Tuesday, 28 June 2016

एक छोटी सी प्रेम कहानी



रोज की तरह आज भी सुनील डीटीसी बस में बैठा  आईटीओ स्थित अपने ऑफिस जा रहा था।

निसंदेह बस हमेशा की तरह खचा खच भरी हुई  ।

एक एक ऊपर एक आदमी चढ़े जा रहे थे मानो साँस लेने तक की जगह नहीं थी  पर सुनील भीड़ चीरने की आदत थी और उसने को किसी तरह एंट्री गेट से पीछे वाली सीट ले ली थी ।उसके  बगल वाली सीट पर एक बुजुर्ग आदमी बैठा हुआ था । सुनील अपने मोबाइल का हेडफोन लगाये आँखे बंद किये हुए गाने सुनने में मग्न  , उसे पता था की उसका स्टेण्ड आने में अभी 35-40 मिनट लगने ही हैं ।

बस हर स्टेण्ड पर रूकती हुई चल रही थी , जितनी सवारियां उतरती ऑफिस समय होने के कारण उससे ज्यादा चढ़ जाती । सुनील इन सब से बेखबर आँख बंद किये हुए गानो का मजा लेने में डूबा हुआ था ।

 अचानक उसके नथुनो में एक भीनी और मदहोस करने परफ्यूम की खुसबू टकराई ,उसने झट से आँखे खोली तो उसने देखा की उसकी सीट से लग के एक लड़की खड़ी हुई थी । लड़की ने दुपट्टे से अपना चेहरा ढँक रखा था , जैसा की आज कल लड़कियो का फैशन है धूप से बचने के लिए सुल्ताना डाकू बन जाती है वैसे ही उस लड़की ने भी चेहरा स्कार्फ से  बांधे हुए था ।

अब सुनील ने चेहरे से नजर हटा के लड़की के बाकी शरीर का जायजा लिया  , लड़की  ने लाल रंग  स्लीव लैस टॉप और काले रंग की टाइट स्लैक्स पहने हुए थी ,खुले बरगैंडी कलर के बाल ,  उन्नत वक्ष, हाथो का रंग बिलकुल दूध सा गोरा , कमर पतली ( जीरो फिगर वाली), हलके निकले हुए नितंब जो की टाइट स्लेक्स से उनकी आकृति का साफ अहसास हो रहा था ।

"उफ़्फ़ लड़की है या क़यामत ?"- सुनील ने लगभग होश में आते हुए अपने ने मन ही मन में कहा ।

तभी सुनील की नजर लड़की के हाथ पर गई , हाथ पर हिंदी में लिखा था ' नजमा' ।

वाह!बिलकुल अपने नाम के जैसी है ' किसी सुन्दर नज़्म की तरह - सुनील ने फिर अपने मन में सोचा ।
तभी सुनील को कुछ ख्याल आया , वह झट खड़ा होता हुआ लड़की से बोला " आप मेरी मेरी सीट पर बैठ जाइए " ।
लड़की ने एक बार सुनील की तरफ देखा और बिना कुछ बोले सुनील की सीट पर बैठ गई ।

सुनील सीट के साथ खड़ा हो गया ,पर उसकी निगाहे लड़की पर ही टिकी रहीं और वह मन्त्र मुग्ध सा उसे देखे जा रहा था । लड़की भी बार बार सुनील की तरफ कनखियों से देखे जा रही थी ।अभी बस कुछ दूर चली ही थी की सुनील के कानो में लड़की की मधुर आवाज गूंजी -
' आप ऐसे खड़े खड़े थक जायेंगे , आइये आप भी बैठ जाइए ' लड़की थोडा खिसकते हुए जगह बनाने की कोशिश करती हुई बोली ।

सुनील तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई हो , परी जैसी लड़की के साथ बैठने का ' सौभाग्य' कैसे गंवा सकता था वह ? सो ' थैंक्यू ' कहने की औपचारिकता पूरी कह झट चार इंच की जगह में  टेढ़ा होके बैठने की कोशिश करने लग गया। अब लड़की के बदन से सुनील का बदन टकराने लगा , सुनील का शरीर मानो जलने लगा हो लड़की के बालो से आती हुई खुसबू उसकी धड़कने बंद कर रहीं थी । फिर भी वह अपनी सांसो पर काबू करता हुआ बोला -कँहा तक जाएँगी आप?"
" जी , नवोदिता कॉलेज तक " लड़की ने कहा
' ओह ! तो आप कॉलेज में हैं , नवोदिता कालेज तो आई टी ओ के पास है , कौन सी स्ट्रीम है ?
सुनील ने बात आगे बढ़ाई
' बी कॉम फाइनल एयर ' लड़की ने कहा ' आप क्या करते हैं?- अब लड़की ने सुनील से प्रश्न किया ।

" मैंने पिछले साल ही बीकॉम पास किया है और पार्ट् टाइम अकाउंट्स की जॉब कर करता हूँ साथ ही सिविल की परीक्षाएं दे रहा हूँ - सुनील ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया ।

