आज कल्पना की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था , वह किसी छोटी बच्ची की तरह पुरे घर में उछलती फिर रही थी, कभी किचन में जाके देखती की उसकी मम्मी और दीदी क्या बना रही हैं तो कभी ड्राइंग हाल की चीजो को फिर से सजाने लगती तो कभी दिवार पर लगी घड़ी को बेचैनी से देखती।
कल्पना का कोई भाई न था सिर्फ एक बड़ी बहन थी , जो पेशे से डॉक्टर और विवाहिता थी ।
कल्पना MA कर चुकी थी और अब एक कम्पनी में नौकरी करती थी । कालेज के दिनों में ही उसकी मुलाकात सुरेश से हुई , फिर यह मुलाकात कब प्यार में बदल गई कल्पना को पता भी न चला । सुरेश भी एक कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर था , दोनों का प्यार जब परवान चढ़ा तो दोनों ने शादी करने का निश्चय किया ।
कल्पना का परिवार मूल रूप से पंजाब का था पर कई वर्षो से उसके पिता वीरेंद्र परिवार के साथ दिल्ली में ही रह रहे थे , यंहा पर उनका फर्नीचर का व्यवसाय था । अपनी दोनों लडकियों को उन्होंने बड़े लाड प्यार से पाला था , कभीं किसी चीज की रोक टोक न थी , बेटियों के फैसले में बहुत कम ही दखलंदाजी करते थे ।
इसलिए जब कल्पना ने सुरेश से शादी करने का फैसला सुनाया तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं हुई ।
सुरेश हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के एक गाँव के सम्पन्न परिवार से था ,पिता योगेश्वर सरपंच थे माता चंदादेवी गृहण इसके आलावा सुरेस ने फरीदाबाद में अपना खुद का एक बड़ा फ़्लैट लिया हुआ था ..... कुल मिला के अच्छा हिसाब किताब था।
आज सुरेश अपने परिवार के साथ कल्पना के घर अपनी और उसकी शादी पक्की करने आ रहा था ।
तभी डोरबैल बजी , वीरेंद्र जी ने दरवाजा खोला ।
सामने सुरेश अपने माता- पिता के साथ खड़ा था । दोनों तरफ से एक दूसरे का अभिवादन कर सभी लोग भीतर ड्राइंग हाल में बैठ गए ।उसे बाद दोनों तरफ से जान पहचान की सारी औपचारिकताएं पूरी हुईँ।
नाश्ता पानी करने के बाद रिश्ते की बात पक्की हुई , जो भी लेना देना था सब खुल के बात की सरपंच जी ने ।उसके बाद अगले महीने की डेट फिक्स हुई सुरेश और कल्पना की शादी की ।
अगले महीने निश्चित तारिख पर कल्पना और सुरेश का विवाह बड़े धूम धाम से हुआ ,जो भी तय हुआ था वह सब वसूल लिया वीरेंद्र जी से सरपंच जी ने ।
कल्पना विदा होके सुरेश के नये फ्लेट फरीदाबाद में रहने लगी ।
दिन हंसी ख़ुशी से बीत रहे थे , पता ही नहीं चला की कब चार महीने बीत गए ।
एक दिन कल्पना ने सुरेश को वह खुशखबरी सुनाई जिसे सुन सुरेश ख़ुशी से उछल गया , यानि वह बाप बनने वाला था ।पर एक समस्या थी ,चुकी सुरेश और कल्पना फ्लेट में अकेले रहते थे इस कारण कल्पना की देखभाल करने में परेशानी हो रही थी ।
जब सुरेश के पिता सरपंच जी को यह बात पता चली तो वे भी ख़ुशी से फूल कुप्पा हो गए , उन्होंने तुरंत सुरेश से कल्पना को गाँव छोड़ जाने को कहा ताकि उसकी देखभाल हो सके ।इस बात पर कल्पना और सुरेश दोनों राजी हो गए ,कल्पना ने सोचा इस चलो इस बहाने उसे सुरेश के परिवारवालों के साथ रहने का मौका भी मिल जायेगा ।
