वह तेजी से भाग जा रहा था , क्षत-विक्षत वस्त्र ।जगह जगह शरीर पर बने ताजा घाव के निशान , पत्थरो और झाड़ियों के शूलों से घायल पाँव जिनमे से रिसता रक्त ।
पर इन सबकी परवाह न कर हांफता -लंगड़ाता बदहवास तेजी से भाग रहा था ।
भागते हुए वह एक नदी के तट पर पहुंचा , चमकते चन्द्रमा के प्रकाश में नदी के तट पर दूर तक फैले रेतीले कण ऐसे चमक रहे थे की जैसे चांदी बिखेर दी गई हो ।
नदी के तट पर जलधारा का लगभग शांत थी परन्तु बीच में बहाव अपेक्षाकृत तेज था फिर किसी इंसान को बहा देने के लिए पर्याप्त था।
वह भागता हुआ नदी के तट पर फैली रेतीली चाँदी को लगभग पार कर गया था , यूँ लग रहा था की वह तीव्र वेग से नदी में घुस जाना चाहता हो परन्तु अचानक उसके नंगे पैरो से तट पर उभरी एक शिला टकराई और वह धड़ाम से औंधे मुंह नदी के तट पर ही गिर गया ।
जिस जगह वह गिरा वह तट भूमि थोड़ी सी ऊंचाई पर थी , लगभग एक - डेढ़ फुट ऊँची । पानी के कटाव के कारण रेतीली मिटटी में यह ऊंचाई बन गई थी ।
गिरते ही घुटना शिला से टकराया और एक भयानक पीड़ा भरी चीख निकल गई ।
उसे लगा की असहनीय पीड़ा से वह बेहोश होने वाला है , उसकी आँखे बंद होने लगी परन्तु आँखे बंद होने से पहले उसने अपने चेहरे का धुंधला बिम्ब नदी के जल में देखा जो जल में नृत्य करती लहरो पर बन बिगड़ रहा था । उसकी आँखे धीरे धीरे बंद होती चली गईं।
"उठो "
"उठो "
"ऊँss...हूँ " उसे कोई बुला रहा था ।आवाज उसके कानो में पड़ रही थी आँख मीचते हुए आँखे खोली ।
सामने एक साया खड़ा था , आदम कद । उसका मुख चांदनी के विपरीत था अतः मुख पर गहन अँधेरा छाया था । वह साये का चेहरा पहचाने की कोशिश करने लगा पर पहचान न सका ।
"उठो" एक बार फिर साये के मुख से आदेशात्मक स्वर निकला ।
वह न चाहते हुए भी उठ के बैठ गया ,उसे अनुभव हुआ की उसके घाव भर चुके हैं और पीड़ा गायब हो गई ।
यह चमत्कार कैसे हुआ ?
कौन है वह साया ?
उसने आगे बढ़ के साये को पकड़ लेना चाहा और उसका चेहरा देख लेना चाहा ,पर यह क्या वह तो साये की तरफ एक कदम भी न बढ़ा पाया ।ऐसा प्रतीत हो रहा था की उसके पैरो को रेतीली भूमि ने जकड़ लिया हो ।कई बार प्रयत्न करने के बाद भी जब वह अपनी जगह से एक इंच भी न हिल पाया तो वह वंही धम्म से घुटने पर बैठ गया ।
" कौन हैं आप ? अपना परिचय दीजिये ? " उसने घुटने पर बैठे बैठे ही साये से प्रश्न किया ।
" तुम्हे यह जनाने की अवाश्यकता नहीं " गज़ब की गंभीरता और स्थिरता थी उसकी वाणी में , मानो एक एक शब्द सम्मोहन में डूबा हुआ ।
" नदी में डूब आत्महत्या क्यों करना चाहते थे तुम ?" साये ने प्रश्न किया ।
" मैं आत्महत्या नहीं कर रहा था , मैं नदी पार कर उस तरफ के जंगल में जाना चाहता था " उसने शांत भाव से कहा ।
" क्यों? नदी का बहाव इतना तेज है की तुम उसे पार नही कर सकते ... क्या तुम्हे इसका भान न था ? ऐसा क्या हुआ तुम्हारे साथ ?" साये ने प्रश्न किया
" मैं नक्सलवादी बनना चाहता हूँ ,नदी पार उन्ही के कैंप में जा रहा था ....मुझे अपनी सुध बुध नहीं थी " उसने जबाब दिया ।
" हम्म... नक्सली बनना चाहते हो... क्यों ?" साये ने सर्द लहजे पूछा
