की पास वाले मजार पर भी एक पंहुचा हुआ औलिया आया है जा के उसके भी दर्शन कर लो । जाते वक्त चरवाहों ने श्रद्धा वश एक दो रुपया बाबा को चढ़ा दिया ।

बाबा की बात सुन के सब चरवाहे मजार पर पहुच गए , उन्होंने देखा की एक हरे कपड़ो में बाबा बैठा  है जिसके सामने रखे एक कटोरे में  लोबान जल रही है । लोबान से मनमोहक सुगंध आ रही है । फ़क़ीर ने भी चरवाहों को देखा तो अपने पास पड़े लौटे से पानी की अंजलि भरी और लोबान वाले कटोरे में कुछ बड़बड़ाते हुए छिड़क दिया । लोबान की आग  बुझने की वजाय और भड़क गई । चरवाहों का आस्चर्य का ठिकाना न रहा उन्हें फ़कीर के पैर छूते हुए परिचय पूछा । फ़कीर ने बताया की वह शिरडी से सीधा यंहा आया है और लोगो के ऊपर से जिन्न ,भूत प्रेत आदि की बाधा दूर कर के उन्हें धन दौलत से मालामाल कर देता है।

बस फिर क्या था फ़कीर के लिए भी तुरंत दूध का इंतेजाम हो गया और चरवाहों ने एक रूपये दो रूपये अपनी समर्थता के अनुसार फ़क़ीर के चरणों में रखते गए ।

अगली सुबह पास के गाँव के  दर्जनों लोग बाबा और फ़कीर के दर्शनों के लिए पहुच चुके थे , सब अपनी अपनी श्रद्धा के अनुसार फल,मिठाइयां  और कुछ दान दक्षिणा दे रहे थे ।
एक सप्ताह भी नहीं बीता ही दसियों गाँवो के लोग बाबा के मंदिर और फ़कीर के माजर पर मत्था टेक चुके थे । हिन्दू लोग मंदिर में भजन कीर्तन करते तो मुस्लिम लोग मजार पर चादर चढ़ा के और कब्बाली गाते । बड़ी संख्या में लोग मंदिर और बाबा की सेवा में लगे रहते ।
इधर मुस्लिम लोग मजार और फ़कीर की सेवादारी नहीं करते थकते ।

कुछ ही महीनो में मंदिर और मज़ार शहर तक प्रसिद्ध हो गए , बड़ी बड़ी गाडियो में लोग बाबा और फ़कीर के दर्शन करने आते और मन्नते मांगते। खूब चढ़ाव आने लगा मंदिर और मजार में , प्रशासन को जब पता चला तो उसने वंहा बिजली का इंतेजाम करवा दिया मंदिर और मजार तक जाने के लिए पक्की रोड बन गई थी । बस अड्डे और रेलवे स्टेशन से सवारी ढोने वाले वहां सीधा मंदिर और मजार तक जाने लगे । जंहादिन में भी लोग जाने से कतराते थे अब उस वीरान मंदिर मजार के आस पास बड़ी संख्या में  तरह तरह के समान की दुकाने खुल गई थी । हर दुकान से बाबा और फ़कीर का कमीशन बंधा हुआ था ।

पुरुष ही नहीं अब स्त्रियां भी बाबा और फ़कीर की सेवा में लग गई थीं , बाबा के पास हिन्दू औरतो की लाइन लगती जो सौतन से छुटकारा, पति काउनके प्रति  अप्रेम, बच्चा होने जैसी समस्याओ का निबटारा चाहती थी। तो दूसरी तरह मुस्लिम औरते भी यही समस्याएं लेके फ़क़ीर के पास आती।

बाबा और फ़कीर ने दान चढावे, दुकान का कमिशन  आदि का हिसाब किताब रखने के लिए तीन तीन मुनीम रख लिए थे । पचास साल के बाबा फ़कीर अब 30-35 साल के जवान लगने लगे थे ।


दिन व दिन मंदिर और मज़ार के भक्तो की संख्या बढ़ती जा रही थी , एक दो कंस्ट्रक्शन कंपनिया अब मंदिर और मज़ार के आस पास की जमीनों पर फ्लैट बना के बेचने का विचार कर रहे थे और इसके लिए बाबा और फ़कीर को मोटी रकम कमीशन के तौर पर  एडवांस  दे दी गई थी तथा तीन तीन फ्लेट्स मुफ़्त देने का वादा अलग से।



नोट- मेरी यह कहानी पहले बाबा और फकीर के नाम से कई वेवसाइट पर उपलब्ध है 

Saturday, 25 June 2016

वो कौन थी ?-कहानी




ओह! ...ब्यूटीफुल! !!....कितना खूबसूरत नजारा है , ऐसा लगता है जैसे मैं किसी और लोक में पहुँच गई हूँ " वीणा ने ख़ुशी और आश्चर्य से अपनी बड़ी बड़ी आँखों को और बड़ा करते हुए कहा ।
"केशव! और आगे चलो न , आगे चल के देखते हैं न! उस वाले पत्थर पर खड़े होके और क्लियर सीन दिखेगा .... नीचे गहरी खाई  और दूर तक फैले पहाड़ । कितना रोमांचित करने वाला सीन है ....एक फोटो लेते हैं ,चलो न !" - वीणा ने केशव का हाथ पकड़ के जिद करते हुए कहा

" मैं बहुत थक गया हूँ यार!,मुझ से पत्थरो पर और नहीं चढ़ा जायेगा ...और फिर वंहा जाना खतरनाक होगा,ज़रा सा बैलेंस बिगड़ा और हजारो  सैकड़ो फिट गहरे खाई में ... लाश का भी पता नहीं चलेगा मैडम जी " थकान से भरे केशव ने पास के एक उभरे हुए पत्थर पर बैठते हुये कहा।

"क्या है! मैं उस चट्टान पर जा के एक फोटो खिचवाना चाहती हूँ ...श्रीमान जी अभी से थक गए तो रात में क्या करोगे ...हूँ " वीणा ने केशव के दोनों गाल खीचते हुए शरारती लहजे में कहा और जोर से हँसने लगी ।
वीणा की बात पर केशव को भी हंसी उसने वीणा को खींच के अपनी बाँहो में भर लिया ।

'लव यू...केशव " वीणा कहते हुए केशव की बाँहो में समां गई

बहुत देर तक दोनों एक दूसरे की बाँहो में समाये बैठे रहे , दूसरे सैलानियो के कदमो आहट सुन के दोनों अलग हुए ।

वीणा और केशव की शादी हुए अभी 5 महीने ही हुए थे, दोनों की शादी ऑरेन्ज मैरिज थी ।वीणा और केशव एक कॉमन रिस्तेदार की शादी में मिले थे ,एक दूसरे से जान पहचान हुई और  एक दूसरे को पसन्द करने लगे।
वीणा के माता पिता की मृत्यु उसके बचपन में ही  एक ट्रेन दुर्घटना में हो गई थी । बुआ ने वीणा को पाल पोस के बड़ा किया और शिक्षित किया।

दोनों के घरवालो को इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी अत: दोनों की शादी जल्द ही हो गई ।

शादी के बाद केशव को काम के सिलसिले में इतना व्यस्त होना पड़ा की उन्हें हनीमून मानाने के लिए कंही जाने का समय नहीं मिला । 5 महीने बाद समय मिला तो दोनों ने नेपाल के काठमांडू  का प्रोग्राम बना लिया ...आज दोनों काठमांडू  की पहडियों में ही बैठे थे ।

वीणा जिद करने लगी की उसे उस चट्टान पर चढ़ के फोटो खिचवानी ही है ,न चाहते हुए भी केशव ने कैमरा संभाला और वीणा की चट्टान पर खड़े होके फोटो खीचने को तैयार हो गया ।
फिर क्या था वीणा ख़ुशी से छलांगे मारती  हुई झाड़िया पार करती हुई चट्टान पर चढ़ने लगी ।उधर से और भी सैलानी गुजर रहे थे ।
' संभल के ...आराम से ..पैर न फिसले पीछे गहरी खाई है  " केशव बार बार वीणा को हिदायत दे रहा था

वीणा किसी तरह चट्टान पर पहुँच गई , केशव कैमरा लिए उसकी विभिन्न प्रकार की मुद्राओ में तस्वीरें लेने लगा । वीणा मुस्कुराती ,खिलखिलाती अदाओ से पोज दे रही थी । केशव को चिंता भी हो रही थी और उस की अदाओ पर मुस्कुरा भी रहा था ।

केशव कैमरे में एक आँख लगाये फोटो लेने में मगन था की तभी वीणा का बैलेंस बिगड़ा और एक जोरदार चीख निकली -
'केशवSsss.....' और वीणा आँखों के सामने से एक दम गायब हो गई
केशव का दिमाग जम गया ,उसकी आँखों के सामने वीणा का बैलेंस चट्टान से बिगड़ा और सैकड़ो फुट गहरी  झाड़ियो और पेड़ो से भरी खाई में जा गिरी ।

केशव जड़वत वंही खड़ा रह गया , बिलकुल मूर्ति की तरह दिमाग शून्य हाथ से कैमरा छूट गया था । पास से गुजरते हुए दूसरे सैलानी भाग के केशव के पास आये और उसे जोर से हिलाया तो जैसे उसे होश आया । वह 'वीणा वीणा ' चीखता हुआ खाई में कूदने वाला ही था की दूसरे लोगो ने उसे पकड़ लिया , केशव दहाड़े मार के रोने लगा ।
केशव का दिमाग इतना जोर से फटने लगा की वह कुछ देर बाद बेहोश हो गया ।

किसी सैलानी ने पुलिस को फोन किया , पुलिस आई और इन्क्वारी करने लगी । केशव अब भी बेहोश था , आई कार्ड और कागजो से पता चला की वे किस होटल में रुके हुए थे , पुलिस केशव को हॉस्पिटल ले गई और घरवालो को भारत फोन कर दिया । पुलिस ने वीणा को खाई में तलाशने की भरपूर कोशिश की , 3-4 दिन तक सर्च ऑपरेशन भी चलाया खाई में पर खाई बहुत गहरी और दुर्गम होने के कारण वे अंत तक नहीं जा पाये ।थक हार के उन्होंने सर्च आपरेशन बंद कर दिया और वीणा को मरा हुआ मान लिया , यह अंदाजा लगा लिया की या तो लाश को जंगली जानवर खा गए होंगे या पानी में बाह /डूब गई होगी ।

इधर केशव की हालत जस की तस थी , जैसे कोमा में चला गया हो ।न किसी से बोलना न ही हँसना , बीमार सा बिस्तर पर पड़ा रहता बिजनेस बंद हो गया था । यूँ समझ लीजिये की एक जिन्दा लाश की तरह था जिसे किसी चीज से कोई मतलब नहीं था । उसके माँ बाप ही उसको खाना खिलाते ,नहलाते और दिनचर्या करवाते , केशव लाश की तरह बिस्तर पर पड़ा रहता और अपनी मौत का इन्तेजार करता।

दो महीने से अधिक समय बीत गए थे , केशव की हालत खराब होती जा रही थी, डॉक्टर्स ने भी जबाब दे सिया था की बचना मुश्किल है ।

एक दिन अचानक केशव के घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी । केशव की माँ ने दरवाजा खोला तो आस्चर्य से बेहोश होते होते बची।
सामने वीणा थी
"वीणाssss" केशव की माँ के मुंह से चीख निकल गई , चीख सुन के परिवार के बाकी लोग आ गए ।सबके चेहरे पर आस्चर्य ज्यादा था , वीणा केशव की माँ से लिपट गई और रोने लगी केशव की माँ भी उससे लिपट रोने लगी ।

सब लोग वीणा को घर के अंदर लेके आये और सोफे पर बैठाया , पानी का गिलास देंने के बाद वीणा ने बताया की वह खाई में गिर के बेहोश और घायल हो गई थी । जंगल में रहने वालो ने उसका उपचार किया , ठीक होने के बाद वह यंहा आ गई ।
केशव ने जब वीणा को देखा तो वह भी आस्चर्य और ख़ुशी से उठ बैठा , वीणा उसके सीने से लग रोने लगी ।
 रिस्तेदारो को जब पता चला की वीणा  जिन्दा है तो वह बहुत खुश हुए और मिलने आए ।

परिवार का सारा माहौल वीणा के आने से खुशियो से भर गया , वीणा के प्यार और देखभाल से केशव तेजी से ठीक होने लगा । कुछ ही हफ़्तों में वह पहले जैसा हो गया था , अब उसने अपना बिजनेस फिर से शुरू कर दिया था ।

केशव की जिंदगी फिर से खुशियों की बारिश होने लगी थी ,उसका वीणा के प्रति प्यार और गहरा हो रहा था ।

एक रात वीणा और केशव अपने कमरे में सोये हुए थे की केशव ने वीणा से कहा -
"वीणा ... मेरी सिगरेट की डिब्बी ड्राइंग हाल की टेबल पर रह गई है ... तुम जाके प्लीज ले आओ "
" उँहss नीदं आ रही है सो जाओ न .... वीणा ने लेटे लेटे ही केशव के ऊपर हाथ रह के उसे अपने और पास खींचते हुए कहा
" नहीं यार ! सिगरेट पीने का मन कर रहा है .. प्लीज ला दो न ...चलो मैं ही ले आता हूँ "केशव ने कहा
" नहीं , रुको " इतना कह वीणा ने लेटे लेटे ही  अपना हाथ कमरे के दरवाजे की तरफ किया और अगले ही क्षण उसके हाथ में सिगरेट की डिब्बी और लाइटर था

केशव ने जब यह देखा तो वह समझ नहीं पाया क्या हुआ ,उसके माथे पर से पसीना आ गया ।
उसने काँपती आवाज में कहा "वीणा तुमने यह कैसे किया ?.. सिगरेट की डिब्बी और लाइटर तुम्हारे हाथ में कैसे आ गया"

इतना सुनना था की जैसे वीणा को होश आ गया हो उसमे आँखे खोल दी और केशव से कहा "सिगरेट की डिब्बी तो मैं पहले ही ले आई थी ...तुम्हे बताना भूल गई थी "
"नssही .. तुम्हारे हाथ में कोई डिब्बी नहीं थी पहले मैंने देखा था "
अब वीणा की आवाज थोड़ी सख्त सी हो गई , उसने केशव से कहा "तुम बेकार की बात कर रहे हो ... सो जाओ सुबह काम करना है मुझे "

वीणा की बात सुन वह चुपचाप सो तो गया पर बार बार उसके मन में यही प्रश्न गूंज रहा था ... थोड़ी देर बाद उसकी आँख लग गई।

सुबह जब उसकी आँख तो उसने बिस्तर पर वीणा को नहीं पाया ,वह भाग के माँ के पास गया और उससे वीणा के बारे में पूछा । माँ ने बताया की वह भी सुबह से वीणा को ही खोज रही है , न जाने वह कब और कँहा बिना बताये चली गई ।

केशव को कुछ समझ नहीं आ रहा था, रात की सिगरेट की डिब्बी वाली बात उसे रह रह के याद आ रही थी ... वह अब तक समझ नहीं पा रहा था की यह कैसे किया था वीणा ने ?
और अब कँहा बिना बताये चली गई ?क्या वास्तव में वह वीणा ही थी ?


