Saturday, 16 July 2016

निकम्मा -कहानी



" पकड़ो ...पकड़ो ... पकड़ लो .."
" बच के न जाए पकड़ो रे ..."
" पकड़ साले को ..."

बढ़ी हुई दाढ़ी और गंदे से कपड़ो में एक पतला सा व्यक्ति बदहवाश तेजी से भागा जा रहा था , उसके पीछे पागल कुत्तो की तरफ भागती भीड़ में से ऐसी ही आवाजें आ रही थी ।
वह थका हुआ लग रहा था इसलिए बहुत ज्यादा तेजी से नहीं भाग पा रहा था , भीड़ द्वारा पकडे जाने का भय उसकी निस्तेज आँखों में साफ़ झलक रहा था पर वह बिना रुके भागे जा रहा था ।

भीड़ और उसमे फ़ासला निरंतर कम और कम होता जा रहा था ।

अचानक वह व्यक्ति बुरी तरह थक जाता है और धड़ाम से गिर जाता है । भीड़ उसे घेर लेती है , फिर क्या था वहशी भीड़ उस पर टूट पड़ती है ।कोई लात मार रहा था तो कोई थप्पड़ ।
" क्या हुआ भाई ? कौन है यह ?" किसी राह चलते ने भीड़ से पूछा
"बच्चा चोर है ... साला बच्चा चुरा रहा था ...." जबाब आया
" बच्चा चुरा रहा था !!!.... मारो साले को...." राह चलता हुआ व्यक्ति भी भीड़ में शामिल हो गया ।
" नहीं नहीं ... मैं बच्चा चोर नहीं हूँ ... म..म..मेरी बातो सुनो" पिटने वाले व्यक्ति ने हाथ जोड़ते हुए कहा
" साले झूठ बोलता है ...." पर भीड़ कँहा सुन रही थी ,इतना कह भीड़ फिर उस व्यक्ति पर टूट पड़ी

यह पिटने वाला तथाकथित 'बच्चा चोर' था सुनील ।

आज से लगभग साल भर पहले ।

" मेरी बात सुनो विनीता ... मेरी बात तो सुनो ... एक बार और मौका तो दो " लगभग गिड़गिड़ाते हुए सुनील ने कहा
" क्या सुनू? कब तक सुनू?.... चार साल से ज्यादा हो गए सुनते सुनते .. तुम कभी नहीं सुधरोगे " विनीता ने गुस्से में अपना सामान पैक करते हुए कहा
" म.... मैं जल्द ही कोई काम खोज लूंगा ... एक बार और मौका तो दो " सुनील ने विनीता के हाथ से कपडे छीनते हुए कहा
"देखो सुनील अब मैं तुम्हारे साथ और नहीं रह सकती .... चार साल होगये यही सुनते सुनते ... हमारा बच्चा दो साल का हो गया है ... पर तुम्हे कोई परवाह नहीं.... तुम बस इधर उधर निकम्मों की तरह घूमते रहो ... मैं जा रही हूँ .. बस!!" विनीता ने जोर लगा के सुनील के हाथ से कपडा छीन लिया ।

" अच्छा ! आज मैं निकम्मा हो गया , पर शादी के समय तो निकम्मा नहीं था ....मेरा बिजनेस था तब तुम मुझ से बहुत प्यार करती थीं .... आज जब मेरा बिजनेस डूब गया और मैं कंगाल हो गया तो तुम मुझे छोड़ के जा रही हो " सुनील ने ताने मारने के अंदाज में कहा
" बिजनेस ? कब का डूब गया तुम्हारा वो बिजनेस  तीन साल से खाली हो तुम .... एक एक पैसे को तरस गई हूँ मैं
, ऊपर से शराब भी पीने लगे हो .... कल को हमारा बच्चा बड़ा होगा तो कैसे परवरिश करेंगे हम? न तो खुद कोई काम करते हो और न मुझे नौकरी करने देते हो " विनीता भी आज सब कुछ कहने के मूड में थी ।
" बच्चे की पढाई लिखाई सब कैसे करेंगे? ..... दो फ्लोर के फ़्लैट से एक मुर्गी के दड़बे जैसे  कमरे में सिमट गए हम  हैं ... किसी दिन तुम यह भी बेच दोगे अपने निक्कमेपन और शराब की आदत में "
" बस अब और नहीं ... मैं जा रही हूँ " विनीता ने सूटकेस बंद करते हुए कहा ।

" पर बच्चे को तो मेरे पास छोड़ दो " सुनील फिर गिड़गिड़ाया ।
" बच्चे को छोड़ दूँ??पागल हो गए हो क्या ? तुम्हारा खुद का तो तुम्हे होश रहता नहीं .... नशे में धुत्त रहते हो ..... बच्चा संभालोगे ? " विनीता की आवाज में आश्चर्य और गुस्सा था ।
"पर ... मैं सुधर जाऊंगा ... मैं तुम्हारे और बच्चे के बिना नहीं जी सकता " सुनील ने लगभग रोते हुए कहा ।

