सवेरे के आठ बजे होंगे , कलुआ नंगे पाँव काँधे पर कपडे का झोला लटकाये हुए हाथ में सफेदे के पेड़ की एक पतली सी टहनी जो उसने एक छोटे सफेद के पेड़ से तोड़ी थी लिए मस्ती में खेतो के बीच में बनी पगडड्डी पर चला जा रहा था ।
झबरा , कलुआ का कुत्ता उसके आगे पीछे चल रहा था ।चल क्या रहा था दौड़ रहा था ,झबरा दौड़ के कलुआ से आगे हो जाता तो कलुआ आवाज़ लगा देता ।
" झबरा"
झबरा फ़ौरन वंही ठिठक के वापस कलुआ के निकट आ जाता ।
कलुआ खेतो को पार कर बाग़ में पहुँच गया। एकाएक किसी भारी और कर्कश पुकार सुन उसके कदम जड़ हो गएँ ।
"ओ रे ..... चमरा के .... एहर आ त ..." यह कर्कश और भारी भरकम आवाज थी ठाकुर योगेश्वरप्रताप की ।पूरा गाँव उन्हें ' ठाकुर दादा' कह संबोधित करता था चाहे छोटा हो या बड़ा । हाथ में चांदी के मुठ वाली छड़ी , बड़ी बड़ी मूंछे ।रुआब ऐसा की किसी नीची जाति को भर नजर देख लें तो वह भय से धरती में समा जाये ।
कलुआ ने देखा की ठाकुर दादा कुछ दूरी पर खड़े उसे ही पुकार रहे थे ।
" पाय लागू ठाकुर दादा ... " कलुआ यूँ ठाकुर दादा द्वारा अपने को बुलाये जाने पर घबरा गया तुरन्त सफेदे की टहनी हाथ से छूट गई , कंधे पर लटके झोले को एक तरफ करता हुए भाग के पैर छुए ।
कलुआ के पैर छुए जाने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया दिए बिना बड़ी बढ़ी भौहें तानते हुए अपनी छड़ी से कलुआ के झोले को कुरेदते हुए बोले -
" कँहा जा रहा है रे ? इत्ते जल्दी जल्दी ?"
" वो दद्दा ....वो..... पढ़ने जा रहे है हम...." कलुआ ने बड़ी मुश्किल से थूक सटकते हुए कहा
इतना सुनते ही ठाकुर साहब का पारा चढ़ गया ,वे छड़ी अपने सर तक उठा मारने के अंदाज में बोले-
" तोहरी महतारी का ....कुकुर क औलाद .... ससुरा पढ़ने जा रहा है .... बड़ा कलेक्टर साहब बनेगा "
" ससुरे घुरवा से कित्ती दफे कहें है की ई पढाई लिखाई नीची जात वालन के लिए नाही है ..... पर मानत नाही ... लागत है की इन ससुरन क इनकी आउकात दिखावेक पड़ी"
" सुन रे ... बहुत पढ़ लियो तू ....परसो से हमारे खेतों में धान क रोपाई सुरु है ... आपने माई बाप के साथ खेत पर
आ जइयो ... नाही त मार मार के सब कलेक्टरगिरि दुइ मिनट में झाड़ देंगे " ठाकुर दादा ने छड़ी से कलुआ को धक्का देते हुए आदेशात्मक शब्दों में कहा ।
" ज....जी.... ठाकुर दद्दा " छड़ी के धक्के के वेग से पीछे होते हुए कलुआ ने गर्दन झुकाये हुए कहा ।
और कह भाग लिया ।
कलुआ की उम्र होगी लगभग 13 साल, गाँव से 3 किलो मीटर दूर मिडिल स्कूल के सातवीं कक्षा छात्र। पुरे चमरौटी में एक वही लड़का था जो अभी तक पढ़ रहा था वर्ना उसकी उम्र के अधिकतर बच्चे ठाकुर दादा के खेतो पर मज़दूरी करते थे ।
कलुआ भागता हुआ सीधा विद्यालय पहुंचा ।
कक्षा में अध्यापक पंडित ओंकेश्वर उपाध्याय जी बैठे थे ।
" क्यों रे कलुआ फीस लाया है क्या ? ससुरो सरकार तो वैसे ही कॉपी किताब मुफ़्त देती है ऊपर से वजीफा भी तुम्हे ..... फ़ीस नाम मात्र लेती है वह भी समय पर नहीं दी जाती है तुम से "मास्टर साहब जैसे फट पड़ना चाह रहे हो ।