केशव का दिमाग घूम रहा था कई प्रश्नो के साथ पर उत्तर देने वाला कोई नहीं था ?

बस यंही तक थी कहानी ...

-केशव(संजय)

Thursday, 23 June 2016

नागिन डांस -कहानी




"चाचा जी नमस्ते "  दरवाजे पर रंगीन लड़ियाँ लगवाते हुए गोलू उर्फ़ ज्ञानप्रकाश ने पन्नालाल लाल को कार से उतरता देख आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी लिए नमस्ते कहते हुए  पैर छुए ।
" जीते रहो बेटा... सब ठीक है ?"पन्नालाल ने गोलू के सर पर प्यार से हाथ फेरा और पूछा ।
" जी सब ठीक है ... जब से सुना की आप आ रहे हैं सब  आपका ही इन्तेजार कर रहे हैं "गोलू ने खड़े होते हुए जबाब दिया ।
" बाकी सभी रिस्तेदर भी आ गए हैं की नहीं?पन्नालाल ने उत्सुकता से  गोलू से अगला प्रश्न किया ।
" मामी- मामा ,सुनीता मौसी  और गाँव वाले रिस्तेदार पहुँच चुके है बाकी  बचे हुए शाम तक या कल सुबह तक पहुँच जायेंगे " गोलू ने जबाब दिया ।
सुनीता मौसी का नाम सुनते ही पन्नालाल के होंठो पर एक मुस्कान आ गई ।

ड्राइवर ने कार सामान उतारा और गोलू के आदेश का अनुसरण करता हुआ सामान एक रूम में रख चला गया।


पन्नालाल , आज लगभग 15 साल बाद वह दिल्ली में वापस आया है वह भी जब उसके सबसे बड़े भाई के लड़के गोलू की शादी है ।

पन्नालाल के दो बड़े भाई और थे ,सबसे बड़ा नन्दलाल  और बीच का संतराम ।नंदलाल एक बैंक में क्लर्क था और गोलू उसी का बड़ा बेटा ।

 बीच का भाई संतराम दिल्ली नगर निगम में कार्यरत था । संतराम का रिश्ता आगरा की लड़की अनीता से तय हो चुका था , अनीता का टीचर ट्रेनिंग का आखरी साल कर रही थी अतः विवाह कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया ।

उसकी एक बहन थी सुनीता ... बेहद खूबसूरत ... पन्नालाल ने जब से उसे देखा था लट्टू हो गया था उस पर ।बेचारा , पूरा मजनूँ का बाप बन गया था आशिक़ो में ।

वह कोई न कोई बहाना कर महीने दो महीने में आगरा अनीता के घर जाने लगा , सुनीता के आगे पीछे भंवरा बन चक्कर काटता।
 सुनीता  कॉलेज में पढ़ने वाली और तेज तर्रार लड़की  थी जबकि पन्नालाल पढ़ने में कमजोर और दसवीं भी कमार्टमेंट से पास हुआ था ।

पन्नालाल का आगे पढ़ने का कोई इरादा नहीं था , इरादा भी क्या पढ़ने में मन ही नहीं लगता था उसका इसलिए पढाई छोड़ दी पर कारो में काफी रूचि थी इसके चलते उसने एक गैराज पर मकैनिक की नौकरी कर ली और कारो की मरम्मत करने लगा । गैराज में काम करने से और पढ़ाई में कमजोर होने के कारण अनीता पन्नालाल को कम ही पसन्द करती थी , वह उसे एक तरह से आवारा  ,कम पढ़ा लिखा और नाकामयाब लड़का समझने लगी थी अत: उसका बार बार आगरा में घर आना उसे पसन्द नहीं था और न ही सुनीता से ज्यादा  मिलना जुलना वह टोक भी देती थी पर पन्नालाल पर तो प्यार का भूत सवार था , मानता ही नहीं था ।

फिर आखिर वह दिन भी आ गया जब अनीता और संतराम की शादी होनी थी , बारात आगरा पहुंची । बारात में आगरे का मशहूर ' धमाका बैंड ' बुक किया हुआ था , बैंड का मुख्य आकर्षण था ' नागिन बैंड' ...एक रेहड़ी को चारो तरफ से बंद कर और रंगबिरंगी लाइट्स से सजा और  चारो कोनो में लाउडस्पीकर  बाँध दिए गए थे । ऊपर लिखा   था 'नागिन बैंड' जिस पर एक व्यक्ति खड़ा था ,

हाथ में माइक ल लिए और गले में बैंजो बांधे हुए फ़िल्मी गाने गा रहा था । मजे की बात यह थी की गाने वाले बन्दे में इतना' टैलेंट ' था की कभी लड़के की आवाज में गाना गाता तो कभी लड़की की आवाज में और फिर बैंजो भी खुद ही बजाता, यानि डियूट्स गानो में खुद ही मेल सिंगर की आवाज निकाल के गाता तो कभी फीमेल सिंगर की आवाज में वो अलग बात थी की न तो सही से मेल सिंगर की आवाज निकाल पा रहा था और न ही फीमेल सिंगर का पर बैंड की तेज धुन पर किसी को पता नहीं चल पा रहा था की वह क्या गा रहा है।

बारात के बच्चे - जवान तो नाच ही रहे थे बुड्ढे भी पीछे नहीं थे । कूदते फांदते बारात अनीता के दरवाजे पर पहुँच गई ,बारात देखने के लिए सारे घराती उमड़ पड़े, बारात दिल्ली से आई थी तो लोगो में दिल्ली की बारात देखने का कोतूहल था । सुनीता भी अपनी सहेलियों के साथ बारात देखने के लिए आगे आ गई । अनीता छत से अपनी सहेलियों के साथ बारात देखने पहुँच चुकी थी ।
सुनीता गुलाबी  साडी में सुंदर लग रही थी ...गजब!! जब पन्नालाल ने उसे देखा तो उसने सुनीता का रूप देख के अपना दिल थाम लिया,  उसका अपने मन पर काबू रखना नामुमकिन हो गया था उसने सोचा की आज हाले दिल कह ही देगा चाहे जो कुछ हो ।उसके मस्तिष्क में मुगले आज़म फ़िल्म का गाना 'आज कहंगे दिल का फ़साना ... जान भी लेले चाहे ज़माना " तेज तेज बजने लगा ... बन्दा सूली पर चढ़ने को तैयार पर पहला कदम कैसे बढ़ाये?? डर से बुरा हाल !

जब यह बात पन्नालाल ने अपने एक दोस्त मंगू को बताई .... मंगू तो खुद आज तक किसी लड़की से बात नहीं कर पाया था पर सलाह देने में एक्सपर्ट था  , उसने तुरंत चिर परचित सलाह दे दी-

" अबे ! ऐसे नहीं कह पायेगा अपने मन की बात ले दो पैग लगा फिर अपने आप हिम्मत आ जायेगी " मंगू ने पैग पन्नालाल की तरफ बढ़ाते हुए कहा ।थोडा न नुकार करने के बाद पन्नालाल चार पटियाला पैग खींच गया फिर क्या था ...पन्नालाल सुपरमैन बन चुका था ... वह चाहता तो उस समय धरती में घूसा मार पानी निकाल देता ।

इधर नागिन बैंड पर ' मेरा मन डोले मेरा तन डोले' धुन बज चुकी थी , नागिन बैंड का नागिन धुन सुन के अब  पन्नालाल बे- काबू हो गया ... बस! अब नागिन डांस करने दो उसे ... दोनों हाथ जोड़ के नागिन मुद्रा बना के कभी जमीन पर लोटता तो कभी घुटनो पर बैठ झूमता... सब लोग उसका डांस देख हंस के इंजॉय कर रहे थे ।
पन्नालाल नाचता नाचता सुनीता के पास पहुँच गया , एक पल के लिए उसने सुनीता को देखा और उसे अपनी बाँहो में उठा के फ़िल्मी स्टाइल में एक चुम्बन सुनीता के गालो पर जड़ दिया ।

सब घराती बाराती में सन्नाटा छा गया, किसी को समझ नहीं आया की क्या हुआ , सब जड़ हो गए ।अचानक एक तेज आवाज के साथ सन्नाटा भंग हुआ ' चटाक' ।

ये तेज चटाक की आवाज सुनीता के तमाचे की थी जो उसने पन्नालाल के गाल पर मारा था । सुनीता गुस्से में पन्नालाल को हजारो किस्म की गालियाँ देती से वंहा से चली गई ।पर अब पन्नालाल की तो शामत आ गई थी उसके  पिता जी ने  सारा ' सुरा-सुंदरी' का नशा अपने जूतो से वंही सबके सामने उतार दिया । सुनीता और उसके  के माता -पिता और बाकि रिस्तेदारो ने पन्नालाल को मारा भर नहीं पर उसकी इज्जत का फालूदा बना कूड़े में फेंक दिया ।

किसी तरह से बात को शांत किया गया और शादी की रस्म पूरी की गई , पन्नालाल सारी रात बारात की बस में बैठा रहा और किसी से नज़र नहीं मिला पाया खाना तक नहीं खाया था । सुबह बारात के चलने से पहले ही वह ट्रेन पकड़ के घर वापस आ गया था ।

जब अनीता घर आई तो उसने बहुत बुरा भला कहा पन्नालाल को , पन्नालाल से साफ साफ़  कह दिया की सुनीता उसे जैसे अनपढ़ और नालायक को पसन्द नहीं करती और यदि उसने सुनीता का पीछा नहीं छोड़ा तो बहुत बुरा होगा, बात पुलिस तक पहुँच सकती है ।सुनीता ने भीं अपनी बहन की हाँ में हाँ मिलाते हुए  उसे शुद्ध देशी स्टाइल में जी भर के गालियां सुनाई ।

आह!प्यार का पौधा खिलने से पहले ही उसे निष्ठुर  बकरी चर गई ....

बस!पन्नालाल अपनी बेज्जती बर्दाश्त कर सकता था , बाप के जूते खा सकता था पर सुनीता की न नहीं सुन सकता था  था , दिल टूट गया था  पर करे तो क्या वह था तो एक मामूली कार मैकेनिक  ।अब पन्नालाल का घर में रहना मुश्किल हो गया था जब भी अनीता उसके सामने पड़ती उसे अपने पर ग्लानि होती ।  उसने यह डिसाइड कर लिया की वह अब यंहा नहीं रहेगा ।एक दिन बिना किसी को बताये घर से निकल गया एक अनजानी जगह के लिए , उसने अपने पीछे एक चिट्ठी छोड़ दी थी जिसमें उसे न खोजने की बात लिख दी थी ।

और! आज पन्नालाल वापस आया है इतने सालो बाद  बाद ।

गोलू पन्नालाल के साथ हॉल में पहुंचा जंहा पहले से ही उसके पिता जी ,सभी भाई  और रिस्तेदार मौजूद थे । पन्नालाल को देखते ही सब के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई , पिता ने दौड़ के उसे गले लगा लिया ।बरसो बाद आज उन्होंने पन्नालाल को देखा है , कितना बदल गया है  पन्नालाल ....कंहा वह पहले वाला पतला दुबला सांवला और आवारा सा दिखने वाला पन्नालाल और कँहा यह स्मार्ट सा , महंगा सूट , महंगी घडी आँखों पर बर्नाडेड चश्मा गाले में मोटे सोने की चैन ... किसी बहुत अमीर विदेशी बाबू से कम नहीं लग रहा था ।

पन्नालाल के भाइयो और भाभियो ने भी उसे बहुत प्यार और आत्मीयता से मिले , खासकर अनीता भाभी  तो उसकी आरती उतारने लगी ... पन्नालाल मन ही मन मुस्कुरा रहा था ।पर पन्नालाल की आँखे तो सुनीता को देखने के लिए बेचैन थी ।तभी बाहर से सुनीता दाखिल हुई , शायद पार्लर से आई थी ।
आज भी सुनीता लगभग वैसी ही खूबसूरत लग रही थी जैसा वह पहले लगती रही  .... वही कसा हुआ बदन ,वैसा ही काजल भरी बड़ी बड़ी आँखे , ज्यादा बदलाव नहीं आया था उसकी व्यक्तित्व में ।जब सुनीता से उसकी नजरे मिली तो दोनों तरफ से मुस्कुराहटो का आदान प्रदान हुआ ।पन्नालाल ने महसूस किया की अब सुनीता की आँखों में उसके लिए पहले जैसी नफरत नहीं बल्कि प्यार झलक रहा था ।पन्नालाल भी अपने पन से उसे देख रहा था ।

चाय नास्ते के बाद बातो का सिलसिला शुरू हुआ ,
पन्नालाल ने सबको बताया की उसका  अपना मुम्बई में कार पार्ट्स बनाने का बड़ा कारखाना है ।उसके कारखाने में  बने हुए कार पार्ट्स कई नामी कार कम्पनियो को सप्लाई होते हैं जल्द ही वह एक और कारखाना लगाने वाला था, कई सालो तक वह विदेश में भी रह के आया है ।

सब उसकी तारीफ करते नहीं थक रहे थे ,उसके बाद पन्नालाल ने अपना सूटकेस मंगवाया और उसे खोल  अपने पिता जी,भाइयो को घडी , मोबाइल आदि महंगे उपहार दिए । वह अनीता और नंदलाल की पत्नी यानि अपनी बड़ी भाभी के लिए भी महंगी साड़ियां और ज्वैलरी  ।
सभी रिस्तेदारो के लिए कुछ न कुछ कीमती उपहार था उसके पास ।सुनीता के लिए भी मंहगा और विदेशी लेडी परफ्यूम था , उसने हिचकते हुए उसे स्वीकार किया ।

अनीता तो अपने लिए इतने कीमती उपहार पा के बहुत खुश थी ,उसे अंदाजा हो गया था की पन्नालाल वाकई बहुत बड़ा आदमी बन चुका है ।

दिन भर अनीता पन्नालाल की ही खातिरदारी में लगी रही , वह उसे एक पल के लिए अकेला न छोड़ती और दुनिया भर की बाते उस से कर रही । बातो ही बातो में उसने अपने किये की मांफी भी मांग ली ।सुनीता के बारे में उसने खुद ही पन्नालाल को बताया की उसकी शादी हो गई थी पर कुछ ही सालो में उसने तलाक ले लिया क्यों की उसका पति ठीक नहीं था , कोई बच्चा भी नहीं है ।तलाक लेने के बाद वह उसने जॉब कर और तब से उसका शादी करने का मन ही नहीं किया ।