" तुम नहीं सुधरोगे .... कभी नहीं .... तुम्हे निकम्मेपन और हराम की खाने की आदत पड़ गई है ... तुम नहीं सुधर सकते .... अब तलाक ही लेके रहूंगी तुम से " विनीता का क्रोध बढ़ता गया ।

तड़ाक !!.... जोरदार थप्पड़ सुनील ने विनीता को जड़ दिया ।
" बहुत बोलने लग गई हो तुम ....तुम्हारी माँ ने तुम्हे बिगाड़ के रख दिया है ....देख लूंगा उसको भी... उसकी तो #$% " सुनील ने गुस्से अपनी सास को गलियां दी ।

" खबरदार जो मेरी माँ को गाली दी .... गाली और मार के सिवाय तुम किसी को दे भी क्या सकते हो " थप्पड़ खा के भी विनीता जरा भी विचलित न हुई ।

विनीता ने बच्चे को एक हाथ से गोद में उठाया और दूसरे हाथ से सूटकेस पकड़ तेजी से बाहर निकल गई।

पीछे सुनील रोता रहा ।

उसके बाद विनीता अपनी माँ घर रहने लगी , उसने कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी लगा दी थी ।
इस बीच सुनील कई बार विनीता से मिलने की कोशिस करता रहा पर सफल न हुआ , सिर्फ कोर्ट की तारीख पर ही उससे देख पाता पर विनीता उसकी तरफ देखती भी न थी ।
उसे अपने बच्चे से बहुत प्यार था , वह बच्चे से मिलने की कोशिश करता पर कभी सफल न हो पाता ।

आज से 6 महीने पहले कोर्ट में विनीता का तलाक मंजूर हो गया था , चुकी सुनील तीन साल से बेरोजगार था ही शराबी और हो गया था इसलिए केस विनीता ने जीत लिया था ।

कोर्ट ने बच्चे को विनीता को सौंप दिया था ।विनीता अब सुनील के साये से भी बच्चे को दूर रखती थी , अगर वह कभी अपने बच्चे को देखने भी जाता विनीता के घर तो उसके सास -ससुर , साले आदि उसे दुत्कार के भगा देते ।

कुछ दिन पहले सुनील ने सुना की विनीता की शादी कंही और पक्की कर दी गई है और वह बच्चा भी साथ ले जायेगी ।

सुनील को बहुत मानसिक आघात लगा , वह और शराब पीने लगा था । चौबीसो घण्टे नशे में रहता ताकि बच्चे की ययाद भुला सके । उसका शरीर सूख के पतला दुबला हो गया था , दाढ़ी बढ़ गई थी शायद ही कोई पहचान पाता की यह वही पहले वाला सुंदर और बलिष्ठ सुनील है ।

एक दम भिखारी और पागलो वाली हालत हो गई थी उसकी ।

पर वह बच्चे की याद न भुला सका , वह अपनी ससुराल में चक्कर काटने लगा की जिस दिन उसका बच्चा दिख गया उसी दिन उसे लेके भाग जायेगा।

आज के  दिन उसे मौका मिल ही गया, बच्चा बहार खेल रहा था उसकी विनीता दरवाजे पर बैठी थी ।
सुनील अचानक आया और अपने बच्चे को उठा भागने लगा ।उसकी पीठ विनीता की तरफ थी , बच्चा यूँ अपने को उठाने पर जोर से चिल्लाया । बच्चे के चिल्लाने की आवाज से विनीता का ध्यान उस पर पड़ा , वह जोर से चिल्लाई ।

" मेरा बच्चा .... चोर ... चोर ... बचाओ "

इतना सुनते ही भीड़ उसके पीछे थी ।

सुनील घबरा गया और अपने पीछे आती भीड़ देख के उसने बच्चे को छोड़ दिया और भागने लगा ।
विनीता ने भाग के बच्चे को अपने गोद में ले लिए और घर की तरफ भाग आई ।

सुनील भाग रहा था और भीड़ उसके पीछे थी ।
सुनील पकड़ा गया था ।
" मारो ... मारो.... "
" बच्चा चोर .... साला"
" बचने न पाये ...."

सुनील पर कितने लात घुसे पड़े कोई गिनती नहीं थी , वह बेहोश हो चुका था पर भीड़ जो पहले से ही अपने अपने दुखो से फ्रेस्टेड होती है उसे सुनील के रूप में अपने गुस्से को उतारने का साधन मिल गया था ।

कुछ ही मिनटो में सुनील का शरीर शांत और निढल हो गया ।
पुलिस के आने से पहले उसकी मौत हो चुकी थी ।
भीड़ ने उसका निकम्मापन हमेशा के लिए दूर कर दिया था ।


बस यंही तक थी कहानी ......



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