"रति...."
"ऊँ...क्या?"
दूर तक फैली हुई खामोशी और शीतलता बिखेरता हुआ श्वेत उज्ज्वल चन्द्र , मानो आज ठहर सा गया हो ।
यूँ प्रतीति हो रहा था जैसे चन्द्र आज सितारों के साथ अठखेलियां करता हुआ कुछ देर रुक के इस पल के आनंद की अनुभूति करना चाह रहा हो ।
चन्द्र और सितारों की इस तांका-झांकी में शीतल हवा भी मंद मंद गति से बह अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही थी ,लगता था की आज सारी प्रकृति इस पल की साक्षी बनने को आतुर थी ।
"रति....सुनो न !" भोला ने अपने सीने पर सर रख के लेटी हुई रति के गहन काले और कोमल केशो को अपनी उंगलियो के बीच फंसा उन्हें उलझाने की असफल प्रयत्न करते हुए कहा ।
" हूंS... क्या ? ... " रति ने आँखे बंद करते हुए पूछा और करवट बदल भोला की तरफ अपना मुख कर लिया ।
भोला ने रति के मुख की तरफ नजरे डालीं , धवल चाँदनी मुख पर पड़ रही थी यूँ आभास हो रहा था की जैसे चाँदनी चंद्र से नहीं अपितु रति के मुख से उज्वलित है । गोरा बेदाग चेहरा , बड़ी बड़ी ज्योतिर्मयी नेत्रो में पतली काजल की धार , सुर्ख होठ ।
ऐसा जान पड़ता था की संगमरमर की किसी मूर्ति में प्राण फूँक दिए गए हों।
भोला मंत्रमुग्ध रति को देख रहा था ।
" अब बोलो भी ... क्या हुआ ? " रति की आवाज सुन भोला का सम्मोहन टूटा।
" कुछ नहीं , मैं सोच रहा हूँ की कंही मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ ....तुम्हारी जैसी लड़की क्या कभी मेरे जीवन में आ सकती है ?" भोला ने अजमंजस के भाव लिए पूछा ।
" क्या अब भी तुम्हे यकीं नहीं हो रहा है ? मैं तुम्हारी धड़कनो के इतने करीब हूँ ... फिर यही सवाल बार बार क्यों ? " रति ने भोला के सीने पर मुट्ठी बना धीमे से मारते हुए कहा जैसे नारजगी प्रकट कर रही हो ।
" बस ऐसे ही , मुझे यह विश्वास करने में कठिनाई होती है की तुम जैसी लड़की भी कभी मेरे जीवन में आ सकती है ।तुम महलो में रहने वाली , जीवन को सुख देने वाली सभी वस्तुओं की स्वामिनी , कहानियो में आने वाली परियो जैसी सुंदर , शिक्षित , धन और सौभाग्य की मालकिन .... बीसियो मुझ जैसे नौकर चाकर ..... शहर में जन्मी पली बढ़ी .... विदेशी स्कूल में शिक्षित " भोला एक साँस में सब कुछ बोल देना चाहता था
"और मैं ! क्या हूँ मैं ! एक मजदूर जो तुम्हारे निर्माण हो रहे भवन में दिहाड़ी मजदूरी करता है ...... गाँव के बेहद गरीब परिवार से .. मुश्किल से 10 वीं पास .... रंग रूप में भी अच्छा नहीं ..... तुम्हारा और मेरा मिलन कैसे होगा ?