" क्यों देवर जी ?क्या तुमने शादी की ? " अनीता ने रात को पन्नालाल से पूछ ही लिया ।
हलाकि वह सुबह ही सबको बता चुका था की अभी तक उसने शादी नहीं की है पर अनीता फिर भी कंफर्म करना चाहती थी ।
"नहीं .. अभी नहीं ... अभी नहीं की शादी....पर अब सोच रहा हूँ की कर ही लूँ "  पन्नालाल ने रहस्मय मुस्कान और  ठंढी आह भर के साथ जबाब दिया ।
"फिर ठीक है ...." अनीता ने धीरे से कहा और मुस्कुरा दी,शायद वह पन्नालाल की अनकही बात समझ गई थी ।

अनीता सीधे सुनीता के पास गई जो दूसरे कमरे में थी ,वह सुनीता को बहुत देर तक कुछ समझाती रही ।
अंत में सुनीता बोली" क्या पन्नालाल मान जायेगा ? "
"अरे !वह सब मुझ पर छोड़... मैं उसे पटा लुंगी और बात कर लुंगी बस कल तू भी बारात में जरा उसके साथ ज्यादा समय रहाना ... डांस वांस करने के बहाने करीब आने की कोशिश करियो  ...मर्द जात होते है ही ऐसे है ... ज्यादा देर नहीं लगेगी उसे पिघलने में, तुझ पर तो वैसे ही पहले से मरता था ... बाकी मुझ पर छोड़ " अनीता ने बड़े आत्मविश्वास से कहा ।

अगले दिन सभी लोग शादी की तैयारी में लग गए , शाम की बारात जानी थी , सब अपने अपने काम में बिजी हो गए ।

पन्नालाल नजर नहीं आ रहा था शायद कंही चला गया था
शाम को पन्नालाल वापस आया , सब ने उसके गायब होने का कारण पूछा तो वह हँस के टाल गया ।

दो घण्टे बाद बारात रवाना हुई , और गंतव्य पर पहुंची ।बारात में  सबसे ज्यादा खूसूरत सुनीता ही लग रही थी, आज तो फुल मेकअप किया हुआ था ..बालो में गुथा गजरा दूर तक भीनी खुशबु बिखेर रहा था  ।अधिकतर पुरुष चोरी छिपे उसे ही निहार रहे थे पर वह इतराती बलखाती पन्नालाल के आस पास ही घूम रही थी ,पन्नालाल को रिझाने की पूरी कोशिश जारी थी ।
अनीता भी उन दोनों को ज्यादा से ज्यादा नजदीक रहने की कोशिश कर रही थी ।

गोलू की शादी में फिर एक बार धमाल मच रहा था , नागिन बैंड इस बार भी बुलाया गया ।
बाराती पुरे शबाब पर थे ,कूदते फांदते सब बारात घर की तरफ रवाना हो रहे थे ।पन्नालाल भी बारात के साथ चल रहा थी की अचानक किसी का फोन आ गया , फोन सुना तो उसके चेहरा खिल गया ।

सुनीता बार बार पन्नालाल को डांस करने के लिए उकसा रही थी कभी उसका हाथ पकड़ के खिचती तो कभी हँसते हुए उससे अपने साथ डांस करने के लिए कहती।पन्नालाल टाल रहा था , अचानक वह थोड़ी देर के लिए भीड़ से बहार गया और फटा फट कार में से एक बोतल निकली और तीन पटियाला खीच गया ।

अब करने दो उसको डांस , पन्नालाल भीड़ के बीच में डांस कर रहा थी...नागिन डांस , सुनीता थोड़ी दूर खड़ी मुस्कुरा रही थी ।
अचानक पन्नालाल सुनीता के नजदीक आया ,सुनीता का दिल धड़क गया उसने सोचा की लगता है की पन्नालाल मान गया और उसका हाथ पकड़ के खीचने वाला ही है अपने साथ डांस के किये .... वह बिलकुल तैयार थी .. उसका दिल जोर से धड़कने लगा...मारे उत्तेजना के  उसकी आँखे बंद हो गई ।दूर खड़ी अनीता की साँस अटक गई की अब काम बन गया ।

पर यह क्या !!

पन्नालाल उसके बिल्कुल पास आके सुनीता पीछे खड़ी एक महिला का हाथ पकड़ के खीच  लेता है भीड़ में से अपने साथ डांस के लिए ।

ये महिला कौन थी ?उम्र होगी 30 साल के करीब ... सुंदर तो थी पर सुनीता जैसी नहीं , सुनीता से कम सुंदर होने के बाद भी उसके चेहरे की सौम्यता और सादगी उसको सुनीता से कंही ज्यादा अच्छी साबित कर रहे थे।

पन्नालाल ने डांस करते करते उस महिला को अपनी बाँहो में भर लिया और एक जोरदार चुम्बन जड़ दिया  ,वह महिला भी बड़ी आत्मीयता के साथ पन्नालाल साथ दे रही थी ।पर आज पन्नालाल के पिता का जूता नहीं उतरा था ।

ये महिला कौन थी ? किसी ने भी इससे पहले उस महिला को नहीं देखा था , सभी उत्सुकता से पन्नालाल और उस महिला को देखे जा रहे थे ।सुनीता और अनीता को तो जैसे सदमा लग गया था उन्हें समझ नहीं आ रहा था की यह हो क्या रहा है , ये महिला कौन है और पन्नालाल उसे कैसे जानता है ।कँहा अनीता पन्नालाल को सुनीता के साथ देखने के लिए इतने तिकड़म कर रही थी और इस लड़की ने आके सब पानी फेर दिया ।मारे झल्लाहट के सुनीता तो वंही से घर लौट आई ।

बाद में पन्नालाल ने सबको बताया की वह महिला लता है , लता उस कार गैराज के मालिक की लड़की थी जिसके गैराज में पन्नालाल शुरू में काम करता था । आज जो कुछ भी है लता की बदौलत है , लता और वह दोनों शादी करना चाहते है। बिजनेस को स्टेण्ड करने के कारण पन्नालाल और लता शादी नहीं कर पाये थे ।पर अब जब सब कुछ ठीक है तो पन्नालाल ने लता को भी आज शादी में बुला लिया था ताकि उसे पन्नालाल के परिवार वाले भी देख लें और शादी की डेट भी फिक्स हो जाए ।

अनीता और सुनीता चुपचाप उदास चेहरा लिए सब सुन रही थी ....लता उन्हें नागिन लग रही थी ।

बस यंही तक थी कहानी ....
मेरी और कहानियाँ पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग पर क्लिक कीजिये-
keshavakroshitman.blogspot.com

- केशव (संजय )


Tuesday, 21 June 2016

लावारिश लाश -कहानी

पूर्वी दिल्ली का यह सबसे बड़ा सरकारी हॉस्पिटल था , भीड़ इतनी की लोग ओ.पी. डी में पर्चा बनवाने के लिए सुबह चार बजे से ही मैन गेट पर लाइन लगा देते । चुकी पूर्वी दिल्ली का एकमात्र बड़ा सरकारी हस्पताल होने के कारण और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे होने के कारण दिल्ली और उत्तर प्रदेश के मरीजो की भीड़ लगी रहती ।

रोज की तरह आज भी ओपीडी में लोग सुबह चार बजे से ही पर्चा बनवाने की लाइन लगी हुई थी , भीड़ इतनी की मानो पूरा शहर ही बीमार हो गया हो, 62 साल का सुन्दर लाल भी लाइन में लगा हुआ था । मैला सफ़ेद कुरता और धोती पहने बगल में प्लास्टिक का थैला दबाये लाइन में कभी खड़ा होता तो कभी थक के बैठ जाता , खिड़की खुलने में अभी 2 घंटे थे ।लाइन में लगे लोगो में आपस में बातचीत भी शुरू हो गई थी , पूछने पर सुन्दरलाल ने बताया की वह का बाराबंकी देहात के गाँव का रहने वाला है और सीने में दर्द रहने के कारण उसका इलाज करवाने आया है । लखनऊ में इलाज करवाया था पर वंहा कोई फर्क नहीं पड़ा किसी ने बताया की दिल्ली में इसका इलाज अच्छा होता है इसलिए वह दिल्ली आ गया । सुन्दर लाल की गाँव में अपनी कोई खेती नहीं थी बस एक छोटी सी झोपडी है , वह एक खेतिहर मजदुर था एक ही लड़की थी जिसका विवाह कर दिया । सरकार जो वृद्धा पेंशन देती या लड़की के घर से जो अनाज आ जाता उसी से उसका गुजरा चलता । पत्नी का भी आँखों का ऑपरेशन हो चुका है जिस कारण उसे कम दिखाई देता है ।

सुन्दरलाल जब लखनऊ से इलाज करवा के थक गया तो एक दिन बिना अपनी पत्नी को बताये चुपचाप इलाज के सारे कागज ले और कुछ रूपये जो उसे पेंशन से मिले थे उसे थैले में ले दिल्ली की ट्रेन पकड़ ली । पत्नी को इसलिए नहीं बताया की वह भी साथ आने की जिद करती , अब दिल्ली जंहा वह खुद पहली बार आ रहा है जीवन में वंहा आधी अंधी हो चुकी पत्नी को कैसे लाता , उसका अपने ही रहने खाने का ठिकाना नहीं था दिल्ली में और फिर पैसा भी इतना नहीं था। अतः केवल उसने अपनी बेटी को बताया दिल्ली आने के लिए , बेटी भी छोटे छोटे बच्चे होने के कारण असमर्थ थी सुन्दरलाल के साथ आने में पर उसने अपने पिता को 100 रूपये जरूर दे दिए जो उसने कई दिनों से अपने पति से बचा के रखे थे ।

दो घंटे बाद ओपीडी की खिड़की खुली उसके कंही एक घंटे बाद सुन्दर लाल का नंबर आया ,पर्चा बनने के बाद सुंदरलाल सम्बंधित डॉक्टर के पास गया । डॉक्टर को उसने अपनी परेशानी बताई और पुराने इलाज के कागज दिखाए । डॉक्टर ने लखनऊ वाले हॉस्पिटल के पर्चे देख के कहा की अब यह सब बेकार हैं और उसे दुबारा जांच शुरू करवानी , और एक एक्सरे करवाने के लिए लिख दिया साथ ही कुछ दवाइयाँ भी लिख दीं जो खानी थी।

सुन्दरलाल जब एक्सरे करवाने गया तो वंहा भी लंबी लाइन कई घंटो बाद उसका नंबर आया तो एक्सरे करवाया पर रिपोर्ट के लिए कहा गया की तीन दिन बाद मिलेगी । सुन्दरलाल ने विनती की वह दूर से आया है और रिपोर्ट जल्दी मिल जाए तो अच्छा होगा । पर इस पर एक्सरे टेक्नीशियन ने उसे डाँटते हुए कहा की अगर जल्दी रिपोर्ट चाहिए तो प्राइवेट करवा ले यंहा तो समय लगेगा ही।

सुन्दर लाल ने पूछा की प्राइवेट में कितना खर्चा आएगा तो टेक्नीशियन ने बताया की 150-200 रूपये । सुंदरलाल के पास कुल 350 रूपये ही बचे थे , उसने सोचा की यदि 200 रूपये एक्सरे में खर्च हो जायेंगे तो उसके पास पैसे कँहा बचेंगे और वह क्या खायेगा?।

यह सोच वह चुप हो गया और टेक्नीशियन से बोला ठीक है वह 3 दिन बाद रिपोर्ट ले लेगा ।उसके बाद वह दवाई की लाइन में लग गया , जब नंबर आया तो पता चला की एक दवाई आउट ऑफ़ स्टॉक है और उसे बाहर से लानी पड़ेगी । जब सुन्दरलाल बाहर मेडिकल की दुकान पर पहुंचा और दवाई का पर्चा दूकानदार को थमाया तो दूकानदार ने कहा की 100रूपये की दवाई है ।मजबूरन उसने दवाई ले ली परन्तु उसके पास अब रहने की समस्या थी , तीन दिन तक वह कंहा रहेगा यह सोच सोच के परेशां था । उसने हास्पिटल के ही एक गार्ड से अपनी समस्या बताई गार्ड ने कहा की सामने पार्क में वह रह सकता है और रात को वंही बैंच पर सो सकता है ऐसा कई लोग करते हैं।

सुंदरलाल ने दो दिन मुश्किल से काटे , दिन में या तो वह हॉस्पिटल में यूँ ही घूमता या कभी बहार निकल के सड़क पर बैठ जाता और आने जाने वाली बड़ी बड़ी गाडियो को निहारता और रात को पार्क में आके सो जाता । उसे चिंता होती की उसकी पत्नी कैसे रह रही होगी उसके बिना । तीसरे दिन सुंदरलाल को एक्सरे रिपोर्ट मिली , जब वह रिपोट लेके डॉक्टर के पास गया तो डॉक्टर ने रिपोर्ट देखी और बोला-
बाबा ,इस एक्सरे रिपोर्ट में तो कुछ भी नहीं आया ”
राम लाल ने जबाब दिया -” पर डॉक्टर साहब छाती में दर्द तो बहुत है साँस भी ठीक से नहीं ली जाती”

इस पर डॉक्टर ने कहा की उसे सिटी स्केन करवाना पड़ेगा बिना जांच के सही मर्ज का पता नहीं चलेगा और पर्चे पर लिख कर दे दिया । सुन्दर लाल जब सिटी स्केन डिपार्टमेंट में गया तो पता चला की उसका नंबर 15 दिन बाद आएगा । सुन्दर लाल बहुत गिड़गिड़ाया पर डॉक्टर के सामने और अपनी मज़बूरी बताई की जल्दी उसकी जांच कर दें पर डॉक्टर ने साफ साफ़ कह दिया की या तो वह 15 दिन का इन्तेजार करे या उसके प्राइवेट क्लीनिक पर 3500 रूपये में जांच करवा ले । सुंदर लाल जिसके पास मात्र 200 रूपये बचे थे वह 3500 रूपये कँहा से लाता । अत: मजबूर होके फिर से 15 दिन रुकने का मन बनाया ।


सुन्दरलाल फिर से पार्क में रात बिताने लगा और दिन इधर उधर । बाकी कई मरीजो के रिस्तेदार भी उस पार्कh में आते ,कभी कभी कोई तरस खा के सुंदर लाल को खाना या चाय नास्ता दे देता था पर किसी से कुछ मांगता नहीं था जिसे देना था वो अपने आप ही दे जाता था । फिर भी धीरे धीरे 5-6 दिन में उसके बचे हुए पैसे ख़त्म हो गए । इधर दवाई भी खत्म हो गई जिससे उसके सीने में और तकलीफ बढ़ने लगी । एक दो दिन और सुन्दरलाल ने दर्द में काटे पर दर्द और भूख बर्दाश्त से बाहर हो गई तो उसने अपने जीवन का सबसे कठिन फैसला लिया .. भीख मांगने का । वो सुन्दरलाल जिसने कभी किसी से कुछ नहीं माँगा वह अब भीख मांगने जा रहा था अपने स्वाभिमान की तिलांजलि देके ।