" ओह , यह तो बहुत अच्छी बात है ' लड़की ने कहा

" मेरा नाम सुनील है और क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ ? सुनील ने हिचकते हुए पूछने का नाटक किया जबकी उसने लड़की के हाथ पर नजमा लिखा हुआ पढ़ लिया था पर बात बढ़ाने के लिए सुनील ने पूछा।
" मेरा नाम नजमा है " लड़की ने जबाब देते हुए अपने चेहरे से दुपट्टा हटाते हुए कहा ।

जैसे ही लड़की ने चेहरे से दुपट्टा हटाया सुनील की आँखे आश्चर्य और  ख़ुशी से फ़ैल गईं । नज़मा का चेहरा दुपट्टे से हटाने के बाद ऐसा लगा जैसे बादलो से चाँद निकल आया हो ।
नजमा ने जब सुनील को इस तरह अपनी तरफ देखते हुए पाया तो वह झेंपते हुए बोली -"क्या देख रहे हो?

नज़मा की बात सुन जैसे सुनील को होश आया ही उसने नजरे  हटाते हुए कहा ' कुछ नहीं , आप बहुत खूबसूरत हैं बिलकुल किसी फ़िल्म की नायिका जैसी "
सुनील की बात सुन नज़मा केवल मुस्कुरा दी और नज़ारे नीचे कर लिया
सुनील का दिल और जोर से धड़कने लगा ....दोनों सारे रास्ते बात करते हुए जा रहे थे, बीच बीच में बातो के दौरान नज़मा की हंसी सुनील के दिल को चीर देती  ।

आईटीओ.... कंडक्टर की कर्कश आवाज सुनील के कानो से टकराई , सुनील हड़बड़ा के खड़ा हुआ और कुछ सोच के अपना नंबर एक विजिटिंग कार्ड पर लिख के नज़मा को देता हुआ बोला- "मेरा स्टॉप आ गया है , मुझे जाना होगा आप मेरा नंबर रखिये यदि अच्छा लगे तो कॉल करियेगा ।"

नज़मा ने सुनील का नंबर अपने पर्स में रखते हुए सुनील की तरफ देखा और हलके से मुस्कुराई ।

सुनील भी मुस्कुराया और फ़टाफ़ट बस से निचे उतार गया । उतरने के बाद भी जब तक बस चल नहीं दी सुनील नज़मा को देखता ही रहा ।

उस दिन सुनील का मन काम पर नहीं लगा और बार बार मोबाईल को निकाल चैक करता रहा की कंही नज़मा की कॉल तो नहीं आई? पर नजमा की कोई भी कॉल पुरे दिन नहीं आई । सुनील का सारे दिन मूड ऑफ रहा और वह नज़मा के बारे में ही सोच उखाड़ सा रहा ।

रात के बारह बजे करीब  जब सुनील सोने की तैयारी कर रहा था तो उसके फोन पर नज़मा का फोन आया , सुनील की मानो जान लौट आई हो । उस रात नज़मा और सुनील की बहुत देर तक बात हुई । इसके बाद दोनों तरफ से फोन करने का सिलसिला चल उठा , फोन के बाद मुलाकातो का दौर भी शबाब पर आ गया ।

थियेटर में लास्ट की कोने वाली सीट्स लेके फिल्म देखना और पुराने किले की सुनसान झाड़ियो में बैठना दोनों का आएदिन का शग़ल सा हो गया था ।

 अब दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते थे पर धर्म और मजहब की दिवार बीच में आ गई , जैसा की ऐसी कहानी वाली फिल्मो में होता है न तो सुनील का मुच्छड़ बाप एक मुसलमान लड़की को अपनी बहु बनाने को तैयार न था और न ही नज़मा का खूसट बाप ही एक हिन्दू दामाद के लिए तैयार था बल्कि उसने  तो सुनील को देख लेने की धमकी भी दे दी थी ।

नज़मा से शादी की अड़चनों को देख सुनील ने अपने दोस्त केशव से सहायता लेने की सोची , पर पता चला की केशव काम के सिलसिले में 10-15 दिन के लिए दिल्ली से बाहर गया हुआ है ।

कोई रास्ता न देख और नज़मा के प्यार में पागल सुनील ने खुद ही नज़मा के घरवालो से बात करने का फ़ैसला लिया । शाम को सुनील नजम के घर पंहुचा तो नज़मा का बाप अपने नज़मा से छोटे दोनों बेटो और बेगम  के साथ कमरे में बैठा चाय पी रहा था पास ही नज़मा खड़ी थी , सभी किसी बात पर जोर जोर से हंस रहे थे । सुनील ने फ़िल्मी अंदाज में दरवाजे पर लात मारते हुए जोर से चिल्ला के कहा-
 " नज़माssssss...'

