Thursday, 16 June 2016

पायल -कहानी



"क्या कटीली लगती है यार! कसम से दिल आ गया है हमारा तो इस पर " प्रदीप ने आह भरते हुए कहा
"हाँ छाती तो देखो कइसन उभरी है ...कसम से पुरे जवार में इतनी मस्त लड़की नहीं होगी " ये विक्रम  था
"इसको पटाने की कितनी कोशिश किये हम , पर ससुरी हाथ ही नहीं रखने देती है ... दुइ दफे हाथ भी पकड़ लिए ससुरी का पर गुस्से में छुड़ा के भाग गई ... साली !नीची जात और नखरे देखो इसके " यह था अनूप   ।
" ससुरा इसका बाप हमारे खेतो में मजदूरी करता है और सपना देखो की कहता है की लड़की को पढ़ा के अफ़सर बनाएगा ... ई नाही की  शादी बिआह कर दूँ इसकी ....कक्षा दस में पढ़ रही है मास्टरनी जी " सुधाकर ने त्यौरी चढाते हुए कहा ।
"तो अनूप भैया ... पकड़ लें क्या इसको आज ही ... अब रहा नहीं जा रहा है होगा सो देखा जायेगा ससुरा " विक्रम ने उतावले पन में कहा
"अबे नाही बे ... अभी दिन दहाड़े लड़की को पकड़ेगा तो कोई देख लेगा ... पहले मौका देखते हैं ..सब्र कर साले !!" अनूप झिड़कते हुए कहा

ये  चारो जिसकी बात कर रहे थें वह थी पायल , पायल  हरिलाल की लड़की थी और ' अछूत' कही जाने वाली जाति से थी । पायल कक्षा दस  में पढ़ती थी और उम्र थी 16 साल ।हरिलाल वैसे तो भट्टे पर काम करता था पर जब भट्टे पर काम नहीं होता था तो सुधाकर ठाकुर के खेतो में मजदूरी करता , हरिलाल की दो बेटियां थीं पायल सबसे बड़ी थी छोटी अभी कक्षा 6 में थी  । हरिलाल चाहता था की पायल ज्यादा से ज्यादा पढ़े ताकि अध्यापिका बन सके , हरिलाल की एक यही इच्छा थी चुकी हरिलाल के कोई लड़का नहीं था तो सारी उम्मीद पायल पर ही थी इसी लिए हरिलाल दिन रात मेहनत करता ताकि पढाई का खर्चा उठा सके ।

चारो मौके की तलाश में रहने लगे की कब पायल को अकेली पाएं , एक दिन शाम को पायल खेतो से वापस आ रही थी तो चारो ने उसे पकड़ लिया और ट्यूबेल के लिए बने एक सुनसान कमरे में ले गया ।

पायल उनके हाथो से छूटने की भरकस कोशिश करती रही पर अनूप का हाथ उसके मुंह पर कस के जकड़ा हुआ था जिससे वह चीख भी नहीं पा रही थी ।
कमरे में ले जाके विक्रम और सुधाकर ने उसके हाथ ट्यूबल से बाँध दिया और मुंह में कपडा ठूस दिया ।
फिर चारो ने मिल के पायल के शरीर से एक एक वस्त्र नोच लिए , उसके बाद एक एक करके उसके साथ बलत्कार करने लगे । पायल दर्द से चीखने की कोशिश कर रही थी पर मुंह में कपडा होने के कारण उसकी आवाज घुट के रह जा रही थी।चारो ने पायल के शरीर पर जगह जगह नाखुनो और दांतो से घाव बना दिए , चारो पशु बन गए थे ।

पायल असहनीय पीड़ा से कई बार बेहोश चुकी थी परन्तु ये चारो नहीं रुक रहे थे । खूब जी भर जाने के बाद चारो ने पायल को छोड़ा , अत्याधिक रक्त बहने और दर्द से कब की बेहोश हो चुकी थी।
चारो ने पायल को बँधा हुआ छोड़ वे कमरे से बाहर आये और ताला लगा के घर की तरफ चल दिए , बीच बीच में आपस में बाते करते हुए हँसते भी जा रहे थे ।

इधर काफी अँधेरा होने के बाद भी जब पायल घर नहीं आई थी तो हरिलाल और उसकी पत्नी पायल को लेके बहुत पारेशान हुए । उन्होंने पुरे गाँव में पायल को खोजा पर वह कंही नहीं मिली , उसे किसी अनहोनी की आशंका सताए जा रही थी ।हरिलाल और दो चार पडोसी सारी रात पायल को खोजते रहें पर वह कंही नहीं मिली , हरिलाल को अनूप का ध्यान आया की कंही उसने तो गायब नहीं कर दी क्यों की दो तीन बार पायल ने बताया था की इससे छेड़ छाड़ करी थी ।पर वह गरीब और नीची जात का होने के कारण अनूप जैसे 'दबंग' का सीधा सीधा विरोध नहीं कर पाया था , पर आज जब पायल गायब थी तो उसने अनूप से पूछने का निश्चय कर ही लिया था ।