वह माँ बनने के और अपने आने वाले बच्चे के बारे में हजारो ख्वाब लिए कल्पना सुरेश के गाँव में आ गई ।
गाँव में भी सरपंच जी ने घर में शहर वाली सारी सुविधाएँ लगवा रखी थीं अतः कल्पना को कोई परेशनी नहीं हुई वंहा एडजस्ट होने में , ऊपरी तल पर उसको एक अलग कमरा मिल गया था ।मोबाइल तो था ही सो कल्पना को सुरेश और अपने माता पिता से संपर्क रखने में भी कोई परेशानी न होती ।
कल्पना जब बोर होती तो गाँव में घूमने निकल जाती ।गाँव में घूमते समय उसे एक चीज बड़ी ही अजीब लगती, उसे पुरे गाँव में छोटी बच्चियां नहीं दिखती ।ऐसा क्यों था ? शायद यह उसका वहम हो ,यह सोच इस बात को वह इग्नोर कर देती ।
जब वह किसी महिला से बात करने की कोशिश करती तो वह महिला बेहद हिचक के साथ करती ,कुछ एक ने बात भी पर वे राज्य से बाहर की महिलाये थी जिन्हें यंहा ब्याह के लाया गया था ।यह आश्चर्य की बात थी उसके लिए की गाँव में आधे से अधिक महिलाएं दूसरे राज्यों की थीं जिनकी बोली भाषा पूरी तरह से हरियाणवी नहीं थी , दूसरे राज्य की बोली का मिश्रण साफ़ पता चलता था ।
कल्पना के दो महीना ऐसे ही बीत गया ,अब कल्पना का पेट दिखने लगा था।
एक दिन सुबह सुबह सुरेश के माँ चन्दादेवी कल्पना के कमरे में दाखिल होती है और उससे तैयार होने को कहती है ।
"पर माँ जी जाना कँहा है ?" कल्पना ने प्रश्न किया
" अरे पगली ..डॉक्टर के पास ......चैकअप के लिए " चन्दादेवी ने प्यार से कल्पना के सर पर हाथ फेरते हुए कहा
चैकअप की बात सुन कल्पना तुरन्त तैयार हो गई और सास के साथ कार में जा बैठी ।
कार सरपंच खुद चला रहे थे ।
थोड़ी देर मे वे एक क्लिनिक के बाहर खड़े थे ,क्लीनिक काफी बड़ा था ।वोटिंग हाल में पड़ी कुर्सियो पर कंल्पना और चंदादेवी बैठ गए , सरपंच डॉक्टर के केबिन में बात करने चले गए थे।
थोड़ी देर में सरपंच वापस आये और एक छोटा सा परचा चंदादेवी के हाथ में देते हुए बोले -
" जा ... उस कमरे में चली जा बहु को लेके "
चन्दादेवी कल्पना को लेके उस कमरे में चल देती है, उस कमरे में बड़ी बड़ी मशीने लगी थी ।थोड़ी देर वही डॉक्टर आता है जिससे सरपंच ने बात की थी , उसने कल्पना का अल्ट्रासाउंड किया और उसे वापस जाने को कहा ।
" पर डॉक्टर साहब ...." कल्पना ने कुछ पूछना चाहा तो उसे बीच में ही टोकते हुए डॉक्टर ने कहा -
" रिपोर्ट आने में थोड़ी देर लगेगी .... 20 मिनट बाद आप सरपंच जी को मेरे केबिन में भेज दीजिये " इतना कह डॉक्टर वंहा से निकल गया ।
बीस मिनट बाद सरपंच डाक्टर केबिन में थे , डाक्टर ने उन्हें रिपोर्ट दिखाते हुए कुछ कहा जिससे उनके चेहरे पर परेशानी झलकने लगी फिर कुछ बात करके और पैसे देके वह कमरे से बाहर आ गए ।आते ही तुरंत उन्होंने चन्दादेवी से चलने के लिए कहा ।
' सब ठीक तो है न पिता जी?"कल्पना ने सरपंच को परेशान देख पूछा।
पर सरपंच ने बिना कोई जबाब दिए तेजी दे कार की तरफ बढ़ लिए , कार का दरवाजा खोल ड्राइविंग सीट कर बैठ कल्पना और चंदादेवी का इन्तेजार करने लगे ।
