ओह! ...ब्यूटीफुल! !!....कितना खूबसूरत नजारा है , ऐसा लगता है जैसे मैं किसी और लोक में पहुँच गई हूँ " वीणा ने ख़ुशी और आश्चर्य से अपनी बड़ी बड़ी आँखों को और बड़ा करते हुए कहा ।
"केशव! और आगे चलो न , आगे चल के देखते हैं न! उस वाले पत्थर पर खड़े होके और क्लियर सीन दिखेगा .... नीचे गहरी खाई और दूर तक फैले पहाड़ । कितना रोमांचित करने वाला सीन है ....एक फोटो लेते हैं ,चलो न !" - वीणा ने केशव का हाथ पकड़ के जिद करते हुए कहा
" मैं बहुत थक गया हूँ यार!,मुझ से पत्थरो पर और नहीं चढ़ा जायेगा ...और फिर वंहा जाना खतरनाक होगा,ज़रा सा बैलेंस बिगड़ा और हजारो सैकड़ो फिट गहरे खाई में ... लाश का भी पता नहीं चलेगा मैडम जी " थकान से भरे केशव ने पास के एक उभरे हुए पत्थर पर बैठते हुये कहा।
"क्या है! मैं उस चट्टान पर जा के एक फोटो खिचवाना चाहती हूँ ...श्रीमान जी अभी से थक गए तो रात में क्या करोगे ...हूँ " वीणा ने केशव के दोनों गाल खीचते हुए शरारती लहजे में कहा और जोर से हँसने लगी ।
वीणा की बात पर केशव को भी हंसी उसने वीणा को खींच के अपनी बाँहो में भर लिया ।
'लव यू...केशव " वीणा कहते हुए केशव की बाँहो में समां गई
बहुत देर तक दोनों एक दूसरे की बाँहो में समाये बैठे रहे , दूसरे सैलानियो के कदमो आहट सुन के दोनों अलग हुए ।
वीणा और केशव की शादी हुए अभी 5 महीने ही हुए थे, दोनों की शादी ऑरेन्ज मैरिज थी ।वीणा और केशव एक कॉमन रिस्तेदार की शादी में मिले थे ,एक दूसरे से जान पहचान हुई और एक दूसरे को पसन्द करने लगे।
वीणा के माता पिता की मृत्यु उसके बचपन में ही एक ट्रेन दुर्घटना में हो गई थी । बुआ ने वीणा को पाल पोस के बड़ा किया और शिक्षित किया।
दोनों के घरवालो को इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी अत: दोनों की शादी जल्द ही हो गई ।
शादी के बाद केशव को काम के सिलसिले में इतना व्यस्त होना पड़ा की उन्हें हनीमून मानाने के लिए कंही जाने का समय नहीं मिला । 5 महीने बाद समय मिला तो दोनों ने नेपाल के काठमांडू का प्रोग्राम बना लिया ...आज दोनों काठमांडू की पहडियों में ही बैठे थे ।
वीणा जिद करने लगी की उसे उस चट्टान पर चढ़ के फोटो खिचवानी ही है ,न चाहते हुए भी केशव ने कैमरा संभाला और वीणा की चट्टान पर खड़े होके फोटो खीचने को तैयार हो गया ।
फिर क्या था वीणा ख़ुशी से छलांगे मारती हुई झाड़िया पार करती हुई चट्टान पर चढ़ने लगी ।उधर से और भी सैलानी गुजर रहे थे ।
' संभल के ...आराम से ..पैर न फिसले पीछे गहरी खाई है " केशव बार बार वीणा को हिदायत दे रहा था
वीणा किसी तरह चट्टान पर पहुँच गई , केशव कैमरा लिए उसकी विभिन्न प्रकार की मुद्राओ में तस्वीरें लेने लगा । वीणा मुस्कुराती ,खिलखिलाती अदाओ से पोज दे रही थी । केशव को चिंता भी हो रही थी और उस की अदाओ पर मुस्कुरा भी रहा था ।
केशव कैमरे में एक आँख लगाये फोटो लेने में मगन था की तभी वीणा का बैलेंस बिगड़ा और एक जोरदार चीख निकली -
'केशवSsss.....' और वीणा आँखों के सामने से एक दम गायब हो गई
केशव का दिमाग जम गया ,उसकी आँखों के सामने वीणा का बैलेंस चट्टान से बिगड़ा और सैकड़ो फुट गहरी झाड़ियो और पेड़ो से भरी खाई में जा गिरी ।
केशव जड़वत वंही खड़ा रह गया , बिलकुल मूर्ति की तरह दिमाग शून्य हाथ से कैमरा छूट गया था । पास से गुजरते हुए दूसरे सैलानी भाग के केशव के पास आये और उसे जोर से हिलाया तो जैसे उसे होश आया । वह 'वीणा वीणा ' चीखता हुआ खाई में कूदने वाला ही था की दूसरे लोगो ने उसे पकड़ लिया , केशव दहाड़े मार के रोने लगा ।
केशव का दिमाग इतना जोर से फटने लगा की वह कुछ देर बाद बेहोश हो गया ।
किसी सैलानी ने पुलिस को फोन किया , पुलिस आई और इन्क्वारी करने लगी । केशव अब भी बेहोश था , आई कार्ड और कागजो से पता चला की वे किस होटल में रुके हुए थे , पुलिस केशव को हॉस्पिटल ले गई और घरवालो को भारत फोन कर दिया । पुलिस ने वीणा को खाई में तलाशने की भरपूर कोशिश की , 3-4 दिन तक सर्च ऑपरेशन भी चलाया खाई में पर खाई बहुत गहरी और दुर्गम होने के कारण वे अंत तक नहीं जा पाये ।थक हार के उन्होंने सर्च आपरेशन बंद कर दिया और वीणा को मरा हुआ मान लिया , यह अंदाजा लगा लिया की या तो लाश को जंगली जानवर खा गए होंगे या पानी में बाह /डूब गई होगी ।