हरिलाल अपने एक पडोसी को लेके सुबह सुबह ' ठाकुरौती' मुहल्ले में पहुंचा, अनूप की पत्नी झाड़ू लगा रही थी और अनूप का बाप बाहर खाट पर ही बैठा बैठा हुक्का पी रहा था ।
हरिलाल ने हाथ जोड़ के अनूप के बाप को सारी बात बताई , उसकी बात सुन अनूप का बाप गुस्सा हो गया और सैकड़ो गलियां हरिलाल को देने लगा ।
' कमीने! छोटी जात सुसरे!जिंदगी भर हमारे टुकड़ो पर पलता आया हैऔर आज हमारे ही बेटे पर इल्जाम लगा रहा है ...भाग यंहा से वर्ना लाठी मार के सर फोड़ दूंगा ' अनूप के बाप ने गुस्से में कहा ।
" ये तो रात भर यंही थे ...अभी बुलाती हूँ उन्हें !"अनूप की पत्नी ने भी हरिलाल पर गुस्सा होते हुए कहा

शोर सुन के अनूप बाहर आया ,जब उसने सारी बात सुनी तो क्रोध में उसने जोरदार चांटा हरिलाल के जड़ दिया "
" साले! तेरी लड़की भाग गई होगी किसी के साथ और इल्जाम मुझ पर लगा रहा है ...भाग यंहा से ...दुबारा यंहा आया तो टाँगे तोड़ दूंगा " अनूप ने हरिलाल की गर्दन पकड़ के धक्का देते हुए कहा ।

हरिलाल पिटाई और गलियां खा के रोता हुआ वंहा से वापस चल दिया , उसके जाने के बाद भी  अनूप का बाप हरिलाल को गलियां देता रहा और कहता रहा "कैसा कलयुग आ गया है साले अछूतो की भी इतनी हिम्मत हो गई की हमारे दरवाजे तक आ गए"

थक हार के हरिलाल ने पुलिसमे  शिकायत करने का निश्चय किया ।थाने पहुचने के बाद थानेदार ने जब अनूप का नाम सुना और हरिलाल की जात पता चली तो उसने दसियों गलियां दी हरिलाल को और कहा की पायल ही कंही किसी के साथ भाग गई होगी । उसने एक सादे कागज पर शिकायत लिख ली और हरिलाल को वंहा से भगा दिया ।

शाम को थानेदर अनूप के घर पहुँचा, उसने अनूप से व्यंगपूर्ण लहजे में  कहा
" का अनूप बाबू ....का कांड किये हो ! उस ससुरा चम# थाने में आया था अपनी बेटी की गुमशुदगी लेके ... उसको शक है की तुमने ही उठवाया है लड़की को ...का सच है ?
"पाण्डे साब! अब आप तो अपने ही बिरादरी के है आप से कौनो बात छुपी है का ...दिल तो दीवाना है जी " अनूप ने दांत निकालते हुए कहा
" अरे,त दीवाना दिल को समझाओ की कुछ खर्चा पानी  करे  का खाली बिरादरी का फायदा लोगो ' थानेदार ने ठहाका लगता हुए कहा ।
" ठीक है शाम को आइये , खर्चा पानी करते हैं तीन साथी लोग और हैं अपना " अनूप ने कहा

उसके बाद  थानेदार चला गया, शाम को वह अनूप के घर फिर पहुंचा । वंहा विक्रम, प्रदीप ,सुधाकर, पहले से मौजूद थे ।
थोड़ी देर में शराब की बोतल खुली तो पैग पर पैग बनते चले गएँ । अनूप ने हजार हजार के बीस नोट थानेदार की तरफ बढ़ा दिए , थानेदार ने तुरंत उन्हें पेंट की अंदर वाली जेब में डाल लिए उसके बाद एक पैग और लेने के बाद वह नशे में झूमता हुआ बोला-

' ई सब तो ठीक , पार्टी तो बहुत हो ली अब जरा हम भी देखे की कौन सा हीरा छुपाये था उ चम्## हरिलाल जिसपर तुम लोगो का दिल आ गया ... हम भी उसका स्वाद चखे "
"ठीक है थानेदार साहब ! अभी चलो " इतना कह सुधाकर उठा खड़ा हुआ । पांचो नशे में झूमते हुए ट्यूबल वाले कमरे में पहुंचे जंहा उन्होंने पायल को कैद किया हुआ था ।