रास्ते भर कल्पना पूछती रही पर सरपंच ने कुछ नहीं बताया उल्टा गुस्सा और हो गए । कल्पना ने सरपंच का यह रूप कभी नहीं देखा था अतःवह सहम के खामोश हो गई ।
घर पहुचने के बाद कल्पना अपने कमरे में चली गई , सरपंच और चन्दादेवी अपने कमरे में ।कल्पना अपने ससुर की इस हरकत से परेशान थी , उसने अपने घर वालो से बात करनी चाहि तो देखा की मोबाइल में बैटरी न होने के कारण वह स्विच ऑफ हो चुका था । यही नहीं एक मुसीबत और थी की उस समय लाइट गई हुई थी कल्पना मन मार के रह गई ।
रात में जब कल्पना सोने जा रही थी तो उसकी सास उसके कमरे में आई और उसके सिराहने बैठ गई और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरने लगी ।
"क्या बात है मम्मी जी ? सब ठीक तो है न ? पिता जी इतने गुस्से में क्यों है" कल्पना ने बैठते हुए पूछा ।
" कल्पना, तुझे सुबह फिर हास्पिटल जाना पड़ेगा ... तैयार रहना " चंदादेवी ने कल्पना को हिदायत भरे लहजे में कहा ।
" क्यों ..." प्रतिउत्तर में कल्पना ने प्रश्न कर दिया , वह हर चीज जानना चाहती थी ।
"देख मैं तुझ से कुछ छुपाउंगी नहीं .... तुझे बच्चा गिरना होगा कल " कल्पना की जिद पर सपाट लहजे में चंदादेवी ने कह ही डाला ।
" क्या ???.... क्या कह रहीं है आप ? .... पागल तो नहीं हो गईं है आप ? " कल्पना ने आश्चर्य और गुस्से भरे लहजे में बिस्तर से उतरते हुए कहा ।
" हिंदी तणे समझ कोई न आवे के ? तुझे सुबह हमारे साथ हॉस्पिटल जाना होगा अपना बच्चा गिराने वास्ते " चन्दा देवी का अब लहजा और व्यवहार एक दम से बदल गया
"आप लोग पागल हैं क्या ?.... मैं नहीं करवाउंगी अबोर्शन ... और क्यों करवाऊँ?" कल्पना का गुस्सा अब सातवे आसमान पर था ।
" देख छोरी! बच्चा तो तुझे गिराना ही पड़ेगा.... म्हारे खानदान में लड़की पैदा नहीं होती ....म्हारे ही क्यों गाँव में किसी के घर छोरी नहीं पैदा होती । छोरी जन्मना पाप है इस गाँव में .... छोरी बड़ी होके नाक कटवाती है ...इसलिए इस गाँव में कोई छोरी को न जन्मता है ... म्हारे घर भी कोई छोरी न जन्मेगी " चंदादेवी कहे जा रही थी
" तेरी कोख में छोरी है ... इसलिए गिरना तो पड़ेगा ही "
" क्या पागलपन है यह ..... आप भी एक औरत हैं ... ऐसी बाते कैसे कर सकती हैं .....मैं नहीं अबोर्शन करवाउंगी चाहे कुछ भी हो जाए "कल्पना ने गुस्से से चीखते हुए कहा ।
" बच्चा तो गिराना ही पड़ेगा .... चाहे राजी से या गैर राजी से " इतना कह चन्दा देवी तेजी से कमरे में बाहर निकल जाती है और बाहर से कुण्डी बंद कर देती है ।
कल्पना को अब समझ आता है की गाँव में उसने कोई छोटी बच्ची क्यों नहीं देखी थी । वह रोते हुए अपना मोबाइल लेती है जो चार्ज पर लगा होता है , वह सुरेश का नंबर मिला के उसको सारी बात बताती है । सुरेश बिना किसी आश्चर्य और ठन्डे लहजे में कल्पना को समझाता है -
"सुनो कल्पना! जैसा पिता जी और माँ कह रहे हैं वैसा कर लो ....उसमे कोई बुराई नहीं यह हमारे परिवार की इज्जत की बात है ..... अगला बच्चा हमारा लड़का ही होगा तुम यकीं करो फिर तुम्हे ऐसा करने की जरुरत नहीं रहेगी ....पर अभी माँ जैसा कह रही है वैसा ही करो "