अब सुंदर लाल दिन में भीख मांगता और रात को पार्क में सो जाता , पर अब दवाइयो का असर भी ख़त्म होता जा रहा था ।एक बार दुबारा डॉक्टर को दिखाया पर डॉक्टर ने कहा की सिटी स्कैन की रिपोर्ट आने के बाद ही उसका इलाज शुरू होगा और नई दवाइयाँ लिख दीं । दरसल डॉक्टर भी उसे गरीब और भिखारी जान उसे सीरियस नहीं ले रहा था । इधर एक और मुसीबत सुंदरलाल पर आ गई पार्क में सोने के कारण उसे मच्छरों ने काट लिया था जिस से उसे मलेरिया भी हो गया था और बुखार से भी परेशान रहने लगा , पर फिर भी सुन्दरलाल किसी तरह भीख मांगता और गुजरा करता ।

कुछ दिन और गुजर गए ऐसे ही एक दिन सुन्दर लाल की तबियत शाम से ही ख़राब थी , तेज बुखार के साथ सीने में भी दर्द था । सुंदरलाल ने हॉस्पिटल में जा के देखा तो ओपीडी बंद थी , गार्ड की सहायता से किसी तरह आपातकालीन विभाग में भर्ती हो गया पर जैसे ही डॉक्टर उसे देखने आया तो सुंदरलाल को देखते ही उसका माथा गर्म हो गया और बिना उसकी जांच किये ही उसको अभद्र भाषा में सुनने लग गया की जब देखो परेशान करने आ जाता है । जब दस बार कह दिया की सिटी स्कैन की रिपोर्ट आने के बाद इलाज शुरू होगा तब भी समझ नहीं आता इस बुड्ढे को । इतना कह के डॉक्टर ने एक पेनकिलर का इंजेक्शन लगा के उसको बहार निकाल दिया ।

इंजेक्सन से सुन्दरलाल को तत्काल थोडा आराम मिल गया पर बुखार जस का तस बना रहा , वह बुझे मन से पार्क में आ के बैठ अपने थैले में से कल की बची हुई बासी रोटी निकाल के सूखी ही चबाने लगा । तब तक अँधेरा गहरा गया था और मौसम बारिश का होने लगा था । सुंदरलाल ने किसी तरह सूखी रोटी ख़त्म की और चद्दर ओढ़ के लेट गया , लगभग आधी रात को उसके सीने में भयंकर दर्द उठा उसने आँखे खोली तो देखा की पानी बरस रहीं हैं । वह उठ के किसी सुरक्षित जगह पर जाना चाहता था पर तेज दर्द से उससे उठा नहीं गया और उसकी आँखे बंद होती चली गई ,वह बेहोश हो गया था, बारिश की बुँदे और बड़ी होती गईं।

सुबह जब बारिश रुकी तो माली जो की उस पार्क की देखभाल करता था उसने चद्दर ओढ़े सुंदरलाल को देखा तो उसे जगाने के लिए चद्दर हटाई , पर सुंदरलाल हमेशा के लिए सो गया था । जिस हास्पिटल में वह इलाज होके ठीक होने के लिए अपने गाँव से इतनी दूर आया था वंही अब उसका पोस्टमार्टम होके उसको बोरे में सिला जा रहा था और बोरे पर लिखा था ‘ लावारिस लाश’ ।

फोटो साभार गूगल


Sunday, 19 June 2016

अहसास- कहानी



"राघव तुम मुझ से प्यार तो करते हो न ?" नमिता ने राघव की आँखों में झांकते हुए पूछा ।
"अरे यार! यह भी कोई पूछने की बात है .... बहुत प्यार करता हूँ मेरी जान तुमसे "राघव ने नमिता बाँहो में भरते हुए कहा ।
" पर हम शादी कब करेंगे ? एक साल से अधिक हो गये हैं  हमें प्यार करते हुए ... मुझे डर लगता है अब .. सच में मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती " नमिता ने राघव का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा ।
" जल्द ही करेंगे , कुछ दिन और रुको मैं अपने घरवालो से बात करता हूँ ... अभी थोडा और सैटल हो जाने दो "राघव ने नमिता से हाथ छुटाते हुए फिर से गले लगाते हुए कहा ।
"कितना सैटल होंगे! तुम भी जॉब कर रहे हो और मैं भी .. राघव अपनी जिंदगी बहुत अच्छी कटेगी " नमिता ने राघव की तरफ देखते हुए कहा ।
"ओह्हो! तुम भी अच्छे भले मूड का सत्यानाश कर देती हो... अच्छा बाबा ! जल्दी ही कर लूंगा न बात अपने घरवालो से ... अब आओ पास! रहा नहीं जा रहा है "राघव ने इतना कह नमिता को अपनी बाँहो में खीच के बैड पर लिटा दिया  फिर एक एक कर उसके सारे वस्त्र उतारने लगा ।नमिता ने भी अनमने मन से समर्पण कर दिया राघव की जिद के आगे ।

यह पहली बार नहीं था , ऐसा कई बार हो चुका था । राघव और नमिता एक ही दफ्तर में काम करते थे । राघव का पता नहीं पर नामित उससे बहुत प्यार करती थी और उसके साथ जीवन बिताना चाहती थी । इसी लिए वह राघव द्वारा अपने  साथ चाहे-अनचाहे  शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए राजी भी हो जाती थी ।उसे यकीं था की राघव और उसकी शादी होनी ही है , बहुत विश्वास करती थी वह राघव पर ।

कई महीने और बीत गएँ यूँ ही , राघव नमिता से शादी का वादा करता और उसके के साथ शरीरिक  सबंध बनाता।
एक दिन राघव और नमिता कॉफी शॉप में बैठे थे की नमिता ने राघव का हाथ पकड़ते हुए कहा -
" राघव! अब जल्द ही अपने परिवार वालो से हमारी शादी की बात कर लो "
" अरे यार! फिर तुम शादी की कहानी लेके बैठ गईं .. कर लूंगा बात .. क्या जल्दी है " राघव ने झुंझलाते हुए कहा
" कर लूंगा .. कर लूंगा ... यही कहते आ रहे हो .. कब करोगे ? जब देर हो जायेगी तब " नामित ने भी थोडा गुस्सा होते हुए कहा ।
" तुम्हे इतनी जल्दी क्यों है ? क्या आफत आ रही है " राघव ने आस पास देख के नमिता को गुस्से से कहा
" जल्दी है न ! मैं माँ बनने वाली हूँ ... तुम्हारे बच्चे की .. 2 महीने हो गए हैं " नमिता ने एक दम से जबाब दिया

अब तो राघव के पैरो के नीचे जमीन खिसक गई , सहसा उसे यकीं नहीं हुआ नमिता की बात उसने लगभग चीखते हुए कहा -
" क्या बकवास कर रही हो ?ऐसा कैसे हो गया ... तुम झूठ बोल रही हो " राघव ने इतने गुस्से और जोर से कहा था की कॉफी शॉप में बैठे लोग और स्टाफ उन्हें देखने लगा ।
" यह सच है राघव!... एक दम सच.. मुझे भी आज ही पता चला है जब मेरी तबियत खराब हुई और मैं डॉक्टर के पास गई  " नमिता ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा ।
राघव ने हाथ छुड़ाते हुए कहा -
"तो चलो अभी के अभी अबॉर्शन करवा दो .. चलो मेरे साथ " राघव ने नमिता का हाथ पकड़ के खीचते हुए कहा ।
" राघव!!, पागल हो गए हो क्या !मुझे नहीं करवाना है अबॉर्शन ... तुम मुझ से शादी करोगे "नमिता ने सख्त लहजे में कहा ।
नमिता का इतना कहना था की राघव उठा और गुस्से से कॉफी शॉप से बहार निकल गया , पीछे पीछे नमिता भी उसे रोकने की कोशिश करती रही पर राघव तेजी से बाइक के पास आया और स्टार्ट कर वंहा से चला गया ।

उसके बाद नमिता ने कई बार राघव से फोन पर बात करने की कोशिश की परन्तु राघव कभी फोन काट देता तो कभी फोन ही स्विच ऑफ़ कर देता ।
वह कई दिनों तक ऑफिस ही नहीं आया , आखिर थक के नमिता राघव के उस फ्लैट पर पहुंची जंहा वह किराये पर रहता था ।
नमिता को देखते ही राघव आगबबूला हो गया , काफी बहस हुई उन दोनों के बीच ।
राघव ने साफ़ साफ़ कह दिया की उसके घरवाले उसकी शादी नमिता से करने को तैयार नहीं है । राघव के घरवाले उसकी शादी किसी ' अच्छे खानदानी ' घर में करवाना चाहते हैं और नमिता उस लायक नहीं । राघव ने यंहा तक कह दिया की जो लड़की शादी से पहले किसी लड़के के साथ शारीरिक सम्बन्ध बना सकती है वह कितनी चरित्रहीन होगी ।
राघव का शादी से इंकार और इस तरह चरित्रहीनता का आरोप लगाना नमिता को सहन नहीं हुआ । वह रोती हुई राघव के फ्लैट से निकल गई ।

राघव ने बेंगलोर से नौकरी छोड़ दी और दिल्ली आके नई नौकरी करने लगा ।नमिता से वह फिर कभी नहीं मिला ,और लगभग उसे भूल ही गया था ।
दिल्ली में नए दफ्तर में उसे फिर एक नई लड़की मिल गई थी और फिर वह उससे प्यार की पींगे बढ़ाने लगा था ।

एक दिन अचानक उसके घर लखनऊ से फोन आया , फोन उसकी माँ का था -
" हेलो राघव!तू जल्दी से घर आ जा लता हॉस्पिटल में भर्ती है उसने सुसाइड करने की कोशिश की है फिनाइल पीके"
लता राघव की छोटी बहन थी और लखनऊ में ही रेगुलर कॉलेज में पढ़ती थी ।
आनन् फानन में राघव लखनऊ पंहुचा , हॉस्पिटल पहुँच के   माँ ने बताया की लता किसी लड़के से प्यार करती है । उस लड़के ने लता को शादी का झांसा देके उसके साथ कई बार  शारीरिक सबंध बनाये और जब लता प्रेगनेन्ट हो गई तो उसे छोड़ के कंही भाग गया । उसी डिप्रेशन में लता ने फिनाइल पी के अपनी जिंदगी ख़त्म करने चली थी ।

राघव की माँ रो रो के सारी बात बताये जा रही थी और सैकड़ो गालियां उस लड़के को दिए जा रही थी जिसने लता को प्रेगनेन्ट किया । पर राघव तो जैसे सुन ही नहीं रहा हो ... उसे नमिता याद आ रही थी ... अपना किया हुआ हर जुल्म याद आ रहा था जो उसने नमिता के शरीर और भावनाओ से किया था , वह मूर्ति बना बस खड़ा था .... आज उसे अहसास हो रहा था की नमिता पर क्या बीती होगी उसके कारण ।

बस यंही तक थी कहानी ...

- केशव ( संजय)

Friday, 17 June 2016

कालू उस्ताद - कहानी


" कालू उस्ताद! कालू उस्ताद ..." बेदम हाँफते हुए फुदरु ने कालू उस्ताद के पास आते हुए कहा ।
" कालू उस्ताद...." फुदरु ने नजदीक आके रुकते हुए कहा
" हम्म ...क्या है ? " कालू उस्ताद ने लेटे लेटे ही कहा
" कालू उस्ताद ! खजरा और उसके साथी हमारे मोहल्ले की तरफ जा रहें हैं " फुदरु ने एक सांस में कहा
"क्या!!!.. खजरा और उसके साथी हमारे मोहल्ले में ?" कालू उस्ताद को जैसे बिजली का झटका लगा हो और उछल के खड़ा होता हुआ बोला ।
" हाँ उस्ताद , अभी अभी मैंने उन्हें जाते हुए देखा है " फुदरु ने जबाब दिया ।
" उनकी यह हिम्मत ! तू चल जरा " इतना कह कालू उस्ताद ने तेजी से अपने मोहल्ले लाल पुरा की तरफ दौड़ लगा दी ।उसके पीछे फुदरु हो लिया ।

कालू  लालपुरा का एक आवारा कुत्ता है , पुरे मोहल्ले के कुत्तो से ताकतवर और रौबीला । रंग एक दम काला आँखे हल्की लाल देखने वाला एक क्षण के लिये डर ही जाए, अपने इसी रौबीले और ताकत के कारण सभी कुत्ते कालू को कालू उस्ताद कहते  ।  मोहल्ले  बच्चे उससे बहुत प्यार करते थे कोई उसे पापे खिलाता तो कोई उसे बिस्किट दे देता । कालू भी बच्चों के साथ मस्त रहता और उनके साथ साथ लगा रहता , कालू ने कभी किसी बच्चे को नुकसान नहीं पहुचाया था जबकि बच्चे कभी कभी उसके मुंह में हाथ डाल देते या उस पर बैठ के उसके कान खीचते । खजरा दूसरे मोहल्ले का कुत्ता था जो लालपुरा में चोरी चुपके से आता और घरो से खाने पीने की चीजे चुरा लेता या किसी बच्चे को नुकसान पहुंचा देता । आज खजरा फिर अपने साथियों के साथ आ रहा था ।


कुछ ही क्षणों में कालू उस्ताद लालपुरा के मेन गेट के पास फुदरु और अपने चार और साथियों के साथ आक्रमक मुद्रा में खजरा के स्वागत के लिए खड़े थें ।
खजरा दूर से ही अपने साथियों के साथ आता हुआ दिखाई दिया । जैसे ही खजरा मेन गेट के पास आया वैसे ही कालू उस्ताद उसके सामने आ खड़ा हुआ , दोनों की आँखे मिली और दोनों सावधान होके आक्रमण के लिए तैयार हो गए ।

अगले ही क्षण खजरा ने कालू उस्ताद  की गर्दन पकड़ने की लिए छलांग लगा दी , पर कालू उस्ताद भी सावधान था उसने अपना बचाव करते हुए  खजरा के कान पकड़ लिए और पटक दिया और अपने दांत खजरा की गर्दन पर गड़ा दियें ।खजरा बेबस सा हो गया और कूँ कूँ करता हुआ वंहा भाग लिया ।
जैसे ही खजरा भगा उसके साथी कुत्ते भी उसके पीछे वापस भाग लिए , फुदरु और बाकी लालपुरा के कुत्तो ने खजरा और उसके साथियों का थोड़ी दूर पीछा किया फिर वापस आ गए ।

