Friday, 23 September 2016

ओ बी सी आरक्षण और पिछड़ी जातियां

यदि आज आरक्षण की बात की जाती है तो लोगो की नज़रे sc/st  को मिले आरक्षण पर आके टिक जाती हैं ।
obc आरक्षण लगभग लोगो की नज़रो से ओझल ही हो जाता है , दोष निकालने और बहस का मुद्दा केवल दलित केंद्रित हो जाता है तथा अपने को पिछड़ी कहलाने वाली  जातियां जो आरक्षण का सर्वाधिक लाभ लेती हैं वे इस बहस में सुप्त अवस्था में चली जाती हैं किन्तु लाभ लेने के लिए रेल की पटरियां उखाड़ देने, सड़के जाम करने और हिंसा का सहारा लेने तक में पीछे नहीं रहती ।

यह सत्य है की ब्राह्मण ने अपने लाभ के लिए वर्ण और जातियों में समाज को बांटा,अस्पर्शयता ब्राह्मणवाद का ही निर्माण है जिसके कारण एक बड़ा वर्ग अछूत बना दिया गया और समाज में उसे पशुओ से भी बदतर हालत पहुंचा दिया गया ।

सामज में अछूतो को जो सामाजिक भेदभाव और शोषण सहना पड़ा वह मात्र ब्राह्मण द्वारा ही नहीं अपितु अपने को शुद्र कहलाने वाली जातियों द्वारा भी भरपूर शोषण और जातीय हिंसा का शिकार होना पड़ा है ।

यादव, गुर्जर, जाट, लोध, आदि बहुत सी अपने को आज  पिछड़ी कहलाने वाली जातियो ने वही सामजिक भेदभाव और अत्याचार किया है जो तथाकथित तीनो उच्च वर्णों ने ।कई मामलो में तो ये पिछड़ी कहलाने वाली जातियां ज्यादा हिंसात्मक और शोषणकारी रहीं है ब्राह्मण की अपेक्षा।

उत्तर प्रदेश,बिहार के यादवो दलितों पर ब्राह्मण की अपेक्षा अधिक भेदभाव और अत्याचार करते हुए मिलेंगे ।हरियाणा ,राजस्थान के जाट -गुजर्र ब्राह्मण से कंही अधिक जातीय भेदभाव की संक्रीण मानसिकता से ग्रस्ति होंगे दलितों के प्रति ।
आपको उत्तर प्रदेस की घटना याद होगी की एक यादव का कुत्ता दलित के घर रोटी खा लेता है तो यादव परिवार उस कुत्ते को अछूत घोषित कर दलित परिवार पर अत्याचार करता है ।यादवो द्वारा बिहार उत्तर प्रदेस में प्रत्यक्ष  जातीय भेदभाव जनित अछूतो पर  अत्याचार आम है ।

हरियाणा में तो यदि कोई दलित जाटो के पानी पीने का स्रोत छू भी ले तो उसके हाथ काट दिए जाते हैं ( यह प्रमुख घटना है हरियाणा की )।राजस्थान में यदि जाटो - गुर्जरो के बराबर खाट पर दलित बैठ जाए तो उनका क़त्ल कर दिया जाता रहा है ।ऐसे उदहारण आपको लगभग रोज ही मिल जायेंगे जिनमे इन तथाकथित पिछड़ी जातियों ने दलितों के साथ जातीय मानसिकता के चलते कोइ न कोई  अत्याचार कर रहे हैं ।यदि दलित और अपने को पिछड़ी कही जाने वाली जातियां के बच्चों में भूले से प्यार भी हो जाए तो दलित पक्ष का क़त्ल सरेआम कर दिया जाता है ,घर और मोहल्ले तक में आग लगा दी जाती है ।

कुछ दिन पहले की घटना में राजस्थान के  जाटो ने दलितों की जमीन पर कब्ज़ा करने के लिए कई लोगो को ट्रेक्टर से कुचल के मार दिया था ।

मंडल सूचि के अनुसार यादव , जाट , गुर्जर , लोध तथा इनके समतुल्य जातियां  obc आरक्षण ले रही हैं ।मंडल सूचि  द्वारा आरक्षित यादव, जाट, गुर्जर, लोधी तथा इनके समतुल्य जातियो का सामजिक व्यवहार दलितों के प्रति कमोवेश ऐसा रहा की दलितों का सम्मान के साथ जीना दूभर रहता है ।

मंडल आयोग का गठन 1जनवरी 1979 को संविधान की धारा 340 के तहत हुआ था ।धारा 340 में पिछड़े वर्गो की दशा पर एक आयोग के गठन का प्रधिकार है ।
ज्ञात रहे की इस धारा में  आरक्षण(राईट तो रिपर्जनटेशन) का उल्लेख तक नहीं है  उल्लेख है तो मात्र ग्रांट्स का अर्थात पिछड़े वर्ग आयोग का अधिकार क्षेत्र आर्थिक  मुद्दों से अधिक न था ।
किन्तु राजनैतिक मज़बूरी के चलते पिछड़ा आरक्षण लागू हुआ  ।इस मंडल आयोग में मात्र एक दलित सदस्य थे एल आर नायक जिन्होंने मंडल आयोग के संस्तुतियो पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था और मंडल आयोग का विरोध किया था ।उनका तर्क था की मंडल में समल्लित जातियो को दो सूचि में बाँट दिया जाए एक पिछड़ा और दूसरा अति पिछड़ा क्यों की यह पिछड़ी जातियो में जिन्हें शामिल किया गया था वे वास्तव में पिछड़ी नहीं रही थी अतः यादव ,कुर्मी,जाट ,गुर्जर आदि जातियां अति पिछड़े जैसे नई,भर, माली, कुम्हार, कहार,ठठेरा आदि सैकड़ो अति पिछड़ी जातियो का हक़ मार लेंगी ।

इस पर बी पी मंडल नायक का ऐसा जबाब देते हैं की फासीवादी ताकते भी शर्मा जाए । मंडल जी ने कहा - इसमें कोई दो राय नहीं की पिछड़े वर्ग के आरक्षण और अन्य कल्याणकारी योजनाओ को पिछड़े वर्ग के अगड़े तबके मार ले जाएंगे किन्तु क्या यह सार्वभौमिक बात नहीं है ?आयोग के आरक्षण का मुख्य गुण यह नहीं की वह पिछड़े वर्ग समानता लाएगा बल्कि आरक्षण उच्च जातियो की नौकरियों से पकड़ कमजोर करेगा "।


कितनी विडम्बना की बात है की जिस मंडल आयोग का उद्देशय समानता कहा जा रहा था वह असमानता पर टिका था ।

यही कारण है आज अति पिछड़ी जातियां जैसे भर , कुम्हार, कहार, नाइ, आदि हाशिये पर डाल obc आरक्षण केवल यादवो, जाटो , गुजरो और इनके समतुल्य जातियो तक सिमित रह गया है ।

वास्तव मे यादव और इनके समतुल्य जातियां कभी सामजिक रूप भेदभाव का शिकार रही ही नहीं , एक यादव ,जाट -गुर्जर सर पर मटका ले गली गली दूध बेच सकता है और कोई भी बिना भेदभाव के उससे दूध ख़रीद लेता है ।किन्तु क्या किसी दलित जाति का व्यक्ति इस प्रकार दूध या खाने पीने की चीजे खुले में बेच सकता है ?
नहीं !

तो, सरकार को जरुरत है एक बार obc आरक्षण की समीक्षा करने की और जो पिछड़ी दबंग जातियां है उन्हें हटा वास्तविक पिछड़ी जातियो को obc आरक्षण का लाभ  देने की ।

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