" वो लोग हमें मनुष्य ही नहीं समझते , हमारे घरो .... हमारे जंगलो ... हमारे पर्वतो पर कब्ज़ा जमा बैठे हैं ।
हमें अपने ही घरो से बेघर कर दे रहे हैं ..... हम उनके लिए असुर है " उसने भर्राये कंठ से कहा ।
"सुन रहा हूँ मैं ..... जारी रखो " साये ने सपाट लहजे में कहा ।
" हमारे जंगल जमीन सब छीन के उनका दोहन कर रहे हैं ...विरोध करने पर हमें नक्सलवादी घोषित कर हम पर अत्याचार करते हैं "
" हमारी बस्तियों पर हमला कर उन्हें उजाड़ देते हैं .... हमारी बहन बेटियो को पकड़ के उन्हें नक्सलवादी बता उनकी अस्मत से खेलते हैं "- कहते कहते उसकी भृकुटि तन गई , शिराओं में रक्त तीव्रता से बहने लगा ।
" हमारी बहन बेटियो को पकड़ उन पर तेजाब डाल दिया जाता है या भयानक और घ्रणित यातनाये दी जाती हैं.... योनियो में पत्थर डाल दिए जाते हैं " कहते कहते क्रोध के आवेग से उसकी साँसे धौकनी सी चलने लगे ।
सांय सायं करती हवा उसके शरीर से टकरा रही थी , एक क्षण मुर्दा शांति के बाद वह फिर बोला।
" आज रात भी उन लोगो ने हमारे गाँव पर हमला किया , बच्चे बूढ़े क्या सब को अपना शिकार बनाया ... उनकी नजरो में सब नक्सली हैं ... गाँव का माहौल देख के मेरे पिता जी ने किसी तरफ शहर में संस्था में भर्ती करवा दिया था ।उनकी मदद से मैंने कॉलेज की डिग्री ली , मैं गाँव कम ही आया जाया करता हूँ इसी डर से " - वह कहे जा रहा था और शांत भाव से साया सुने जा रहा था ।
" दो दिन पहले ही मैं गाँव आया हूँ .... दो घंटे पहले घने अँधेरे में उन्होंने भारी तादाद में हमारे गाँव में हमला बोल दिया .... उन्हें शक था की गाँव में नक्सली छुपे हुए हैं ... उन्होंने कई लोगो को मार दिया और कइयों को पकड़ ले गए ।मुझे पर भी हमला किया , किसी तरह से अपनी जान बचा के भागा वंहा से " यह कह के वह मौन हो गया और गर्दन झुका ली ।उसकी आँखों में बहते आंसू चन्द्रमा की रौशनी में साफ़ नजर आ रहे थे ।
" तो तुम नक्सली बनाना चाहते हो , गोली का बदला गोली से देना चाहते हो ?" साये ने प्रश्न किया
" हाँ हाँ ..यही करना चाहता हूँ ...सुना नहीं तुमने .. यही करना चाहता हूँ मैं तभी नदी पार कर के जंगल में जा रहा था ,नक्सलवादी बनने ।उनकी हर एक गोली का बदला गोली से दूंगा मैं ।अपने हर एक बेगुनाह आदिवासी भाई का बदला लूंगा उनसे " - कहते कहते उसने मुट्ठी भीच ली , जबड़े सख्त हो गए ।
" और एक दिन अपने भाइयों की तरह ही उनकी गोली का शिकार हो जाओगे ... यही तो वे लोग चाहते हैं " साये ने मुस्कुराते हुए कहा ।
" क...क..क्या मतलब ? क्या चाहते हैं वे लोग ?" उसने लड़खड़ाते हुई आवाज में पूछा
" यही की तुम्हारे जैसे नौजवान हथियार उठा लें और नक्सली बन जाए "साये ने उत्तर दिया ।
" ऐसा क्यों चाहेंगे वे लोग ? " उसने आश्चर्य से पूछा
" क्यों की नक्सली को हटाना उनके लिए आसान है ,वे जानते हैं की हथियारों के बल से तुम लोग कभी उनसे नहीं जीत सकते .... उनके पास तुम्हारे से सौ गुना सैनिक और हथियार है "
" तुम एक बार नक्सली बने तो देर सवेर तुम्हे वे गोली मार ही देंगे ..... फिर किस्सा ख़त्म .... हिंसा के कारण तुम्हरी बात दुनिया नहीं सुनेगी । हर हाल में हार तुम्हारी ही होनी है " साये के मुंह से निकली बाते रहस्य की नई परते खोल रही थी उसके लिए ।