इतना कह के रमेश ने उधर से फोन काट दिया ।कल्पना एक दम सन्न, उसे सुरेश से ऐसी उम्मीद नहीं थी वह धडाम से फर्श पर गिर पड़ी ।
आंसू थे के रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे ,उसने अपने पापा को फोन मिलाने के लिए नंबर डायल कर दिया ।तभी अचानक दरवाजा खुला और चंदादेवी तेजी से अंदर दाखिल हुई , उसने कल्पना से फोन छीन लिया और स्विच ऑफ कर दिया ।
फोन लेके वह कमरे से बाहर निकल गई , अंदर कल्पना चीखती रही ।
सुबह दरवाजा खुला और चन्दादेवी ने अंदर आते ही कल्पना को कहा -
"जल्दी चल ...बाहर सरपंच जी तेरा इन्तेजार कर रहे हैं "
पर कल्पना अब भी वंही फर्श पर बैठी रोये जा रही थी , उसने जैसे चंदादेवी की बात सुनी ही नहीं ।
चंददेवी ने खीजते हुए कल्पना के बाल पकडे और जोरदार तमाचा गाल पर जड़ दिया ।
तमाचा लगने से कल्पना के मुंह से खून बहने लगा , उसने अपने बाल छुटाने की कोशिश करते और चीखते हुए कहा -
"मैं नहीं करवाउंगी अबोर्शन ..... मुझे अपने बच्ची की हत्या नहीं करनी .....मुझे अपने पापा के पास जाना है "
पर चंदादेवी ने बिना उसकी बात सुने बाल पकड़ के घसीटने लगी ।कल्पना असहनीय पीड़ा से तड़प उठी और उसने चंददेवी के हाथ पर जोर से काट लिया ।
चंदादेवी की चीख निकल गई ।
चीख सुन सरपंच जी भागते हुए ऊपर आये और चन्दा देवी का हाथ बुरी तरह लहूलुहान देखा तो गुस्से में पागल हो गए ।उन्होंने जोरदार तमाचा कल्पना को जड़ दिया , तमाचा इतना जोरदार था की कल्पना चक्कर खाते हुए पलंग के कोने से टकराई । टक्कर तेज थी , कल्पना का सर फट गया था ।एक तेज चीख के साथ कल्पना बेहोश हो गई ।
सरपंच और चंदादेवी को समझ नहीं आया की क्या करें , थोड़ी देर वे ऐसे ही खड़े रहे फिर उन्हें डॉक्टर का ध्यान आया तो उमहोने उसे फोन लगाया।
थोड़ी देर में डॉक्टर आया , उसने कल्पना का मुआयना किया और बोला-
" यह तो मर चुकी है... लगता है की ज्यादा खून बह गया "
" अब क्या करें डॉक्टर साहब " सरपंच ने डॉक्टर से कहा
" घबराओ मत! जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करो .....पुलिस से तो आप निपट ही लेंगे ?" डॉक्टर ने सरपंच की तरफ देखते हुए कहा ।
" हाँ पुलिस की चिंता मत करो ... आगे बताओ क्या करना है " सरपंच ने डॉक्टर से पूछा ।
उसके बाद डॉक्टर उन्हें कुछ समझाने लगा ,सरपंच हाँ में हाँ मिला रहा था ।चन्दा देवी ने तुरंत कमरे में फैले खून को साफ़ किया ।
थोड़ी देर में पुलिस आई तो सरपंच ने इंस्पेक्टर को अलग बुला एक भारी पैकेट पकड़ा दिया , उसके बाद पुलिस ने पंचनाम बनाया की कल्पना की मौत सीडियो से गिरने से हुई है ।
फिर उसके बाद सुरेश को और फोन किया गया , उसके दो घण्टे बाद कल्पना के घरवालो को ।
सुरेश कल्पना शमशान घाट पर कल्पना की लाश जलने से पहले पहुँच चुका था ,धीरे से उसे सब कुछ बता दिया गया था ।
कल्पना की लाश लगभग जल चुकी थी उसके बाद रोते बिलखते कल्पना के माता पिता पहुंचे ।
वे कल्पना को अग्नि में जलता देख रहे थे .....कँहा अग्नि के सात फेरे देके उन्होंने कल्पना को विदा किया था ।
बस यंही तक थी कहानी ...
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