कालू ने  गर्व से सीना फुलाए मोहल्ले में प्रवेश किया , पीछे पीछे फुदरु चल रहा था । एक घर के सामने से गुजरते हुए कालू एक दम ठिठक गया । उसने वापस घर में झाँक के देखा , सहसा उसको अपनी आँखों पर विश्वाश नहीं हुआ और उसने अंदर झाँक के देखा ।
अंदर एक सफ़ेद सुंदर सी विदेशी नश्ल की कुतिया बंधी थी , कालू आँखे फाड़ के कुछ देर तक देखता रहा इतनी सुंदर कुतिया आज तक उसने नहीं देखी थी ।
कुतिया की नजर जैसे ही कालू पर पड़ी उसने जोर जोर से भौकना शुरू कर दिया , उसका भौकना सुन कालू सकपका गया । तभी कुतिया की आवाज सुन उसकी मालकिन ने आवाज लगाई -
" कौन है दरवाजे पर?"
मालकिन की आवाज सुन कालू तुरंत वंहा से भाग लिया । थोड़ी दूर जाने के बाद उसने फुदरु से पूंछा ।
" अबे फुदरु ये सुंदरी कौन है ? पहली बार देख रहा हूँ इसे इस महल्ले में?
"उस्ताद ! दो दिन पहले ही इसकी मालकिन इसे लेके आई है इसका नाम नैन्सी है , अपनी मालकिन की तरह यह भी खड़ूस है और हम जैसे आवारा कुत्तो से नफरत करती है " फुदरु ने पीछे पीछे चलते हुए कहा।
" अच्छा!! पर है बड़ी मस्त " कालू ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा
बदले में फुदरु मुस्कुरा दिया , उसने कालू की मन की बात ताड ली थी और थोडा व्यंगात्मक लहजे में बोला ।
" उस्ताद ! इसकी मालकिन रोज सुबह 6 बजे इसे पार्क में घुमाने ले जाती है "
"अच्छा!! ले जाती होगी ... मुझे क्या ? " कालू रूखे स्वर में बोला
कालू का रुखा स्वर सुन फुदरु चुप हो गया ।

अगली सुबह 5: 30 बजे ही कालू पार्क के बाहर बैठा था , कुछ देर बाद  नैन्सी अपनी मालकिन के साथ आती हुई दिखाई दी । कीमती और चमकीले पट्टे में नैन्सी  खूबसूरत लग रही थी , कालू ने एक ठंढी आह भरी ।
नैन्सी कालू के सामने से यूँ अकड़ के निकल गई जैसे उसे देखा ही नहीं , कालू नैन्सी के इस व्यवहार से उदास स हो गया फिर भी दिल है की मानता नहीं वाली स्थिति थी ।
अब कालू भी नैन्सी और उसकी मालकिन के पीछे पीछे थोड़ी दुरी बना चलने लगा । जब नैन्सी ने कालू को अपने पीछे पीछे चलते देखा तो मुड़ के गुर्राने लगी । जब मालकिन ने नैन्सी का गुर्राना देखा उसने कालू को एक पत्थर मारा । पत्थर सीधा कालू के पैर में लगा , चोट जबरजस्त थी तेज दर्द के कारण कालू के मुंह से चीख निकली और वह लंगड़ाता हुआ वंहा से भगा ।

दो दिन बाद फिर कालू पार्क के पास बैठा था , उस दिन की चोट के कारण कालू अब भी लंगड़ा के चल रहा था । अपने ठीक समय पर नैन्सी अपनी मालकिन के साथ आई , कालू को देख उसने फिर मुंह बिचकाया पर कालू चुपचाप बैठा रहा और नैन्सी को देखता रहा । ऐतिहात के तौर पर मालकिन ने फिर पत्थर उठा लिया था , पर कालू अपनी जगह बैठा रहा ।
पार्क में घूमने के बाद नैन्सी अपनी मालकिन के साथ वापस जाने लगी , कालू अब भी उसे ही देख रहा था । नैन्सी ने एक बार फिर गुस्से में हलका सा गुर्राया और आगे बढ़ गई जैसे कह रही हो " बद्तमीज'
उनके जाने के बाद कालू लंगड़ाता हुआ वापस चला गया ।इस तरह कई दिन हो गए कालू रोज पार्क के पास बैठ जाता और नैन्सी को देखता रहता पर नैन्सी ने एक बार भी उसकी तरफ सही से नजर उठा के नहीं देखा हमेशा नफरत भरी नजर से ही देखा।

कई दिनों तक कोई रिस्पॉन्स न मिलने के कारण कालू निराश हो गया और उसने पार्क में जाना बंद कर दिया , वह थोडा उदास सा रहने लगा । वह सोचता की अगर वह आवरा है और सुंदर नहीं है तो इसमें उसकी क्या गलती है , नैन्सी उससे इतनी नफरत क्यों करती है ।

एक रात कालू एक खाली प्लाट में सो रहा था , रात के तकरीबन 2-3 बजे होंगे की फुदरु उसके पास आता है और उसे जगा के कहता है -
" उस्ताद! जिस घर में नैन्सी रहती है उस घर में तीन चोर घुसे हैं "
" तो!! मैं क्या करूँ? हो जाने दे चोरी ... अपन को क्या ?" कालू ने आँखे बंद किये ही कहा
" पर उस्ताद यह तो हमारे मोहल्ले की बेज्जती हो जायेगी की हमारे रहते कोई चोरी हो जाए " फुदरु ने थोडा सख्त लहजे में कहा
" तो साले ! हमने क्या उसके घर का ठेका लिया हुआ है ? साले ये इंसान कमीने होते हैं देखा नहीं उस दिन बिना बात के कैसे मेरे पैर पर पत्थर मार दिया था ? पूरा हफ्ते भर लंगड़ा के चला था "-कालू ने गुस्से में कहा
" पर उस्ताद ..." फुदरु कुछ कहना चाहता था
"पर  वर कुछ नहीं .. चल अब भाग यंहा से " कालू ने गुस्से में कहा ।
फुदरु वंहा से चला गया ।
फुदरु के जाने के बाद कालू सोने की कोशिश करने लगा पर उसे नींद नहीं आई , वह बेचैन होके उठा और नैन्सी के घर की तरफ चल दिया ।

नैन्सी के घर पहुचते ही वह दबे पाँव दरवाजे पर पहुंचा , हल्का सा दरवाजे को मुंह से धक्का दिया । दरवाजा खुला हुआ था , शायद चोरो ने भागने के लिए पहले से ही दरवाजा खोल के रखा हुआ था । उसे आस्चर्य हो रहा था की नैन्सी क्यों नहीं जागी और क्यों नहीं भौंक रही है , वह थोडा आगे बढ़ा तो उसके पैरो से एक बोरी टकराई उसने सूंघ के देखा तो उससे नैन्सी की गंध आ रही थी । बोरी का मुंह बंद था वह तुरंत समझ गया की चोरो ने नैन्सी को बेहोश कर दिया है और वे उसे भी बोरी में बंद कर चुरा के ले जाने वाले हैं

कालू सावधान हो गया क्यों की चोर संख्या में अधिक थे और हथियरो से लैस थे । वह चुपचाप दरवाजे के पीछे छिप कर उनके आने का इन्तेजार करने लगा । तक़रीबन 15 मिनट बाद चोर निकलते हुए दिखे उनके हाथ में वह बोरी भी जिसमें नैन्सी बंद थी । चोरो ने हलके से दरवाजा खोला और एक एक कर बाहर जाने लगे , जैसे ही तीसरा चोर बहार निकलने लगा वैसे ही कालू ने छलांग लगा चोर का पैर अपने जबड़े में भर लिया । यूँ अचानक हुए हमले से चोर सकपका गया और चीख मारता हुआ धड़ाम से गिर गया बाकी दोनों चोर भी चौंक गए । कालू सख्ती से पैर पकडे पकडे आवाजे निकाल रहा था, चोरो ने उस पर लात बरसानी शुरू कर दी पर कालू की पकड़ से वे लोग अपने साथी को नहीं छुड़ा पा रहे थे । अचानक एक चोर ने जेब से चाक़ू निकाला और कालू पर वर कर दिया , चाक़ू लगने पर कालू ने पैर छोड़ दिया पर जोर जोर से भौकना शुरू कर दिया ।कालू की आवाज सुन फुदरु और बाकी कुत्ते घटना स्थल की तरफ  भौकते हुए दौड़ने लगे । इधर शोर से नैन्सी की मालकिन और उसके परिवार वाले जाग गए उन्होंने भी शोर मचाना शुरू कर दिया उसके बाद पडोसी भी जाग गए और अपने अपने दरवाजे खोल बाहर आ गए । चोर चारो तरफ से घिर चुके थे  , इधर कालू का खून बहना जारी  था और उसका भौकना धीरे धीरे कम हो रहा था । फुदरु ने जब कालू की हालत देखि तो उसे चोरो पर बहुत गुस्सा आया और वह अपने साथियों सहित चोरो पर टूट पड़ा।

लोगो ने भी चोरो की खूब पिटाई की और पुलिस के हवाले कर दिया , पर इस बीच किसी को भी कालू की याद नहीं आई । अधिक खून बह जाने के कारण कालू मर चुका था , जब भीड़ छंटी तो सिर्फ फुदरु और बाकी कुत्ते ही कालू की लाश के पास थे । सुबह mcd की गाडी आई और कालू की लाश को उठा ले गई ...

बस यंही तक थी कहानी
- केशव

पुण्य का काम



" भईया यह फूलो की माला कैसे दे रहे हो"- रेणू ने सड़क पर बैठे फूल बेचने वाले से पूछा?
" पांच रूपये की एक और बीस रूपये की पांच, बहन जी " - फूलवाले ने उत्तर दिया
" हाय राम! पांच रूपये की एक ! बहुत महंगे है तीन रूपये की एक लगाओ" रेणू ने थोडा नारजगी भरे शब्दों में कहा
" बहन जी ,तीन रूपये की तो खरीद भी नहीं है ! मंडी से लाने का भाड़ा  और ठीहे के पैसे देके कुछ नहीं बचता इस महंगाई में " फूलवाले ने उदासी से जबाब दिया ।
" अरे ,मैं जानती हूँ की कितना लूटते हो तुम लोग ! तीन रूपये से एक पैसा भी ज्यादा नहीं दूंगी .. मेरे पति इस थाने में ड्यूटी कर रहें है एक मिनट में उठवा दूंगी तेरा ताम- तोबड़ा'- रेणू ने गुस्से वाले लहजे से कहा तो फूलवाला सहम गया और तीन रूपये के हिसाब से रेणू को जितनी मालाये चाहिए थी दे दी । रेणू ने मालाये अपने साथ आये 12-13 साल के नौकर को थमा दिया , नौकर ने पहले से ही एक भारी थैला उठाये हुए था जिसमें तरह तरह के सामान भरे हुए थे । आज दीवाली थी और रेणू घर  के लिए छोटे मोटे सामान खरीदने बाजार आई हुई थी । मालाओं की गट्ठर थोड़ी भारी हो गई ,बेचारा बारह - तेरह साल का बच्चा इतना सामान उठाने में दिक्कत महसूस कर रहा था पर रेणू बिना उसकी तरफ देखे खरीदारी करे जा रही थी ।
अब रेणू  मिट्टी के दिए बेचने वाले के पास पहुंची , वंहा भी उसने मोलभाव कर और पुलिसिया रौब जमा के दियो को आधे रेट में खरीद लिए । बेचारी दिए बेचनेवाली बुढ़िया खून के आंसू पीते हुए मज़बूरी में रेणू की बात मान गई ।

घर पहुँच कर अभी वह सुस्ता ही रही थी की दरवाजे पर दस्तक हुई , नौकर ने बताया की 3-चार बाबा आये हुए हैं और वह आपसे मिलना चाहते हैं ।
रेणू ने जाके देखा तो उनमे से एक पास वाले मंदिर का पुजारी था , रेणू उसे अच्छी तरह से जानती थी आखिर रोज मंदिर जो जाती थी ।रेणू ने फ़ौरन पुजारी के पैर छू लिए ।
रेणू ने उनसे अंदर आने का आग्रह , अंदर आने के बाद पुजारी ने अपना आने का अभिप्राय बताया ।
" रेणू बेटी , कल गोवर्धन पूजा है और इस उपलक्ष्य में मंदिर में सभी साधू संतो के लिए भोजन का प्रबध किया गया है ।हम तुम्हारे पास उसी के चंदे के लिए आये हैं " पुजारी ने कहा "

" यह तो बहुत अच्छी बात है पुजारी जी , साधू संतो की सेवा करनी चाहिए !यह तो धर्म और और पूण्य का काम है  1100 मेरी तरफ से लिख लीजिये " रेणू ने कहा
" बस 1100 ,बेटी कम से कम 2100 रूपये तो दो आखिर पूण्य का काम है " पुजारी ने थोडा नाराज शब्दों में कहा
" ठीक है पुजारी जी 2100 रूपये लिख लीजिये' इतना कह रेणू ने पर्स में से 2100 रूपये निकाल के पुजारी को दे दिए ।

नौकर सभी के लिए चाय नास्ता लाते हुए सोच रहा था की गरीब से 2- 2 रूपये के लिए मोलभाव करने वाली और पुलिसिया रौब ज़माने वाली उसकी मालकिन कितनी आसानी से 2100 रूपये धर्म के नाम पर दे दिए ...' पुण्य' के नाम पर ।

-केशव 

मुआवजा- कहानी



"अरे भाई भोलानाथ कँहा चल दिए इतनी जल्दी में  ?" नत्थू ने एक  हाथ में रोटी का टिफन दूसरे हाथ में लाठी  लिए तेजी से जाते हुए भोलाराम से पूछा ।
" राम राम नत्थू भाई .... बस खेतो की तरफ जा रहा हूँ .रात में रखवाली करनी पड़ती है न जानवरो से , आप तो जानते ही हैं कितनी फसल ख़राब कर देते है ससुरे " भोलाराम ने ठिठक के रुकते हुए कहा ।
"हाँ! जानता हूँ भोलानाथ!...खूब जानता हूँ , इतनी उम्र ऐसे ही नहीं हो गई किसानी करते करते ... बाप दादाओं के खेत है. इन्ही खेतों में पल के हमारे बाप दादा और हम बड़े हुए हैं और हमारे बच्चे भी इन्ही खेतो में पल के बड़े हुए " नत्थू ने एक ठंडी में सब कुछ कहता चला गया ।
" ये सही कह रहे हो नत्थू भाई, हम सब इन्ही खेतो में खेल के बड़े हुए हैं ... इस मिटटी कितना लगाव है हमें , अरे! बेशक खेत कम ही है पर गुजारे लायक बहुत है ... ये खेत हमारी माँ है नत्थू भाई" भोलानाथ ने गहरे लब्ज़ों में कहा ।