मैं तो तुम्हारे पैर की जूती के बराबर भी नहीं " भोला बोलते जा रहा था , चिंताए की लकीरे उसके ललाट पर गहरी उभर आयीं थी ।
" कैसे होगा हमारा मिलन? क्या तुम मेरे साथ खुश रह पाओगी ? .... मेरे पास तुम्हे देने के लिए कुछ भी नहीं ... क्या तुम एक मजदूर की संगनी बन जीवन की कठोरता सह पाओगी ?" - भोला रति के चेहरे को अपने दोनों हाथो में लेते हुए पूछा ।
रति की काजल से भरी बड़ी बड़ी आँखे और बड़ी हो गईं , सुर्ख होठो पर एक मुस्कान आ गई ।उसने लेटे लेटे ही भोला के गले में बाहें डाल बोली-
" तुम भी न! सब ठीक हो जायेगा .... प्यार में कोई बड़ा छोटा नहीं होता ..... बेकार की बात मत सोचो अभी .... बस प्यार की महसूस करो .... मैं हूँ न तुम्हारे पास अभी " इतना कह रति ने जोर से भोला को आलिंगन भर लिया ।
भोला , सब भूल एक जादुई दुनिया में खो गया जंहा वह और रति भर थे ।वह रति जिससे वह बेइंतहा प्यार करता था , रति भी उससे प्यार करती थी बिना अमीरी गरीबी देखे ।
रति का नया बंगला बन रहा था , भोला उसी के निर्माण में मजदूरी करता था ।एक दिन रति साईट पर आई अपने पिता के साथ , भोला और रति की नजरे मिली ।
उसके बाद पहल रति ने किया , भोला तो सोच भी नहीं सकता था रति के बारे में तो पहल कैसे करने की हिम्मत करता ।
जब रति ने भोला से प्यार का इजहार किया तो भोला को साहसा यकीं ही न आया था , पर रति के बार बार यकीं दिलाने पर उसने भी सोच लिया की शायद कभी कभी किस्से कहानियॉ की बाते सच हो जाती है जिनमे राजकुमारी किसी गरीब से प्यार करने लग जाती है ।
आज रात रति भोला के उस घर की छत पर थी जंहा वह किराये पर रहता था ।यह एकांत में घर भी रति ने ही उसे दिलवाया था तक़ी वह भोला के घर आ जा सके ।
दो महीने बाद ।
" अरे सर! आपने कुछ लिया नहीं ... प्लीज लीजिये ... वेटर !" यह आवाज थी रति की
" कैसी लगी नॉवेल सर? " रति ने मुस्कुराते हुए पूछा
" कंटेंट्स बहुत ही बढियां है .... क्या भावनाये डाली हैं तुमने राति .... परफेक्ट ... धूम मचा दिया तुमने " ये साहब थे एक बड़े साहित्यकार
" रति , सच कंहू .... मैंने इतने उपन्यास लिखे हैं .... इतने पदक जीते हैं पर जैसा तुमने इस उपन्यास की कहानी के किरदार में उतरी हो वह किसी से न हो सकेगा ...वेल डन ...रति .... आई एम प्राउड ऑफ़ यू ... देखना तुम्हारा यह उपन्यास बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ देगा "- कविता जी जो की एक प्रख्यात लेखिका थी उन्होंने रति के तारीफ़ में कहा ।
ऐसा ही हर कोई कोई कह रहा था , लोग रति के उपन्यास की तारीफ करते नहीं थक रहे थे ।लेखको और साहित्यकारों का पूरा जमवाड़ा था , कई जानी मानी हस्तियां उपस्थित थीं ।ग्रैंड पार्टी थी ।
मौका था रति के नए उपन्यास के विमोचन का ।
रति एक बड़े से स्टेज पर माइक लेके खड़ी थी , पीछे स्क्रीन पर उसके उपन्यास का टाइटल 'प्रेम की देवी' के साथ कहानी के अंश भी चलाये जा रहे थे ।
कहानी थी एक बहुत ही अमीर लड़की को एक गरीब मजदूर से प्यार हो जाता है , लड़की का प्यार सच्चा होता है और अपना सुख ,ऐशो आराम , सामजिक सम्मान त्याग देती है ।सगे संबंधियो के विरोध को सहते हुए अपने प्यार को पाने के लिए सब कुछ छोड़ मजदूर प्रेमी के साथ चली जाती है , उसके बाद दोनों मिल के जीवन की कठिनाइयों से लड़ते हैं और अंत वे दोनों अपने सच्चे प्यार से सब कुछ ठीक कर देते हैं ।
स्टेज पर रति एक बड़े लेखक से अपने उपन्यास की तरीफ़ सुन उसे हाथ जोड़ धन्यवाद दे ही रही थी की एक नौकर ने कान में आके धीरे से कुछ कहा ।
नौकर की बात सुन रति का चेहरा क्रोध से लाल हो गया , वह बिना कुछ बोले चुपचाप स्टेज से उतर नौकर के पीछे हो ली ।
रति नौकर के पीछे पीछे चलते चलते मुख्य बंगले के मुख्य द्वारा पर आ गई ।
मुख्य द्वारा पर दरबानो ने एक मैले कुचैले व्यक्ति को बैठा रखा था ।यह भोला था ।
भोला ने रति को देखा तो उसके चेहरे पर ऐसी मुस्कान आई जैसे बरसो के प्यासे को शीतल जल मिल गया हो ।
वह एक दम से खड़ा हो गया , कुछ कहने वाला ही था की रति ने उसको चुप रहने का इशारा किया और अपने पास आने का इशारा किया ।
रति आगे आगे चल रही थी और भोला उसके पीछे , कुछ् देर में रति एक खाली कमरे में पहुँची जो शायद स्टोर रूम था ।
" क्यों आये हो तुम यंहा ?"