"बावली सरकार ....अछूतो को पढ़ा के अफसरी करवाना चाहती है ...उँह...हमारे बराबर बैठेंगे ये बदजात " मास्टर साहब ने चश्मे से झांकते हुए अपने ह्रदय में छुपे भविष्य के असली भय को प्रदर्शित किया ।
किन्तु कलुआ ने बिना कुछ बोले जेब से कुछ सिक्के निकाल के मास्टर जी को देने की कोशिश की ।
" दूर ... दूर ...दूर रख ... जा पहले हैंडपंप से इन्हें धो के ला .... मुझे भी छूत चढ़ाएगा बदजात " मास्टर साहब एक दम उछलते हुए बोले ।
घुरहु , कलुआ का बाप और सगुनी कलुआ की माँ ।दोनों ही ठाकुर दादा के खेतो में मजदूरी कर पेट पालते थे ।उनका सपना था की कलुआ थोडा बहुत और पढ़ ले तो शहर जा कोई नौकरी कर इस मजदूरी से मुक्त हो ।
शाम को कलुआ ने आ सुबह की घटना बताई ।घुरहु और सगुनी के माथे पर बल पड़ गए ।घोर विपदा आन पड़ी , ठाकुर दादा के आदेश की अवेहलना अर्थात मौत को दावत देना या भूखों मरना था ।
अब तक तो किसी तरह कलुआ की पढाई चल रही थी ठाकुर दादा की नज़रो से बच के पर लगता है की अब न हो पायेगा ।
" बाबा ...मैं पढ़ना चाहता हूँ ... मैं मजदूरी करने नहीं जाऊंगा ठाकुर दादा के खेतों में " कलुआ ने भरे कंठ से कहा ।
" ऊँ.... हां ..ठीक है .... हम कौनो उपाय सोचते हैं " घुरहु ने शून्य की तरफ निहारते हुए कहा ।
उस रात किसी ने चिंता के मारे कुछ न खाया।
निर्धारित दिन पर घुरहु और सगुनी ठाकुर दादा के खेत में धान रोपने पहुँच चुके थे , गाँव के सभी काम करने लायक स्त्री पुरुष बच्चे भी मजदूरी करने के लिए अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे थे ।
सगुनी और घुरहु खेत में काम करने में लीन थे , ठाकुर दादा अपने दो कारिंदो के साथ काम का जायज लेते हुए घुरहु के पास पहुंचे ।घुरहु उन्हें देख नजरे नीची कर जल्दी जल्दी हाथ चलाने लगा।ठाकुर दादा घुरहु पर एक नज़र डाल आगे बढ़ गए । घुरहु और सगुनी ने राहत की सांस ली ।
तभी एकाएक ठाकुर दादा रुक गए और वापस घुरहु के पास आ कड़क आवाज में पूछा -
" काहे रे घुरवा ? तोर लरिका काहे नहीं आवा?
घुरहु और सगुनी को जैसे साँप सूंघ गया हो इस प्रश्न पर , वे मूरत बन खड़े हो गए।
फिर सगुनी साहस कर बोली-" व्...वो ठाकुर दादा .... बीमार है ..ज्वार से तप रहा है ओकर बदन ..."
" हाँ ठाकुर दादा.... हम ओके नीम का काढ़ा पिला सुते के लिए कह आये हैं ... हम दोनों उका हिस्से का भी काम कर लेंगे " घुरहु ठाकुर साहब के कदमो में दंडवत लोट लगाते हुए गिड़गिड़ाया ।
ठाकुर साहब का इस बात कोई असर न हुआ ।
" रामबाबूsss.... तनिक उठा के लावा ई चमरा के लौंडे को .... उकी बिमारी अब्बे दूर करते हैं"
सगुनी और घुरहु का चेहरा फक्क पड़ गया ।
कुछ ही देर में कलुआ को खींचता हुआ रामबाबू ले आया । ठाकुर साहब ने कलुआ के बाल पकड़ नोच लिए और कितने चांटे मारे किसी ने गिने नहीं ।खेत में काम करने वाले अपना काम छोड़ अपनी जगह मूरत बने सब देख रहे थे पर किसी की हिम्मत न हुई की एक शब्द ही निकाल दे मुंह से ।
" ससुरे .. ज्यादा चर्बी चढ़ गई है तुम लोगन में .... परसो ही आदेश दिए थे की बस्ता फेंक के हमरे खेत में आ जाना ... का समझे थे की हम बावले है ... भूल जायेंगे ?
तड़ाक ...
तड़ाक ..
तड़ाक..