अब बात नत्थू ने आगे बढ़ाई "बात बिलकुल ठीक ही कह रहे हो भोलानाथ ...पर सुना है की सरकार कौनो टाउनशिप और कारख़ाने लगाने  की योजना बना रही है इस जिले में ,हाइवे के पास है न हमारा गाँव तो हमारे और बहुत से गाँवों के किसानो की खेत जो हाइवे से लगते हैं उन्हें सरकार खरीद लेगी ... खरीद के कारख़ाने और इमारते बना के बेचेगी " एक दुःख और चिंता की परछाई लिए नत्थू ने अपनी बात ख़त्म की ।
" हाँ भैय्या, सुना तो मैंने भी है ये पिछले हफ्ते सरपंच जी बता रहे थे की हम सबकी जमीन सरकार कब्ज़ा लेगी और बदले में मुआवजा देगी " भोलानाथ ने कहा
" यही बात है,सरपंच जी ने कहा है की जल्दी ही सबके घर नोटिस आएगा ... हमें अपने खेत सरकार को बेचने ही पड़ेंगे चाहे किसी के कम हो या ज्यादा " नत्थू ने कहा

इतना सुन भोलानाथ रुआंसा सा हो गया, भरे मन और उदास कदमो से वह खेतो की तरफ चल दिया उनकी रखवाली करने ।

कुछ महीने बीते की सरकार ने ज़मीने अदिग्रहण कर लीं, जमीनों के बदले अच्छा खासा मुआवजा मिला ।जिन किसानो के घर कभी अन्न पूरा नहीं होता था उनके घरो में शराब की नदियां बह रही थीं । जो किसान कभी भैंसा बुग्गी के आलावा शायद ही कभी किसी गाडी पर बैठे हों आज उनके घरो के आगे लग्जरी गाडियाँ खड़ी थीं ।

भोलानाथ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ,उसके दोनों बेटो ने मुआवजे की रकम हड़प ली और पूरी ऐश ले रहे थें।
जो कुछ थोडा बहुत बचा वह भोलानाथ ने अपनी बेटी की शादी में खर्च कर दिए , लड़के वालो को भी मुआवजे की रकम मिली हुई थी और वे भी ' अमीर' हो गए थे अत: भोलानाथ को अपनी बचे हुए मुआवज़े के पैसो से अच्छी खासी खर्चीली शादी करनी पड़ी ।

कुछ दिनों बाद भोलानाथ फिर उसी स्थिति में आ गया था जैसा की किसानी में था ,दोनों बेटो ने जो पैसा हड़प लिया था उससे अभी भी बिना काम किये ऐश कर रहे थे ।भोलानाथ को बेटो की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही थी अत: उसने खेत बेचते समय जो अनुबंध हुआ था की एक व्यक्ति को नौकरी मिलेगी उस अनुबंध के तहत नौकरी कर ली ।
चुकी भोलानाथ पढ़ा लिखा नहीं था अत: उसे रात की चौकीदारी का काम मिला ।

इस बिल्डिंग में चौकीदारी करने की नौकरी लगी वह बिल्डिंग उसी के खेत में बनी थी ।भोलानाथ अब भी रखवाली ही कर रहा था , हाँ बस वंहा फ़सलों की यंहा बिल्डिंग की ... वंहा जानवरो से फसल बचाने के लिए रात काटता था ...यंहा आंसुओ के साथ अपने खेतो को याद कर राते का काटता ।

बस इतनी सी है  कहानी ..

- संजय

रिक्शेवाला-कहानी



"अरे साहब !मत मारिये .... मत मारिये साहब .... मर जाऊंगा साहब ... आह!.. मत मारिये... हम बहुत गरीब आदमी है ...इसमें मेरी गलती नहीं थी ...आप ही तेज चला रहे थे  " केशव ने हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते हुए कहा ।
पर सामने वाले का गुस्सा शांत नहीं हुआ उसने माँ बहन की गलियां देते हुए एक जोरदार थप्पड़ और जड़ दिए , थप्पड़ जोरदार था और केशव के मुंह से खून निकलने लगा ।
"कमीने! आँख बंद करके चलते हो और दुसरो की गलती देते हो ...सारा रोड अपने बाप का समझते हो ... मेरी नई कार में खरोंच मार दी नुकसान कौन तुम्हारा बाप भरेगा ...न जाने कौन तुम्हे दिल्ली में आने का टिकट दे देता है..हरामखोर !वंही क्यों नहीं मरते !आ जाते हैं मुंह उठा के दिल्ली में " सामने वाले ने केशव की पेट में लात मारते हुए कहा।

पेट पर लात पड़ते ही केशव दोहरा होके लेट गया , मारने वाले ने केशव को तड़पता हुआ वंही छोड़ गुस्से में गलियां देता हुआ कार स्टार्ट की और चल दिया ।भीड़ देखती रही किसी ने भी कार वाले को रोकने की कोशिश नहीं की ।

ये मार खाने वाला केशव था , दिल्ली में 50 रूपये में दिहाड़ी पर किराये का रिक्शा चलाने वाला केशव ।केशव उत्तर प्रदेश के एक छोटे और पिछड़े गाँव से था ,गाँव में घोर गरीबी थी । गरीबी इतनी की सुबह को अगर रोटी मिल गई तो शाम का ठिकाना न था । खेतो में मजदूरी करते पर ज्यादा कुछ नहीं मिलता , हद तो तब हो गई की जब केशव का बच्चा बीमार हुआ और दवाई खरीदने के पैसे तक न थे ।घर मे ऐसा कुछ न था की उसे बेंच के बच्चे का इलाज कराता ,खेतो में मजदूरी कर के सिर्फ एक वक्त की रोटी का ही इंतेजाम हो पाता था तो इलाज के लिये पैसे कँहा से आते । किसी रिस्तेदार ने उसकी मदद नहीं वह सबके आगे गिड़गिड़ाया परन्तु किसी ने सहायता नहीं की , करते भी कैसे शायद वे लोग खुद मजबूर थे ।

अतः केशव ने गाँव छोड़ के शहर आने का निश्चय किया ताकि पैसा कमा के अपनी दरिद्रता दूर कर सके बच्चे का इलाज करवा सके , ठीक से रोटी खा सके उसका परिवार ।वह काम की तलाश में दिल्ली की तरफ चल दिया ।टिकट के पैसे नहीं थे पर किसी तरह टीटी से बचता हुआ वह ट्रेन से दिल्ली पहुँच ही गया ।

दिल्ली में एक दूर के रिश्तेदार की जान पहचान से केशव को  रिक्शा मिल गया था ,अब वह दिन भर रिक्शा चलाता और रात को किसी फलाइओवर के नीचे रात काट देता ।किराये और खाने से जो थोडा बहुत बच जाता उसे घर भेज देता ।

आज सुबह सुबह जैसे ही केशव सवारी लेने के लिए रिक्शा लेके स्टेण्ड पर जा रहा था तभी  रिक्शा कार से हलका सा टच हो गया , गलती कार वाले की थी वही रिक्से को ओवरटेक कर रहा था और कार में खरोंच आ गई ।

मार खाने के बाद केशव थोड़ी देर वंही सड़क पर ही बैठा रहा , उसके बाद फिर रिक्शा चलाने चल दिया ।
केशव को दिल्ली में आये हुए कई वर्ष बीत गए थे इस बीच केशव ने मेहनत मजदूरी करने के आलावा गलत धंधे कर के भी काफी पैसा कमा लिया था ।अब केशव एक बहुत ही अमीर व्यक्ति था ,खुद का बिजनेस , शानदार घर और तीन कारे उसके पास थीं ,सभी कुछ बदल गया था  केशव की गिनती अमीरो में होने लगी थी ।

एक दिन केशव अपनी कार लेके ऑफिस जा रहा था की अचानक एक रिक्शेवाले के साथ उसकी टक्कर हो गई गाडी में हलकी खरोंच आ गई थी ।केशव गाडी से उतरा और रिक्शेवाले को मारने लगा ।

" अरे साहब !मत मारिये .... मत मारिये साहब .... मर जाऊंगा साहब ... आह!.. मत मारिये... हम बहुत गरीब आदमी है ...इसमें मेरी गलती नहीं थी ...आप ही तेज चला रहे थे  "रिक्शेवाले  ने केशव से हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते हुए कहा ।

पर केशव का गुस्सा शांत नहीं हुआ वह रिक्शेवाले को मारते हुए कह रहा था " साले !न जाने कँहा कँहा से आ जाते है दिल्ली में ...वंही क्यों नहीं मरते '

-संजय( केशव )

मंदिर में प्रवचन- कहानी



" अरे , बहनजी क्या बताऊँ ...राम जी झूठ न बुलवाएं मैंने मिसिज़ श्रीवास्तव जी की लड़की को एक लड़के के साथ मोटर साईकिल पर चिपक के बैठ के जाते हुए देखा , मुझे खुद इतनी शर्म आ गई उसको देख के ऐसे चिपक के बैठी हुई थी " मिसेज शर्मा ने मुंह बनाते हुए कहा ।
" आप बिलकुल सही कह रहीं है बहन जी , मैंने भी उसे कई बार लड़को से हँस के बात करते हुए देखा है ... और कपडे देखो कितने छोटे पहनती है . मुझे खुद शर्म आ जाती है उसे देख के मैं तो अपनी लड़की को उससे दूर ही रखती हूँ  " मिसेज कुलकर्णी ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा ।
"अरे ये सब छोड़िये आप दोनों ,आप दोनों ने सुना नहीं मिसेज जोशी जी बहु ने मिसेज जोशी के साथ क्या किया "- अब धमाका करने की बारी मिसेज अग्रवाल की थी
" क्या किया मिसेज जोशी की बहु ने " मिसेज शर्मा और मिसेज कुलकर्णी ने एक स्वर में पूछा
" राम राम , मत पूछो बेचारी मिसेज जोशी को बुढापे में  यह दिन भी देखने को मिले , कल उनकी बहु ने उनसे बर्तन धुलवा लिए " मिसेज अग्रवाल ने दुख भरे लहजे में कहा ।
" राम ... राम ... बेचारी ने सोचा था की बहु आएगी तो उनकी सेवा करेगी  बुढ़ापा अच्छा कटेगा ..बेचारी मिसेज जोशी की तो किस्मत ही ख़राब है " मिसेज शर्मा ने ठंढी आह भरते हुए कहा ।

तभी मिसेज कुलकर्णी ने कहा " वो देखो , आ गई महारानी , कितना मेकअप थोपा है मुंह पर "

ये आने वाली 'महारानी ' मिसेज गुप्ता थीं

" जेवर तो ऐसे लादी रहती है जैसे शादी में जा रही हो ...उँह " पास बैठी अब तक चुप रही मिसेज तिवारी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई ।
" कमीनी जेवर तो सबको दिखाने के लिए पहनती है , दिखावा करती है दिखावा... मैं तो कंहू की कोई लूट ले इसको तब पता चलेगा इसको " मिसेज शर्मा ने घूरते हुए कहा ।
" बेशक जेवर कितना ही पहन ले , पर रहेगी भिखारन की भिखारन ही ..... देखा नहीं परसो जब प्रशाद बांटने की बारी इसकी आई तो कैसे बासी लड्डू ले आई थी ... जेवर पहनने से औकात थोड़े न किसी की बदलती है " मिसेज कुलकर्णी ने मुंह बिचकाते हुए बात आगे बढ़ाई ।

" हाँ, पति  देखो इसका कितना काला और गंजा सा है और ये कैसे बन- ठन के रहती है ...... मुझे तो लगता है की हो न हो इसका चक्कर किसी और से चल रहा है " मिसेज शर्मा ने अपनी आशंका जाहिर की ।

"अच्छा मिसेज शर्मा ... आपकी बहू के क्या हाल है ?" मिसेज तिवारी ने विषय बदलते हुए पूछा ।
"अरे मत पूछो बहन ,एक नंबर की कामचोर औरत है ... मेरे बेटे को तो पूरा अपने वश में किया हुआ है " मिसेज शर्मा ने बेरुखी से कहा ।

मिसेज शर्मा अभी अपने दिल का हाल और सुनाने वाली हीं थी की मंदिर में कथा करने वाली  मंडली के मुखिया महंत ने आवाज लगाई -
' तो माताओं और बहनो आज की भागवत कथा का यंही समापन होता है ....जो यह कथा  ध्यान और श्रद्धा पूर्वक सुनता है भगवान् कृष्ण उनका जीवन सफल कर देते हैं ।

सभी महिलाओं का ध्यान महंत की तरफ गया और  वे महंत जी के पीछे पीछे ऊँचे स्वर में दोहराने लगीं।

बोलो बांके बिहारी की ...
सभी ने एक स्वर में कहा
जय
बोलो गौ -गंगा माता की ...
जय
प्राणियो में....
सद्भावना रहे
बांके बिहारी के भक्त ...
प्रेम से रहें

इस प्रकार जयकारो से मंदिर गूंज उठा ,उसके बाद महंत ने अपने चेले को इशारा किया और वह आरती की थाली सबको घुमाने लगा ....

