Thursday 13 October 2016

जानिये क्या है मनोचकित्सा

मेरे एक रिस्तेदार हैं( किसी कारण से उनका  नाम नहीं ले सकता) . कल उनके घर जाना हुआ तो पता चला की उनकी पत्नी कई दिनों से बीमार हैं , कई डॉक्टर्स से उन्हें दिखाया किन्तु कोई लाभ न हुआ ।उनका दावा है की डॉक्टर्स तो उनकी पत्नी के रोग के बारे में पता भी न कर पाएं ।
इसलिए थक हार के वे निराश हो चुके थे तब एक दिन किसी पडोसी ने उन्हें गाजियाबाद के एक बाबा का नाम बताया ।यह बाबा मंत्रो के जरिये लोगो को ठीक करता है , मन्त्र मार जल पीने को देता है मरीजो को ।

उस तांत्रिक के अभिमंत्रित जल से रिस्तेदार की पत्नी ठीक होने लगी हैं और पहले से आराम है ऐसा वह कह रहे हैं ।
पर ,जंहा तक मुझे समझ आया है की यह सब ढोंग है ,वह बाबा लोगो को मुर्ख बना रहा है । तन्त्र मन्त्र से ठीक होने का दावा करने वाला व्यक्ति 99.9% कंही न कंही मनोरोगी होता है जिसके बारे में उसे भी नहीं पता होता है ।

मनोचकित्सको के अनुसार मनोरोग सैकड़ो प्रकार के होते है जिसे फोबिया भी कहते हैं ,अमूमन भारत में मनोरोग के बारे में बहुत कम जागरूकता है ।गाँव -देहात में ही नहीं शहरों में भी लोग या तो मनोरोग के बारे में जानते ही नहीं या मानते ही नहीं की उन्हें मनोरोग हुआ है ।जबकि अधिकतर व्यक्ति मनोरोग के शिकार होते हैं जिसमे सनक से लेके पागलपन तक शामिल है ।

मेरा एक मित्र है जो मंगलवार को शराब नहीं पीता जबकि अन्य दिन खूब पी सकता है । मंगलवार को शराब या मांस से परहेज करने वाले आप के आस पास भी बहुत होंगे ।इसका कारण बेशक वे 'श्रद्धा 'अथवा 'आस्था ' कहें किन्तु मनोचकित्सको के अनुसार यह 'मनोरोग ' है ।
यदि भूल से वह व्यक्ति मंगलवार को मांस या शारब पी ले तो उसे यह भयंकर अपराध बोध लगेगा जो और यह अपराधबोध सामान्य से पागलपन की हद तक जा सकता है ।जिसमे यदि व्यक्ति का कभी कोई अनिष्ट हो जाता है तो उसका कारण वह उसी अपराधबोध को मानेगा , अतः वह टोने टोटके करेगा या पागलपन वाली हरकत करेगा। यही मनोरोग है ,यह कम या ज्यादा इस पर निर्भर करेगा की वह आपनी आस्था के प्रति कितना अंधभक्त है ।

आपने अभी हाल की घटना सुनी या पढ़ी होगी की एक जैन परिवार ने आस्था के चलते अपनी 13 वर्षीय पुत्री को 64 दिनों से उपवास पर रखा जिसके चलते उस लड़की की मृत्यु हो गई ।यह मनोरोग का चरम था जिसके चलते परिवार ने लड़की को भूँखा मार दिया ।


प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रायड ने सिद्ध किया था की मानव मन के तीन धरातल होते है जो इस प्रकार है -
1-चेतन
2-अचेतन
3-अवचेतन

मन तीन प्रकार के कार्य करता है -इच्छाओ का निर्माण, इच्छाओं पर नियंत्रण और उनकी संतुष्टि ।
पहला काम भोगा पर आश्रित मन का है ,दूसरा नैतिक मन का और तीसरा अहंकार का ।इच्छाओं का निर्माण अचेतन मन में होता है , उसका नियंत्रण अवचेतन मन में और उसकी संतुष्टि चेतन मन में ।
जब भोग की इच्छित मन और नैतिक मन का संघर्ष अवचेतन मन में चला जाता है और इच्छाओं को संघर्षपूर्वक कठोरता से नैतिक मन द्वारा  दबा दिया जाता है तब यह संघर्स  अचेतन मन में चलने लगता है तब यही संघर्ष ही ' रोग' बन जाता है ।यह इच्छाये अनगिनत प्रकार की हो सकती है अतः मनोरोग भी अनगिनत प्रकार के होते हैं ।

फ्रायड ने इस संघर्ष से व्यक्ति के मन को मुक्त करने की प्रक्रिया को ही ' मनोचकित्सा 'कहा है ।अचेतन मन में चल रहे नैतिक और इच्छित मन के संघर्ष के रेचन और चेतन मन को संतुष्टि ही मनोचकित्सा है ।

बहुत बार ऐसा होता है की लंबे समय तक डॉक्टर्स की  दवाइयाँ खाने के बाद व्यक्ति जब ठीक होने की अवस्था में पहुंचता है तब वह बाबा या तांत्रिक की शरण में पहुँच जाता है ।चुकी उस उसे लगता है की दवाइयाँ खाने से कुछ नहीं हो रहा है इसलिए वह बाबा पर आस्था रख के आता है , और यही आस्था उसे यह विश्वास दिलाती है की बाबा उसे ठीक कर देंगे ।बाबा उन्हें अहसास दिला देता है की उसका मन्त्र तंत्र उसे ठीक कर देगा , तब यब आस्था काम आती है और दवाईयो का श्रेय बाबा ले जाता है ।चेतन मन संतुष्ट हो जाता है और मरीज को लगता है की वह ठीक हो गया है।

यही सब मेरे उस रिस्तेदार की पत्नी के साथ भी हुआ , बाबा के प्रति आस्था और उसका विश्वाश दिलाने से उनके चेतन मन को संतुष्टि हुई और उन्हें लगा की वह ठीक हो रही हैं ।जबकि तंत्र मन्त्र केवल बकवास है और इससे कोई लाभ नहीं होता ।


No comments:

Post a Comment