इधर केशव की हालत जस की तस थी , जैसे कोमा में चला गया हो ।न किसी से बोलना न ही हँसना , बीमार सा बिस्तर पर पड़ा रहता बिजनेस बंद हो गया था । यूँ समझ लीजिये की एक जिन्दा लाश की तरह था जिसे किसी चीज से कोई मतलब नहीं था । उसके माँ बाप ही उसको खाना खिलाते ,नहलाते और दिनचर्या करवाते , केशव लाश की तरह बिस्तर पर पड़ा रहता और अपनी मौत का इन्तेजार करता।
दो महीने से अधिक समय बीत गए थे , केशव की हालत खराब होती जा रही थी, डॉक्टर्स ने भी जबाब दे सिया था की बचना मुश्किल है ।
एक दिन अचानक केशव के घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी । केशव की माँ ने दरवाजा खोला तो आस्चर्य से बेहोश होते होते बची।
सामने वीणा थी
"वीणाssss" केशव की माँ के मुंह से चीख निकल गई , चीख सुन के परिवार के बाकी लोग आ गए ।सबके चेहरे पर आस्चर्य ज्यादा था , वीणा केशव की माँ से लिपट गई और रोने लगी केशव की माँ भी उससे लिपट रोने लगी ।
सब लोग वीणा को घर के अंदर लेके आये और सोफे पर बैठाया , पानी का गिलास देंने के बाद वीणा ने बताया की वह खाई में गिर के बेहोश और घायल हो गई थी । जंगल में रहने वालो ने उसका उपचार किया , ठीक होने के बाद वह यंहा आ गई ।
केशव ने जब वीणा को देखा तो वह भी आस्चर्य और ख़ुशी से उठ बैठा , वीणा उसके सीने से लग रोने लगी ।
रिस्तेदारो को जब पता चला की वीणा जिन्दा है तो वह बहुत खुश हुए और मिलने आए ।
परिवार का सारा माहौल वीणा के आने से खुशियो से भर गया , वीणा के प्यार और देखभाल से केशव तेजी से ठीक होने लगा । कुछ ही हफ़्तों में वह पहले जैसा हो गया था , अब उसने अपना बिजनेस फिर से शुरू कर दिया था ।
केशव की जिंदगी फिर से खुशियों की बारिश होने लगी थी ,उसका वीणा के प्रति प्यार और गहरा हो रहा था ।
एक रात वीणा और केशव अपने कमरे में सोये हुए थे की केशव ने वीणा से कहा -
"वीणा ... मेरी सिगरेट की डिब्बी ड्राइंग हाल की टेबल पर रह गई है ... तुम जाके प्लीज ले आओ "
" उँहss नीदं आ रही है सो जाओ न .... वीणा ने लेटे लेटे ही केशव के ऊपर हाथ रह के उसे अपने और पास खींचते हुए कहा
" नहीं यार ! सिगरेट पीने का मन कर रहा है .. प्लीज ला दो न ...चलो मैं ही ले आता हूँ "केशव ने कहा
" नहीं , रुको " इतना कह वीणा ने लेटे लेटे ही अपना हाथ कमरे के दरवाजे की तरफ किया और अगले ही क्षण उसके हाथ में सिगरेट की डिब्बी और लाइटर था
केशव ने जब यह देखा तो वह समझ नहीं पाया क्या हुआ ,उसके माथे पर से पसीना आ गया ।
उसने काँपती आवाज में कहा "वीणा तुमने यह कैसे किया ?.. सिगरेट की डिब्बी और लाइटर तुम्हारे हाथ में कैसे आ गया"
इतना सुनना था की जैसे वीणा को होश आ गया हो उसमे आँखे खोल दी और केशव से कहा "सिगरेट की डिब्बी तो मैं पहले ही ले आई थी ...तुम्हे बताना भूल गई थी "
"नssही .. तुम्हारे हाथ में कोई डिब्बी नहीं थी पहले मैंने देखा था "
अब वीणा की आवाज थोड़ी सख्त सी हो गई , उसने केशव से कहा "तुम बेकार की बात कर रहे हो ... सो जाओ सुबह काम करना है मुझे "
वीणा की बात सुन वह चुपचाप सो तो गया पर बार बार उसके मन में यही प्रश्न गूंज रहा था ... थोड़ी देर बाद उसकी आँख लग गई।
सुबह जब उसकी आँख तो उसने बिस्तर पर वीणा को नहीं पाया ,वह भाग के माँ के पास गया और उससे वीणा के बारे में पूछा । माँ ने बताया की वह भी सुबह से वीणा को ही खोज रही है , न जाने वह कब और कँहा बिना बताये चली गई ।
केशव को कुछ समझ नहीं आ रहा था, रात की सिगरेट की डिब्बी वाली बात उसे रह रह के याद आ रही थी ... वह अब तक समझ नहीं पा रहा था की यह कैसे किया था वीणा ने ?
और अब कँहा बिना बताये चली गई ?क्या वास्तव में वह वीणा ही थी ?
केशव का दिमाग घूम रहा था कई प्रश्नो के साथ पर उत्तर देने वाला कोई नहीं था ?
बस यंही तक थी कहानी ...
-केशव(संजय)
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