-संजय (केशव)

परिवर्तन- कहानी


" बहन जी , हम इस लायक नहीं है की आपकी हैसियत के हिसाब से शादी कर सकें ...हमारी माली हालत आपसे छुपी नहीं है ,दो लड़कियो का बोझ है मुझ गरीब पर .... किसी तरह सब्जी बेच के गुजरा करता हूँ ... मैं दहेज़ कुछ नहीं दे पाउँगा ...किराये के मकान में रह रहा हूँ " टिकोरी लाल  ने हाथ जोड़े और आँखों में आंसू लाते हुए तारादेवी से कहा ।
"अरे!भाई साहब .. कैसी बात कर रहें हैं हम भी आप के ही बराबर है , हमें आपकी बीना बहुत पसन्द है..हमें दहेज़ नहीं चाहिए , यह तो मेरी बेटी जैसी है ..आप एक जोड़े में विदा कर दीजियेगा ... हमें कुछ नहीं चाहिए "-तारादेवी ने टिकोरीलाल से हाथ जोड़ते हुए कहा

 यह बात हो रही थी टिकोरीलाल की बेटी बीना के रिश्ते की , टिकोरीलाल के सब्जी विक्रेता था और उसकी तीन बेटियां थीं ।बड़ी बेटी का विवाह उसने जैसे तैसे दो साल पहले कर दिया था ,अब बारी थी बीना की ।बीना एक खूसूरत लड़की थी ,बारहवीं पास ।कुछ टिकोरीलाल की गरीबी  तो कुछ बीना की पढ़ने में रूचि न होने के कारण बीना ने आगे पढाई नहीं की और बारहवीं पास कर के घर में ही सिलाई आदि का काम कर के घर खर्च में मदद करती ।टिकोरीलाल की सबसे छोटी बेटी अभी 7 वीं पढ़ रही थी।

केशव जिसका रिश्ता बीना से हो रहा था वह एक कोरियर कंपनी में डिलवरी बॉय का काम करता था ।घर में केवल माँ थी ,पिता जी कई साल पहले ही गुजर गए थे अत: घर खर्च चलाने के लिए दसवी पास करते ही उसने पढाई छोड़ दी थी और कोरियर कंपनी में काम करने लगा ,वह आगे पढ़ना चाहता था पर मज़बूरी थी काम के कारण समय कम मिलता था । दो ही लोग थे तो खर्चा आराम से चल जाता था ,दिल्ली में मकान अपना था अत: केशव ने थोडा बहुत बैंक बैलंस भी बना लिया था ।

केशव को बीना देखते ही पसन्द आ गई थी ,वह इस बात से भी बहुत खुश था की उसकी होने वाली पत्नी उससे ज्यादा पढ़ी हुई है ।बीना ने भी केशव को पसन्द कर लिया और दोनों का रिश्ता तय कर दिया गया।

तय समय पर केशव और बीना का विवाह सम्पन्न हुआ , बिना दहेज़ के , केशव की तरफ से केवल कुछ गिने चुने लोग गए थे बारात में । विवाह बहुत सादगी और कम खर्च में हुआ ।दोनों परिवार वाले खुश थे , केशव की माँ को बहु मिल गई थी , केशव को सुंदर होने के साथ साथ बारहवीं पास पत्नी ।

सुहागरात वाले दिन बीना और केशव साथ बैठे थे , केशव ने बीना का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा - बीना ! मैं बहुत किस्मतवाला हूँ की की तुम जैसी सुंदर बीबी मिली मुझे , तुम बारहवीं पास हो और मैं दसवी ...तुम्हे बुरा तो नहीं लगा अपने से कम पढ़े लिखे लड़के से शादी करते हुए ?"
" उम्म!! नहीं ... मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा जंहा पापा ने शादी तय कर दी , आप मुझे पसन्द आये..  बस कर ली" बीना ने लापरवाही से हुए कहा
" ठीक है ! अच्छा !बताओ क्या तुम आगे पढ़ना चाहती हो ?"
"नहीं.. मुझ्र पढ़ना कम  अच्छा नहीं लगता " बीना ने संकोच भरे शब्दों में कहा
"ठीक है .. कोई बात नहीं .. इस बारे में फिर कभी बात करेंगे .. अभी  पास आओ ... आज हमारी सुहागरात है " इतना कह केशव ने हँसते हुए बीना को अपनी बाँहो में भर लिया ।

केशव , बीना, तारादेवी , टिकोरीलाल आदि सभी इस शादी से बहुत खुश थे , एक महीना कैसे बीत गया यह पता ही नहीं चला । एक महीने बाद एक दिन अचानक केशव एक फॉर्म लेके आता है और बीना को देते हुए कहता है की वह इसे भर दे ।
"क्या है यह ? किसका फॉर्म है यह ?" बीना ने आस्चर्य से पूछा
"एम् बी ए के इंट्रेंस टेस्ट का ...मेनेजर साहब की बेटी भर रही है तो मैंने एक तुम्हारे लिए भी मंगा लिया "केशव ने ख़ुशी से चहकते हुए कहा ।
" मुझे नहीं भरना कोई फार्म वार्म ... मैं नहीं कर रही पढाई " बीना ने थोडा नाराज होते हुए कहा
" क्यों नहीं पढ़ना? तुम्हे पढ़ना है ... आगे बढ़ना है .. बहुत आगे ... बीना ! मेरे पिता जी नहीं थे इसलिए मैं नहीं पढ़ पाया पर मैं चाहता हूँ की तुम आगे पढ़ो और कुछ मुक़ाम हासिल करो , हमारे बच्चों को गरीबी में न रहना पड़े जैसे की हम रहे ..." केशव ने बीना को समझाते हुए कहा ।

फिर उसके बाद काफी देर तक बीना को केशव समझाता रहा , अंत में बीना मान गई । फार्म भर दिया , परीक्षा दो महीने बाद होनी थी ।बीना ने पढाई दो साल पहले ही छोड़ दी थी इसलिए अब उसे फिर पढाई करने में थोड़ी परेशानी हो रही थी । अत: केशव ने बीना को कोचिंग दिलाने का निश्चय किया । कोचिंग महंगी थी इसलिए केशव की जमा पूंजी सब ख़त्म हो गई ।बीना को केशव जैसा पति पाके गर्व हो रहा था और वह अपने पति से और प्यार करने लगी थी ।

बीना की कड़ी मेहनत और केशव का साथ , बीना ने दो महीने रात दिन मेहनत की और इंट्रेंस टेस्ट पास कर लिया । अब उसका नंबर एक अच्छे और प्रतिष्ठित कॉलेज में आ गया था ।
केशव बहुत खुश था उसने सारे मोहल्ले में मिठाई बांटी , रिस्तेदार भी केशव और बीना की तारीफ करते नहीं थक रहे थे । परन्तु बीना उदास थी , जब केशव ने उससे उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया की -
" मैं पास तो हो गई हूँ पर एडमिशन में मोटा खर्चा होगा , पांच साल का कोर्स है फीस भी बहुत है ...बाकी कॉपी किताबो के साथ और खर्चे भी होंगे , वे कैसे पुरे होंगे?.. फिर अंग्रेजी भी कमजोर है मेरी उसकी भी ट्यूशन लेना पड़ेगा "
" पागल!तुम चिंता मत करो ... सब हो जायेगा... बस अब तुम पढाई के बारे में सोचो " केशव ने जब यह कहा तो बीना मुस्कुराते हुए उसके सीने से लग गई ।

केशव ने ऐडमिशन फीस भरने के लिए अपने गाँव की एकलौती जमीन भी बेंच दी ।तारादेवी थोडा गुस्सा हुई की थोड़ी सी पुस्तैनी जमीन थी गाँव में वह भी बेच दी , परन्तु केशव के समझाने पर की जब बीना की नौकरी लगेगी तो ऐसी दसियो जमीने खरीद ली जाएँगी तारादेवी चुप हो गई ।

अब बीना का एकडमिशन कॉलेज में हो गया था ,अंग्रेजी सीखने के लिए ट्यूशन भी लगवा दिया था। पढाई , ट्यूशन आदि  खर्चो को पूरा करने के लिए केशव ने रात में गार्ड की नौकरी भी कर ली थी । दिन में थकाने वाली कोरियर बॉय की नौकरी और रात में जागने वाले  गार्ड की नौकरी पर केशव को परवाह नहीं थी वह तो किसी भी प्रकार से बीना की पढाई में कोई रूकावट न आये यह सोचता रहता ।

बीना को पढ़ते हुए तीन साल हो गए थे ,बीना मन लगा के पढ़ रही थी और इधर केशव रात दिन मेहनत कर उसकी पढाई का खर्चा उठा रहा था ।
इस बीच बीना ने एक बच्ची को जन्म दे दिया था , बीना बच्ची को अपनी सास तारा देवी को सौंप कॉलेज चली जाती थी ।एक तरह से बच्ची की देखभाल उसकी सास ही कर रही थी ।इधर समय बीतता जा रहा था ,केशव रात दिन मेहनत करने के कारण कमजोर सा हो गया था बाल भी असमय सफ़ेद हो गए थे परन्तु उसकी हिम्मत नहीं टूट रही थी ,वह बीना को हौसला देता ।बीना की तारीफ सभी रिस्तेदारो से करता , बीना जैसी फर्राटेदार अंग्रेजी पुरे मोहल्ले में कोईं न बोलता ।

आखिर वह दिन आ ही गया जब बिना ने एम्. बी. ए की परीक्षा बहुत अच्छे नम्बरो से पास कर ली थी , केम्पस में ही विदेशी कंपनी द्वारा बीना का चयन हो गया । सैलरी थी एक लाख रूपये महीना ।

केशव तो जैसे आसमान में उड़ रहा था  आज उसके सभी अरमान पुरे हो गए थे , कँहा वह कुछ हजार के लिए रात दिन मेहनत कर रहा था और कँहा बीना की  एक लाख रूपये महीना की सेलरी , उसे यकीं था की अब उनके दरिद्रता के दिन दूर हो जायेंगे और बच्चों का भविष्य अच्छा हो जायेगा।बीना भी बहुत खुश थी , टिकोरीलाल को तो जैसे यकीं ही न हो रहा था की बीना ऐसा भी कर सकती थी ।

बीना को नौकरी करते 1 साल के करीब होने वाला था  , केशव ने गार्ड की नौकरी छोड़ दी थी और कोरियर बॉय का काम ही कर रहा था ।

कुछ महीने बाद बीना का प्रमोशन हो गया ,अब वह ऊँची पोस्ट पर थी । केशव खुश से भी ज्यादा खुश हो गया था , सभी लोग उसके त्याग और मेहनत की तारिफ करते ।
परन्तु इधर कुछ दिनों से बीना का व्यव्हार बदल रहा था , वह बात बात में केशव से चिढ जाती ।बीना अब केशव से सीधे मुंह बात भी नहीं करती, हमेशा उसका गुस्सा चढ़ा रहता । अगर केशव बीना के पास भी आना चाहता तो वह उसे झिड़क देती , बात बात पर ताने देती ।यंहा तक की वह अपनी बच्ची से भी केशव और उसकी माँ को दूर रखती , उसने बच्ची का एडमिशन बोर्डिंग में करवा दिया था । केशव और उसकी माँ को बीना का यह व्यवहार अच्छा नहीं लग रहा था , बिना रोज कोई न कोई बहाना खोजती लड़ने के लिए ।

बीना ने कार ले ली थी पर मजाल था की कभी उसने केशव या उसकी मां को कार में बैठाया हो , वह सुबह कार लेके निकल जाती और रात में वापस आती ।

एक दिन जब केशव के बर्दाश्त की हद हो गई तो उसने बीना से सख्ती से पूछ ही लिया की कारण क्या है बीना के इस व्यवाहर का ? बीना ने उससे कहा की-
"मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती, मेरा स्टैंडर्ड ख़राब होता है .. ऑफिस में सब मुझ से पूछते हैं की मेरा पति क्या करता है तो मेरा सर शर्म से झुक जाता है की मेरा पति एक कूरियर बॉय है .... मैं तुम से तलाक लेना चाहती हूँ ताकि मैं चैन से रह सकूँ"
केशव के पैरो के नीचे से जैसे जमीन निकल गई हो ,उसे यकीं नहीं हो रहा था की बीना क्या कह रही है ।वह केवल सुन रहा था , बीना बोले जा रही थी ..
" कल को बच्ची बड़ी होगी तो मैं उससे क्या कहूँगी ,की उसका बाप एक दसवीं पास टुच्चा सा कूरियर बॉय है ... कितनी शर्म आएगी उसको ..... उसकी छोड़ो मुझे कितनी शर्म आती है सोसाइटी में ... जितना तुम कमाते हो उससे ज्यादा तो मेरी कार में पेट्रोल भर जाता है महीने में .. अब सोसाइटी में मेरी इज्जत है स्टेंडर्ड है , तुम्हारे साथ रहने से मेरी बेज्जती होती है .. अब मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना " बीना ने चीखते हुए कहा और अलमारी खोलने लगी ।

केशव जड़वत सब सुन रहा था ।

बीना ने अलमारी खोल के एक पेपर केशव को देते हुए कहा " इस पर साइन कर दो ... "
"क्या है यह"? केशव ने सर्द लहजे में पूछा
"तलाक के कागज, मैंने वकील से पहले ही तैयार करवा लिए थे और केस भी डाल दिया है .... मुझे तुम से तलाक चाहिए ... जो तुमने मेरे लिए किया उसके बदले यह दस लाख का चैक " बीना से सपाट शब्दों में कहा
" और सुनो... अब यह मत कहना की तुम मुझे तलाक नहीं दोगे.... यदि तुमने मुझे तलाक नहीं दिया तो मैं तुम माँ बेटे पर दहेज़ प्रताड़ना का केस भी डाल दूंगी ... समझे " बीना ने धमकी भरी आवाज में कहा ।

केशव को समझ नहीं आया की वह क्या कहे ,उससे कुछ बोलता नहीं बन रहा था गला रुंध गया था वह बिना कुछ बोले कमरे से बाहर निकल गया ।
सुबह जब केशव की माँ ने यह बात सुनी तो उसने बीना से बात करनी चाहि परन्तु बीना ने उन्हें भरा बुरा कह के चुप करवा दिया ।यहबात बीना के पिता टिकोरीलाल को जब केशव ने बताई तो उसने यह कह के अपना पल्ला झाड़ लिया की वह अपनी बेटी के मामले में कुछ नहीं कहेगा ।

केशव ने कई बार बीना को समझाने की कोशिस की पंरतु सब बेकार , बीना कुछ भी सुनना नहीं चाहती थी । एक दिन सच में ऐसा हुआ की कोर्ट की तरफ से एक नोटिस मिला जिसमे बीना ने तलाक की अपील की हुई थी और उसमे केशव द्वारा मारपीट का आरोप तो लगा ही था दहेज़ और सारी सेलरी केशव और उसकी माँ पर हड़पने का आरोप भी लगा हुआ था ।
नोटिस पढ़ के केशव की माँ का बुरा हाल था , केशव ने आखरी बार बीना को समझाने की कोशिश की तो बीना ने बिफरते हुएकहा -" मेरी बात कान खोल के सुन लो , तलाक तो तुम्हे देना ही पड़ेगा क्यों की मेंकिसी और से प्यार करती हूँ जो मेरा कॉलीग है और मेरी स्टेट्स का है ... मेरा और तुम्हारा कोई मेल नहीं है ..बात समझो केशव! मैं तुम्हारे साथ खुश नहीं रहूंगी "

केशव बीना की बात सुन शून्य की तरफ देखने लगा और कुछ क्षण सोच के  उसने काँपते हाथो से पैन लिया और तलाक के पेपर पर साइन कर दिए , साइन करने के बाद उसने बीना की तरफ देखा औरकहा " सच में अब तुम्हारा स्टेट्स बहुत बड़ा हो गया है ....मैं तुम्हारे लायक नहीं .... "

-संजय( केशव)