दरवाजा खोल के पांचो अंदर पहुंचे , पायल के मुंह में अब भी कपडा ठूसा हुआ था , जख्मो से खून रुक तो गया था पर दर्द अब भी बहुत हो रहा था, रस्सी छुड़ाने के चक्कर में उसके हाथ और पैरो में भी जख्म हो गएँ थे  । पायल होश में थी और दर्द से कराह रही थी ,उसने जब पांचो को अंदर आते देखा तो डर के चीखने लगी ।पर पांचो ने बिना दया किये फिर उस पर एक एक कर के टूट पढ़ें , पायल दर्द से फिर चीखती रही पर कोई असर न था ।

सुबह के चार बजे जब पांचो का नशा उतरा तो उन्हें अहसास हुआ की पायल मर चुकी है ।वे थोडा घबराये पर थानेदार ने कहा -
" घबराओ नहीं , ऐसा करो की लाश को उठा के जला दो "
"पर इस समय इतनी लकड़ियाँ कँहा से लायेंगे? " प्रदीप ने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा
"हाँ यह बात सही है , इतनी जल्दी लकडियो का इंतेजाम नहीं किया जा सकता" सुधाकर ने हाँ में हाँ मिलाई
"तो ऐसा करो की इसकी लाश किसी पेड़ से लटका देते है और आत्महत्या का केस दर्ज कर देंगे ... यह मेरे हाथ में है "थानेदार ने दिमाग पर जोर देते हुएकहा

सब ने ऐसा ही किया , एक पेड़ से पायल की लाश लटका दी और वंहा से भाग गएँ ।

सुबह गांव में खबर पहुंची तो पुलिस को बुलाया गया , थानेदार आया और उसने रिपोर्ट यह बनाई की पायल का किसी लड़के के साथ चक्कर था और उसी प्यार के चक्कर में उसने आत्महत्या कर ली ।
उसके बाद थानेदार ने अपने ही देख रेख में  आनन फानन पायल की लाश को जला दिया ।चुकी मिडीया की उस पिछड़े गाँव में कोई मौजूदगी नहीं थी और हरिलाल आदि बाकी पिछड़ी जाति के लोग बहुत गरीब और कमजोर थे अत: वे थानेदार का विरोध नहीं कर सके और न ही पायल के हत्यारो की गिरफ्तारी का मांग ही कर सके ।

शाम को फिर थानेदार , प्रदीप, सुधाकर , विक्रम, और अनूप फिर महफ़िल सजा के बैठे थे ,सामने टीवी चल रहा था ।आज भीम राव अम्बेडकर की जयंती थी ,टीवी पर प्रधानमंत्री का भाषण का रिप्ले में दिखाया जा रहा था जो उन्होंने सुबह अम्बेडकर जी की जयंती पर दिया था-

" देशवासियो !हमें बाबा साहब के सपने को पूरा करना एक ऐसा देश बनाना है जंहा समानता हो , जातिवाद न हो ... छुआछूत न हो ... दलितों के हितो की रक्षा करना है ...दलित महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारो को रोकने के लिए कड़े कानून बनाने होंगे ताकि कोई उनके साथ अत्याचार न कर सके दलित महिलाओं के साथ यौन अत्याचारो के खिलाफ और कड़े कानून बनाने होंगे ताकि हर अपराधी को सजा मिल सके ... "

" ई नेतवा लोग भी कितना नौटंकी करते हैं ..नीच जातियों को हमारे बराबर बैठायेँगे ... मान गए इनको ... साला अइसन भाषण सुन के छोटी जात लोग का दिमाग खराब होगा की नहीं ? हरिलाल का भी दिमाग खराब था ... ससुरा लड़की को पढ़ा रहा था ... अरे एक नीच जात की लड़की हमारे गाँव में अफसर बनेगी का !" प्रदीप ने टीवी की तरफ हाथ हिलाते हुए कहा ।
" उनका काम है रे .... बोलने का ही तो वोट मिलता है उनको ... बोलने दे ... असली कानून तो हम हैं ऐसे जगहों पर वैसे पायल जैसी कौनो और छोटी जात की लड़की हमारी बगल में बैठे तो कौनो एतराज नहीं हमके .... जल्दी से और कौनो खोजो बे "थानेदार ने अपनी जांघ पर हाथ मार के हसंते हुए कहा

थानेदार की बात सुन के चारो भी ठहाके मार के हँसने लगे और अगला पैग गिलास में डालने लगे ।

-केशव ( संजय)

No comments:

Post a Comment