इतना जोर से सुनील का चीखना सुन नज़मा ने गुस्से  और इठलाते अन्दाज में कहा ' क्या है इतनी जोर से क्यों चिल्ला रहे हो ? अब्बा जान घर पर ही हैं "

नज़मा की बात सुन सुनील डर से एक दम से चुप हो गया और उसने फुसफुसाते हुए कहा की -" तुम्हारे अब्बा  से हम दोनों की शादी की बात करनी है "

" ये लो ये आ गए अब्बा " -नज़मा ने कमरे से आते हुए अपने  अब्बा की तरफ इशारा करते हुए कहा ।

 अब्बा बिलकुल फ़िल्म अमर अकबर अन्थॉनी के ऋषि कपूर की ग्रलफ्रेंड के अब्बा ' झुम्मन मिंया ' जैसा था , रंगीन दाढ़ी ,छोटा कद हाथ में छड़ी लिए सीधा सुनील के सामने खड़ा हो गएँ और नज़मा के  दोनों भाई अब्बा के  अगल बगल।

क्या है बे? क्यों हमारी लड़की को परेशान कर रहा है ?"नज़मा के अब्बा ने गर्दन ऊपर तक करते हुए अपने से तक़रीबन 1.5 फुट लंबे सुनील से पूछा
" अब्बा जान ... मैं आपकी लड़की का हाथ मांगने आया हूँ? सुनील ने कहा
' ओये , हमें अपनी लड़की का हाथ तुझे देके उसको टुंडीबनना है क्या , नामाकूल?... चल फूट ले यंहा से , ये बेंत देखी है तूने?" - अब्बा ने सुनील को धक्का देते हुए कहा

" ओह, हो अब्बा तुम भी नहीं समझते ... हाथ मांगने का मतलब है की यह मुझ से शादी करना चाहता है " नज़मा ने बीच में नाराज़ सी होते हुए कहा ।

इधर नज़मा की अम्मी ने सुनील को देखा तो पास आके उसके गालो पर चिकोटी काटते हुए बोली हँसती हुई बोली  " ओये कितना क्यूट मुंडा  है , बिलकुल रणवीर कपूर जैसा .... मुझे तो बहुत पसंद आया "

इतना सुनते ही नज़मा के अब्बा का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया , गुस्से से छड़ी नज़मा की अम्मी के हाथ पर मारते  हुआ बोले " चुप कर उल्लू की पट्ठी, तुझे तो हर जवान लड़का क्यूट ही लगता है ... हट इधर से "

हाथ पर छड़ी लगने से नज़मा की अम्मी मुँह बिचकाती हुई एक तरफ हो गई ।

" तब हाथ क्यों मांग रहा है पूरा शरीर मांगे ना!! ......नज़मा तुम्हारी शादी फिर भी  इस गधे से नहीं हो सकती क्यों की यह हिन्दू है " इतना कह अब्बा ने टंगड़ी फंसाते हुए विश्राम मुद्रा में खड़े सुनील को अचानक गिरा दिया ।

यूँ अचानक धड़ाम से गिरे हुए सुनील को बहुत गुस्सा आया उसने मन ही मन सैकड़ो गालियां निकालीं पर कुछ नहीं कर नही सकता था ,आखिर वे तीन और यह अकेला । उसने लाचारी में  आस पास नजर घुमाई तो सामने एक नल दिखाई दिया , उसके जी में आया की सनी देवल की तरह वह भी 'अशरफ अलीss' चिल्लाता हुआ नल उखड के बुड्ढे के सर पर दे मारे पर नल उखाड़ना उसके बस की बात नहीं थी इस लिए मन मसोस के रह गया  ।

 नज़मा उसके पास आई और उसे खड़ा करते हुए बोली - ' "अब्बा अब हिंदू मुसलामन का किस्सा पुराना हो गया है , मैं शादी करुँगी तो सुनील से ही चाहे कोर्ट मैरिज ही क्यों न करनी पड़े।
सुनील अब चौकन्ना होके खड़ा था की कंही बुड्ढा फिर न उसकी लापरवाही का फायदा उठा उसे टंगड़ी मार के गिरा दे । सुनील चौकन्ना हो अब्बा को देखने लगा


" घूर घूर के क्या देख रहा है ?" नज़मा के बाप ने सुनील की तरफ देखते  हुए कहा

घूर घूर के क्या देख रहा है मुएँ ?आय हाय इतनी देर से घूरे जा रहा ?...कोई जोर से उसे कह रहा था

सुनील जैसे सपने  से जागा हो , उसने देखा की बस चल रही है और वह अब भी सीट के पास खड़ा था ,  सामने दुप्पटे से मुंह ढके वही लड़की ' नज़मा'  अपनी सीट से खड़ी थी और उससे के पूछ रही थी । पर यह क्या नज़मा की आवाज तो मर्दाना मिश्रित आ रही थी जैसे की किन्नरो की आवाज होती है ।

' क्या घूर रहा है इतनी देर से चिकने ? चलना है कंही तो बोल ?तेरे लिए रेट में कन्सेशन '-नज़मा ने दुपट्टा हटाते हुए सुनील की तरफ आँख मारते हुए  कहा ।

सुनील तो वैसे ही उसकी आवाज सुन के बेहोश होने वाला था उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला दुपट्टा हटते ही नज़मा की शेविंग किया चेहरा देख पूरा बेहोश हो चुका था ।

बस ... इतनी सी थी यह प्रेम कहानी

- केशव
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