देवी मईया-कहानी


  " चलो भाई ...जल्दी करो .. बारात का समय हो गया है ... अरे ये दूल्हा तैयार हुआ की नहीं अभी तक .. कितना देर करते हो सब!!" भुल्लन दादा ने आते ही सब पर डांट मारते हुए कहा ।
"अरे चाचा....काहे इतना छटपटा राहे हो ? शादी ब्याह में इतना देर होता ही है .... अभी तक तो बैंड वाले भी नहीं आये हैं "हरिवंश ने दादा की बात पर नारज होते हुए कहा
"अरे ,दूर की बारात है हरिवंशवा ...टाइम से निकल जाए तो अच्छा रहता है .... इस ससुरे बैंड वाले भी पूरा पइसा ले लेते है और देर में आते हैं .... कोई एक पइसा बक्शीश नहीं देगा इनको ... आने दो ससुरो को देखता हूँ " भुल्लन चाचा ने फिर नारज होते हुए कहा ।
"ठीक है चाचा, अभी तो तुम भी पूरा तैयार नही हुए हो जाओ जूता पहिन लो .... कम से कम आज के दिन तो ई टूटी चप्पल उतार दो " हरिवंश ने कहा
" नया जूता है काटता है पैर को ...बाद में पहनेगे ... तब तक देखते हैं और बाराती तैयार हुए की नहीं... अरे ये केशवा कँहा चला गया ? भुल्लन चाचा ने जाते जाते पूछा
"माला लेने गया है ... सेहरा ले आये पर नोटों की माला भूल गए वही लेने गया है.... आ रहा होगा " हरिवंश ने कहा ।

  "कोई भी काम ढंग का नहीं हो रहा है "-भुल्लन चाचा बड़बड़ते हुए बाहर निकल गए और बारात की तयारी देखने लगे ।

बात यह थी की आज संतू की शादी थी , संतु हरिवंश का लड़का था और भुल्लन चाचा हरिवंश के चाचा ।सारा गाँव भुल्लन चाचा को हरिवंश के पद से ही भुल्लन को चाचा कहता , वे जगत चाचा थे ।

थोड़ी देर में बारात में जाने वाले घर के और गांव के सभी लोग तैयार हो गए थे , बारात में जाने के लिए जीप और बस का इंतेजाम किया हुआ था ।घोड़ी वाला घोड़ी पहले ही ले आया था , बस इन्तेजार था बैंड वालो का । कुछ देर में बैंड वाले भीं आ गए उसके बाद संतू तैयार कर के  घोड़ी पर बैठाया गया ,महिलाएं सज धज के गीत गाने लगीं ।बच्चे बैंड की धुन पर नाचने में मस्त हो गएँ।

अब बारात घर से निकल पड़ी , आगे आगे बैंड पीछे संतू घोड़ी पर और उसके पीछे महिलाये गीत गाती हुईं।
कुंआ पूजने के बाद बारात आगे बढ़ रही थी बीच बीच में कोई महिला या लड़की बैंड रुकवा के नाचने लग जाती , उसे नाचता देख जब कोई बाराती जेब से पैसा निकाल के न्यौछावर करने लगता तो भुल्लन चाचा अपनी छड़ी से उसे पैसे बैंड वालों को न देने का इशारा कर देते पर बैंडवाले कँहा मानाने वाले थे लपक के हाथ से ही छीन लेते ।

सब नाचते गाते गाँव के छोर तक पहुचने वाले ही थे की अगला घर था सुभौति काकी का ।सुभौति काकी पर देवी आती थीं, गाँव में जब किसी पर भूते प्रेत का साया पड़ता तो सुभौति काकी उसका इलाज देवी को अपने ऊपर बुला के करतीं , एक खौफ सा था गाँव में उनका ।

जैसे ही बारात सुभौति काकी के दरवाजे पर पहुंची की अचानक काकी घर का दरवाज़ा खोल बैंड वालो के सामने प्रकट हो गईँ ।बाल खुले , आँखे चढ़ी हुई .. भयानक रूप ।
"सब रुको वंही ....." सुभौति काकी ने भारी आवाज में कहा तो सब जड़वत वंही रुक गए ....बैंड रुक गया ... सब शांत .. सब कोतूहल से एक दूसरे को देखने लगे ।
"क्या हुआ काकी ? कौनो बात है का?" संतू की माँ ने  हिम्मत दिखा के पूछा ।
"बात!! बात पूछती है ... तूने अनर्थ कर दिया ... देवी मां को बुलाना भूल गई ...शादी कर रही है ... शादी....शादी में भूल गई मैया को बुलाना  " सुभौति काकी ने आँखे चढ़ा के झूमते हुए गुस्से में कहा ।
"गलती हो गई देवी मैया ...भारी गलती हो गई ..." संतू की माँ फट से काकी के कदमो में लोट गई जैसे कितनी बड़ी गलती कर दी हो ।
हरिवंश ने जब काकी का रूप देखा तो वह भी सहम गया और किसी अनिष्ठ की आशंका से डर तुरंत ही काकी के कदमो में पड़ गया ।

परंतु काकी का रूप और भयानक होता जा रहा था , वह जोर जोर से सर को आगे पीछे कर के झूम रहीं थी जिससे उसके बाल आगे पीछे हो रहे थे जिस कारणवह और डरावनी लग रही थी ।सभी लोग सहमे से काकी को देख रहे थे , काकी भयानक और अजीब सी  आवाज निकाल के झूमे जा रही थी ।

" देवी मैया कैसे खुश होंगी .... उपाय बताओ उपाय देवी मैया ... गलती हो गई हमसे ... भारी गलती" संतू की माँ ने हाथ जोड़ते हुए और आँखों में आंसू लाते हुए देवी बनी काकी से मिन्नत की ।
" सजा मिलेगी इसकी .... तुझे सजा मिलेगी ...तू मैया को भूल गई ... मैया तुझे सजा देंगी " सुभौति काकी ने झूमते झूमते एक पैर संतू की माँ कंधे पर रखते हुए कहा
" हमें क्षमा करो मैया .... क्षमा करो ...." हरिवंश ने काकी के पैर पकड़ते हुए कहा ।
" ह्म्म्म .... हूँ ....मैया को बली चाहिए ...... पांच मुर्गो की बली .... परसाद 500 का  चढ़ाना पड़ेगा .... तभी ये सादी हो सकती है नहीं तो अनर्थ होगा " सुभौति काकी ने झूमते हुए कहा ।
"ठीक है मैया .... देंगे .. हम देंगे ... अब शांत हो माई ... शांत " संतू की माँ ने गिड़गिड़ाते हुए कहा ।

केशव ये तमाशा देख रहा था , वह चुप चाप काकी के घर में गया और एक कुछ सैकेंड बाद वापस आके दरवाजे से ही चिल्लाया -
" काकीSSS.... तेरी दाल जल गई जो चूल्हे पर चढ़ी हुई है "

काकी ने दाल जलने की बात सुनी तो उसे जैसे होश आ गया और बोली
" हायं ....दइया ...दाल जल गई " और फौरन घर में भागी ।

बस! फिर क्या था ,जो अब तक डर के मारे काँप रहें थे वे एक दम सीधे खड़े हो ।सन्तू की माँ और हरिवंस को बहुत गुस्सा आया ।भुल्लन चाचा जो अब तक डर के मारे घोड़ी के पीछे छुपे हुए थे वो अपनी झड़ी लेके काकी के पीछे भागे -
" रुक तुझे खिलाता हूँ पांच मुर्गे अभी "

काकी ने भुल्लन चाचा को छड़ी लेके अपने पीछे आता देख फट से दरबाजा बंद कर लिया और केशव को अंदर से ही गलियां देने लगी ।

सब दुबारा हँसने लगे ,बैंड फिर बजने लगा और बारात नाचते गाते आगे बढ़ गई ।

- संजय( केशव)

बदला-कहानी




"राघव तुम मुझ से प्यार तो करते हो न ?" नमिता ने राघव की आँखों में झांकते हुए पूछा ।
"अरे यार! यह भी कोई पूछने की बात है .... बहुत प्यार करता हूँ मेरी जान तुमसे "राघव ने नमिता बाँहो में भरते हुए कहा ।
" पर हम शादी कब करेंगे ? एक साल से अधिक हो गये हैं  हमें प्यार करते हुए ... मुझे डर लगता है अब .. सच में मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती " नमिता ने राघव का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा ।
" जल्द ही करेंगे , कुछ दिन और रुको मैं अपने घरवालो से बात करता हूँ ... अभी थोडा और सैटल हो जाने दो "राघव ने नमिता से हाथ छुटाते हुए फिर से गले लगाते हुए कहा ।
"कितना सैटल होंगे! तुम भी जॉब कर रहे हो और मैं भी .. राघव अपनी जिंदगी बहुत अच्छी कटेगी " नमिता ने राघव की तरफ देखते हुए कहा ।
"ओह्हो! तुम भी अच्छे भले मूड का सत्यानाश कर देती हो... अच्छा बाबा ! जल्दी ही कर लूंगा न बात अपने घरवालो से ... अब आओ पास! रहा नहीं जा रहा है "राघव ने इतना कह नमिता को अपनी बाँहो में खीच के बैड पर लिटा दिया  फिर एक एक कर उसके सारे वस्त्र उतारने लगा ।नमिता ने भी अनमने मन से समर्पण कर दिया राघव की जिद के आगे ।

यह पहली बार नहीं था , ऐसा कई बार हो चुका था । राघव और नमिता एक ही दफ्तर में काम करते थे । राघव का पता नहीं पर नामित उससे बहुत प्यार करती थी और उसके साथ जीवन बिताना चाहती थी । इसी लिए वह राघव द्वारा अपने  साथ चाहे-अनचाहे  शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए राजी भी हो जाती थी ।उसे यकीं था की राघव और उसकी शादी होनी ही है , बहुत विश्वास करती थी वह राघव पर ।

कई महीने और बीत गएँ यूँ ही , राघव नमिता से शादी का वादा करता और उसके के साथ शरीरिक  सबंध बनाता।
एक दिन राघव और नमिता कॉफी शॉप में बैठे थे की नमिता ने राघव का हाथ पकड़ते हुए कहा -
" राघव! अब जल्द ही अपने परिवार वालो से हमारी शादी की बात कर लो "
" अरे यार! फिर तुम शादी की कहानी लेके बैठ गईं .. कर लूंगा बात .. क्या जल्दी है " राघव ने झुंझलाते हुए कहा
" कर लूंगा .. कर लूंगा ... यही कहते आ रहे हो .. कब करोगे ? जब देर हो जायेगी तब " नामित ने भी थोडा गुस्सा होते हुए कहा ।
" तुम्हे इतनी जल्दी क्यों है ? क्या आफत आ रही है " राघव ने आस पास देख के नमिता को गुस्से से कहा
" जल्दी है न ! मैं माँ बनने वाली हूँ ... तुम्हारे बच्चे की .. 2 महीने हो गए हैं " नमिता ने एक दम से जबाब दिया

अब तो राघव के पैरो के नीचे जमीन खिसक गई , सहसा उसे यकीं नहीं हुआ नमिता की बात उसने लगभग चीखते हुए कहा -
" क्या बकवास कर रही हो ?ऐसा कैसे हो गया ... तुम झूठ बोल रही हो " राघव ने इतने गुस्से और जोर से कहा था की कॉफी शॉप में बैठे लोग और स्टाफ उन्हें देखने लगा ।
" यह सच है राघव!... एक दम सच.. मुझे भी आज ही पता चला है जब मेरी तबियत खराब हुई और मैं डॉक्टर के पास गई  " नमिता ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा ।
राघव ने हाथ छुड़ाते हुए कहा -
"तो चलो अभी के अभी अबॉर्शन करवा दो .. चलो मेरे साथ " राघव ने नमिता का हाथ पकड़ के खीचते हुए कहा ।
" राघव!!, पागल हो गए हो क्या !मुझे नहीं करवाना है अबॉर्शन ... तुम मुझ से शादी करोगे "नमिता ने सख्त लहजे में कहा ।
नमिता का इतना कहना था की राघव उठा और गुस्से से कॉफी शॉप से बहार निकल गया , पीछे पीछे नमिता भी उसे रोकने की कोशिश करती रही पर राघव तेजी से बाइक के पास आया और स्टार्ट कर वंहा से चला गया ।

उसके बाद नमिता ने कई बार राघव से फोन पर बात करने की कोशिश की परन्तु राघव कभी फोन काट देता तो कभी फोन ही स्विच ऑफ़ कर देता ।
वह कई दिनों तक ऑफिस ही नहीं आया , आखिर थक के नमिता राघव के उस फ्लैट पर पहुंची जंहा वह किराये पर रहता था ।
नमिता को देखते ही राघव आगबबूला हो गया , काफी बहस हुई उन दोनों के बीच ।
राघव ने साफ़ साफ़ कह दिया की उसके घरवाले उसकी शादी नमिता से करने को तैयार नहीं है । राघव के घरवाले उसकी शादी किसी ' अच्छे खानदानी ' घर में करवाना चाहते हैं और नमिता उस लायक नहीं । राघव ने यंहा तक कह दिया की जो लड़की शादी से पहले किसी लड़के के साथ शारीरिक सम्बन्ध बना सकती है वह कितनी चरित्रहीन होगी ।
राघव का शादी से इंकार और इस तरह चरित्रहीनता का आरोप लगाना नमिता को सहन नहीं हुआ । वह रोती हुई राघव के फ्लैट से निकल गई ।

राघव ने बेंगलोर से नौकरी छोड़ दी और दिल्ली आके नई नौकरी करने लगा ।नमिता से वह फिर कभी नहीं मिला ,और लगभग उसे भूल ही गया था ।
दिल्ली में नए दफ्तर में उसे फिर एक नई लड़की मिल गई थी और फिर वह उससे प्यार की पींगे बढ़ाने लगा था ।

एक दिन अचानक उसके घर लखनऊ से फोन आया , फोन उसकी माँ का था -
" हेलो राघव!तू जल्दी से घर आ जा लता हॉस्पिटल में भर्ती है उसने सुसाइड करने की कोशिश की है फिनाइल पीके"
लता राघव की छोटी बहन थी और लखनऊ में ही रेगुलर कॉलेज में पढ़ती थी ।
आनन् फानन में राघव लखनऊ पंहुचा , हॉस्पिटल पहुँच के   माँ ने बताया की लता किसी लड़के से प्यार करती है । उस लड़के ने लता को शादी का झांसा देके उसके साथ कई बार  शारीरिक सबंध बनाये और जब लता प्रेगनेन्ट हो गई तो उसे छोड़ के कंही भाग गया । उसी डिप्रेशन में लता ने फिनाइल पी के अपनी जिंदगी ख़त्म करने चली थी ।

राघव की माँ रो रो के सारी बात बताये जा रही थी और सैकड़ो गालियां उस लड़के को दिए जा रही थी जिसने लता को प्रेगनेन्ट किया । पर राघव तो जैसे सुन ही नहीं रहा हो ... उसे नमिता याद आ रही थी ... अपना किया हुआ हर जुल्म याद आ रहा था जो उसने नमिता के शरीर और भावनाओ से किया था , वह मूर्ति बना बस खड़ा था ।

- केशव ( संजय)