"कितनी बार मना किया है की मुझ से मिलने की कोशिश मत किया करो .... लगता है की तुम्हारी अक्ल में नहीं आता है " रति ने गरजे हुए प्रश्न किया ।
" रति ! तुम तो कहती थी की मुझ से प्यार करती हो ... फिर अचानक तुम्हे यह क्या हो गया ? "
"मैं तुम्हारे वियोग में मरा जा रहा हूँ.... क्या तुम्हारा प्यार एक फ़रेब था ?" भोला ने अश्रुपूर्ण नेत्रो से कहा और पास आना चाहा।
" दूर से बात करो ...अपनी औकात में रहो ..मैंने कितनी बार कहा है की वह सब एक नाटक था " रति ने भोला को झिड़कते हुए कहा ।
" पर मुझ गरीब से क्यों ?यह नाटक मुझ से क्यों " भोला ने आह भर के पूछा ।
" देखो भोला! मैं आखरी बार साफ साफ़ कह देती हूँ ,इसके बाद तुम कभी मुझे नजर नही आना अन्यथा ... अन्यथा अपने अंजाम के तुम खुद जिम्मेदार होंगे "
" मुझे एक उपन्यास लिखना था जिसमे मुझे उपन्यास की नायिका की मनोवृति और भावनाये समझनी थी जो एक गरीब मजदूर से प्यार कर बैठती है " - रति बोले जा रही थी और भोला सब सुन रहा था
" मुझे उस नायिका की भावनाओ को रियलाइज करना था , इसी लिए तुम से प्यार का नाटक किया "
" मुझे भूल जाओ भोला! "
इतना कह रति ने अपने पर्स में से हजार हजार के 10-15 नोट निकाल के भोला के हाथ पर रख दिया । फिर कुछ सोच के उसने हाथ में पकड़ी अपना उपन्यास "प्रेम की देवी" पकड़ाते हुए बोली -
" यह लो ... पढ़ लेना ... 450 रूपये का मूल्य है तुम्हे फ्री में दे रही हूँ " इतना कह वह जोर से हंस दी ।
फिर तेजी से मुड़ी और कमरे से बाहर निकल गई , कुछ दूर जाने के बाद फिर वापस आई और बोली -
" भोला! यह लास्ट वार्निंग है तुम्हे .... दुबारा यंहा मत आना वरना अंजाम वाकई बहुत बुरा होगा तुम्हारे लिया " रति के चेहरे पर चेतवानी के साथ कठोरता थी ।
उसके बाद रति वापस अपने उपन्यास की विमोचन पार्टी में चली गई ।
भोला कुछ देर तक स्तब्द खड़ा रहा , उसने हाथ में पकडे रूपये एक तरफ फेंक दिए ।हाँ किताब सीने से लगा ली और बंगले से बाहर निकल गया ।
कुछ दिनों बाद।
रति एक प्रमुख समाचार पत्र अपने उपन्यास की समीक्षा पढ़ रही थी , उपन्यास के साथ उसकी बड़ी सी फोटो छपी थी ।बड़े बड़े लेखको की प्रसंशा पूर्ण टिप्पणियॉ थी उपन्यास के विषय में । बेस्ट सेलर का अवार्ड जीत लिया था रति के उपन्यास ने ।
उसका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा ।
प्रसन्नता से उसने आँखे बंद कर ली , बड़ी सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर खिल गई ।उसने समाचार पत्र एक तरफ रख दिया और फोन उठा के किसी से एक और बड़ी पार्टी देने की प्लानिंग करने लगी ,उपन्यास के हिट हो जाने के उपलक्ष्य में ।
उसी अख़बार के एक छोटे से कोने में यह खबर भी छपी थी जिसमे एक अज्ञात मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु होना लिखा था , उस व्यक्ति के पास शरीर पर चीथड़े के अतिरिक्त सिर्फ रति का उपन्यास ही मिला था ।
बस यंही तक थी कहानी ....
Superb sanjay ji
ReplyDeletethanks
DeleteSuperb sanjay ji
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
Deleteधन्यवाद संजय जी
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