" यदि तुम हथियार उठाओगे तो उनके दो सैनिक को मार दोगे या अधिक से अधिक आठ दस को , पर इससे दुनिया तुम्हे भी अपराधी समझेगी तुम्हारे प्रति सहानभूति जाती रहेगी लोगो की .... और यही वे चाहते भी है ।जब वे तुम्हे गोली मार के कब्ज़ा करेंगे तुम्हारे जंगल पर , जमीन पर तो तुम्हे भी हिंसा में शामिल होने के कारण कोई साथ न देगा तुम्हारा ... तुम्हारी सही बात भी गलत सिद्ध हो जायेगी " साया गंभीर आवाज में कहे जा रहा था ।
" फिर क्या हम चुप बैठ जाए और अपने पर अत्याचार सहते रहे? उसने पूछा
" नहीं ... हरगिज नहीं ... मैंने ऐसा नहीं कहा । तुम पढ़े लिखे हो तुम्हारे पास उनकी बन्दुक से भी ज्यादा ताकतवर हथियार है " साये ने कहा
" क्या ? कौन सा हथियार ? " उसने हैरानी से साये से पूछा
" कलम का हथियार .... कलम के आगे बंदूक की संगीन भी कुंद हो जाती है "
"चलाओ कलम और अपने ऊपर हो रहे अत्याचार अन्याय शोषण बदला लो ... लिखो .... सच लिखो ... दुनिया को बताओ उनका अन्याय और शोषण "
" बन्दुक की गोली एक वक्त में एक ही शरीर पर असर करती है पर कलम से निकली गोली हजारो लाखो लोगो के मस्तिष्क में असर करती है ... अतः लिखो ... बन्दुक का बदला लिख के दो " अब साये की वाणी में उत्तेजना थी ।
" और एक बात सुनो!...."साया अब और रहस्यमयी अंदाज में बोला।
"इस शोषण में तुम्हारे अपने लोग भी लिप्त रहते है जो सरकार से अनुदान तो ले लेते हैं स्कूल , सड़क, आदि सुधार के लिए पर करते कुछ नहीं .... वे चाहते नहीं की नक्सवाद की समस्या सुलझे ..... समस्या सुलझ गई तो पैसा मिलना बंद हो जायेगा न उन्हें "-साया अनजाने रहस्य खोल रहा था उसके लिए ।
साये की बातो का जादुई असर हो रहा था उस उस पर , उसने इस विषय में कभी सोचा ही न था ।पढ़ा लिखा था पर कलम को हथियार के रूप में प्रयोग करने का विचार ही न आया था कभी उसे , अपने लोगो की भी भूमिका से अनजान था इस समस्या में ।
वह आवेश में बोला " हाँ ... लिखूंगा .... जरूर लिखूंगा ... बन्दुक का जबाब लिख के दूंगा .... उनकी हिंसा का प्रतिउत्तर मैं कलम से दूंगा .... जरूर दूंगा "
" मैं लिखूंगा उनके शोषण और अन्याय के खिलाफ "
" जरूर लिखूंगा ...जो जो इसके दोषी है उनके खिलाफ लिखूंगा ।"
उसने मुट्ठी भीच के उदघोष कर दिया ।
" मैं कलम चलाऊंगा हथियार की जगह "
साया उसके पास आया , अब उसने साये का चेहरा पूरा देखा ।साये के चेहरे को देख के उसकी आँखे आश्चर्य से फैलती चली गई ।
" तुम sss... "उसके मुंह से चीख निकल गई ।
उसने आँखे खोल दी , वह अब भी नदी के तट पर उसी तरह औंधा लेटा हुआ था ।एक पैर शिला पर था और दर्द से फटा जा रहा था । उसने हैरानी से इधर उधर देखा उसे कोई न दिखा । भोर की गौधुली वेला अपना पैर पसारने वाली थी , उसने नीचे देखा तो नदी के पानी में उसके चेहरे का प्रतिबिम्ब अब भी लहरो से बन बिगड़ रहा था ।
उस साया का चेहरा ठीक वैसा ही था जैसा नदी में उसके चेहरे का प्रतिबिम्ब बन बिगड़ रहा था ।
वह उठा और लंगड़ाते हुए चल दिया , शहर की ओर .... अब उसे पीड़ा का अहसास न रहा ,जख्मो को भूल चूका था ।
उसे अपना हथियार जो मिल चुका था ।
बस यंही तक थी कहानी ..