Sunday 27 November 2016

प्रवचन

"धन का लोभ मनुष्य को अनैतिकता की ओर ले जाता है ...मनुष्य क्या लेके आया है और क्या लेके जायेगा? ये तेरे महल अटारी सब कुछ यही रहने वाले है ..... फिर काहे का लोभ ?काहे का संग्रह करे है मुर्ख प्राणी? धन का लोभ काहे करे ? सब ईश्वर के चरणों में अर्पण कर के अपनी आत्मा साफ़ कर ले प्राणी ....ओम.... ओम.." इतना कह ललाट पर चन्दन और रोली से त्रिपुंड रचाये ,भरे गालो के साथ मटके जैसा पेट लिए गले में रुद्राक्ष के साथ सोने की मोटी दो तीन चैन पहने । हाथो में मोटे मोटे रंग बिरंगे नगो की मुद्रिकाएँ धारण किये ऊँचे मंच पर विराजमान महंत चतुरानन्द कुछ देर के लिए खामोश हो गए । फिर एक चांदी की कटोरी में से कुछ मिश्री और मुनक्के के दाने उठा मुंह में रख लिया ।

सामने बैठी भक्तो की संख्या जो हजारो में थी एक साथ जय जयकार कर उठी । महंत जी मुस्कुरा दिए और दोनों हाथ उठा के आशीर्वाद फेंका भक्तो पर । भक्त फिर मुग्ध हो कह उठे -
"बाबा चतुरानन्द की .....जय
"भगवान् चतुरानन्द की ....जय जयकार हो ..."

महंत जी फिर मुस्कुराये और दोनों हाथों से आशीर्वाद फेंक पुनः माइक से मुखातिब हुए ।

"आज भारत में अन्य समस्याओं की तरह दो समस्याएं मुख्य हैं पहली समस्या है भिखारी .....जी हां भिखारी ..भिखारी को भीख देना भारत की समस्या और  बढ़ा देता है ।भिखारी को भीख देखे हम उनके निठल्लेपन को और बढ़ा देते हैं अतः भिखारीयों को मेहनत की शिक्षा दें ताकि वे मेहनत कर अपनी जीविका चला सके ।छोटा मोटा मेहनत का काम भी आत्मगौरव का काम है भीख मांग कर खाना नीच कार्य है ,निठल्लों और कामचोरों का काम है "

महंत जी की बात ख़त्म हुई ही थी की भक्तो ने जोरदार तालियां बजा के उसका समर्थन किया ।

"बोलो भगवान् चतुरानन्द की ..."
जय....हो...

महंत जी मुस्कुराएं और दोनों हाथ उठा के आशीर्वाद फेंका ।

" भक्तो हमें पता चला है की कुछ भक्त  दान दान पेटी में नहीं डाल के किसी को भी पकड़ा देते हैं ,कृपया अपना दान दान पेटी में ही डाले या दान देखे पर्ची कटवा लें ...मनुष्य को अधिक से अधिक दान देना चाहिए ....क्या लेके आया है और क्या लेके जायेगा ...धर्म के नाम पर जितना निकल सके खर्च कीजिये ,जी खोल के दान पेटी में दान दीजिये...ओम ...ओम..." इतना कह महंत जी फिर खामोश हुए मिश्री की डली उठाने के लिए ।
भक्तो ने फिर जयकारा लगाया ।

वे माइक की तरफ मुख़ातिब होने वाले ही थे की एक बहुत ही खूसूरत बाला मंच के पीछे से निकल के आई ,गेरुआ वस्त्र पहने कोई साध्वी लग रही थी।आते ही उसने महंत जी को दोनों हाथ जोड़ के प्रणाम किया और अपना चेहरा महंत जी के कान के पास लाते हुए फुसफुसाई । महंत जी ने तुरंत माइक स्विच ऑफ कर दिया ।

"भगवन, सेठ पन्नालाल आये हैं ... कह रहे हैं कि दस करोड़ हैं ,एक नम्बर में कन्वर्ट करवाना है ...अर्जेन्ट। " युवती ने फुसफुसाते हुए कहा
"हम्म.... उससे कहो की शाम  को आये " महंत जी ने सोचते हुए कहा ।
"और हाँ.... बोलो की पिछली बार की तरह 20% नहीं बल्कि  30% में काम होगा ...खर्चे बढ़ गए हैं ...  " महंत जी ने अपनी बात पूरी की ।
"जी,जो आदेश "युवती ने रहस्मय प्यार भरी मुस्कुराहट के साथ झुकते हुए कहा ।
महंत जी बदले में युवती का हाथ दबाते हुए मुस्कुरा दिए और फिर माइक संभाला।

"तो भक्तो !दूसरी समस्या है काला धन ....हमें इन काला धन रखने वालों का बहिष्कर करना चाहिए ,ये काला धन रखने वाले देश को खोखला कर रहे हैं ....ओम..... ओम...."

पंडाल फिर भक्तो की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।


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