छड़ी बरसाते हुए ठाकुर दादा का गुस्सा जैसे कलुआ को निगल लेना चाहता था ।कलुआ का शरीर रक्त रंजीत होता जा रहा था ।
सगुनी कलुआ की यह हालत देख के बेहोश हो चुकी थी , घुरहु लाचारी से छाती पीट रहा था ।
तरुण कलुआ ठाकुर दादा की छड़ी की मार से बेहोश हो चुका था , पर अब भी ठाकुर दादा उसे छोड़ने की इच्छा में न थे ।वे अब भी गलियां और छड़ी की बौछार लगाये हुए थे ।
अचानक वह हुआ जिसकी स्वयं ठाकुर दादा को भी आस न थी ।अकल्पनिक ।
झबरा दौड़ता हुआ आया और अपने जबड़े में ठाकुर दादा का छड़ी वाला हाथ भर लिया ।कुछ ही क्षण में ठाकुर दादा का हाथ बुरी तरह से चबा लिया था , छड़ी छोड़ अब वे दर्द से बिलबिला उठे ।
जंहा इंसानो का समूह ठाकुर दादा के भय से चित्र बना हुआ था वंही उनके जुल्म से लड़ने एक जानवर रण में कूद पड़ा था ।
कारिंदो को जैसे होश आया हो वे लाठी ले झबरा पर टूट पड़े ।
पर झबरा की इस हरकत से गाँव वालो में कुछ अप्रत्यक्षित
सा असर हुआ था , उनके मुखो पर जो अब तक ठाकुर साहब का भय था वह गायब हो गया था ।
बूढ़ा केशनाथ जो ठाकुर दादा के खेतो में मजदूरी करता था वह कीचड़ भरे खेत में से दौड़ता हुआ बाहर आया और सभी गाँव वालो को क्रोध में धिक्कारते हुए बोला-
" मुई गए का तुम सब लोग? इतना जुल्म हो रहा है अउर तुम तमाशा देख रहे हो ? अरे हम से अच्छा तो यह जानवर है जो जुल्म के खिलाफ लड़ रहा है ....धिक्कार है तुम लोगन को मानुष होने पर .... सोचो यही ठाकुर दादा रहा जिसके कारण तुम लोगन के छोटे छोटे बच्चों को पढ़ाई छोड़ इ के खेत में मजूरी करे का मजबूर होना पड़ा ..."
" अरे!अपने बच्चन क मुक्ति चाहत हो तो ढहा दो आज यह ठकुराई की दीवार ..." केशनाथ सम्मोहनि वाणी सख्त भाव भंगिमा लिए आवाहन कर रहा था ।
उसकी एक एक बात लोगो के हिरदय में कील की तरह धंस रही थी।
फिर क्या था!! चिंगारी जो वर्षो से दबी थी आग बन गई , देखते ही देखते सैकड़ो हाथो ने धान छोड़ कीचड़ और लाठिया उठा लिया ।
कारिंदे भाग गए , ठाकुर दादा को उन्ही के कीचड़ भरे खेत में घसीट लिया गया ।जंहा वे अपने छक श्वेत वस्त्रो पर एक धब्बा तक बर्दाश्त न करते थे वंही आज पूरा का पूरा कीचड़ में ही लपेट दिया गया था उन्हें ।
पूरी चमरौटी टोले ने ठाकुर दादा का बहिष्कार कर दिया , कोई भी उनके खेत में मजदूरी करने न जाता ।खेत सूख गए।
फसल बर्बाद हो गई थी अतः कुछ ही दिनो में घर खाली हो गया , खाने को लाले पड़ गए ।धीरे धीरे खेत बंजर हो गए और जीने के लिए ठाकुर दादा को उन्हें एक एक कर बेचना पड़ा ।
चमरौटी टोले वालो ने एकता कर दूसरे गाँव में मजदूरी खोज ली थी । सब ने अपने बच्चों को मजदूरी छुड़ा विद्यालय में दाखिल करवा दिया था ।
केशनाथ की शिकायत पर मास्टर साहब का तबादला हो गया था ।
ठाकुर दादा बाग़ में पेड़ के नीचे टूटी खाट पर बैठे अब भी कलुआ और अन्य बच्चों को मस्ती में पाठशाला जाते हुए
देखते , पर देख के निगाह ऊपर कर लेते ।
आज कलुआ ने 12 पास कर ली ... और वह शहर जा रहा आगे पढ़ने .... चमरौटी के अन्य बच्चे भी जल्द ही 12 पास कर शहर जायेंगे ।
वाह!!
ReplyDeleteकाश यही समाज का सत्य बन जाये।
सब पढ़ें और सब बढ़ें.... स्लोगन सार्थक हो।
जी दीदी
ReplyDeleteजी दीदी
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